प्रणव सिरोही

इतिहास और राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों के अतिरिक्त आम पाठकों को भी यह पुस्तक रुचिकर लग सकती है। यह पुस्तक स्वतंत्रता और लोकतंत्र के निर्भीक प्रहरी लोकनायक जयप्रकाश नारायण की प्रामाणिक जीवनी है जिनका जीवन सुदीर्घ सार्थक और अनुकरणीय रहा।
13 दिसम्बर, 2021 – संप्रति हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं। इस अवसर पर भारत की महान विभूतियों के स्मरण उपक्रम में स्वतंत्रता के सारथी बने महानुभावों से लेकर नव स्वतंत्र राष्ट्र के कर्णधारों के अवदान एवं उपलब्धियों से हमारा साक्षात्कार जारी है। इस शृंखला में कुछ विरले ही हैं, जिन्होंने स्वतंत्रता पूर्व और स्वतंत्रता उपरांत के भारतीय इतिहास पर समान रूप से अपनी छाप छोड़ी हो। जयप्रकाश नारायण ऐसी ही एक शख्सीयत हैं। जेपी के उपनाम से जन-जन के मन में लोकनायक के रूप में प्रतिष्ठित वह न केवल भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में भागीदार रहे, बल्कि जब स्वतंत्र भारत अपने लोकतांत्रिक मूल्यों की राह से भटक गया तो एक मार्गदर्शक के रूप में उभर कर उन्होंने राष्ट्र को सही दिशा दिखाई। ऐसे ही एक सुदीर्घ, सार्थक एवं अनुकरणीय जीवन से हमारा परिचय कराने का प्रयास किया है बिमल प्रसाद और सुजाता प्रसाद ने। ‘द ड्रीम आफ रिवोल्यूशन‘ शीर्षक से लिखी उनकी यह पुस्तक जयप्रकाश नारायण की प्रामाणिक जीवनी है।
चूंकि जेपी का जीवन ही स्वतंत्रता के लिए संघर्ष और उसके संरक्षण हेतु विरोध-प्रदर्शन का पर्याय बना गया तो माक्र्सवादी विचारक रोजा लक्जमबर्ग के स्वतंत्रता संबंधी और प्रख्यात इतिहासकार एरिक हाब्सबाम के विरोध-प्रदर्शन संबंधी कथन के साथ पुस्तक का आरंभ सुसंगत प्रतीत होता है। इसमें कुल 10 अध्यायों में जेपी के समग्र्र जीवन को कलमबद्ध किया गया है। इस पठन यात्रा में पाठक गंगा और सरयू के प्रवाह क्षेत्र में बसे बाढ़ के दृष्टिकोण से संवेदनशील सिताबदियारा में जन्मे उस बालक की कथा के सहयात्री बनकर आगे बढ़ते हैं, जो भविष्य में भारत की नियति में एक अहम किरदार बनकर उभरता है।
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