विक्रान्त शर्मा
आधुनिक भारत श्रेष्ठ भारत के विचारक व जनसंघ के संस्थापक शिल्पकार पं. दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितम्बर, 1916 को धनकिया (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चिन्तक और संगठनकर्ता थे। वे भारतीय जनसंघ के अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने भारत की सनातन विचारधारा को युगानुकूल रूप में प्रस्तुत करते हुए देश को एकात्म
मानववाद नामक विचारधारा दी।
इनके पिता श्री भगवती प्रसाद स्टेशन मास्टर और इनकी माता श्रीमती रामप्यारी धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थीं। उनके दादा पं. हरि राम प्रकाण्ड ज्योतिषी थे। समय का फेर था कि मात्र अढ़ाई की आयु में उन्हें पितृ प्रेम से वंचित होना पड़ा। उनकी माता राम प्यारी अपने पिता के घर रह कर उनका लालन-पालन करने लगीं। 8 अगस्त, 1924 को इनकी माता रामप्यारी का भी देहांत हो गया। उस समय वे मात्र आठ वर्ष के व उनके भाई शिवदयाल साढ़े छः साल के थे। इनका पालन-पोषण इनके मामा श्री राधारमण शुक्ल ने किया। सीकर ( राजस्थान) के कल्याण हाई स्कूल से दसवीं कक्षा प्रथम श्रेणी में पास की। स्नातक की पढ़ाई के लिए दीनदयाल जी कानपुर आ गए। यहां उन्होंने सनातन धर्म कॉलेज से बी.ए. की।उत्कृष्ट प्रतिभा के फलस्वरूप कालेज से मिली तीस रुपए मासिक छात्रवृत्ति से बी ए की शिक्षा पूरी की। 1939 में जब एम.ए. करने के लिए वह आगरा पहुंचे। इस दौरान राजा की मंडी नामक स्थान पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की एक शाखा को स्थापित किया। जनसाधारण को संघ के साथ जोड़ा, संघ के कार्यों और विस्तार को आगे बढ़ाया। सहृदयी, मिलनसार व्यक्तित्व के धनी थे। एक महान देशभक्त, कुशल संगठनकर्ता, मौलिक विचारक, दूरदर्शी, राजनीतिज्ञ और प्रबुद्ध साहित्यकार थे। सादा जीवन, उच्च विचार, सनातन संस्कृति के सक्रिय प्रतिनिधि और संदेश-वाहक थे। उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था। उनके व्यक्तित्व को शब्दों में परिभाषित करना बेहद कठिन कार्य है। वे एक कुशल संचालक, लेखक, पत्रकार,राज्ञनीतिज्ञ, संगठनकर्ता थे।
साधारण से दिखने वाले पंडित दीनदयाल हमेशा धोती-कुर्ता पहनते थे।उक्त सभी इस साधारण पुरुष में असाधारण विद्वता, महानता समाज का उत्थान उनका सर्वोपरि लक्ष्य था। वे कहते थे कि ‘मनुष्य जन्म से नहीं अपितु कर्म से महान बनता है।’ कम बोलना, अधिक सुनना उनका विशेष गुण था।
भारत के इस महापुरुष पं. दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु भी एक रहस्य बन कर रह गई। 11 फरवरी 1949 की रात को दिल्ली से हावड़ा की रेल यात्रा के दौरान मुगलसराय (दीनदयाल उपाध्याय) रेलवे स्टेशन के पास संदिग्ध अवस्था में इनका मृत शरीर मिला। तत्कालिन उत्तर प्रदेश सरकार ने इनकी मौत के रहस्य से पर्दा उठाने के लिए जांच भी की लेकिन आज तक ये साफ नहीं हो सका कि उनकी हत्या के पीछे किसका हाथ था। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में ये साफ बताया गया था कि इनकी मौत चोट लगने के कारण हुई है। पंडित जी के पीठ पर, हाथ और सिर पर चोट लगने के प्रमाण भी मिले थे। लेकिन तत्कालीन केंद्र सरकार ने भी उनकी मौत की जांच में अधिक रुचि नहीं दिखाई थी।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय ने स्वयं को मानव-सेवा, समाज-सेवा और देश सेवा के लिए समर्पित कर दिया था। वर्तमान में भारत के सामने कई विकराल समस्याएं हैं, बढ़ते भ्रष्टाचार, सिकुड़ते सामाजिक दायरे, जात- पात के नाम पर राजनीतिक सत्ता लोलुपता से बचाव में पं. दीनदयाल जैसे महापुरुषों का जीवनवृत्त समुचित प्रेरणास्रोत हो सकती हैं।
नमन है, ऐसी कर्मठ विभूतियों को।