• Skip to main content
  • Skip to secondary menu
  • Skip to primary sidebar
  • Skip to footer
  • Home
  • About Us
  • Contact Us

The Punjab Pulse

Centre for Socio-Cultural Studies

  • Areas of Study
    • Social & Cultural Studies
    • Religious Studies
    • Governance & Politics
    • National Perspectives
    • International Perspectives
    • Communism
  • Activities
    • Conferences & Seminars
    • Discussions
  • News
  • Resources
    • Books & Publications
    • Book Reviews
  • Icons of Punjab
  • Videos
  • Academics
  • Agriculture
  • General

परिवारों के गिरोह सरीखे वंशवादी दल, परिवारवादी राजनीति का मूल स्रोत बनी कांग्रेस

December 3, 2021 By Guest Author

Share

रसाल सिंह

Congress's great betrayal: The party that led the country to freedom, has  formalised succession by lineage

आज भारत में जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक परिवारवादी दलों की अखिल भारतीय उपस्थिति है। इनमें कांग्रेस के अलावा अन्य क्षेत्रीय पार्टियां हैं। कांग्रेस भी धीरे-धीरे क्षेत्रीय दल बनने की ओर ही अग्रसर है। ये वंशवादी पार्टियां खस्ताहाल प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों से भी खराब तरीके से चलाई जा रही हैं।

03 दिसम्बर, 2021 – गत 26 नवंबर को संविधान दिवस के उपलक्ष्य में आयोजित एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बड़ी मार्के की बात कही। उन्होंने कहा कि वंशवादी दलों में न तो आंतरिक लोकतंत्र है और न वे लोकतंत्र की रक्षा करने में सक्षम हैं। चूंकि कांग्रेस सहित तमाम छोटे-बड़े दलों ने केंद्र सरकार पर संविधान की अवहेलना करते हुए लोकतंत्र को क्षति पहुंचाने का आरोप लगाकर इस आयोजन का बहिष्कार किया था, इसलिए उन्हें आईना दिखाया जाना अपरिहार्य था। आज भारत में जम्मू-कश्मीर से लेकर तमिलनाडु तक परिवारवादी दलों की अखिल भारतीय उपस्थिति है। इनमें कांग्रेस के अलावा अन्य सभी क्षेत्रीय पार्टियां हैं। कांग्रेस भी अब धीरे-धीरे क्षेत्रीय दल बनने की ओर ही अग्रसर है।

ये सभी वंशवादी पार्टियां खस्ताहाल प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों से भी खराब तरीके से चलाई जा रही हैं। परिवार विशेष की जेबी पार्टियों में प्रमुख हैं कांग्रेस, राष्ट्रीय जनता दल, समाजवादी पार्टी, द्रविड़ मुनेत्र कषगम, नेशनल कांफ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, शिवसेना, अकाली दल, तेलंगाना राष्ट्र समिति और वाइएसआर कांग्रेस। इसके अलावा लोक जनशक्ति पार्टी, एआइएमआइएम जैसी छोटी पार्टियां भी हैं। यह सूची बहुत लंबी है और भारत के राजनीतिक मानचित्र के बड़े हिस्से को घेरती है। कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस जैसे दल क्रमश: नेहरू-गांधी और अब्दुल्ला परिवार की पीढ़ी-दर-पीढ़ी चलने वाली वंशवादी राजनीति के सिरमौर हैं। जनता दल और समाजवादी पार्टी ने भी कुनबापरस्ती के अभूतपूर्व कीर्तिमान स्थापित किए हैं। बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बसपा सुप्रीमो मायावती ने भी अपनी-अपनी पार्टी की बागडोर अपने भतीजों को सौंपने की दिशा में कदम बढ़ा दिए हैं। सिर्फ भारतीय जनता पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टियां, जदयू और नवोदित आम आदमी पार्टी अभी तक इस सर्वग्रासी व्याधि से बची हुई हैं।

लोकतंत्र और वंशवाद, दो सर्वथा विपरीत विचार हैं, लेकिन स्वतंत्र भारत में यह विरोधाभास खूब फला-फूला है। इस बीमारी की शुरुआत तभी हो गई थी जब मोतीलाल नेहरू बड़ी सूझबूझ से अपने बेटे जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने में सफल हो गए थे। ऐसा करके उन्होंने नेताजी सुभाषचंद्र बोस और सरदार वल्लभ भाई पटेल जैसे संघर्षशील, सक्षम और समर्पित नेताओं को पछाड़ते हुए स्वाधीन भारत के भविष्य को अपने परिवार की मुट्ठी में कर लिया। स्वाधीनता प्राप्ति के बाद गांधी जी एक दल के रूप में कांग्रेस की कोई भूमिका नहीं चाहते थे, लेकिन ऐसा न हो सका और कांग्रेस ने स्वाधीनता संघर्ष की विरासत को हड़प लिया। पंडित नेहरू ने कांग्रेस को अपनी जागीर बना लिया। उन्होंने इस जागीरदारी को संस्थागत वैधता प्रदान करते हुए अपने जीवनकाल में ही अपनी इकलौती संतान इंदिरा गांधी को कांग्रेस अध्यक्ष बना दिया। उनके बाद इंदिरा, संजय, राजीव, सोनिया और राहुल एवं प्रियंका गांधी तक की यात्र कांग्रेस पूरी कर चुकी है।

राजनीति में वंशवाद - सबलोग

गैर-कांग्रेसवाद और गैर-परिवारवाद का नारा देने वाले समाजवादी आंदोलन से उभरे तमाम क्षेत्रीय दल परिवार विशेष की निजी जागीर ही हैं। परिवारवादी दलों के लिए लोकतंत्र तो आवरण और आडंबर मात्र है। इन दलों का लोकतंत्र सामंतशाही का विकृत आधुनिक संस्करण है। कार्यकर्ताओं की भावना, इच्छा, क्षमता, मेहनत और विचार का कोई सम्मान नहीं। उनके लिए अवसर परिवार-विशेष की कृपादृष्टि का परिणाम है और पार्टी में उनका स्थान परिवार के प्रसादर्पयत ही है। इन दलों में परिवार विशेष की चाटुकारिता और उनकी परिक्रमा अनिवार्य है। वंशवादी दलों की नीति प्रतिभा दमन और नियति प्रतिभा पलायन है। इन दलों के तमाम सांगठनिक पदों पर चुनाव नहीं मनोनयन होता है। वंशवादी दलों में सत्ता का प्रवाह ऊपर से नीचे की ओर होता है। यह राजतंत्रत्मक व्यवस्था का पर्याय है, जबकि लोकतंत्र में नेतृत्व नीचे से सहमति-स्वीकृति प्राप्त करते हुए ऊपर की ओर संचरित होता है। वाद-विवाद-संवाद लोकतंत्र का आधारभूत लक्षण है। इससे ही लोकतंत्र विकसित और परिपक्वहोता है, परंतु वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में असहमति और आलोचना के लिए कोई स्थान या अवसर नहीं है। विचार-विमर्श की जगह लगातार सिकुड़ती जा रही है। इस जगह का सिकुड़ना लोकतंत्र के दम घुटने जैसा है। आज ज्यादातर दल आंतरिक लोकतंत्र का गला घोंटने में मशगूल हैं। वंशवादी दल इस काम में तत्परतापूर्वक जुटे हुए हैं। आंतरिक लोकतंत्र न होने से लोकतांत्रिक व्यवस्था में ठहराव आ जाता है और सड़ांध पैदा हो जाती है। अंतत: इसका परिणाम दल विशेष को भी भुगतना पड़ता है। कांग्रेस इसका जीता जागता उदाहरण है।

वंशवादी दल एक तरह से परिवार के, परिवार द्वारा और परिवार के लिए संचालित गिरोह हैं। वंशवादी दलों की यह विशेषता अब्राहम लिंकन द्वारा दी गई लोकतंत्र की परिभाषा को मुंह चिढ़ाती है। इन दलों का जनकल्याण से कुछ लेनादेना नहीं। यह सब छलावा है और सत्ता-प्राप्ति और स्वार्थ-सिद्धि का आवरण-मात्र। वंशवादी प्रवृत्ति का आदिस्नेत कांग्रेस और मूल प्रेरणा भले ही नेहरू-गांधी परिवार हो, किंतु इसके लिए जनता भी जिम्मेदार है। उसने लोकतंत्र का मुलम्मा चढ़ाए राजवंशों को सही तरह से पहचानने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। स्वतंत्र-चेतना और सक्षम नेतृत्व का नियमित उभार लोकतंत्र के स्वास्थ्य-लाभ की अनिवार्य शर्त है, जो कि वंशवादी राजनीतिक वातावरण में अनुपस्थित होता है। भारतीय लोकतंत्र को वंशवादी राजनीति के जबड़े से निकालना आवश्यक है। शिक्षित नागरिक समाज और जागरूक जनता को लोकतंत्र के वास्तविक उद्देश्य को समझने और दूसरों को समझाते हुए इस तिलिस्म को तोड़ना होगा।

(लेखक जम्मू केंद्रीय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं)

Edited By: Sanjeev Tiwari

सौजन्य : दैनिक जागरण


Share
test

Filed Under: Books & Publications, Governance & Politics, National Perspectives, Stories & Articles

Primary Sidebar

More to See

Sri Guru Granth Sahib

August 27, 2022 By Jaibans Singh

ਭਾਰਤ ਪ੍ਰਤੀ ਨਫ਼ਰਤ ਨਾਲ ਲਬਰੇਜ਼ ਪਾਕਿ

May 9, 2025 By Guest Author

ਅੱਤਵਾਦ ਦੀ ਰੋਕਥਾਮ ਲਈ ਵਚਨਬੱਧਤਾ

May 8, 2025 By Guest Author

Tags

AAP Amritsar Bangladesh BJP CAA Captain Amarinder Singh Capt Amarinder Singh China Congress COVID CPEC Farm Bills FATF General Qamar Bajwa Guru Angad Dev JI Guru Gobind Singh Guru Granth Sahib Guru Nanak Dev Ji Harmandir Sahib Imran Khan Indian Army Indira Gandhi ISI Kartarpur Corridor Kartarpur Sahib Kashmir LAC LeT LOC Maharaja Ranjit Singh Narendra Modi Pakistan PLA POJK President Xi Jinping Prime Minister Narednra Modi PRime Minister Narendra Modi Punjab QUAD RSS SAD SFJ SGPC Sikh Sukhbir Badal

Featured Video

More Posts from this Category

Footer

Text Widget

This is an example of a text widget which can be used to describe a particular service. You can also use other widgets in this location.

Examples of widgets that can be placed here in the footer are a calendar, latest tweets, recent comments, recent posts, search form, tag cloud or more.

Sample Link.

Recent

  • Op SINDOOR: Done & Dusted, so what now?
  • ਭਾਰਤ ਪ੍ਰਤੀ ਨਫ਼ਰਤ ਨਾਲ ਲਬਰੇਜ਼ ਪਾਕਿ
  • ਅੱਤਵਾਦ ਦੀ ਰੋਕਥਾਮ ਲਈ ਵਚਨਬੱਧਤਾ
  • Missile part found in Punjab’s border village; sparks panic, villagers say ‘explosion heard’
  • India destroys Air Defence System at Lahore

Search

Tags

AAP Amritsar Bangladesh BJP CAA Captain Amarinder Singh Capt Amarinder Singh China Congress COVID CPEC Farm Bills FATF General Qamar Bajwa Guru Angad Dev JI Guru Gobind Singh Guru Granth Sahib Guru Nanak Dev Ji Harmandir Sahib Imran Khan Indian Army Indira Gandhi ISI Kartarpur Corridor Kartarpur Sahib Kashmir LAC LeT LOC Maharaja Ranjit Singh Narendra Modi Pakistan PLA POJK President Xi Jinping Prime Minister Narednra Modi PRime Minister Narendra Modi Punjab QUAD RSS SAD SFJ SGPC Sikh Sukhbir Badal

Copyright © 2025 · The Punjab Pulse

Developed by Web Apps Interactive