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पराली जलाई तो घटेगी कमाई, किसानों के साथ सभी का होगा नुकसान

November 10, 2021 By Guest Author

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अनुराग मिश्र/विवेक तिवारी

पराली जलाने को लेकर किसानों और सरकार में ठनी

पराली जलाने से जहां एक तरफ प्रदूषण की समस्या बढ़ती है तो वहीं इस कारण से जमीन भी बंजर होने लगती है। जमीन के बंजर होने का असर सीधे तौर पर फसल के उत्पादन व किसान की कमाई पर पड़ता है।

10 नवम्बर, 2021 – नई दिल्ली : दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति गंभीर है। अक्तूबर माह में दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर रोजाना अति गंभीर स्थिति को भी पार कर जाता है। प्रदूषण बढ़ने की सबसे बड़ी वजहों में से एक बड़ा कारण पराली का जलाना माना जाता है। पराली जलाने से जहां एक तरफ प्रदूषण की समस्या बढ़ती है तो वहीं इस कारण से जमीन भी बंजर होने लगती है। जमीन के बंजर होने का असर सीधे तौर पर आपकी कमाई पर पड़ता है।

पराली जलाने से जमीन हो रही बंजर

कार्बन का नाम सुनते ही लगता है कोई खराब चीज है। आंखों के सामने काला धुआं दिखने लगता है। लेकिन ये कार्बन न हो तो आपको पेट भरने के लिए अनाज मिलना मुश्किल हो जाएगा। किसानों के हर साल पराली जलाने से जमीन में ऑर्गेनिक कार्बन में कमी आ रही है। इस ऑर्गेनिक कार्बन की कमी से जमीन बंजर हो सकती है। आईसीएआर के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डॉक्टर ए.के.सिंह के मुताबिक किसान पराली को जला कर अपने खेतों को बंजर बना रहे हैं। मिट्टी के लिए ऑर्गेनिक कार्बन बेहद जरूरी है। अगर मिट्टी में इसकी कमी हो जाए तो किसानों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल फर्टिलाइजर भी काम करना बंद कर देंगे। इसका फसलों पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। अच्छी फसल के लिए मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन होना बेहद जरूरी है। मिट्टी में सामान्य तौर पर अगर आर्गेनिक कार्बन 5 फीसदी से ज्यादा है तो अच्छा है। लेकिन पिछले कुछ सालों में देश के कई हिस्सों में मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा 0.5 फीसदी पर पहुंच गई है जो बेहद खतरनाक स्थिति है।

पराली नहीं जलेगी तो बढ़ेगी कमाई और हरियाली

आईसीएआर के डिप्टी डायरेक्टर जनरल डॉक्टर ए.के.सिंह कहते हैं कि अगर किसान पराली न जलाए तो दूरगामी परिस्थिति में उनकी आय बढ़ सकती है। संभव है कि किसानों को जब तक ये बात समझ आए बहुत देर हो चुकी हो। लेकिन अगर वो इस बात को समझ जाएं तो उनकी आय तो बढ़ेगी ही उनके खेतों में हरियाली भी बढ़ेगी। देश के कई इलाकों में मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन की कमी दर्ज की जा रही है जिसको लेकर विशेषज्ञ चिंता जता रहे हैं।

नहीं होगा प्रदूषण, ऐसे खाद में बदल जाएगी पराली, दिल्ली में बायो डिकम्पोजर  का छिड़काव शुरू - Delhi Bio decomposer Pusa institute Parali Compost CM  Arvind Kejriwal - AajTak

पराली का ऐसे कर सकते हैं इस्तेमाल

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने पूसा डीकंपोजर विकसित किया है। इसके इस्तेमाल से किसानों को खेतों में पराली जलानी नहीं पड़ती, पर्यावरण को बिल्कुल नुकसान नहीं पहुंचता और मिट्टी की उर्वरा शक्ति में भी बढ़ोतरी होती है।

इस तरह काम करता है पूसा डीकंपोजर

पूसा डीकंपोजर कैप्सूल के तौर पर मिलते हैं। इनका घोल तैयार कर खेतों में छिड़काव किया जाता है। एक एकड़ क्षेत्र में छिड़काव करने के लिए 10 लीटर घोल की जरूरत होती है। छिड़काव के बाद पराली के अपघटित होने में लगभग 5 दिन का समय लगता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, पूसा डीकंपोजर के इस्तेमाल से मिट्टी में कार्बन और नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है। इससे अगली फसल की पैदावार ज्यादा होती है।

समझिए क्यों जरूरी है कॉर्बन आपकी मिट्टी के लिए

आर्गेनिक कार्बन व सल्फर मिट्टी में पाए जाने वाले सूक्ष्म तत्व होते हैं। इन्हीं से पौधों का विकास होता है। इनकी कमी से पौधे विकसित नहीं होते और रोगों से लड़ने की क्षमता भी कम हो जाती है। फसलों की पत्ती पीली पड़ने लगती है। मिट्टी में अगर इसकी मात्रा 0.5% फीसदी से कम हो तो ऐसे इलाके मरुस्थल या बंजर इलाके होते हैं। अगर किसी मिट्टी में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा 12 से 18 फीसदी है तो उसे आर्गेनिक सॉयल कहा जाता है। इस तरह की मिट्टी वेटलैंड या बाढ़ वाले इलाकों में बाढ़ के जाने के बाद मिलती है। और यकीन मानिए इस तरह की मिट्टी में कोई फसल लगाने पर आपको केमिकल फर्टिलाइजर पर पैसे खर्च करने की जरूरत नहीं होगी।

ठंड और पाला का प्रतिकूल असर

जैविक कार्बन की कमी के कारण ज्यादा-कम तापक्रम, दिन-रात के तापक्रम में अधिक अंतर, अधिक ठंड व पाला से फसलों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

फसलों पर कीटों और बीमारियों का असर

फसलों पर कीटों व बीमारियों का असर ज्यादा पड़ता है। कम पोषक तत्वों वाली जमीन में उत्पादित धान खाने से मनुष्य के स्वास्थ्य पर कुप्रभाव पड़ता है।

सौजन्य : दैनिक जागरण


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