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सिर्फ आज ही नहीं, हर दिन हो पृथ्वी दिवस

April 22, 2021 By Guest Author

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सौरभ कपूर

मानव जीवन में अगर कोई संबंध सर्वाधिक गरिमामय, पावन और प्रेम पूर्ण है तो वह है मां और पुत्र का संबंध। एक मां कभी भी अपनी संतान को भूखा प्यासा, बेबस और कष्ट का जीवन जीते नहीं देख सकती और ऐसा भी कोई पुत्र नहीं होगा जो अपनी मां की कराह सुन व्याकुल और व्यथित ना हो। यह कारण है कि ऋषियों ने पृथ्वी की वंदना माता के रूप में की है। माता भूमि: पुत्रोहं पृथिवया: अथर्ववेद का सूत्र वाक्य धरती और मानव के संबंधों की ना केवल गरिमामय व्याख्या करता है बल्कि धरती के प्रति मानवीय कर्तव्यों का निर्धारण भी। ना केवल मनुष्य के जीवन यापन के लिए बल्कि पशु पक्षियों सहित लाखों-करोड़ों छोटे बड़े जीवो के लिए धरती ने उपहार दिया है। लेकिन आज यह धरती अपने पुत्रों की करनी से घायल हो रुदन कर रही है। अधिकाधिक प्राप्त कर लेने की होड़ ने मनुष्य को अंधा बना दिया है और वह अपने ही पैरों में स्वयं कुल्हाड़ी मार रहा है। धरती संकट में है,धरती कराह रही है पर हम मौन है,क्यो? मानव के अविवेकी और असंयमित आचरण से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है।

आइए इस पृथ्वी दिवस पर चिंतन और चिंता करें पृथ्वी को बचाने की और जाने की किस हाल में है हमारी धरती माता। कैसा है इसका असली स्वरूप और कैसा होता जा रहा है तथा किन खतरों से जूझ रही है वह?

तीव्र औद्योगिकीकरण, ग्रीन हाउस गैसों, जंगलों की कटान और भौतिकवादी जीवनशैली के कारण ध्रुव और पहाड़ी चोटियों की बर्फ पिघल रही है और समुद्र का जलस्तर बढ़ रहा है। ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी लाने के लिए दिसंबर 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल लाया गया था जिसे 160 देशों ने स्वीकार करते हुए कमी करने का संकल्प लिया। लेकिन अकेले 80% ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करने वाले अमेरिका ने इसे स्वीकार नहीं किया। अगर मनुष्य ने अपने आचरण में सुधार नहीं किया तो एक दिन यह धरती खत्म हो जाएगी। और हमारे पास प्रायश्चित करने का समय और विकल्प भी नहीं बचा होगा। कोरोना जैसी महामारी और पिछले साल का लाकडाउन और अब दुबारा शुरू हुए लाकडाउन हमारे सामने ही उदाहरण है।

इस प्लास्टिक युग में भारतीय समाज अति आधुनिकता के व्यामोह में ‘यूज एंड थ्रो’ जीवनशैली के भंवर जाल में फंसा प्लास्टिक कचरा के रूप में हजारों टन प्रतिदिन कूड़ा घरों से बाहर फेंक रहे हैं। इस प्लास्टिक में से अधिकांश रीसाईकल भी नहीं हो पाता। प्लास्टिक के बिना जीवन की कल्पना बेमानी लगती है। एक आंकड़े के मुताबिक भारत में प्रतिवर्ष 50 मीट्रिक टन प्लास्टिक का निर्माण होता है। विश्व में 10 करोड़ टन प्लास्टिक का उत्पादन अकेले अमेरिका प्रतिवर्ष करता है और एक करोड़ किलोग्राम कूड़े का उत्सर्जन भी। वहीं इटली द्वारा सर्वाधिक प्लास्टिक थैलियों की खपत की जाती है जो एक खरब प्रतिवर्ष है।

पॉलिथीन थैलियों को जलाने से निकली कार्बन और कार्बन मोनो आक्साइड, रैफ्रिजरेटर और शीत भंडारण केंद्रों से उत्सर्जित कलोरो फलोरो कार्बन से सूर्य की हानिकारक परावैगनी किरणों से पृथ्वी की रक्षा करने वाली ओजोन परत में बड़े बड़े छेद हो गए है। और हम है कि इस नुकसान और विनाश से बेखबर मदहोश पड़े हैं।

प्रति एकड़ पैदावार बढ़ाने के लिए रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से मिट्टी की प्राकृतिक उर्वारक शक्ति तो नष्ट हुई ही है बल्कि माटी भी जहरीली हो गई है। इस जहर के कारण मिट्टी को खाकर उसे खाद में बदलने वाले किसानों के मित्र केचुआ और अन्य छोटे कीट अब नही दिखते। दूध,अन्न,सब्जियां और धरती के नीचे जल प्रदूषित हुआ है। परिणाम त्वचा रोग, हैजा, टाइफाइड, दमा जैसे रोज जड़े जमा रहे है और महामारी का रूप ले रहे हैं।

तथाकथित विकास के नाम पर बड़े बांध बनाकर नदियों के प्राकृतिक प्रवाह को बांधा गया। बड़े बांधों के बनने से जैव विविधता खत्म हुई है। पहाड़ के सीने में उठ गए कंक्रीट के जंगल मैं प्राकृतिक परिवेश पर आघात किया है। बड़ी संख्या में विस्थापन हुआ है। विस्थापित लोगों का दर्द कभी दूसरा नहीं समझ सकता। अपनी जमीन छूटने की टीस की भरपाई कोई मुआवजा नहीं कर सकता। विस्थापन की पीड़ा साझा करते हुए कुछ शिक्षाविद एवं संस्कृति प्रेमी कहते हैं कि केवल गांव नहीं छूटा है बल्कि छूटा है माटी से अपनेपन का संबंध। लोक संस्कृति में रचे- बसे जन-जन के भावों का बिखराव है यह, जिसे समेटा नहीं जा सकता। क्योंकि संस्कृति एक दिन में नहीं बना करती, सदियों लगा करती है। मुआवजे से मिट्टी की महक नहीं खरीदी जा सकती। जन, जल,जंगल, जीवन और जानवर से भावनात्मक नाता होता है।

धरती को बचाए रखने के लिए ही सितंबर 1969 मे सिएटल में अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने 1970 के बसंत में पर्यावरण को लेकर राष्ट्रव्यापी प्रदर्शन की घोषणा की ताकि लोग पर्यावरण की हो रही क्षति को समझ सकें। 1990 में पहली बार इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का निश्चय किया जिसमें 141 देशों के 20 करोड़ लोगों की सहभागिता रही। हालांकि 21 मार्च 1970 को संघ के तत्कालीन महासचिव यू तॉट मे पृथ्वी दिवस को अंतर्राष्ट्रीय समारोह स्वीकार किया था।

1992 मे रियो डी जिनोरियो मे संयुक्त राष्ट्रीय पृथ्वी सम्मेलन हुआ। ग्लोबल वार्मिंग के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए स्वच्छ ऊर्जा के प्रयोग को बढ़ावा देने का संकल्प किया गया। 2009 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाने का निर्णय लिया। चीन, पाकिस्तान भारत और अमेरिका सहित कई देशों में पृथ्वी दिवस के संदर्भ में पर्यावरण के महत्व को स्वीकारते हुए विभिन्न मूल्य के डाक टिकट जारी किए हैं।

हर साल विश्व पृथ्वी दिवस पर एक थीम होता है। साल 2021 में विश्व पृथ्वी दिवस की थीम ‘रीस्टोर दी अर्थ’ है। इस थीम का उद्देश्य है कि कोविड-19 से उभरते हुए किस तरह से दुनिया में पर्यावरण को हुए नुकसान को कम किया जाए और आने वाले समय में हमारे द्वारा पृथ्वी को पहुंचाए गए नुकसान की भरपाई की जाए। यदि हम धरती को बचाना चाहते हैं और चाहते हैं कि आने वाली पीढ़ी के हाथों में हरी भरी वसुंधरा सौंपे तो हमें कोरोना कि इस महामारी की लड़ाई लड़ने के बाद भी हमें अपनी दैनिक जीवनचर्या पूर्णरूपेण बदलनी होगी। बाजार से सामान लेने के लिए घर से कपड़े के बने थैले काम में लाएं। अनाज भंडारण के लिए प्लास्टिक बोरियों की बजाए जूट के बोरे इस्तेमाल करें।

रोजमर्रा के काम जैसे किराना की खरीददारी में भी कागज के लिफाफों का प्रयोग करें जो किसी को रोजगार देगा और हमें संतुष्टि। किसानों को रासायनिक उर्वरक और कीटनाशकों की बजाए जैविक खाद और इको फ्रेंडली देशी कीटनाशकों के इस्तेमाल के लिए प्रेरित करें।

पहल खुद से शुरू करनी होगी। विश्वास करिए, एक चलन आरंभ करेगा तो साथ में लोग जुड़ते जाएंगे। हम सब धरती माता की देन है अनगिनत भी घाव दिए हैं मरहम कौन लगाएगा? उत्तर में कोई जिम्मेदार स्वर उभरता सुनाई नहीं पड़ता। आज धरती कराह रही है। हम कैसी संतान हैं कि हमें धरती का यह करुण रुदन सुनाई नहीं देता या फिर हम स्वार्थवश अनसुना कर रहे हैं। इसलिए केवल एक दिन पृथ्वी दिवस मनाए जाने भर से परिवर्तन होने वाला नहीं है। हमें हर दिन पृथ्वी दिवस मनाना होगा और प्रकृति के साथ चलना होगा, जीना होगा। तभी यह धरा बचेगी और हम भी। अंत में कुछ पंक्तियाँ –

“पृथ्वी के हितों की रक्षा करना ही है हमारा धर्म,

आओ इसकी रक्षा करके पूरा करे अपना कर्म।”

(सौरभ कपूर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के संभाग संगठन मंत्री है)


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