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अयोध्या का श्री राम मंदिर और सिख

January 12, 2024 By Iqbal Singh Lalpura

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अयोध्या का श्री राम मंदिर और सिख

भारत एक पुरानी सभ्यता है, जब हम यहां के लोगों के चरित्र और अनुशासन की बात करते हैं तो भगवान राम चंद्र का नाम ही आता है, जिन्हें मर्यादा पुरूषोत्तम के नाम से भी याद किया जाता है। भगवान राम एक आदर्श आज्ञाकारी पुत्र, भाई और राजा थे। यहाँ तक कि वे अपने शत्रुओं की शिक्षा और कौशल की भी सराहना करते थे। एक राजा के रूप में उनका शासन पूर्ण शांति और विकास का मार्गदर्शक है। चक्रवर्ती राजा राम चन्द्र को विश्व विजेता भी माना जाता है। इसीलिए तो 20वीं सदी के शायर अल्लामा मुहम्मद इक़बाल ने कहा है. “है राम के वजूद से हिंदुस्तान को नाज़।” यदि देश और धर्म के लिए बलिदान की बात हो तो सिख गुरुओं सा बलिदान भी कहीं नज़र नहीं आता। हलेमी राज की अवधारणा भी एक आदर्श राज्य का मार्ग है, महाराजा रणजीत सिंह ने इसे शांति, शांति, न्याय, विकास, सुरक्षा और मजबूत सामाजिक समुदाय के आदर्श के रूप में प्रकट किया। सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानक देव जी ने अपनी उदासीओं के दौरान सभी धार्मिक स्थानों की यात्रा की, भाई गुरदास लिखते हैं “बाबा आये तीर्थैं तीर्थ पूरब सभे फिर देखाई”। इतिहासकारों के अनुसार गुरु नानक देव जी 1510-11 अयोध्या में पधारे थे. गुरु नानक देव जी जहां भी गए, वहां उन्होंने धार्मिक व्यक्तियों और आम लोगों से बातचीत भी की। इसी प्रकार गुरु साहिब ने अयोध्या के मंदिर के पुजारियों से संवाद किया। जो इस बात की गवाही देता है कि उस समय अयोध्या में राम मंदिर था। गुरु साहिब की अयोध्या यात्रा के बारे में भाई काहन सिंह नाभा ने महानकोश में इस प्रकार लिखा है – ”यूपी में फैजाबाद जिले में सुरजू (सरू) नदी के तट पर कौशल देश की प्रधान पुरी, जो कि हिंदुओं के सात पवित्र पुरीओं में गिना जाता है और राम चंद्र जी का जन्म यहीं हुआ था और यह लंबे समय तक सूर्यवंशी राज्य की राजधानी रही।वाल्मिकी ने लिखा है कि अयोध्या को वैश्व मनु ने बसाया था और इसकी लंबाई 12 योजन और चौड़ाई 2 योजन है, इस नगर में तीन गुरुद्वारे हैं. 1. श्री गुरु नानक देव जी का जो अब प्रसिद्ध नहीं है 2 सरयू नदी के किनारे राजा दसरथ की समाधि के पास श्री गुरु तेग बहादुर जी का 3 विभूषण कुंड के पास दसवे गुरु गुरु गोबिन्द सिंह जी का जब वह पटना से पंजाब आते समय यहाँ पधारे थे, ब्रह्म कुंड घाट का असली नाम तीर्थ राज घाट है, ब्रह्मा जी के तप करने से यह नाम बदल गया है । भाई धन्ना सिंह चहल की पुस्तक ‘साइकिल यात्रा’ दिनांक 5 अप्रैल 1931 के पेज नंबर 131 पर उनके अयोध्या पूजन और वहां के सिख गुरुद्वारा साहिबों के इतिहास और वर्तमान स्थिति के बारे में इस प्रकार दर्ज है- ”इसमें 9 ऐतिहासिक गुरुद्वारे हैं – जो कि चार गुरुद्वारे सिखों के स्वामित्व में हैं। 3 गुरुद्वारे ब्रह्मकुंड घाट दरिया सुरजू के तट पर हैं। जो कि दसवें पातशाह जी का है, जो कि बहुत ही अच्छी तरह से बना हुआ है और उसके बगल में पहले पातशाह जी और नौवें पातशाह जी के दो मंजी साहिब पे निशान साहिब झूल रहे हैं । इन तीनों के महंत जसवंत सिंह जी हैं, इस जगह पहली पातशाही जी पंजाब से आते समय ठहरे थे और नौवीं पातशाही जी पंजाब को जाते समय ठहरे थे और दसम पिता जी भी पंजाब को जाते समय ठहरे थे  जब उनकी आयु  पाँच छे साल की थी । दसम पिता जी के स्थान पर लंगर और रिहायश है । जमीन 400 बीघा के करीब है जो की सारा गाँव चक्करी परोया ही है, यह गाँव जिला गोंडा में है जो की अयोध्या के उत्तर की ओर 10/12 मील पर है । यह तीनों गुरुद्वारे ब्रह्म कुंड के नाम पर मशहूर है, इस स्थान का नाम ब्रह्म कुंड इस लिए पड़ा क्योंकि यहाँ भगवन ब्रह्मा जी ने बैठ कर तप किया था । चौथा गुरुद्वारा श्री गुरु नानक देव जी का है, जो नजर बाग के नाम से जाना जाता है, इसके पास कोई जमीन नहीं है, ऐसा हो भी सकता है कि पहले होती हो । इस गुरुद्वारे के आस पास की जो जमीन थी उसे महंत ने उसे ठठिआरा जाति के लोगों को  बेच कर पैसा बैंक में जमा करवा दिया है । जिस के सूद से आज कल गुजारा करता है । गुरु के बाग की उस जमीन पर आज ठठिआरा लोगों ने अपने मकान बनाए हुए है और कुछ मंदिर भी बनाए हुए हैं । बाकी अन्य महंत भी वहाँ रहती जमीन हड़प चुके हैं । गुरद्वारा साहिब का आँगन बहुत थोड़ा सा रह गया है । इसी स्थान पर श्री राम जी के मंदिर में गुरु नानक देव ने अपने चरण डाले थे और यहीं भाई मरदाना जी को साखी सुनाई थी । यह चारों गुरुद्वारे तो सिख संगत के पास है बाकी के गुरुद्वारे अन्य साधुओं के पास हैं। दसम पिता गुरु गोबिन्द सिंह जी का गुरुद्वारा हनुमानगढ़ी बैरागी संतों के पास है । जिस समय गुरु गोबिन्द सिंह जी इस स्थान पर पहुंचे तो उस समय बहुत सारे वानर उनको श्री राम चंद्र जी समझ कर उनके पास इकत्रित हो गए और उनको बारंबार प्रणाम करने लगे । दूसरा गुरुद्वारा वशिष्ट कुंड के पास है, यह भी गुरु गोबिन्द सिंह जी से ही संबंधित है। इसी स्थान पर उन्होंने सबसे पहले आसन लगाया था जब वो पटना से आए थे । यह स्थान अब वृंदावन पंथ वालों के पास है । तीसरा गुरुद्वारा भी दसम पिता का है जो कि स्वर्ग द्वारी घाट पर है , वहाँ भी उन्होंने निवास किया था । इस गुरुद्वारे के पास बहुत सी जमीन है, जिसका प्रबंध अब उदासीन संतों के हाथ में हैं । अयोध्या से 10 मील पूर्व की ओर जो सूर्य कुंड के पास से रास्ता जाता है जिसे बिलहर घाट के नाम से जाना जाता है, इसी स्थान पर महाराज दशरथ का अंतिम संस्कार हुआ था, गुरु तेग बहादुर जी भी इसी स्थान पर आए थे । अयोध्या जी में कुल 9 गुरुद्वारे हैं , जिनमे से 4 का प्रबनध सिख संगत करती है, तीन का संतों के पास है और 2 स्थान गुप्त हैं । इस शहर में श्री राम चंद्र जी का जन्म स्थान, ब्रह्म कुंड, वशिष्ट कुंड, सूर्य कुंड, हनुमानगढ़ी, सीता जी की रसोई, और बहुत से देवताओं के इतिहासिक मंदिर हैं । श्री दसम ग्रंथ साहिब में श्री राम अवतार के माध्यम से सारी कथा दर्ज की गई है ।

16 वी सदी में श्री राम मंदिर को ध्वस्त करे का कार्य ताशकंद से आए मुगल बादशाह बाबर ने किया था । जिसने इब्राहीम लोधी को हरा कर 20 अप्रैल 1526 को भारत पर कब्जा किया था। इतिहासकारों के अनुसार बाबर ने अपनी सेना के कमांडर मीर बाकी के माध्यम से 1528 में श्री राम मंदिर के स्थान पर मस्जिद की उसारी आरंभ करवाई थी ।

इतिहास इस बात की गवाही देता है कि 1858 में निहंग सिंहों का एक जत्था, जिसके मुखी फकीर सिंह जी थे, उन्होंने उस बाबरी ढांचे को के अंदर मूर्ति स्थापना कर के वहाँ हवन किया था। इसके लिए उन पर उस समय पुलिस मुकद्दमा भी दर्ज हुआ था ।

इस तरह भारत की इस इतिहासिक धरोहर को बचाने के लिए सिखों के उस वक्त के आगुओं ने प्रयास किया था ।

सांसारिक अदालतें जुबानी, लिखती और इतिहासिक गवाहीयों की मांग करती हैं । राम मंदिर और बाबरी मस्जिद विवाद का फैसला करते समय मानयोग अदालतों ने 1510 तक अयोध्या में श्री राम मंदिर के होने के बारे में श्री गुरु नानक देव जी के 1510-11 में अयोध्या आगमन और पुजारियों से संवाद को एक सबूत मानकर फैसला किया कि उस समय तक राम मंदिर मौजूद था । मीर बाकी की ओर से 1528 में मस्जिद बनाने में केवल 17-18 का समय है, और श्री राम मंदिर न होने का तर्क आधारहीन है ।

यहाँ एक बात और विचारने योग्य है कि अलीगढ़ में लगभग 12 साल से भी अधिक समय 1924 से 1936 तक रामलीला नहीं हुई थी । क्योंकि वहाँ के बहु गिनती समुदाय ने हिंदुओं को राम लीला करने से रोका । उस समय अलीगढ़ के सिख आगु सरदार जगत सिंह , ज्ञानी साधु सिंह (जो बाद में श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार भी रहे)  इंचार्ज सिख मिशन अलीगढ़ आदि ने यह फैसला किया कि राम लीला कमेटी की मदद करने के साथ सिख धर्म के प्रचार प्रसार में बड़ी मदद मिलेगी और इसको आगे रख कर श्री ज्वाला प्रसाद, राय बहादुर मोहन लाल आदि की मदद ली । इस तरह सरदार जगत सिंह , ज्ञानी साधु सिंह आदि की अगवाई में सिखों ने सुरक्षा देकर एक शोभा यात्री निकली और अलीगढ़ में राम लीला 12 बाद फिर से शुरू करवाई।

गुरु नानक देव जी से लेकर आज तक सिख पंथ और खालसा, अपनी स्वतंत्र होंद बरकरार रखता हुआ हर मजलूम के साथ खड़ा होकर जुल्म से लड़ा है । गुरु हरगोबिन्द साहिब जी का यह आदेश “ शस्त्र गरीब की रखिया अते जरबाने की भखिया” सदैव कौम को गरीब की रक्षा करने की प्रेरणा देता हैं ।

अलीगढ़ की इस सहायता के बाद ही पंडित मदन मोहन मालवीय जी और स्वामी शंकराचार्य जी ने श्री अकाल तख्त साहिब पर हजरी भारी थी और भरे दीवान में ऐलान किया था – प्रत्येक हिन्दू को , अपना एक बेटा सिख बनाना चाहिए, फिर भारतवासी हिंदुओं का हर पहलू में कल्याण हो जाएगा । स्वामी विवेकानंद जी भी हर भारतीय को गुरु गोबिन्द सिंह जी के पुत्र बनने की बात कहते थे ।

बाबर अपने आप को कभी भारतीय नहीं मानता था और न ही मर कर भारत भूमि पर सपुर्दे खाक होना चाहता था। इस लिए उसने आदेश दिया था, कि उसकी देह को अफगानिस्तान में दफन किया जाए। उसकी इस इच्छा को शेरशाह सूरी ने पूरा किया और उसको काबुल में दफन किया, जहां आज कल बाग-ए-बाबर नाम का बगीचा और मकबरा है ।

अयोध्या नागरी में राम मंदिर स्थापित होगा और इस में कौन सहायता करेगा , इस बात के बारे में पूर्ण रूप से कोई कुछ नहीं कह सकता , यह मांग 500 साल से बनी हुई है ।

प्रत्येक धर्म स्थान पूजने योग्य है । बाबर ने जो श्री राम मंदिर तोड़ने का जघन्य अपराध किया था , उसका इंसाफ मिलने में बहुत लंबा समय लग गया है ।

एक अफ़गान धाड़वी अहमद शाह अबदाली ने भी श्री हरिमंदिर साहिब को ध्वस्त कर दिया था , पर खालसा पंथ ने बाबा जससा सिंह अहलूवालिया की अगवाई में इस पवित्र स्थान को शीघ्र ही दोबारा खड़ा कर दिया।

अयोध्या में मर्यादा पुरषोत्तम भगवन राम , जो भारतीय सभ्यता के महानायक हैं , उनके मंदिर के दोबारा निर्माण इतिहासिक गलतियों को सुधारने का शालाघा योग कार्य है । हर भारतीय चाहे वह किसी भी धर्म को मानता हो किसी भी फिरके में आस्था रखता हो , वह भारत की आमिर सभ्यता के महानायक जिसके बारे में अल्लामा इकबाल में लिखा है “ लबरेज है शराबे हकीकत से जामे हिन्द सब फ़लसफ़ी है खिताई मगरी के रामे हिन्द” – खुश होगा कि श्री राम का मंदिर जब वहाँ दोबारा बनेगा । खास कर सिख, क्योंकि जहां बाबा नानक के पाँव गवाही बने हों ।

चेयरपर्सन, अल्प संख्यक कमिशन

भारत सरकार

5 जनवरी 2024


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