नवीन वर्मा
“मकर संक्रान्ति” भारत का बहुत ही लोकप्रिय त्योहार हैं और समस्त भारत में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पंजाब में मकर संक्रान्ति की पूर्वसंध्या पर “लोहड़ी” का त्यौहार मनाया जाता है, हिन्दी भाषी क्षेत्रों में खिचड़ी के रूप में मनाते हैं। इसदिन पूर्वोत्तर में “बिहू” का त्यौहार मनाते हैं तथा दक्षिण भारत में “पोंगल” के रूप में मनाते हैं।
इस दिन भगवान भास्कर “दक्षिणायण” से “उत्तरायण” में आ जाते हैं और सर्दी से कंपकपाती धरती को राहत मिलना प्रारम्भ हो जाती है। यह अवसर पूर्णतयः उत्साह उमंग का होता है। कहीं लोग आग जलाकर उसके चारों और नृत्य करते हैं, कहीं पतंग उड़ाते हैं, कहीं नौका दौड़ होती है. इस अवसर पर दान- पुन्य का बहुत महत्त्व माना गया है।
पंजाब में “लोहड़ी” की रात्रि में खुले स्थान में परिवार और आस-पड़ोस के लोग मिलकर आग के किनारे घेरा बना कर बैठते हैं. इस समय रेवड़ी, मूंगफली, लावा आदि खाते हुए नाचते गाते हुए खुशियाँ मनाते हैं। सम्पूर्ण भारत में इसे “दान” के पर्व के रूप में मनाया जता हैं। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिये गये दान का सौ गुना फल प्राप्त होता है।
आजकल पश्चिमी सभ्यता से प्रभावित लोगों ने इस पर्व को भी विकृत कर दिया है। कुछ लोग पवित्र अग्नि को, “कैंप फायर” समझकर उसके इर्दगिर्द अश्लीलता से नाचते हुए मांस मदिरा का सेवन करते हैं। यह सर्वथा अनुचित है, यदि किसी को ऐसा करना भी है तो करे हम नहीं रोकते, लेकिन यह अवश्य कहेंगे कि – अपनी “बेहूदगी” को “त्यौहार” से न जोड़ें।
आइए इस दिन से जुड़े प्रमुख प्रसंगों को स्मरण करें
सबसे प्राचीन कथा शिव पत्नी “सती” के आत्मदाह से जुड़ी हुई हैं. “माता सती” के यज्ञाग्नि-दहन की याद में ही यह अग्नि जलाई जाती है। इस अवसर पर विवाहिता पुत्रियों को उनके मायके से “त्योहारी” (वस्त्र, मिठाई, फल, आदि) भेजी जाती है। “दक्ष” द्वारा यज्ञ के समय अपने दामाद “शिव” का भाग न निकालने का प्रायश्चित्त भी इसमें स्पष्ट दिखाई पड़ता है। बेटी दामाद को उपहार देना बड़ा पुण्य माना जाता है।
लोहड़ी का सबंध कई ऐतिहासिक कहानियों के साथ जोड़ा जाता है। इस से जुड़ी प्रमुख लोककथा बहादुर राजपूत योद्धा “दुल्ला भट्टी” की है। अकबर के शासन काल में, अत्याचार चरमसीमा पर थे, मुग़ल सैनिक हिन्दू लड़कियों को बलपूर्वक उठा लेते थे और उन्हें अपने आकाओं को सौंप देते थे। उस समय दुल्ला भट्टी ने अत्याचार के खिलाफ हथियार उठाये थे।
गंगा को धरती पर लाने का, भागीरथ का प्रयास भी, मकर संक्रांति के दिन ही पूरा हुआ था। हिमालय से निकलकर, भागीरथ के पीछे पीछे चलते हुए, “गंगा” मकर संक्रांति के दिन ही सागर से मिली थी। मकर संक्रांति के अवसर पर, बंगाल के क्षेत्र में स्थित, “गंगा सागर” के स्नान का बहुत महत्त्व है। कहा जाता है – “सारे तीरथ बार बार , गंगा सागर एक बार”
उ.प्र. / बिहार में इस दिन खिचडी दान करने का बहुत महत्त्व है। “खिलजी” के आक्रमण के समय गोरखपुर के “नाथ सम्प्रदाय” ने उनसे टक्कर ली थी। युद्ध काल में समय बचाने के लिए, दाल-चावल-सब्जियां मिलकर ऐसा इंस्टैंट फ़ूड तैयार किया जो पौष्टिक भी था। उन दिनों “नाथ योद्धाओं” को खिचडी खिलाना बहुत पुन्य का काम माना जाता था।
महाभारत काल में “पितामह भीष्म” ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। उनको इच्छा म्रत्यु का वरदान था, उनकी इच्छा के बिना उनकी म्रत्यु नहीं हो सकती थी। महाभारत के युद्ध की सामाप्ति के बाद, हस्तिनापुर को युधिष्ठिर के हाथों में सुरक्षित देखकर, भगवान् भास्कर के “उत्तरायण” में आने के बाद देह को त्याग दिया था।
पूर्वोतर भारत में इसदिन “माघ विहू उत्सव” मनाया जाता है. यह तीन दिन चलता है. त्यौहार का प्रारम्भ “उरुका राती” से होता है। इसमें रात को परिवार, मित्र आदि मिलजुल कुछ विशेष व्यंजन बाहर पकाते है, इसे “मेजी भूज’ कहते हैं. फिर सुबह में नहा धोकर मेजी जलाते है, मेजी को भीष्म पितामह की चिता का स्वरूप समझा जाता है।
अपने रिश्तेदारों और मित्रों से मिलते हैं और जलपान की औपचारिकता करते हैं। सभी मित्र और रिश्तेदार एक दुसरे को असमिया पकवान खिलाते है, जिसमे “पीथा” प्रमुख है। इसके अलावा कुछ लोग, चावल से बनी घर की बनी मदिरा (राईस बियर) भी पीते – पिलाते हैं। इसके साथ-साथ, जगह- जगह, गीत – नृत्य आदि के कार्यक्रम भी आयोजित किये जाते हैं।
दक्षिण भारत में इस दिन पोंगल त्यौहार मनाया जाता है, यह दक्षिण भारत का सबसे बड़ा उत्सव है। यह उत्सव चार दिन चलता है। पहला दिन देवराज इंद्र को समर्पित रहता है, दूसरे दिन सूर्य भगवान् की पूजा होती है। तीसरे दिन भगवान् शिव के वाहन नंदी जी एवं गोवंश की पूजा होती है तथा चौथे दिन कन्या पूजन के साथ पोंगल पर्व का समापन होता है।
इस त्यौहार को, चाहे कोई भी – कैसे भी मनाता हो लेकिन दान-पुन्य का बिशेष महत्त्व माना जाता है। लोहड़ी / मकर संक्राति के अवसर पर बेटी दामाद को सम्मान उपहार देना और गरीबों को दान देना, दक्ष प्रजापति के द्वारा किये गए अपने बेटी दामाद के अपमान के प्रायश्चित के रूप में देखा जाता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा माने जाने वाले 6-त्योहारों में मकर संक्रांति को विशेष तौर पर सामाजिक समरसता दिवस के रूप में मनाया जाता है । पुरे देश को जोड़ने वाले इस पर्व को पूरे हर्षोल्लाष के साथ मनाये और दान- धर्म के कार्य करते हुए जीवन को सफल बनाए
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