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नागरिकता संशोधन कानून का प्रभाव : पंजाब

January 11, 2020 By News Bureau

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Punjab Pulse Bureau Report

पंजाब मात्र एक भूखंड नहीं है अगर यह एक भूखंड होता तो इसका विभाजन 1947 में होने के बाद ही पंजाब और पंजाबियत समाप्त हो चुकी होतीI पंजाब और पंजाबियत की बात करते वक्त इसका संदर्भ किसी धर्म विशेष या व्यक्ति विशेष से नहीं है, इसका संदर्भ संस्कृति से है, विरासत से है पंजाब अपनी विरासत अपनी संस्कृति से ही पंजाब बना है ना कि किसी व्यक्ति और धर्म विशेष से, अगर यू कहे तो इसमें कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी की प्राचीन काल में सबसे विकसित प्रदेश या देश था, तो भारतवर्ष और भारतवर्ष में पंजाब प्रांत सबसे अग्रिम थाI चाहे उद्योग हो, उर्वरता हो या फिर संस्कृति हो पंजाब हर स्थान में अव्वल रहा है और हर बार पंजाब को निशाना बनाने की कोशिश की गईI इसका सबसे बड़ा उदाहरण विभाजन रहा, जिसमें यदि सबसे अधिक हानि हुई तो पंजाब प्रदेश की, विभाजन के दौरान सबसे ज्यादा अगर शोषण हुआ या सबसे अधिक हानि हुई तो वह भी हुई पंजाब प्रांत कीI

पंजाब मात्र एक प्रांत नहीं एक सोच और विकास का दूसरा नाम हैI इसे एक सोची समझी साजिश कह सकते हैं या फिर एक संयोग मात्र, कि भारत के सबसे उर्वरक और विकसित क्षेत्र को काटकर अलग कर दिया गयाI जिसे पंजाबियत खत्म करने की साजिश कहा जा सकता हैI वर्तमान में भी इसी तरह की साजिश हो रही हैI पंजाबियत यानी पंजाब की संस्कृति को खत्म करने की वर्तमान में नागरिकता

संशोधन बिल के नाम पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है, हालांकि इसका अगर सबसे ज्यादा फायदा है तो वह पंजाब और पंजाबियत को हैI क्या हमारे उन बंधुओं को जिन्होंने विभाजन के उपरांत भी अपनीसंस्कृति और धरती को नहीं छोड़ा, यदि आज वही लोग किसी धर्म विशेष द्वारा पीड़ित हैं, तो क्या यह हमारा कर्तव्य नहीं बनता कि हम उन्हें यहां आने दे और प्रेम से स्वीकार करेंI मैं आप बुद्धिजीवी लोगों से यह विनम्र निवेदन करना चाहता हूं कि अपने विचार दें और लोगो में प्रकाशित करें की जो हमारे भाई प्रताड़ित हैं उनके आने का विरोध ना करते हुए उनका स्वागत करेंI

क्या उन्हें इतना भी अधिकार नहीं है?

अगर हमें भारतवर्ष में रहकर अपनी संस्कृति को बचाने का मौका मिले तो यह हमारा सौभाग्य होगा या नहीं?

क्या हमारे प्रताड़ित बंधुओं को यहां आने का और रहने का भी पूर्ण अधिकार नहीं है?

अगर है तो आप बुद्धिजीवियों से निवेदन है जनमानस को अपने विचारों से प्रेरित करेंI

नागरिकता संशोधन कानून के बारे में कुछ ऐसे सामान्य प्रश्नबनते हैं जिनका उत्तर मिलने के बाद बहुत पारदर्शिता आ जाती है वे प्रश्न इस प्रकार से हैं:

१. क्या नागरिकता कानून किसी भी नागरिक को प्रभावित करता है ?

उत्तर: नागरिकता अधिनियम 1955 के तहत नागरिक संशोधन किसी को भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन करने से नहीं रोकता हैI बलूच,अहमदिया और रोहिंग्या कभी भी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं बशर्ते वह नागरिकता अधिनियम 1955 से संबंधित योग्यता को पूरा करेंI

२. नागरिकता संशोधन कानून किस पर लागू होता है?

उत्तर: यह केवल हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और इसाई विदेशियों के लिए प्रासंगिक है, जो पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान से भारत में 31 दिसंबर 2014 तक धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर पलायन कर चुके हैंI यह मुसलमानों सहित किसी भी अन्य विदेशी पर लागू नहीं होता है जो इन 3 देशों सहित किसी भी देश से भारत में पलायन कर रहे हैंI

३. पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान इन 3 देशों से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को इससे क्या फायदा होगा?

उत्तर: यदि इन 3 देशों से आए शरणार्थियों के पास पासपोर्ट वीजा जैसे दस्तावेजों का अभाव है और वहां उनका उत्पीड़न हुआ है, तो वह भी भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैंI नागरिकता संशोधन कानून ऐसे लोगों को नागरिकता का अधिकार देता हैI इसके अलावा ऐसे लोगों को जटिल प्रक्रिया से मुक्ति मिलेगी और जल्द भारत की नागरिकता मिलेगीI इसके लिए भारत में 1 से लेकर 6 साल तक की रिहाइश की जरूरत होगी, हालांकि अन्य लोगों के लिए भारतीय नागरिकता हासिल करने के लिए 11 साल भारत में रहना जरूरी हैI

४. क्या इसका अर्थ यह है कि पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान के मुस्लिम कभी भारत की नागरिकता नहीं ले सकेंगे?

उत्तर: नागरिकता कानून के खंड 6 में किसी भी विदेशी व्यक्ति के लिए नेचुरलाईजेशन के जरिए भारतीय नागरिकता हासिल करने का प्रावधान है, इसके अलावा इस कानून के खंड 5 के तहत भी पंजीकरण कराया जा सकता है यह दोनों ही प्रावधान जस के तस मौजूद हैंI

५. क्या इन तीनों देशों से गैर कानूनी रूप से भारत आए मुस्लिम प्रवासियों को नागरिक संशोधन के अंतर्गत वापस भेजा जाएगा?

उत्तर: नहीं नागरिक संशोधन कानून किसी भी विदेशी को भारत से बाहर भेजने से संबंधित नहीं है किसी भी विदेशी नागरिक को देश से बाहर भेजने चाहे वह किसी भी धर्म यह देश का हो की प्रक्रिया फॉरर्नस एक्ट 1946 और पासपोर्ट एक्ट 1920 के तहत की जाती है इसलिए सामान्य निर्वाचन प्रक्रिया सिर्फ गैरकानूनी रूप से भारत में रह रहे विदेशियों पर लागू होगीI

६. क्या इन 3 देशों के अलावा अन्य देशों में भी धार्मिक आधार पर भेदभाव का सामना कर रहे हिंदू भी नागरिकता कानून के अंतर्गत नागरिकता के लिए आवेदन कर सकते हैं?

उत्तर: नहीं उन्हें भारत की नागरिकता लेने के लिए सामान्य प्रक्रिया से गुजरना होगा इसके लिए उसे या तो पंजीकरण करवाना होगा अथवा नागरिकता हासिल करने के लिए आवश्यक समय भारत में गुजारना होगा नागरिकता कानून लागू होने के बाद भी द सिटीजनशिप एक्ट 1995 के तहत कोई प्राथमिकता नहीं दी जाएगीI

७.क्या नागरिकता संशोधन कानून धीरे-धीरे भारतीय मुस्लिमों को भारत की नागरिकता से बाहर कर देगा?

उत्तर:नहीं नागरिकता संशोधन कानून किसी भी भारतीय नागरिक पर किसी भी तरह से लागू नहीं होता हैI

८. क्या नागरिकता संशोधन कानून के बाद एनआरसी आएगा और मुस्लिमों को छोड़कर सभी प्रवासियों को नागरिकता देगा और मुसलमानों को हिरासत शिविरों में भेज दिया जाएगा?

उत्तर: नागरिकता संशोधन कानून का एनआरसी से कोई संबंध नहीं हैI

९. नागरिकता संशोधन कानून के तहत नागरिकता के लिए क्या नियम है?

उत्तर: इस एक्ट के तहत समुचित नियम बनाए गए हैं यह नियम नागरिकता संशोधन कानून के विभिन्न प्रावधानों को अमल में लाएंगेI

१०. क्या नागरिकता संशोधन कानून में नस्ल लिंग राजनीतिक अथवा सामाजिक संगठन का हिस्सा होने भाषा व जातीयता के आधार पर होने वाले भेदभाव से पीड़ित लोगों को भी संरक्षण देने का प्रस्ताव है?

उत्तर: नहीं नागरिकता कानून सिर्फ भारत के तीन करीबी देशों जिनका अपना राजधर्म है कि अल्पसंख्यक समुदायों की सहायता करने के उद्देश्य से लाया गया हैI

यह कुछ सामान्य सवाल है जो हर किसी नागरिक के दिमाग में आएंगे और इनका यही स्पष्ट उत्तर हैI जिससे कि यह सिद्ध होता है कि नागरिकता संशोधन कानून किसी धर्म विशेष के विरुद्ध ना होकर देश हित में हैI


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