अकबर की कथित महानता का भी हमारी पाठ्यपुस्तकों में इस प्रकार यशोगायन किया गया है कि उसके नाम के बाद ‘महान’ विशेषण न जुड़े तो कुछ छूट जाने का आभास होता है। जबकि सच्चाई यह है कि चितौड़ के किले की घेराबंदी के दौरान उसने 1568 में करीब 30000 हिंदुओं का नरसंहार किया था जिसमें स्त्रियां बच्चे और किसान तक शामिल थे।
प्रणय कुमार
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने हाल में कक्षा-8 की सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तक ‘एक्सप्लोरिंग सोसायटी, इंडिया एंड बियांड’ में कतिपय परिवर्तन किए हैं। इस पहल का मूल उद्देश्य इतिहास, भूगोल, आर्थिक जीवन और शासन-प्रणाली जैसे विषयों को एकीकृत करते हुए विद्यार्थियों के अंदर भारत के सामाजिक विकास की समग्र समझ विकसित करना है।
वर्षों से जिस संतुलित इतिहास लेखन की मांग की जा रही थी, यह पुस्तक उसी दिशा में एक ठोस प्रयास प्रतीत होती है। इस पुस्तक में 13वीं से 17वीं शताब्दी के मध्यकालीन इतिहास को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है, जिसमें दिल्ली सल्तनत के उत्थान और पतन, समकालीन प्रतिरोध, उस युग की राजनीतिक अस्थिरता, सैन्य अभियान, विजयनगर साम्राज्य, मुगलों एवं उनके प्रतिरोध, मराठों और सिखों के उदय आदि का विश्लेषण ऐतिहासिक साक्ष्यों के आलोक में किया गया है।
पाठ्यपुस्तकों को युगानुकूल और भारत-केंद्रित बनाना समय की मांग है। भारतीयों को गुलामी की मानसिकता से मुक्ति दिलाने के लिए यह आवश्यक है। दिल्ली सल्तनत एवं मुगलों के इतिहास को चयनात्मक दृष्टि से ही पाठ्यपुस्तकों में क्यों पढ़ाया जाना चाहिए? बाबर ने खानवा का युद्ध, चंदेरी का युद्ध, घाघरा का युद्ध एवं अन्य अनेक आक्रमणों के दौरान कत्लेआम और लूटमार को अंजाम दिया था। युद्धों के पश्चात मारे गए हिंदुओं की खोपड़ियों की मीनारें खड़ी करने की बातें उसकी आत्मकथा ‘बाबरनामा’ में विस्तार से दर्ज हैं।
अकबर की कथित महानता का भी हमारी पाठ्यपुस्तकों में इस प्रकार यशोगायन किया गया है कि उसके नाम के बाद ‘महान’ विशेषण न जुड़े तो कुछ छूट जाने का आभास होता है। जबकि सच्चाई यह है कि चितौड़ के किले की घेराबंदी के दौरान उसने 1568 में करीब 30,000 हिंदुओं का नरसंहार किया था, जिसमें स्त्रियां, बच्चे और किसान तक शामिल थे। स्वयं अकबर द्वारा नौ मार्च, 1568 को प्रकाशित फतेहनामा-ए-चितौड़ इन तथ्यों की गवाही देता है। इस फतेहनामे को 1598 में संकलित मुंशत-ए-नमकीन में भी सम्मिलित किया गया है। इसके संकलनकर्ता अकबर के दरबारी मीर अब्दुल कासिम नमकीन थे। अकबर के समकालीन आरिफ मोहम्मद कंधारी ने अपनी पुस्तक तारीख-ए-अकबरी में भी इसका उल्लेख किया है।
अकबर के अन्य दरबारियों में प्रमुख अबुल फजल की पुस्तक ‘आइने अकबरी’ एवं ‘अकबरनामा’ तथा इमाम अब्दुल कादिर बदाउनी की पुस्तक ‘मुंतखाव-उत-तवारीख’ भी उसकी क्रूरता, मजहबी कट्टरता एवं कामुकता के अतिरंजित विवरणों से भरे हैं। उसे एक आदर्श नायक की तरह सिनेमा तथा इतिहास में प्रस्तुत किया गया, जबकि अबुल फजल के अनुसार ‘अकबर के हरम में लगभग पांच हजार औरतें थीं और ये पांच हजार औरतें उसकी 36 पत्नियों से अलग थीं।’ वह सुंदर स्त्रियों का बलात अपहरण करने एवं उन्हें अपनी वासना का शिकार बनाने के लिए मीना बाजार लगवाता था। उसकी क्रूरता की यातनाप्रद प्रक्रिया से बचने तथा अपनी अस्मिता एवं स्वाभिमान की रक्षा के लिए हिंदू स्त्रियां जलती चिता में जलकर जौहर कर लेने को जीवन से अधिक सम्माननीय मानती थीं।
चरित्र की दृष्टि से इतने दुर्बल एवं बर्बर शासक को स्वतंत्रता के इतने वर्षों बाद तक किस मानसिकता से पाठ्यपुस्तकों में महान पढ़ाया जाता रहा और मातृभूमि, स्वराज, स्वधर्म एवं स्वत्व की रक्षा के लिए लड़ने वाले महाराणा प्रताप और छत्रपति शिवाजी जैसे योद्धाओं को जानबूझकर छोटा साबित किया गया? क्या एक भी ऐसा उदाहरण है, जब छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप या अन्य किसी सनातनी शासक ने धर्म या पूजा-पद्धति के आधार पर गैर सनातनी मतावलंबियों से भेदभाव किया हो या उनका नरसंहार किया हो या उनके उपासना-स्थल तोड़े हों? फिर मजहब के आधार पर गैर मुसलमानों का कत्लेआम करने वाले मुगल कैसे महान हो गए?
यह सर्वमान्य तथ्य है कि औरंगजेब तलवार के बल पर हिंदुस्तान को दारुल हरम से दारुल इस्लाम में परिणत करना चाहता था। उसकी नजर में हर हिंदू केवल और केवल काफिर था, जिनका खून बहाना, जिनके मंदिर नष्ट करना, जिनकी आस्था को निर्दयतापूर्वक कुचलना वह अपना ‘पाक और मजहबी फर्ज’ समझता था। 12 अप्रैल, 1669 को उसने हिंदुओं पर जजिया कर लगाने का आदेश दिया।
औरंगजेब ने हिंदू त्योहारों पर पाबंदी लगा दी थी और जब तक वह जिंदा रहा, तब तक हिंदू न खुलकर दीपावली मना पाए, न होली ही खेल सके। उसने अपने पूरे राज्य में हिंदुओं के मंदिरों, शिक्षा-केंद्रों और पवित्र स्थलों को तोड़ने के आदेश दिए थे। उसके आदेश पर काशी के विश्वनाथ मंदिर, मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि मंदिर और पाटन के सोमनाथ मंदिर समेत हजारों मंदिर गिरा दिए गए थे। 1688 में उसने हिंदुओं के लिए पालकी, हाथी और घोड़े की सवारी पर पाबंदी लगा दी और अस्त्र-शस्त्र रखने को अपराध घोषित कर दिया। हिंदुओं पर किए गए औरंगजेब के बर्बर एवं पाशविक अत्याचार का विस्तृत विवरण उसके ही एक दरबारी मुहम्मद साकी मुस्तइद खान की पुस्तक ‘मआसिर-ए-आलमगीरी’ में पढ़ने को मिलता है। समय आ गया है कि नरसंहार करने वालों का महिमामंडन बंद कर स्व, स्वत्व और भारत केंद्रित इतिहास का पुनर्लेखन किया जाना चाहिए।
दैनिक जागरण