Shardiya Navratri 2021: नवरात्रि के इन 9 दिनों में मां दुर्गा के नव रूपों का पूजन किया जाता है!!
Shardiya Navratri 2021: पंचांग के अनुसार, हर साल शारदीय नवरात्रि का पूजन अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शुरू होता हैऔर नवमी तिथि तक चलता है. इसके बाद विजय दशमी का पर्व मनाया जाता है. नवरात्रि में मां नव दुर्गा के नव रूपों की पूजा की जाती है. जो निम्लिखित प्रकार से है. नवरात्रि के प्रत्येक दिन मां के एक रूप का पूजन किया जाता है.
शैलपुत्री : मां नव दुर्गा का पहला रूप शैलपुत्री देवी का है. नवरात्रि के प्रथम दिन इनकी पूजा की जाती है. हिमालयराज की पुत्री होने के कारण इन्हें शैलपुत्री कहा जाता है. ये माता पार्वती का ही एक रूप हैं.
ब्रह्मचारिणी : ब्रह्मचारिणी देवी मां नव दुर्गा का दूसरा रूप है. मां पार्वती ने घोर तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया. इसी कारण इनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा. इनकी पूजा नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है.
चंद्रघंटा : यह मां नव दुर्गा का तीसरा रूप है और इनकी पूजा तीसरे दिन की जाती है. चूंकि ये भगवान शंकर के मस्तक पर अद्धचंद्र घण्टे के रूप में सुशोभित है. इसी लिए इन्हें चंद्रघण्टा के नाम से जाना जाता है.
कूष्मांडा : नव दुर्गा के चौथे रूप को कुष्मांड़ा देवी कहा जाता है. इनकी पूजा नवरात्रि में चौथे दिन विधि-पूर्वक की जाती है. ब्रह्मांड को उत्पन्न किया था इस लिए इन्हें कूष्मांडा माता कहते हैं. इन्हें जगत जननी भी कहा जाता है.
स्कंदमाता : नव देवी दुर्गा के 5वें रूप को स्कंदमाता कहते हैं. इन्होंने भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय या स्कंद को जन्म दिया था जिसके कारण इनका नाम स्कंदमाता पड़ा. इनकी पूजा पांचवें दिन होती है.
कात्यायनी: यह मां दुर्गा का छठा रूप है. कात्यायनी देवी की पूजा नवरात्रि के 6 वें दिन की जाती है. इनका जन्म कात्यायन ऋषि की साधना और तप से होने के कारण इन्हें कात्यायनी कहा गया.
कालरात्रि : नवरात्रि के सातवें दिन मां कालरात्रि का पूजन किया जाता है. कालरात्रि का रूप माता दुर्गा ने दैत्यों के नाश करने और भक्तों को अभय देने के लिए धारणकिया था.
महागौरी : मां दुर्गा का आठवां रूप महागौरी का है.मान्यता है कि अति कठोर तप के कारण इनका वर्ण कला पड़ गया. तब भगवान शिव जी ने गंगा जल छिड़क कर इन्हें पुनः गौर वर्ण प्रदान किया. इसी कारण इन्हें महागौरी का नाम दिया गया.
सिद्धिदात्री : दुर्गा माता का यह नवां रूप है. सभी प्रकार की सिद्धियों की प्राप्ति के लिए इनकी पूजा नवरात्रि के अंतिम दिन की जाती है. इसलिए ही इनका नामा सिद्धिदात्री देवी पड़ा. इनके पूजन कर भक्त सभी प्रकार के सुख, धन वैभव और सौभाग्य की प्राप्ति करता है.
Navratri 2021 Jaware Importance: नवरात्रि में ज्वारे (जौ) के बिना मां दूर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है. शारदीय नवरात्रि हो या फिर गुप्त नवरात्रि या फिर चैत्र नवरात्रि की बात करें, सभी नवरात्रि में ज्वारे का काफी महत्व होता है. मान्यता है कि कलश या घट स्थापना के साथ ही जौ बोये जाते हैं, क्योंकि इसके बिना मां दूर्गा की पूजा अधूरी मानी जाती है. ये दिन से ही कलश स्थापना के साथ मिट्टी के बर्तन में जौ बो दिए जाते हैं और ये परंपरा काफी पुरानी है.
जौ शुभ मुहूर्त के अनुसार ही बोये जाते हैं. माता रानी की चौकी के पास ही मिट्टी के बर्तन में जौ बो कर उन्हें ढक दिया जाता है. नियमित रुप से उनमें जल अर्पित किया जाता है और नवरात्रि के समापन के दिन ज्वारे को बहते जल में प्रवाहित कर दिया जाता है. ज्वारे बोने का एक कारण और महत्व होता है. इतना ही नहीं, ज्वारे उगते समय कई शुभ और अशुभ संकेत भी देते हैं. आइए डालते हैं इन पर एक नजर…
जौ क्या होता है
जौ को ही ज्वारे भी कहते हैं. नवरात्रि के दिनों में मंदिर, घर और पूजा के पंडालों में मिट्टी के बर्तन में ज्वारे बोये जाते हैं. नियमित रूप से इनमें जल अर्पित किया जाता है और ये धीरे-धीरे अंकुरित होकर बढ़ते हैं. और हरी-भरी फसल की तरह लगते हैं. नवरात्रि के समापन पर इन्हें बहते हुए जल में प्रवाहित कर दिया जाता है.
क्यों बोये जाते हैं ज्वारे (Why Sow Jaware In Navratri)
धार्मिक मान्यता के अनुसार नवरात्रि की प्रतिपदा तिथि को कलश स्थापना की जाती है और क्रम में कलश स्थापना के बाद मिट्टी के पात्र में ज्वारे बोए जाते हैं. पूजा स्थल पर ज्वारे इसलिए बोए जाते हैं क्योंकि धार्मिक ग्रंथों में सृष्टि की पहली फसल जौ को ही बताया गया है. इसलिए जब भी देवी-देवताओं की पूजा की जाती है तो हवन के समय जौ ही अर्पित किए जाते हैं. इतना ही नहीं, एक मान्यता यह भी है कि जौ अन्न ब्रह्मा है और अन्न का हमेशा सम्मान करना चाहिए. इसलिए पूजा में जौ का इस्तेमाल किया जाता है.
शुभ और अशुभ संकेत देते हैं ज्वारे (Jaware Indication During Navratri)
नवरात्रि के दिनों में बोये जाने वाले ज्वारे आपको आने वाले दिनों के बारे में संकेत देते हैं. मान्यता है कि बोये गए जौ अगर नवरात्रि के शुरुआती तीन दिनों में ही अंकुरित होने लगते हैं तो शुभ होता है. लेकिन अगर ये बिल्कुल उगते ही नहीं है, तो इन्हें आने वाले दिनों के लिए अशुभ संकेत माना जाता है. जौ के अंकुरित न होने का ये अर्थ होता है कि कड़ी मेहनत के बाद भी आपको फल नहीं मिलेगा. इसके साथ ही, अगर आपका जौ हरे या सफेद रंग में उग रहा है तो यह आपके आने वाले कल की ओर इशारा कर रहा है. इसका मतलब होता है कि आने वाला समय खुशहाल होने वाला है.
सौजन्य : ABP Live
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