चौथे गुरुसाहिब श्री गुरु रामदास जी के प्रकाश पर्व की आप सभी को परिवार सहित हार्दिक बधाई।
श्री गुरु रामदास जी ने अपने आचरण का आदर्श प्रस्तुत कर जीवन में सेवा का महत्व स्थापित किया और मानव समाज को प्रेरित किया! श्री गुरु रामदास जी बाल्यावस्था में ही श्री गुरु अमरदास जी की शरण में आ गए! बाल्यावस्था में ही माता – पिता का साया सिर से उठ जाने कारण घर की जिम्मेदारी भी संभालते और साथ ही साथ संगत और परमात्मा की भक्ति भी करते! वे पूर्ण समर्पण से श्री गुरु अमरदास जी की सेवा किया करते थे।
गुरु रामदास जी का पूर्व नाम भाई जेठा भी था! श्री गुरु अमरदास जी की छोटी पुत्री बीबी भानी जी से विवाह के उपरांत जब बावली का निर्माण हो रहा था, श्री गुरु रामदास जी सिर पर मिट्टी और गारे की टोकरियाँ ढोया करते थे। उन्होंने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी में अंकित अपनी वाणी में कहा कि सेवा कार्यों से जो पुण्य मिलता है, वही मनुष्य की वास्तविक पूंजी है।
गुरु सभा एव न पाईये ना नैडे ना दूरि ।।
नानक सतिगुरु तां मिलै ना मनु रहै हदुरि ।।
सपत दीप सपत सागरा नव खंड चरि वेद दस असट पुराण ।।
हरि सभना विचि तूं वरतदा हरि सभना भाणा ।।
सभि तुझै धिआवहि जीअ जंत हरि सागरपाणा ।।
जो गुरमुखि हरि आराधदे तिन हउ कुरबाण ।।
तूं आपे आपि वरतदा करि चोज विडाण ।।
(पन्ना 84 श्री गुरू ग्रन्थ साहिब जी)
श्री गुरु रामदास जी ने सेवा को परमात्मा की भक्ति के साथ ही सामाजिक समरसता का माध्यम भी बनाया। उन्होंने अमृत सरोवर का निर्माण करवाया, जिसके मध्य श्री हरिमंदिर साहिब सुशोभित है! इसके साथ ही उन्होंने अमृतसर नगर भी बसाया।
अमृतसर नगर को आत्मिक और सदाचार केंद्र के रूप में विकसित किया, जिसमें सभी धर्म और जाति के लोगों को बसाया गया! आज भी यह माना जाता है कि जो श्री गुरु रामदास जी के नगर श्री अमृतसर साहिब का दर्शन और अमृत सरोवर में स्नान करता है, उसके सारे दुःख, क्लेश और पाप मिट जाते हैं. “सतनाम श्री वाहेगुरु जी”।
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