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सरदार वल्लभ भाई पटेल जयंती

October 31, 2025 By Guest Author

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31 अक्टूबर 2025 को प्रधानमंत्री मोदी ने ‘लौह पुरुष’ सरदार वल्लभभाई पटेल की 150वीं जयंती के अवसर पर गुजरात के एकता नगर स्थित ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ पर पुष्पांजलि अर्पित की। साथ ही उन्होंने सरदार पटेल की स्मृति में विशेष स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी किया। इस दिन को राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में देशभर में मनाया गया।

सरदार पटेल की जयंती पर PM मोदी ने जारी किया स्मारक सिक्का, आज कई  कार्यक्रमों में होंगे शामिल - narendra modi sardar patel 150th jayanti  commemorative coin ntc - AajTak

सरदार पटेल एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा आजार भारत के पहले गृहमंत्री थे। स्वतंत्रता की लड़ाई में उनका महत्वपूर्ण योगदान था, जिसके कारण उन्हें भारत का लौह पुरुष भी कहा जाता है।

एक भारत श्रेष्ठ भारत के निर्माण में सरदार पटेल का योगदान अविस्मरणीय

31 अक्टूबर 1875 गुजरात के नाडियाद में सरदार पटेल का जन्म एक किसान परिवार में हुआ था। उन के पिता का नाम झवेरभाई और माता का नाम लाडबा देवी था। सरदार पटेल अपने तीन भाई बहनों में सबसे छोटे और चौथे नंबर पर थे।

शिक्षा : सरदार वल्लभ भाई पटेल की शिक्षा का प्रमुख स्त्रोत स्वाध्याय था। उन्होंने लंदन से बैरिस्टर की पढ़ाई की और उसके बाद पुन: भारत आकर अहमदाबाद में वकालत शुरू की।

स्वतंत्रता आंदोलन में भागीदारी : सरदार पटेल ने महात्मा गांधी से प्रेरित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लिया था। सरदार पटेल द्वारा इस लड़ाई में अपना पहला योगदान खेड़ा संघर्ष में दिया गया, जब खेड़ा क्षेत्र सूखे की चपेट में था और वहां के किसानों ने अंग्रेज सरकार से कर में छूट देने की मांग की। जब अंग्रेज सरकार ने इस मांग को स्वीकार नहीं किया, तो सरदार पटेल, महात्मा गांधी और अन्य लोगों ने किसानों का नेतृत्व किया और उन्हें कर न देने के लिए प्ररित किया। अंत में सरकार को झुकना पड़ा और किसानों को कर में राहत दे दी गई।

यूं पड़ा नाम सरदार पटेल : सरदार पटेल को सरदार नाम, बारडोली सत्याग्रह के बाद मिला, जब बारडोली कस्बे में सशक्त सत्याग्रह करने के लिए उन्हें पह ले बारडोली का सरदार कहा गया। बाद में सरदार उनके नाम के साथ ही जुड़ गया।

योगदान : आजादी के बाद ज्यादातर प्रांतीय समितियां सरदार पटेल के पक्ष में थीं। गांधी जी की इच्छा थी, इसलिए सरदार पटेल ने खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से दूर रखा और जवाहर लाल नेहरू को समर्थन दिया। बाद में उन्हें उपप्रधानमंत्री और गृहमंत्री का पद सौंपा गया, जिसके बाद उनकी पहली प्राथमिकता देसी रियासतों तो भारत में शामिल करना था। इस कार्य को उन्होंने बगैर किसी बड़े लड़ाई झगड़े के बखूबी किया। परंतु हैदराबाद के ऑपरेशन पोलो के लिए सेना भेजनी पड़ी। भारत के संविधान निर्माण के दौरान, वे अंतरिम सरकार में गृह और सूचना एवं प्रसारण मंत्री रहे और 565 रियासतों के साथ बातचीत करके उन्हें भारत संघ में एकीकृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिसके कारण उन्हें ‘भारत का लौह पुरुष’ कहा गया। स्वतंत्र भारत के प्रथम गृह मंत्री और उप-प्रधानमंत्री के रूप में, उन्होंने शरणार्थियों के लिए राहत कार्यों का आयोजन किया। जुलाई 1947 के बाद वे राज्य मंत्री और 1948 के बाद गृह एवं राज्य मंत्री के पद पर रहे।

1917 में, अहमदाबाद नगर निगम में स्वच्छता आयुक्त के रूप में उनके चुनाव के साथ ही, उनके सरकारी जीवन की शुरुआत हुई । उन्होंने शहर के सभी हिस्सों में बिजली, जल निकासी और स्वच्छता सुविधाओं का विस्तार किया और शिक्षकों की मान्यता और वेतन के लिए संघर्ष सहित प्रमुख शैक्षिक सुधार किए। 1920 में, पटेल को नवगठित गुजरात प्रदेश कांग्रेस समिति का अध्यक्ष मनोनीत और निर्वाचित किया गया ।

भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका

पटेल असहयोग, सत्याग्रह और भारत छोड़ो आंदोलनों में सक्रिय रूप से शामिल थे और कई बार अंग्रेजों ने उन्हें गिरफ्तार भी किया। 1923 में जब गांधी जी को जेल हुई, तो उन्होंने नागपुर में सत्याग्रह आंदोलन का नेतृत्व और आयोजन किया।

इस दौरान, पटेल कांग्रेस पार्टी में आगे बढ़ते गए और 1931 के कराची अधिवेशन के दौरान इसके अध्यक्ष चुने गए, जिसमें कांग्रेस ने ऐतिहासिक कराची प्रस्ताव पारित किया।

संविधान निर्माण में योगदान

पटेल कांग्रेस पार्टी के टिकट पर बंबई से संविधान सभा के लिए चुने गए थे। वे आलोचनात्मक सलाहकार समिति के सदस्य थे और पूर्ण अधिवेशन की तुलना में समिति के चरणों में अधिक सक्रिय थे। संविधान निर्माण के प्रारंभिक चरणों में, विशेषकर जब सभा मौलिक अधिकारों और अल्पसंख्यक अधिकारों पर उप-समितियों की अंतरिम रिपोर्टों पर विचार कर रही थी, बहसों में उनका हस्तक्षेप विशेष रूप से प्रमुख था।

चूंकि भारत के एकीकरण में सरदार पटेल का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था, इसलिए उन्हें भारत का लौह पुरुष कहा गया। 15 दिसंबर 1950 को भारत का उनकी मृत्यु हो गई और यह लौह पुरुष दुनिया को अलविदा कह गया।

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
  • 1917 : चंपारण सत्याग्रह; गांधी जी का साथ दिया
  • 1918 : खेड़ा सत्याग्रह; किसानों का नेतृत्व, ब्रिटिश से कर माफी करवाई
  • 1928 : बारदोली सत्याग्रह; महिलाओं सहित किसानों का नेतृत्व, “सरदार” की उपाधि मिली
  • 1930 : नमक सत्याग्रह; गिरफ्तारी, जेल
  • 1931 : कांग्रेस के कराची अधिवेशन के अध्यक्ष।
  • 1942 : भारत छोड़ो आंदोलन; प्रमुख नेता, लंबी जेल
  • कई बार जेल यात्राएँ (कुल 3 वर्ष से अधिक)।
प्रमुख उपलब्धियाँ
  • भारत रत्न (1991, मरणोपरांत)
  • स्टैच्यू ऑफ यूनिटी : विश्व की सबसे ऊँची प्रतिमा (182 मीटर), केवड़िया, गुजरात
  • राष्ट्रीय एकता दिवस : 31 अक्टूबर को मनाया जाता है
अंतिम दिनों में
  • वर्ष 1948 में गांधीजी की हत्या के बाद गहरी पीड़ा।
  • 15 दिसंबर 1950 को मुंबई में हृदयाघात से निधन।
  • अंतिम शब्द: “भारत माता की जय”
विरासत

“सरदार पटेल ने भारत को एक सूत्र में पिरोया। यदि वे न होते, तो भारत का नक्शा आज अलग होता।” – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

  • एकता का प्रतीक: स्टैच्यू ऑफ यूनिटी
  • प्रेरणा स्रोत: युवाओं, प्रशासकों और नेताओं के लिए
  • राष्ट्रीय एकता दिवस: हर वर्ष 31 अक्टूबर को ‘रन फॉर यूनिटी’
उपसंहार

सरदार वल्लभभाई पटेल न केवल एक राजनेता थे, बल्कि एक दूरदर्शी राष्ट्र निर्माता भी थे जिन्होंने स्वतंत्र भारत की नींव को मजबूत किया। उनकी 150वीं जयंती पर उन्हें याद करना भारत की एकता, अखंडता और आत्मनिर्भरता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता को पुनः पुष्ट करता है।

हिन्दी वेब दुनिया

https://hindi.webdunia.com/hindi-essay/sardar-patel-118103000063_1.html


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Filed Under: Governance & Politics, National Perspectives, Stories & Articles

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