सुरेन्द्र कुमार वर्मा
पंजाब भले ही सबसे ज्यादा मतदान का अपना नया कीर्तिमान बनाने से चूक गया हो, लेकिन क्या इस बार किसी नए दल या गठबंधन को सरकार बनाने का मौका मिलता है. कांग्रेस और अकाली दल के इतर आम आदमी पार्टी को उम्मीद है कि वह राज्य में पहली बार सरकार बनाने में कामयाब होगी. जबकि भाजपा गठबंधन भी अपना दावा कर रहा है.
पंजाब में इस बार का विधानसभा चुनाव इस मायने में बेहद खास है क्योंकि मुकाबला द्वीपक्षीय होने के बजाए चतुष्कोणीय दिख रहा है और हर पार्टी या गठबंधन अपनी-अपनी जीत की दावेदारी ठोक रहा है. 90 के दशक में आतंकवाद के खात्मे के बाद से पंजाब जब अमन-चैन की राह पर लौटा तो यह उन चंद राज्यों में शुमार हो गया जहां के मतदाता अपनी राय रखने में मुखर माने जाते रहे और बड़ी संख्या में लोग पोलिंग बूथ पर जाते रहे. परिणाम यह रहा कि इस साल से पहले हुए पिछले 3 चुनावों में यहां पर मतदान का प्रतिशत 75 फीसदी (71.95%) से ज्यादा ही रहा.
पंजाब में पिछले 3 विधानसभा चुनाव को लेकर वोटर्स का जो ट्रेंड रहा उससे यही लगता था कि इस बार यह रिकॉर्ड टूट जाएगा और एक नया रिकॉर्ड बनेगा, वह भी तब जब राज्य में पहली बार मुकाबला चतुष्कोणीय दिख रहा है. इस बार पंजाब में 70% से ज्यादा मतदान हुआ लेकिन 15 सालों में यह सबसे कम मतदान के रूप में दर्ज हुआ. हालांकि राज्य में इस बार पांचवां सबसे ज्यादा मतदान हुआ है. राज्य में सत्तारुढ़ कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन के अलावा भारतीय जनता पार्टी कैप्टन अमरिंदर सिंह की पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस (Punjab Lok Congress) तथा शिरोमणि अकाली दल (संयुक्त) के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है. अब तक मुकाबला कांग्रेस और अकाली दल के बीच हुआ करता था, लेकिन अब मुकाबला इससे आगे बढ़ गया है.
1951 से यहां पर हो रहे विधानसभा चुनाव पर नजर डालें तो आतंकवाद से पीड़ित पंजाब में जब 1992 में चुनाव हुआ तो अकाली दल और अलगाववादी गुटों ने चुनाव का बहिष्कार किया था जिससे महज 23.8 फीसदी मतदान हुआ था. इस चुनाव को छोड़ दें तो मतदान औसतन 60 के करीब ही हुआ. राज्य में अब तक 16 बार हुए विधानसभा चुनाव में 6 बार 70 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ, जिसमें 3 बार यह आंकड़ा 75 फीसदी के पार चला गया. शुरुआती दो चुनावों (1951-52 और 1957 के चुनाव) में मतदान का औसत 58 फीसदी रहा, लेकिन इसके अलावा हर चुनाव (1992 के चुनाव को छोड़कर) में मतदान का औसत 60 फीसदी से ऊपर ही जाता रहा.
2012 के चुनाव में बना रिकॉर्ड
देश के सबसे संपन्न राज्यों में से एक पंजाब में जब शांति और अमन-चैन कायम हुआ तो वहां पर विकास भी तेजी से हुआ. लोगों में राजनीतिक जागरुकता भी तेजी से आई. 1992 में अकाली दल और कई अन्य गुटों के बहिष्कार तथा खौफ की वजह से चुनाव में लोग मतदान के लिए बाहर नहीं निकले और महज 23.8 फीसदी वोटिंग ही दर्ज हुई. लेकिन 5 साल बाद वहां की फिजा बदल गई और लोगों में आतंकवाद को लेकर खौफ जाता रहा. इसका असर अगले चुनाव में दिखा.
1997 के विधानसभा चुनाव में पंजाब में 68.7 फीसदी वोटिंग हुई. फिर 2002 के चुनाव में वोटिंग प्रतिशत में गिरावट जरुर आई लेकिन जितना मतदान हुआ उसे बढ़िया मतदान की श्रेणी में रखा जा सकता है. इस बार के विधानसभा चुनाव में 65.1 फीसदी वोटिंग हुई. इसके बाद तो पंजाब में वोटिंग का प्रतिशत नई ऊंचाइयां छूता रहा.
2007 के विधानसभा चुनाव में पंजाब में भारी मतदान का नया रिकॉर्ड बना और तब पहली बार राज्य में 75 फीसदी से ज्यादा वोटिंग दर्ज हुई. 38 साल बाद यहां पर वोटिंग का प्रतिशत 70 फीसदी को पार कर गया. इस बार राज्य में 75.4 फीसदी मतदान हुआ जो अपने आप में रिकॉर्ड बना. 5 साल बाद फिर से राज्य में चुनाव हुआ और 2012 के विधानसभा चुनाव में पंजाब की जनता ने फिर से खुलकर मतदान किया और एक और नया कीर्तिमान स्थापित किया. इस बार 78.6 फीसदी मतदान हुआ. 2017 के चुनाव में यही अंदाज बना रहा और 78 फीसदी के करीब वोटिंग हुई यानी 78.2 फीसदी.
90 के दशक से पहले का क्या रहा औसत
पंजाब को 2 हिस्सों में बांट सकते हैं. पहला 90 के दशक में शुरू हुए आतंकवाद से पहले का पंजाब और आतंकवाद के खात्मे के बाद का पंजाब. 1951-52 के चुनाव में पंजाब में 57.8 फीसदी वोटिंग हुई, जबकि 1957 के चुनाव में 57.7 फीसदी मतदान हुआ था. जैसे-जैसे पंजाब आगे बढ़ता गया वहां पर वोटिंग का प्रतिशत भी बढ़ता चला गया. 1962 के चुनाव में पहला बार 60 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ और रिकॉर्ड बना 63.4 फीसदी का.
इसके 5 साल बाद हुए चुनाव में पंजाब ने फिर नया कीर्तिमान रचा और 70 फीसदी से ज्यादा वोटिंग दर्ज हुई. 1967 में रिकॉर्ड 71.8 फीसदी वोटिंग हुई थी. हालांकि इस विधानसभा का कार्यकाल लंबा नहीं रहा और 1969 में फिर से विधानसभा चुनाव कराया गया जिसमें जनता ने जोरदार उत्साह दिखाया और फिर से नया रिकॉर्ड बनाते हुए 72.2 फीसदी वोटिंग कर डाली.
फिर एक दौर ऐसा आया जब भारी मतदान होता रहा लेकिन नया रिकॉर्ड पर ब्रेक लग गया था. अगले 4 विधानसभा चुनाव में वोटिंग का प्रतिशत 65 फीसदी से 68 फीसदी के बीच झूलता रहा. 1972 में 68.6 फीसदी, तो 1977 में 65.3 फीसदी, 1980 में 64.3 फीसदी और 1985 में 67.5 फीसदी मतदान हुआ. इस वक्त पंजाब में आतंकवाद हावी हो चुका था और हर ओर हिंसा की खबरें आ रही थीं. ऐसे में राज्य में अमन चैन कायम होने तक चुनाव नहीं कराए गए और अगला चुनाव 7 साल बाद 1992 में कराया गया.
बात अब 2022 के चुनाव की. पंजाब में इस बार मतदान का औसत 72 फीसदी के करीब रहा. राज्य की ग्रामीण सीटों पर जमकर वोटिंग हुई लेकिन शहरी सीटों पर मतदाताओं का जज्बा ज्यादा नहीं दिखा. माना जा रहा है कि वोटर्स ने बदलाव के लिए वोट नहीं दिए हैं. मुकाबला बहुकोणीय हो गया है और अब राज्य में कोई कद्दावर नेता नहीं रहा. सबके अपने-अपने वादे हैं और वोटर्स का इन वादों पर ज्यादा भरोसा नहीं रहा. ऐसा में कहा जा रहा है कि मतदाताओं ने पूरे राज्य को आधार मानने की जगह प्रत्याशी का छवि देखकर और विधानसभा क्षेत्र के आधार पर वोट किया है.
पंजाब भले ही इस बार सबसे ज्यादा मतदान का अपना नया कीर्तिमान बनाने से चूक गया हो, लेकिन क्या इस बार किसी नए दल या गठबंधन को सरकार बनाने का मौका मिलता है. कांग्रेस और अकाली दल के इतर आम आदमी पार्टी को उम्मीद है कि वह राज्य में पहली बार सरकार बनाने में कामयाब होगी. जबकि भाजपा गठबंधन भी अपना दावा कर रहा है. अब सभी 1304 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है और अब जब 10 मार्च को मतगणना होगी तो परिणाम के जरिए पता चलेगा कि जनता ने किसे अपना मत दिया है.
सौजन्य : टीवी 9
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