राम गोपाल
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में वीर सावरकर का योगदान – भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में क्रांतिकारी नेताओं के रूप में वीर सावरकर का नाम व स्थान विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। ये महान क्रांतिकारी, महान देशभक्त और महान संगठनकर्ता थे। उन्होंने आजीवन देश की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया। उनकी प्रशंसा शब्दों में व्यक्ति नहीं की जा सकती. वे अपने तप और त्याग का बिना कोई पुरस्कार लिए ही चिरनिद्रा में सो गये।
सावरकर को भारतीय जनता ने वीर की उपाधि से विभूषित किया. यही कारण हैं कि उन्हें विनायक दामोदर सावरकर की जगह वीर सावरकर कहकर पुकारा गया. वे सचमुच भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान योद्धा थे। वे स्वयं सिपाही भी थे और सेनापति भी। भारत की स्वतंत्रता के इतिहास में ही नहीं, बल्कि संसार के किसी भी देश की स्वतंत्रता के इतिहास में इन जैसा स्वतंत्रता सेनानी योद्धा बहुत कम मिलेगा।
प्रारम्भिक जीवन- वीर सावरकर का जन्म भागुर गाँव (महाराष्ट्र) में 28 मई 1883 ई में हुआ था। उनका पूरा नाम विनायक दामोदर सावरकर था। देशभक्ति की भावना इन्हें पूर्वजों से विरासत के तौर पर मिली थी। 1901 ई में मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद किशोर सावरकर ने पूना के फर्ग्यूसन कॉलेज में नाम लिखवाया। वे प्रतिभाशाली छात्र थे। कॉलेज के साथ ही दिनों में इनका सम्पर्क बाल गंगाधर तिलक से हुआ। बंग भंग के समय उन्होंने अपने साथियों के साथ मित्र मेला नामक संगठन बनाकर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई। इस घटना के कारण उन्हें कॉलेज से निलम्बित कर दिया गया तथा उनकी बी ए की डिग्री भी निरस्त कर दी गई।
राजनीतिक जीवन- बाल गंगाधर तिलक से सम्पर्क होने के बाद उन्होंने देश की वस्तुस्थिति के बारे में सोचना शुरू किया। वे अंग्रेजों की नीति से ज्यादा आक्रोशित थे। उन्होंने बैरिस्ट्री की परीक्षा पास की पर देशभक्ति की भावना के कारण बैरिस्ट्री की डिग्री नही ली।
सावरकर ऐसे पहले व्यक्ति थे जिनके जीवन का एक लम्बा काल अंडमान की सेलुलर जेल के सींखचों के पीछे बीता और विश्व के एकमात्र ऐसे क्रांतिकारी थे जिन्हें ब्रिटिश सरकार ने एक जन्म की ही नहीं अपितु दो जन्मों की आजीवन कारावास दी थी। विश्व के इतिहास में ऐसा कोई भी क्रांतिकारी देशभक्त नहीं हुआ जो जान की परवाह किये बिना देश की स्वतंत्रता के लिए घंटों समुद्र की लहरों पर तैरा हो।
वे ऐसे क्रांतिकारी लेखक थे जिनकी पुस्तक प्रकाशन से पूर्व ही सरकार द्वारा जब्त कर दी गई थी। कठिन यातना के बावजूद भी वह देशप्रेम नहीं छोड़ सके। उन्होंने अंतिम समय तक भारत के विभाजन को रोकने का प्रयास किया। सावरकर सदैव ही अपने युग के क्रांतिकारी एवं देशभक्तों के लिए आदर्श रहे। क्रांतिकारी गतिविधियाँ- छत्रपति शिवाजी, लोकमान्य तिलक व अगम्य गुरु परमहंस सावरकर के क्रांतिकारी प्रेरक थे। उन्होंने 1901 ई में महारानी विक्टोरिया की मृत्यु पर शोकसभा करने का विरोध किया. एडवर्ड सप्तम के राज्याभिषेक उत्सव को गुलामी का उत्सव विदेशी शासन के प्रति राजभक्ति के प्रदर्शन को देश और जाति के प्रति द्रोह कहा।
1906 ई में उन्होंने अभिनव भारत की स्थापना की। चापेकर बंधुओ की फांसी के बाद उन्हें भी गिरफ्तार किया जाता किन्तु वे बैरिस्ट्री शिक्षा प्राप्त करने के लिए लन्दन चले गये थे। वे अभी गिरफ्तार नहीं होना चाहते थे, क्योंकि लन्दन में श्यामजी कृष्ण वर्मा द्वारा स्थापित इंडिया हाउस में विभिन्न अवसरों पर अपने व्याख्यानों से लोगों में देशभक्ति की भावना का संचार किया।
क्रांतिकारी विचारधारा – सावरकर ने 10 मई 1907 को इंडिया हाउस में 1857 की क्रांति की अर्द्ध शताब्दी मनाने का निश्चय किया. 1857 की क्रांति पर मराठी में एक पुस्तक प्रकाशित की और इसे आजादी की पहली लड़ाई बताया, वही प्रथम व्यक्ति थे जिन्होंने 1857 की क्रांति को गदर न कहकर प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन कहा। अंग्रेज सरकार इतनी भयभीत हुई कि पुस्तक प्रकाशन से पूर्व ही जब्त कर ली गई। भारत के क्रांतिकारियों ने पुस्तक द इंडियन वार ऑफ इंडिपेंडेंस को पवित्र ग्रन्थ के रूप में पढ़ा।
हिंसात्मक क्रांति के समर्थक– सावरकर गुप्त रूप से अस्त्र शस्त्र तथा क्रांतिकारी साहित्य आदि भी भारत ले आया करते थे। गुप्तचर विभा ने भारत में जैक्सन की हत्या के साथ सावरकर का नाम जोड़ दिया। मदनलाल घींगरा ने दिन दहाड़े वाईली की हत्या कर दी थी। वाइली की मृत्यु पर शोक सभा करने के लिए एक सभा की गई। शोक सभा में धींगरा की निंदा का प्रस्ताव रखा गया तो इस निंदा प्रस्ताव का सावरकर ने जमकर विरोध किया।
इन घटनाओं के कारण अंग्रेजी सरकार ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया तथा उन्हें जब भारत लाया जा रहा था तो उन्होंने जहाज से कूदकर भागना चाहा किन्तु उन्हें पुनः पकड़ लिया गया। इन्हें एक वर्ष काले पानी की सजा दी गई और सेलुलर की जेल में रखा गया। कठिन यातनाओं के बावजूद वह देशप्रेम नही छोड़ सके। उन्होंने अंतिम समय तक भारत के विभाजन को रोकने का प्रयास किया, सावरकर सदैव ही अपने युग के क्रांतिकारियों एवं देशभक्तों के आदर्श रहे।
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