राम गोपाल
पिछले दो वर्षों से कोरोना महामारी के कारण मानव जाति परेशान हैं। अर्थव्यवस्था की हालत पस्त हो गई है। व्यापार, व्यवसाय और नौकरियों पर भी आफत आई हुई है लेकिन इसी दौरान प्रकृति ने राहत की सांस ली है। जो प्रकृति मानव जीवन को सुचारू रूप से चलाती है। वही प्रकृति मानव से बर्बाद हो रही है। यदि हमने इस समय नहीं सोचा तो कब सोचेंगे कि प्रकृति हमें बहुत कुछ देती है लेकिन हम भी तो कुछ देना सीखे। दरअसल, यह एक ऐसा संक्रमण काल चल रहा है जब हमें सोचना ही चाहिए। एक तरफ जहां कोरोना महामारी ने पूरी दुनिया को जता दिया है कि उसका दबाव प्रभाव उसके पैसे उसकी प्रतिष्ठा का कोई महत्व नहीं है।
यदि प्रकृति में सब कुछ ठीक नहीं है लेकिन जो चीज हमें सहजता से मिल जाती है। उसकी हम उसकी कीमत नहीं समझते। जब तक हम स्वतंत्र रूप से घूमते- फिरते रहें तब तक प्रकृति है। ईश्वर का कोई धन्यवाद नहीं दिया लेकिन जैसे ही कोरोना महामारी के कारण हमें घरों के अंदर रहना पड़ा हमें समझ में आ गया कि हमारा पहले का जीवन कितना अच्छा था। यह कोरोना महामारी भी ऐसी है जो कोई भेदभाव नहीं कर रही न गरीब में, न अमीर में, न जाति में, मंत्री में, न संत्री में। यही कारण है कि इसे प्रकृति की चेतावनी उन लोगों के लिए भी मानी जा रही है जो पैसा और प्रतिष्ठा अर्जित करने के लिए न केवल प्रकृति से खिलवाड़ कर रहे हैं।
वरन मानव शरीर को भी इतना आराम तलब बना दिया है कि वह जरा सा झटका सहन नहीं कर पा रहा है लेकिन अभी भी समय है जब हम सचेत हो जाएं और प्रकृति के साथ जीवन जीना शुरू कर दें। हमने अभी प्रकृति की पूजा की है उसे जीवन में आत्मसात करना है। वैसे ही जैसे हम अब पितृपक्ष में पितरों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करेंगे। पूर्वजों को याद करेंगे। ऐसे ही निर्णय हमें आगे भी लेना है जब भी हम दिनभर की भागदौड़ में थोड़ा भी समय प्रकृति के साथ व्यतीत करते हैं तब तन और मन दोनों राहत महसूस करते हैं। हमें प्रकृति के करीब रहना शुभ भी है और लाभदायक भी। बस हमें उसमें आनंद आना चाहिए। पैदल चलने में आनंद है।
अभी वर्षा का मौसम है यदि आप कुछ देर बहते हुए पानी को देखेंगे तो अशांत मन भी शांत हो जाएगा। प्रकृति में कितना अनुशासन है, कितनी अनियमितता है, कितना देने का भाव। यदि हमने इसमें से कुछ अंश भी अपने जीवन में होता रहा तो फिर हम अपना जीवन सुखमय बना सकते हैं। सोचो सूर्य कितना अनुशासन प्रिय है जो प्रतिदिन अपने नियत समय पर आता और जाता है। सुबह की सूर्य की धूप शरीर के लिए बेहद जरूरी है जिसकी पूर्ति कोई भी दवाई नहीं कर सकती। आज अधिकांश बीमारियां विटामिन डी की कमी से हो रही है क्योंकि हम एसी कमरों में सोते रहते हैं, बैठे रहते हैं। सूरज के सानिध्य में जाने का मौका ही नहीं खोजते।
कुल मिलाकर कोरोना महामारी के कारण हुए कष्टों को ही हम स्मृति में ना रखें बल्कि इसके कारण जो संदेश मिले हैं उन्हें जीवन में उतारें क्योंकि प्रकृति ही हमारी रक्षा कर सकती है और जब प्रकृति हमें सब कुछ देती है तो हमारा भी फर्ज बनता है कि हम भी कुछ प्रकृति को देना सीखे। अभी पितृपक्ष में अपने पूर्वजों की याद में हम पौधे लगा सकते हैं। हम पक्षियों चीटियों को दाना खिला सकते हैं। नदी तालाब को गंदा नहीं करने का संकल्प ले सकते हैं और अपने शेष जीवन एवं आने वाली पीढ़ी के लिए हम स्वच्छ वातावरण तैयार कर सकते हैं क्योंकि जब प्रकृति रूठती है तब हम जो पैसा और प्रतिष्ठा एकत्रित करने में जुटे रहते हैं वह फिर कोई काम नहीं आता। अतः अभी भी समय है हम प्रकृति के प्रति कृतज्ञता रखें प्रकृति को नष्ट करने का प्रयास ना करें अन्यथा आज कोरोनावायरस से परेशान है कल कोई और समस्या आएगी।
राम गोपाल
(संयोजक,हरियावल पंजाब )
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