शशि कांत
ये घटनाएं 2014-15 के उस दौर की याद दिलाती हैं जब पंजाब में “बेअदबी” की कई घटनाएं हुई थीं, जो 2017 और 2019 के चुनावों में बड़े राजनीतिक मुद्दे बन गए. हालांकि, आज भी उन घटनाओं से जुड़े मुद्दों को उठाया जाता है जो कि पंजाब के राजनीतिक हालातों पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं.
पंजाब में “बेअदबी” के मामलों ने एक बार फिर राजनीतिक-सामाजिक-धार्मिक माहौल को खराब कर दिया है. खासकर तब जब कुछ ही महीनों में यहां विधानसभा चुनाव (Assembly Elections) होने वाले हैं. राजनीतिक लिहाज से देखें तो इन घटनाओं की टाइमिंग पंजाब की सियासत पर अपना असर छोड़ सकती है. 2017 में ऐसा हो भी चुका है. तब शिरोमणी अकाली दल-बादल (SAD बादल) को ऐसी घटनाओं की वजह से नुकसान हुआ था और चुनाव में उसकी हार हो गई थी. लिहाजा पार्टी के मौजूदा सुप्रीमो और प्रकाश सिंह बादल के बेटे सुखबीर सिंह बादल का “लगातार 25 वर्षों तक शासन” करने का सपना टूट गया था.
सिख धर्म में दस गुरू हुए हैं. अंतिम गुरू श्री गुरू गोविंद सिंह जी ने पवित्र ग्रंथ श्री ग्रंथ साहिब को “गुरू मान्यो ग्रंथ” यानि “सभी सिखों का शाश्वत गुरू” घोषित कर दिया. पवित्र ग्रंथ गुरू ग्रंथ साहिब सिख धर्म की आधारशिला मानी जाती है. दूसरे धर्मों के पवित्र ग्रंथों में जिन्हें पन्ना कहा जाता है, उन्हें सिख धर्म में “अंग” (शरीर का हिस्सा) कहा जाता है, और ऐसा ही सम्मान दिया जाता है. इसी तरह श्री गुरू ग्रंथ को जहां स्थापित किया जाता है वो स्थान (गुरुद्वारा) भी पवित्र होता है. इसलिए यहां आने वाले श्रद्धालुओं को एक आचारसंहिता का पालन करना होता है. इसके अलावा “निशान साहिब” को भी किसी पवित्र ग्रंथ की तरह पूरा आदर दिया जाता है.
2014-15 के वक्त भी कई ऐसी घटनाएं हुई थीं
पंजाब में बेअदबी की दो हालिया घटनाओं पर लौटते हैं. पहली घटना अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में हुई, जब प्रार्थना के दौरान एक व्यक्ति आंतरिक पवित्र स्थान, जहां श्री गुरू ग्रंथ साहिब स्थापित हैं, में घुस जाता है. कथित तौर पर उसने वहां रखे पवित्र तलवार को उठा लिया. फिर नाराज भक्तों और सेवादारों ने उस व्यक्ति को पकड़ लिया. इसके बाद की घटनाएं बहुत अधिक स्पष्ट नहीं हैं. हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि नाराज भक्तों ने ही उसकी हत्या कर दी, जबकि पुलिस का दावा है कि जब वो घटनास्थल पर पहुंची तो वह मृत पाया गया. घटना की जांच अभी जारी है.
इस घटना के अगले 24 घंटों के भीतर कपूरथला जिले के एक गुरुद्वारे से निशान साहिब को हटाने के आरोप में कुछ लोगों ने कथित तौर पर एक व्यक्ति को पीट-पीटकर मारा डाला. ये घटनाएं 2014-15 के उस दौर की याद दिलाती हैं जब पंजाब में “बेअदबी” की कई घटनाएं हुई थीं, जो 2017 और 2019 के चुनावों में बड़े राजनीतिक मुद्दे बन गए. हालांकि, आज भी उन घटनाओं से जुड़े मुद्दों को उठाया जाता है जो कि पंजाब के राजनीतिक हालातों पर अपना प्रभाव छोड़ते हैं.
लेकिन ऐसा नहीं है कि इस तरह की दुर्भाग्यजनक घटनाएं केवल 2014-15 में हुई हों. इसके पहले भी ऐसी घटनाओं ने पंजाब के कानून व्यवस्था के सामने चुनौतियां पेश की हैं. पंजाब पुलिस इनकी प्रमाणिक विस्तृत आंकड़ों को साझा करने में हिचकती हैं. 2017 से केंद्रीय स्तर पर नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो ने ऐसी घटनाओं का रिकॉर्ड रखना शुरू किया. वहीं सिख बुद्धिजीवियों के मुताबिक ऐतिहासिक तौर पर “बेअदबी” की घटनाएं मुस्लिम आमक्रणकारियों और शासकों के दौर से शुरू हुई थीं.
इन घटनाओं का राजनीतिक प्रभाव बहुत महत्व रखता है
“बेअदबी” की इन दो घटनाओं के बारे में राजनेता, बुद्धिजीवी और आम लोग कई तरह की बातें कर रहे हैं. सोशल मीडिया में इन मसलों पर जोर-शोर से चर्चा हो रही है. हर कोई एक सुर में इन घटनाओं की निंदा कर रहा है. ऐसी घिनौनी घटनाओं की निंदा होनी भी चाहिए. हालांकि, पुलिस से यह उम्मीद की जाती है कि वह सत्य का पता लगाए और भविष्य में सभी सावधानियां रखे, फिर भी इन घटनाओं का राजनीतिक प्रभाव बहुत महत्व रखता है.
इन घटनाओं ने SAD (B) के खिलाफ लगे पुराने आरोपों को एक बार भी फोकस में ला दिया है. पुरानी घटनाओं की यादें कुछ हद तक आगामी चुनावों में SAD(B) की संभावनाओं को प्रभावित कर सकती हैं. दूसरी ओर SAD(B) की प्रतिद्वंदी और मौजूदा सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस पर भी ऐसी घटनाओं के प्रति “गंभीरता” न दिखाने के आरोप लगते रहे हैं, जो सत्ता में उनकी वापसी को मुश्किल बना सकता है. उधर, कैप्टन अमरिंदर सिंह की नई पार्टी पंजाब लोक कांग्रेस भी इस मुद्दे पर राजनीतिक फायदा उठाने की स्थिति में नजर नहीं आती, क्योंकि उन पर भी यह आरोप लगते रहे हैं कि वे अपनी सरकार के दौरान राजनीतिक वजहों से ऐसी घटनाओं के खिलाफ कार्रवाई करने में “असफल” रहे.
हालांकि, ऐसी घटनाओं को ध्यान में रखते हुए स्पेशल टास्क फोर्स का गठन तो हुआ, लेकिन पूरे हालात अटकलों और अनुमानों के बीच फंसे नजर आते हैं. ऐसी घटनाओं के मद्देनजर बीजेपी को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि SAD(B) के शासन के दौरान वह सरकार का हिस्सा थी. कृषि कानूनों के मसले की वजह से पहले से ही बीजेपी की स्थिति खराब है. कुछ गुंजाइश आम आदमी पार्टी के लिए रह जाती है, जिसने पंजाब की राजनीति में कुछ हद तक अपनी जगह बनाई है और पिछले चुनाओं में कुछ सीटें हासिल भी किए. देखने वाली बात होगी कि आने वाले विधानसभा चुनाव में यह पार्टी इन मसलों का कितना फायदा उठा पाती है. आखिरकार, “राजनीति तो राजनीति ही” होती है और उतनी ही गंदी भी होती है, चाहे पार्टी कोई भी हो.
(लेखक पंजाब के पूर्व डीजीपी हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
सौजन्य : टीवी 9 हिन्दी
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