दृष्टिकोण: आर्थिक रूप से और सक्षम बनने का समय
भारत इस समय दुनिया की सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है। पिछले कई वर्षों से यह सिलसिला इसी प्रकार से कायम है और मौजूदा वैश्विक उथल-पुथल का भारत की वृद्धि पर बहुत ज्यादा असर पड़ने के आसार भी नहीं। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि कम से कम अगले एक दशक तक भारत बहुत तेज गति से वृद्धि करेगा।
जी.एन. वाजपेयी : आपरेशन सिंदूर की सफलता का अलग-अलग पहलुओं से विश्लेषण जारी है। इस सैन्य अभियान की सफलता ने मुख्य रूप से तीन सराहनीय पहलुओं को रेखांकित करने का काम किया। पहला भारत सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति, जिसने पहलगाम में आतंकवादियों के कायरतापूर्ण, बर्बर और शर्मनाक कृत्य के जवाब में एक अपेक्षित एवं प्रभावी कार्रवाई को सुनिश्चित किया। दूसरा, स्वदेश विकसित एवं निर्मित हथियार प्रणालियों की सफलता और हमारे सशस्त्र बलों का अद्वितीय साहस। तीसरा, देश के सभी वर्गों, जाति, पंथ के लोगों ने राजनीतिक विचारधारा से परे जाकर हमारे सैनिकों की वीरता के समर्थन और प्रशंसा में एकजुटता का प्रदर्शन किया।
इस सफलता में गर्व की अनुभूति और ज्यादा बढ़ गई, क्योंकि स्वदेश निर्मित रक्षा प्रणालियों ने अपनी उपयोगिता साबित की। इसने रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता की गति को और तेजी देने की आवश्यकता को दर्शाया है। इसके लिए हमें आर्थिक रूप से सक्षम बनना होगा। यहां यह न भूला जाए कि कुछ देश अपने आर्थिक रुतबे को ही ताकत बनाकर न केवल पड़ोसियों, बल्कि दुनिया भर को धौंस दिखाने का काम करते हैं। यहां तक कि वे नैरेटिव पर भी नियंत्रण रखते हैं।
प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद और आतंकवादियों को जड़ से मिटाने का एलान किया है। निःसंदेह राजनीतिक संकल्पशक्ति और हमारे सैन्य बलों का पराक्रम तात्कालिक रूप से इस चुनौती से निपटने में सक्षम हैं, लेकिन इसका दीर्घकालिक उपाय आर्थिक मजबूती से ही जुड़ा है कि हमें परेशान करने की मंशा रखने वालों के मन में यह भय व्याप्त हो कि भारत पर बुरी नजर डालने के नतीजे कितने भयावह होंगे। प्रधानमंत्री मोदी की पहल से 2047 तक देश को विकसित राष्ट्र बनाने का जो एक राष्ट्रीय स्वप्न परवान चढ़ा है, उसके साकार होने पर ऐसी निवारक शक्ति सहज ही प्राप्त की जा सकती है।
हालांकि इस सपने की पूर्ति के लिए देश को निरंतर आठ प्रतिशत से अधिक की आर्थिक वृद्धि दर प्राप्त करनी होगी। ऐसी ऊंची वृद्धि कम से कम 36 प्रतिशत के सकल पूंजी निर्माण (जीसीएफ) के जरिये ही प्राप्त की जा सकती है। यह तभी संभव है, जब बचत और निवेश दर कुल आर्थिक उत्पादन के 36 प्रतिशत से अधिक हो। अफसोस की बात यह है कि जीसीएफ लगातार घटने पर है। वित्त वर्ष 2024 में यह और घटकर 31.4 प्रतिशत हो गया, जबकि वित्तीय वर्ष 2023 में यह 32.8 प्रतिशत था। इसका मुख्य कारण निजी क्षेत्र के निवेश में कमी आना है। निजी क्षेत्र का निवेश भी वित्त वर्ष 2023 के 25.8 प्रतिशत से घटकर वित्त वर्ष 2024 में 24 प्रतिशत ही रह गया। इस दौरान रिकार्ड सरकारी निवेश हुआ, लेकिन वह इस मोर्चे पर कमी को पूरा करने के लिहाज से पर्याप्त नहीं।
जीडीपी वृद्धि दर को गति देने के दो रास्ते हैं। एक निवेश यानी आपूर्ति केंद्रित और दूसरा मांग यानी उपभोग केंद्रित। जहां चीन ने निवेश केंद्रित राह अपनाई तो भारत ने उपभोग आधारित विकल्प की ओर कदम बढ़ाए। सुसंगत आर्थिक वृद्धि तभी सुनिश्चित होती है जब आपूर्ति (निवेश) और मांग (उपभोग) में समन्वय स्थापित हो सके। निवेश आधारित माडल रोजगार सृजन को बढ़ावा देता है, जिससे आय बढ़ती है और अंतत: उपभोग बढ़ता है। जबकि मांग आधारित वृद्धि में मांग सृजन के लिए लगने वाली अवधि विलोपित हो जाती है और निवेशक को अपनी पूंजी निवेश पर कहीं अधिक तेजी से प्रतिफल प्राप्त होता है।
मांग आधारित वृद्धि में निवेश तब गति पकड़ता है, जब क्षमता उपयोग 75 प्रतिशत के स्तर को छू लेता है। रिजर्व बैंक के अनुसार विनिर्माण क्षमता उपयोग का स्तर 76.7 प्रतिशत पर पहुंच गया है, लेकिन अभी भी निजी निवेश अपेक्षित गति नहीं पकड़ पा रहा है। कंपनियों के बहीखातों के संतुलन और पूंजी की लागत में बड़ी गिरावट जैसे पहलू भी चुनौती बने हुए हैं। संभव है कि वैश्विक अनिश्चितताएं निजी क्षेत्र के निवेश को लेकर अनिश्चितताएं पैदा कर रही हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने इस संदर्भ में कुछ समय पहले हौसला बढ़ाने का भी काम किया। उन्होंने कहा था कि हालिया वैश्विक घटनाक्रम भारत के लिए नए अवसर पैदा कर रहा है। उन्होंने यह भी कहा था कि जब सरकार पूंजीगत खर्च बढ़ा रही है तो कारोबारी दिग्गज भी जोखिम की परवाह न करते हुए निवेश बढ़ाएं।
भारत जैसे निम्न मध्यम-आय वाली आर्थिकी में विवेकाधीन खर्च करने की क्षमताएं बहुत सीमित होती हैं। जब तक आमदनी में भारी बढ़ोतरी नहीं होती, तब तक उपभोग या खपत के स्तर पर बहुत ज्यादा तेजी नहीं आ पाएगी। चीन ने निवेश केंद्रित राह चुनी और उसकी अर्थव्यवस्था ने करीब 40 से भी कम वर्षों में अप्रत्याशित ऊंचाई को छुआ। यह सही समय है कि अंबानी, अदाणी, टाटा, बिड़ला, डालमिया और इन जैसे अन्य कारोबारी घराने एवं उद्यमी मांग में तेजी आने और वैश्विक अनिश्चितताओं के बादल छंटने का इंतजार करने के बजाय अपना दृष्टिकोण बदलें। वे निवेश की राह पर आगे बढ़ते हुए देश का आर्थिक रुतबा बढ़ाने में अपनी भूमिका का निर्वहन करें। सैन्य बल सदैव अपने योगदान के लिए तत्पर रहते हैं और सर्वोच्च बलिदान से भी पीछे नहीं हटते, लेकिन हमें यह भी सोचना होगा कि आर्थिक निवारक शक्ति का विकास उनके लिए कितना मददगार होगा।
भारत इस समय दुनिया की सबसे तेजी से वृद्धि करने वाली बड़ी अर्थव्यवस्था बना हुआ है। पिछले कई वर्षों से यह सिलसिला इसी प्रकार से कायम है और मौजूदा वैश्विक उथल-पुथल का भारत की वृद्धि पर बहुत ज्यादा असर पड़ने के आसार भी नहीं। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैं कि कम से कम अगले एक दशक तक भारत बहुत तेज गति से वृद्धि करेगा। इसलिए निवेश पर प्रतिफल शायद तत्काल बहुत ज्यादा न दिखे, लेकिन दीर्घकाल में यह बहुत व्यापकता एवं समग्रता लिए होगा। देश को 2047 तक विकसित राष्ट्र की श्रेणी में स्थापित करने के लिए हरसंभव प्रयास करना भी सच्ची देशभक्ति होगी।
(लेखक सेबी एवं एलआइसी के पूर्व चेयरमैन हैं)
सौजन्य : दैनिक जागरण
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