महान दार्शनिक से लेकर राष्ट्रपति तक, ऐसा रहा डॉ. राधाकृष्णन का सफर
Sarvepalli Radhakrishnan Death Anniversary: जब भी देश में महान दार्शनिक की बात आती है, तो डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का नाम सबसे पहले जुबां पर आता है। उन्होंने पूरी दुनिया को भारत के दर्शन शास्त्र से परिचय कराया। डॉ. राधाकृष्णन देश के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति थे। उनका जन्म 5 सितंबर 1888 को हुआ था। दस वर्षों तक बतौर उपराष्ट्रपति जिम्मेदारी निभाने के बाद 13 मई 1962 को उन्हें देश का दूसरा राष्ट्रपति बनाया गया।
तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ जन्म
डॉ. राधाकृष्णन का जन्म तत्कालीन मद्रास प्रेसीडेंसी के चित्तूर जिले के तिरुत्तनी गांव के एक तेलुगु भाषी ब्राह्मण परिवार में हुआ था। यह गांव 1960 तक आंध्र प्रदेश में था, लेकिन वर्तमान में तमिलनाडु में है। ऐसा कहा जाता है कि राधाकृष्णन के पुरखे सर्वपल्ली नामक गांव में रहते थे। उन्हें अपने गांव से बहुत लगाव था। इसलिए अपने नाम के पहले वे सर्वपल्ली लगाते थे। डॉ. राधाकृष्णन के पिता का नाम सर्वपल्ली वीरास्वामी और माता का नाम सीताम्मा था। इनके पांच पुत्र और एक पुत्री हुए। राधाकृष्णन दूसरे नंबर की संतान थे।
शिक्षा (Dr. Radhakrishnan Education)
डॉ. राधाकृष्णन की प्रारंभिक शिक्षा लुथर्न मिशन स्कूल, तिरुपति से हुई। इसके बाद उनकी शिक्षा वेल्लूर और मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज से हुई। उन्होंने 1902 में मैट्रिक स्तर की परीक्षा पास की। वे बचपन से ही मेधावी प्रतिभा के धनी इंसान थे। उन्होंने बाइबिल के महत्वूर्ण अंश भी याद कर लिये थे। राधाकृष्णन ने 1905 में कला संकाय की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। इसके बाद दर्शन शास्त्र में एम.ए करने के बाद उन्हें 1918 में मैसूर महाविद्यालय में दर्शन शास्त्र का सहायक प्रध्यापक नियुक्त किया गया। हालांकि, बाद में वे उसी कॉलेज में प्राध्यापक भी बने।
केले के पत्ते खरीदने तक के नहीं थे पैसे
राधाकृष्णन का जन्म गरीब परिवार में हुआ था। वे इतने गरीब थे कि केले के पत्तों पर उन्हें और उनके परिवार को भोजन करना पड़ता था। एक बार राधाकृष्णन के पास केले के पत्तों को खरीदने के पैसे नहीं थे, तब उन्होंने जमीन को साफ किया और उस पर ही भोजन कर लिया।
उधारी के पैसे न चुका पाने पर बेचना पड़ा था मेडल
शुरुआती दिनों में सर्वपल्ली राधाकृष्णन 17 रुपये प्रति माह कमाते थे। इसी कमाई से वे अपने परिवार का पालन पोषण करते थे। उनकी पांच बेटियां और एक बेटा था। परिवार की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्होंने पैसे उधार पर लिए, लेकिन समय पर ब्याज के साथ उन पैसों को नहीं चुका पाने के कारण उन्हें अपने मेडल भी बेचने पड़े।
पंडित नेहरू के आग्रह पर राजनीति में आए
1947 में आजादी मिलने के बाद जब पंडित जवाहर लाल नेहरू भारत के पहले प्रधानमंत्री बने, तब उन्होंने डॉ. राधाकृष्णन से सोवियत संघ में राजदूत के तौर पर काम करने का आग्रह किया। नेहरू की बात को मानते हुए उन्होंने 1947 से 1949 तक संविधान सभा के सदस्य के तौर पर काम किया, फिर 1952 तक रूस में भारत के राजदूत बनकर रहे। 13 मई 1952 को उन्हें देश का पहला उपराष्ट्रपति बनाया गया। वे 1953 से 1962 तक दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति भी रहे।
शिक्षक दिवस क्यों मनाया जाता है (Why we Celebrating Teacher’s Day )
डॉ. राधाकृष्णन का जन्म 5 सितंबर के दिन हुआ था। इसलिए इस दिन को उनकी याद में शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता हैा कहा जाता है कि कुछ स्टूडेंट्स उनके पास आए और उनसे उनका जन्मदिन मनाने का आग्रह किया। इस पर उन्होंने कहा कि अगर मेरा जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाए तो मुझे ज्यादा खुशी होगी। तभी से उनका जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।
100 देशों में 5 सितंबर को मनाया जाता है शिक्षक दिवस
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि 100 से अधिक देशों में 5 सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है, क्योंकि यूनेस्को ने आधिकारिक रुप से 1994 में ‘शिक्षक दिवस’ मनाने के लिए 5 सितंबर के दिन को चुना था।
कई किताबों का किया लेखन
डॉ. राधाकृष्णन ने भारतीय दर्शनशास्त्र और धर्म पर कई किताबें लिखी, जिनमें ‘गौतम बुद्ध : जीवन और दर्शन’, ‘धर्म और समाज’ और ‘भारत और विश्व’ प्रमुख है। उनका निधन 17 अप्रैल 1975 को हुआ। एक आदर्श शिक्षक और दार्शनिक के रूप में वह आज भी हम सभी के लिए प्रेरणादायक हैं। उनके मरणोपरांत 1975 में अमेरिकी सरकार ने उन्हें टेम्पल्टन पुरस्कार से सम्मानित किया।
सम्मान और पुरस्कार
डॉ. राधाकृष्णन को 1954 में ‘भारत रत्न’ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा, उन्हें पीस प्राइज आफ द जर्मन बुक ट्रेड से भी सम्मानित किया गया। राधाकृष्णन को ब्रिटिश शासनकाल में ‘सर’ की उपाधि दी गई थी। इसके अलावा, इंग्लैंड सरकार ने उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ मेरिट’ सम्मान से भी सम्मानित किया था। जर्मनी के पुस्तक प्रकाशन के द्वारा 1961 में उन्हें ‘विश्व शांति पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
“देश में सर्वश्रेष्ठ दिमाग वालों को ही शिक्षक होना चाहिए।“
– डॉ. राधाकृष्णन
सौजन्य : दैनिक जागरण
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