अंशु सिंह
बीरबल साहनी का जन्म 14 नवंबर 1891 को अविभाजित भारत के शाहपुर जिले (इस समय पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रांत का हिस्सा) के भेड़ा नामक गांव में हुआ था। उन्हें बचपन से ही प्रकृति से गहरा लगाव था।
12 नवम्बर, 2021 – स्वतंत्रता के बाद विज्ञान के क्षेत्र में देश को स्वावलंबन की राह पर ले जाने में हमारे विज्ञानियों की भूमिका अग्रणी रही है। भारत में जब भी पुरा-वनस्पति विज्ञान के विकास का उल्लेख होता है, तो प्रोफेसर बीरबल साहनी को प्रमुखता से याद किया जाता है। उन्होंने स्वाभिमान के साथ भारतीय उपमहाद्वीप की वनस्पतियों का परिचय पूरी दुनिया से कराया। उन्हें ‘भारतीय पुरा-वनस्पति विज्ञान’ अर्थात ‘इंडियन पैलियोबाटनी’ का जनक कहा जाता है।
लाखों-करोड़ों वर्ष पूर्व पृथ्वी पर अनेक प्रकार की वनस्पतियां थीं, जिनमें आज अधिकांश जीवाश्म (फासिल) बन चुकी हैं। उनके अवशेष समुद्री किनारों, पहाड़ की चट्टानों, कोयले की खानों आदि में मिलते रहते हैं। इन अवशेषों से ही तत्कालीन समय की जानकारियां प्राप्त होती हैं। इनसे तत्कालीन जलवायु एवं वातावरण को समझने में भी मदद मिलती है। इसमें पुरा-वनस्पति विज्ञानी उल्लेखनीय भूमिका निभाते हैं। जीवन की विकास यात्रा से जुड़े ऐतिहासिक तथ्यों की पड़ताल कर वे इसके रहस्यों को वैज्ञानिक तरीके से उद्घाटित करते हैं।
बचपन से रहा प्रकृति से लगाव
बीरबल साहनी का जन्म 14 नवंबर, 1891 को अविभाजित भारत के शाहपुर जिले (इस समय पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब प्रांत का हिस्सा) के भेड़ा नामक गांव में हुआ था। उन्हें बचपन से ही प्रकृति से गहरा लगाव था। पिता रुचिराम साहनी का उन पर गहरा प्रभाव था, क्योंकि वह स्वयं एक विद्वान, शिक्षाशास्त्री एवं समाजसेवी थे। उन्होंने अपने प्रांत में विज्ञान के प्रसार में अग्रणी भूमिका निभायी। इससे उनके घर में हमेशा बौद्धिक एवं वैज्ञानिक वातावरण बना रहता था। उनके घर मोतीलाल नेहरू, गोपाल कृष्ण गोखले, सरोजिनी नायडू, मदन मोहन मालवीय जैसे नेताओं का आना-जाना लगा रहता था। पढ़ाई में होनहार बीरबल वर्ष 1911 में पंजाब विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद कैंब्रिज के लिए रवाना हो गए। वहां उन्होंने इमैनुएल कालेज से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। 1919 में लंदन विश्वविद्यालय ने उन्हें ‘डाक्टर आफ साइंस’ प्रदान किया। उनका पहला शोधपत्र ‘न्यू फाइटोलाजी’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था।
हर तरह की वनस्पतियों पर शोध
प्रो. बीरबल साहनी प्रयोगशाला के बजाय फील्ड में कार्य करना पसंद करते थे। उन्होंने पहले जीवित वनस्पतियों पर शोध किया। उसके बाद भारत में पौधों की उत्पत्ति एवं पौधों के जीवाश्म पर। पौधों के जीवाश्म पर उनके शोध मुख्य रूप से जीव विज्ञान की विभिन्न शाखाओं पर आधारित थे। वह पहले वनस्पति विज्ञानी थे, जिन्होंने भारतीय गोंडवाना क्षेत्र के पेड़-पौधों सहित कश्मीर की वनस्पतियों का विस्तार से अध्ययन किया। पौधों की नई जींस की खोज की। इससे प्राचीन एवं आधुनिक पौधों के बीच विकासक्रम को समझने में आसानी हुई। 1919 में बीरबल भारत लौट आए। इसके बाद दो वर्ष बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में वनस्पति विज्ञान विभाग के मुख्य आचार्य का पद संभाला। 1921 में उन्हें लखनऊ विश्वविद्यालय में वनस्पति विभाग का प्रोफेसर नियुक्त किया गया। वहां उन्होंने जियोलाजी विभाग की स्थापना की और उसके प्रमुख का पदभार संभाला।
भू-विज्ञान में दिलचस्पी
प्रोफेसर बीरबल साहनी ने हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, सिंधु घाटी सभ्यता के अलावा राजमहल की पहाड़ियों से मिले जीवाश्मों के अध्ययन के बाद अनेक खुलासे किए। उनके सबसे अधिक अनुसंधान जीवाश्म पौधों पर हैं। बीरबल साहनी ने जुरासिक काल के पेड़-पौधों का भी विस्तार से अध्ययन किया। उन्होंने ‘पेंटोजाइली’ नामक पौधे की नई प्रजाति की खोज की। झारखंड राज्य में स्थित राजमहल की पहाड़ियों पर प्राचीन वनस्पतियों के जीवाश्म के भंडार का राज भी उन्होंने ही उजागर किया। उल्लेखनीय है कि जियोलाजिकल सर्वे आफ इंडिया ने भी राजमहल की पहाड़ियों को भू-वैज्ञानिक विरासत स्थल का दर्जा दिया है।
प्रोफेसर साहनी ने होमोजाइलोन राजमहलिंस पौधे की प्रजाति की खोज की, जिसे बाद में ‘साहनीआक्सीलोन राजमहलिंस’ नाम दिया गया। वनस्पति विज्ञान पर उन्होंने कई किताबें लिखी हैं। उनके शोध पत्र दुनिया की विभिन्न वैज्ञानिक पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। भारतीय विज्ञान कांग्रेस ने उनके सम्मान में बीरबल साहनी पदक की स्थापना भी की है, जो भारत के सर्वश्रेष्ठ विज्ञानी को दिया जाता है।
प्रोफेसर साहनी इंस्टीट्यूट आफ पैलियोबाटनी भी स्थापित करना चाहते थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने 3 अप्रैल, 1949 को संस्थान की आधारशिला भी रख दी थी। लेकिन अपने सपने को पूरा होते देखने से पहले ही 10 अप्रैल, 1949 को लखनऊ में उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया। लखनऊ स्थित बीरबल साहनी इंस्टीट्यूट आफ पैलियोबाटनी उनके सपने को पूरा करने का हरसंभव प्रयास कर रहा है।
सौजन्य : दैनिक जागरण
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