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शहीदी सप्ताह : तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा…”

December 23, 2022 By Guest Author

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In the Service of Guru Gobind Singh Ji on Twitter: "Guru Gobind Singh Ji  along with Chaar Sahibzaade and Mata Gujri Ji at Sirsa.  http://t.co/Ha2ft8wxmC" / Twitter

21 दिसम्बर 1704…

छह महीने से पड़े मुगलों के घेरे को तोड़कर अपनी 400 की फौज के साथ गुरु गोविन्द सिंह निकल गए थे। वहाँ से निकलने के बाद सबको सिरसा नदी को पार करना था। जाड़े की भीषण बरसात के कारण उफनती हुई नदी, और रात की बेला! आधे से अधिक लोगों को नदी लील गयी। जो बचे वे तीन हिस्सों में बंट गए। एक हिस्से में गुरुजी की दोनों पत्नियां और कुछ सिक्ख, दूसरे हिस्से में दो छोटे साहबजादों के साथ गुरुजी की माता गुजरी देवी जी और तीसरे हिस्से में गुरुजी के साथ उनके दो बड़े साहबजादे और 40 और सिक्ख।

43 सिक्खों का काफिला भागता दौड़ता एक छोटे से गाँव चमकौर पहुँचा और वहाँ एक कच्ची हवेली में शरण ली। उधर मुगल सेना को पता चला कि गुरुजी निकल गए तो पीछे दौड़ी। अगले दिन 22 दिसम्बर को मुगलों की फौज चमकौर में थी। बजीर खान की सरदारी में लाखों की फौज गुरुजी को जीवित या मृत पकड़ने के लिए पागल थी।

लाखों की मुगल सेना, 43 सिक्ख! भूल जाइए युद्ध को, बस इतना याद रखिये कि सिक्खों में 36 मरे और मुगलों में लगभग सब! आश्चर्य होगा न? आश्चर्य का नाम ही गुरु गोविंद सिंह जी था। मध्यकालीन भारत के हिन्दुओं ने जो जो किया है वह आश्चर्य ही है। हजारों सैनिकों के बीच में 5-5 सिक्खों का जत्था निकलता था और लगभग सबको मारकर बलिदान होता था। 18 वर्ष के साहबजादे अजीत सिंह जी और 14 वर्ष के साहबजादे जुझार सिंह जी भी अपने जत्थों के साथ निकले और बिना घबड़ाये हजारों को काट कर स्वयं का बलिदान दे दिया। आसमान रो रहा था, और हवेली की छत से अपने बेटों के अद्भुत शौर्य देखकर पिता गर्व से खिल रहा था।

Sahibzada 'Ajit Singh' and 'Jujhar Singh' at the ' by Pen-Tacular-Artist on  DeviantArt

जब केवल दस बचे थे तो सबने कहा, आप निकलिए गुरुजी! पंथ के लिए आपका निकलना आवश्यक है। लाशों के बीच निकलते भाई दया सिंह जी ने कहा, गुरुजी रुकिये! तनिक साहबजादे के शव को अपनी चादर से ढक दूँ।

गुरुजी ने कहा, तुम्हारे पास छत्तीस चादरें हैं? अगर मेरे छत्तीस साहबजादों के शव पर चादर डाल सकते हो तो डाल दो, नहीं तो साहबजादे अजीत सिंह और जुझार सिंह के शव भी अन्य सिक्खों की तरह खाली ही रहेंगे। इस मिट्टी को याद रहना चाहिए कि उसके लिए उसके बच्चों ने कैसी कुर्बानी दी है।

पाँच दिनों बाद गुरुजी को पता चला, माता गुजरी के साथ गए दोनों छोटे साहबजादों को मुगलों ने पकड़ लिया था और वे सरहिंद के नवाब के यहाँ कैद थे…

ज़ोरावर ज़ोर से बोले, फतेहसिंह शोर से बोले, रखो ईटें और गारे, चुनो दीवार  हत्यारे ⋆ Making India

नवाब ने कचहरी में छोटे साहबजादों से बार-बार कहा, ” धर्म बदल लो तो जान बख्स दी जाएगी… 7 वर्ष के जोरावर सिंह जी और 5 वर्ष के फतेह सिंह बार-बार उनकी बात काट कर कहते रहे- “जो बोले सो निहाल, सतश्री अकाल…” क्रुद्ध नवाब ने उन्हें ठंडे बुर्ज में कैद कर दिया, जहां उनके शरीर पर कोई कपड़ा भी नहीं था।

कई तरह की यातनाएं और प्रलोभन देने के बाद भी जब दोनों छोटे बच्चे नहीं टूटे तो अगले दिन उन्हें दीवार में चुनवा देने का हुक्म दिया गया। दीवार में चुनवाने का मतलब जानते हैं? बच्चों को खड़ा कर उनके चारों तरफ मसाले से ईंट थाप दी गयी। बच्चे मरे पर डरे नहीं… दीवार गर्दन तक पहुँची तब तक दोनों बेहोश हो गए थे। फिर उन्हें बाहर निकाल कर बड़ी क्रूरता से उन छोटे बालकों का तेजधार हथियार से गला  काट दिया गया।

छोटे साहबजादों के बलिदान ने पिता का हृदय तोड़ दिया… सात दिनों के अंदर राष्ट्र के लिए अपने चारों बेटों की बलि दे चुके पिता देर तक शून्य में देखते रहे। किससे कहें, क्या कहें….

बहुत देर बात मुख से कुछ शब्द फूटे, ” ईश्वर! तू देख रहा है न? तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा…”

Chaar Sahibzaade Drawing || ES creative Arts #shorts #shortvideo - YouTube

सर्वेश तिवारी श्रीमुख

गोपालगंज, बिहार।


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