• Skip to main content
  • Skip to secondary menu
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • Home
  • About Us
  • Contact Us

The Punjab Pulse

Centre for Socio-Cultural Studies

  • Areas of Study
    • Social & Cultural Studies
    • Religious Studies
    • Governance & Politics
    • National Perspectives
    • International Perspectives
    • Communism
  • Activities
    • Conferences & Seminars
    • Discussions
  • News
  • Resources
    • Books & Publications
    • Book Reviews
  • Icons of Punjab
  • Videos
  • Academics
  • Agriculture
  • General

हिंदी के मजबूत कंधों पर ही सशक्त हो सकता आत्मनिर्भरता का आधार

September 13, 2021 By Guest Author

Share

प्रो. निरंजन कुमार

आत्मनिर्भरता का आधार हिंदी के मजबूत कंधों पर ही सशक्त हो सकता है। 14 सितंबर को हिंदी दिवस है। इस अवसर पर प्रो. निरंजन कुमार बता रहे हैं कि आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे देश के लिए यह सही समय है कि हम हिंदी की ताकत को पहचानें…

13 सितम्बर, 2021 –  – राष्ट्र आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। आजादी का यह महोत्सव वस्तुत: उन संकल्पों को दोहराने और उन सपनों को साकार करने के लिए है, जो हमारे स्वाधीनता सेनानियों ने देखे थे। ये स्वप्न थे भारत की संपूर्ण स्वतंत्रता, स्वाभिमान की प्रतिष्ठा, देश की उन्नति और स्वावलंबन। इन सपनों को साकार करने में अन्य कारकों के साथ-साथ हिंदी की भी महती भूमिका रही है। साम्राज्यवाद के विरुद्ध स्वाभिमान और स्वतंत्रता की लड़ाई में हिंदी के योगदान के बारे में एक ओर नई पीढ़ी को प्रमुख तौर से बताने की आवश्यकता है जो आज पश्चिम की आंधी में हिंदी से उदासीन हो रही है, तो दूसरी ओर उन हिंदीतर क्षेत्रों में भी इसे प्रचारित करने की आवश्यकता है जहां आए दिन हिंदी की आड़ में भाषायी राजनीति का खेल शुरू हो जाता है।

एकता की भाषा का सामथ्र्य

बात आजादी की लड़ाई के दौर की करें तब हिंदी की द्विआयामी विशिष्ट स्थिति थी। एक तरफ वह स्वाधीनता सेनानियों के सपनों की पूर्ति का साधन थी तो दूसरी तरफ राष्ट्रभाषा के रूप में स्वयं एक साध्य भी बन रही थी। वर्ष 1857 के हमारे पहले स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रीयता की भावना लोगों में भीतर तक घर कर गई। इस राष्ट्रीयता का एक आयाम भाषा के स्तर पर भी था। 1864 में महाराष्ट्र के एक विद्वान श्रीमान पेंठे ने मराठी भाषा में एक पुस्तक लिखी, जिसका शीर्षक था ‘राष्ट्रभाषा’। श्रीमान पेंठे इसमें लिखते हैं कि आज देश की एकता के लिए एक भाषा की जरूरत है और वह भाषा हिंदी ही हो सकती है। उधर 1873 में हिंदी पट्टी के बाहर पश्चिम बंगाल के महान समाज सुधारक केशवचंद्र सेन अपने पत्र ‘सुलभ समाचार’ में लिखते हैं, ‘यदि भारतवर्ष एक न होइले भारतवर्षे एकता न हौय, तबे तार उपाय की? समस्त भारतवर्षे एकभाषा व्यवहार कराइ उपाय। एखुन जतो गुलि भाषा भारते प्रचलित आछे, ताहार मध्ये हिंदी भाषा प्राय सर्वत्र इ प्रचलित। एइ हिंदी भाषा के यदि भारतवर्षे एकमात्र भाषा कोरा जाय, तबे एकता अनायासे शीघ्र संपन्न होइते पारे। भाषा एक न होइले एकता होइते पारे न।’ अर्थात भारतवर्ष के एक न होने से भारतवर्ष में एकता न हो तो उपाय क्या है? इसका उपाय है समस्त भारत में एक भाषा का प्रयोग करना। अभी भारत में जितनी भाषाएं प्रचलित हैं, उनमें हिंदी प्राय: सर्वत्र प्रचलित है। इस हिंदी भाषा को अपनाने से एकता अनायास हो सकती है।

बाहरी क्षेत्रों से शुरू कवायद

उधर गुजरात निवासी दयानंद सरस्वती ने भी हिंदी में अपना प्रचार-प्रसार किया। उनका प्रमुख केंद्र एक अन्य हिंदीतर प्रदेश पंजाब था। वर्ष 1875 में उनकी पुस्तक आती है ‘सत्यार्थ प्रकाश’, जो हिंदी में लिखी गई थी। कहने का तात्पर्य यह है कि राष्ट्र की एकताकारी शक्ति और राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की पहचान की शुरुआत हिंदी क्षेत्र से बाहर होनी शुरू हो गई थी। बंकिमचंद्र, श्री अरविंद और नेताजी सुभाष चंद्र बोस से लेकर बाल गंगाधर तिलक, वीर सावरकर, काका कालेलकर, सरदार पटेल आदि अनेक मनीषियों ने संपर्कभाषा अथवा राष्ट्रभाषा के रूप में हिंदी की वकालत की। लोकमान्य तिलक ने हिंदी के बारे में लिखा था, ‘यह तो उस आंदोलन का अंग है जिसे मैं राष्ट्रीय आंदोलन कहूंगा और जिसका उद्देश्य समस्त भारतवर्ष के लिए एक राष्ट्रीय भाषा की स्थापना करना है क्योंकि सबके लिए समान भाषा राष्ट्रीयता का महत्वपूर्ण अंग है।’

दक्षिण में फहराई पताका

राष्ट्रीय आंदोलन में महात्मा गांधी का उदय एक बड़ी घटना थी। महात्मा गांधी हिंदी को पूरे देश में जन-जन की भाषा बनाने का संकल्प लेते हुए दक्षिण भारत तक में हिंदी को फैला देने का उपक्रम करते रहे। तमिलनाडु के मदुरै में एक भाषण में उन्होंने स्पष्ट कहा था, ‘हिंदी और केवल हिंदी ही हमारी राष्ट्रभाषा बन सकती है।’ महात्मा गांधी के प्रयास से देशभर में हिंदीसेवी संस्थाएं स्थापित हुईं। यहां उल्लेखनीय होगा कि इस हिंदी आंदोलन में दक्षिण भारतीय कभी पीछे नहीं थे। सी. राजगोपालाचारी, अनंत शयनम आयंगर, सी. पी. रामास्वामी, टी. विजयराघवाचार्य और दक्षिण के पुरुषोत्तमदास टंडन कहलाने वाले मोटुरी सत्यनारायण आदिविभूतियों ने दक्षिण भारत में हिंदी की पताका फहराने में अहम योगदान दिया। कुल-मिलाकर हिंदी वह शक्ति थी, जिसने राष्ट्रीय आंदोलन को एक सूत्र में पिरो दिया।

निज भाषा उन्नति अहै

दरअसल स्वराज, स्वदेशी के अलावा स्वभाषा का प्रश्न आरंभ से ही देश की स्वतंत्रता और स्वाभिमान से जुड़ गया था, जो राजनीतिक दायरे में सीमित न रहकर सांस्कृतिक स्वाभिमान के धरातल पर भी था। किसी राष्ट्र की अस्मिता संस्कृति के माध्यम से भी अभिव्यक्त होती है और भाषा संस्कृति की वाहिका होती है। राष्ट्रीय अस्मिता तथा सांस्कृतिक स्वाभिमान की प्रतीक के रूप में भी हिंदी स्वाभाविक रूप से स्वीकृत हुई। जब भारतेंदु हरिश्चंद्र उद्घोष करते हैं कि-

‘निज भाषा उन्नति अहै/सब उन्नति को मूल/बिन निज भाषा ज्ञान के/ मिटत न हिय को सूल।’

तो एक तरफ वे भाषायी स्वाभिमान की प्रतिष्ठा करते हैं तो दूसरी ओर इसमें देशोन्नति का भी आह्वान करते हैं।

बापू की नजर में उन्नति का मार्ग

यह गौरतलब है कि हिंदी या निजभाषा या मातृभाषा की वकालत यहां केवल एक भावुकता भरी अपील नहीं है। इस बात को महात्मा गांधी स्वयं अपने पत्र ‘हिंदी नवजीवन’ में लिखते हैं, ‘इस विदेशी भाषा (अंग्रेजी) के माध्यम ने बच्चों के दिमाग को शिथिल कर दिया है, उनके स्नायुओं पर अनावश्यक जोर डाला है, उन्हें रट्टू और नकलची बना दिया है तथा मौलिक कार्यों और विचारों के लिए सर्वथा अयोग्य बना दिया है।’ अर्थात विद्यार्थियों की उन्नति और प्रगति निजभाषा में ही है और इसी के द्वारा देश प्रगति और स्वावलंबन के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है। इसीलिए सभी भारतीय भाषाओं के हिमायती महात्मा गांधी प्रांतीय स्तर पर संपर्क और सरकारी कामकाज में प्रांतीय भाषाओं, लेकिन केंद्रीय अर्थात सार्वदेशिक स्तर पर हिंदी को अपनाने पर जोर देते रहे।

आत्मनिर्भरता के बढ़ते अवसर

स्वाधीनता आंदोलन के दौरान राष्ट्रभाषा हिंदी का स्वाभिमान लोगों में समा चुका था, लेकिन आजादी के बाद संविधान में हिंदी की विचित्र स्थिति के कारण दुर्भाग्य से यह भाव पहले की अपेक्षा कमजोर ही हुआ। यद्यपि सेना, अर्धसैनिक बल, रेलवे, बैंक, बीमा और केंद्र सरकार के विभिन्न कार्यालयों आदि के माध्यम से हिंदी देश की एकता और अखंडता को बनाए रखने में बड़ा योगदान दे रही है, लेकिन आर्थिक उन्नति और रोजगार के लिए हिंदी किस प्रकार से उपयुक्त है, प्राय: ऐसे प्रश्न खड़े किए जाते रहे हैं। हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि हिंदी सिनेमा खरबों रुपए की इंडस्ट्री है, तो देश के चार सर्वाधिक पठित अखबार हिंदी के हैं। इसी तरह देश में दो तिहाई चैनल हिंदी के हैं और सर्वाधिक देखे जाने वाले चैनलों में भी हिंदी आगे है। कुल-मिलाकर हिंदी सिनेमा और समाचार जगत में रोजगार की बड़ी संभावनाएं हैं। इसके अलावा विज्ञापन की दुनिया में खासतौर से कापी राइटिंग में भी हिंदी का बोलबाला है। फिर शिक्षण एक अन्य क्षेत्र है ही। देश ही नहीं, विदेश में भी हिंदी पढ़ाई जा रही है। बीते दिनों खबरें आईं कि देश में इंजीनियरिंग के बड़े-बड़े संस्थान अपनी मातृभाषा में शिक्षण आरंभ कर रहे हैं। पूरी दुनिया में लगभग 200 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है। यही नहीं, कोविड-19 के पश्चात दुनिया का चीन से भरोसा उठने पर भारत में बड़ी संख्या में मल्टीनेशनल कंपनियों का प्रवेश होने वाला है। ऐसे में उनको यहां हिंदी सहित अन्य भारतीय भाषाओं में कंटेंट जेनरेशन (लिखित सामग्री निर्माण) के लिए कंटेंट राइटर की आवश्यकता होगी। तो इस क्षेत्र में भी हिंदीभाषियों के लिए एक बड़ा अवसर आने वाला है। इसी तरह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और एप्स आदि में भी हिंदी की अपार संभावनाएं हैं।

समर्झें हिंदी की ताकत

दो दिन पश्चात ही हिंदी दिवस है। आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे देश के लिए यही सही समय है कि देशवासी हिंदी की ताकत को पहचान लें। स्वाधीनता सेनानियों ने देश के स्वाभिमान और स्वावलंबन को लेकर जो स्वप्न देखा था अथवा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस आत्मनिर्भर भारत का आह्वान देशभर में जोर-शोर से कर रहे हैं, उसे साकार करने में हिंदी की भी एक महती भूमिका होगी, इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए।

(लेखक दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के प्रोफेसर हैं)

सौजन्य : दैनिक जागरण

https://www.jagran.com/news/national-hindi-diwas-2021-basis-of-self-reliance-can-be-strong-only-on-the-strong-shoulders-of-hindi-jagran-special-22013213.html


Share
test

Filed Under: Social & Cultural Studies, Stories & Articles

Primary Sidebar

More to See

Sri Guru Granth Sahib

August 27, 2022 By Jaibans Singh

ਅੱਤਵਾਦ ਦੀ ਰੋਕਥਾਮ ਲਈ ਵਚਨਬੱਧਤਾ

May 8, 2025 By Guest Author

Missile part found in Punjab’s border village; sparks panic, villagers say ‘explosion heard’

May 8, 2025 By News Bureau

Tags

AAP Amritsar Bangladesh BJP CAA Captain Amarinder Singh Capt Amarinder Singh China Congress COVID CPEC Farm Bills FATF General Qamar Bajwa Guru Angad Dev JI Guru Gobind Singh Guru Granth Sahib Guru Nanak Dev Ji Harmandir Sahib Imran Khan Indian Army Indira Gandhi ISI Kartarpur Corridor Kartarpur Sahib Kashmir LAC LeT LOC Maharaja Ranjit Singh Narendra Modi Pakistan PLA POJK President Xi Jinping Prime Minister Narednra Modi PRime Minister Narendra Modi Punjab QUAD RSS SAD SFJ SGPC Sikh Sukhbir Badal

Featured Video

More Posts from this Category

Footer

Text Widget

This is an example of a text widget which can be used to describe a particular service. You can also use other widgets in this location.

Examples of widgets that can be placed here in the footer are a calendar, latest tweets, recent comments, recent posts, search form, tag cloud or more.

Sample Link.

Recent

  • ਭਾਰਤ ਪ੍ਰਤੀ ਨਫ਼ਰਤ ਨਾਲ ਲਬਰੇਜ਼ ਪਾਕਿ
  • ਅੱਤਵਾਦ ਦੀ ਰੋਕਥਾਮ ਲਈ ਵਚਨਬੱਧਤਾ
  • Missile part found in Punjab’s border village; sparks panic, villagers say ‘explosion heard’
  • India destroys Air Defence System at Lahore
  • ਆਪ੍ਰੇਸ਼ਨ ਸਿੰਦੂਰ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਪੰਜਾਬ ਦਾ ਮਾਹੌਲ

Search

Tags

AAP Amritsar Bangladesh BJP CAA Captain Amarinder Singh Capt Amarinder Singh China Congress COVID CPEC Farm Bills FATF General Qamar Bajwa Guru Angad Dev JI Guru Gobind Singh Guru Granth Sahib Guru Nanak Dev Ji Harmandir Sahib Imran Khan Indian Army Indira Gandhi ISI Kartarpur Corridor Kartarpur Sahib Kashmir LAC LeT LOC Maharaja Ranjit Singh Narendra Modi Pakistan PLA POJK President Xi Jinping Prime Minister Narednra Modi PRime Minister Narendra Modi Punjab QUAD RSS SAD SFJ SGPC Sikh Sukhbir Badal

Copyright © 2025 · The Punjab Pulse

Developed by Web Apps Interactive