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पंजाब में सिख बन रहे हैं ईसाई

October 27, 2022 By Guest Author

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पापा रिक्शा चलाते, मां बर्तन मांजती; ईसाई बनी तो 10 दिनों में मिला सिंगापुर का वीजा

Religious Conversion In Punjab: पंजाब में सिखों के ईसाई बनने पर दिल्ली से  लेकर पंजाब तक बवाल, भाजपा-SGPC आमने-सामने - Punjab Politics: Religious  Conversion In Punjab BJP attack on Shiromani ...

‘मां बीमार थीं। उनकी दोनों किडनी खराब हो चुकी थीं। जगह-जगह इलाज कराया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अस्पताल वालों ने इतने पैसे मांगे कि हम सब कुछ बेचकर भी नहीं चुका सकते थे। इसी बीच चर्च के लोग मां से मिलने लगे। कहते- बहन जी आपका इलाज करा देंगे। बीमारी और हालात दोनों दुरुस्त हो जाएंगे। हमारे साथ आ जाइए, आप यहां खुशहाल रहेंगी, स्वर्ग में आपका घर बन जाएगा और वह ईसाई बन गईं।’

ये आधी कहानी है अमृतसर के खासा गांव में रहने वाले 35 साल के मनजीत सिंह की। मनजीत की बाकी कहानी आगे बताएंगे। अब जानते हैं अमृतसर से 35 किलोमीटर दूर दयालभट्टी गांव की रहने वाली सिम्मी की कहानी।

‘मेरे तीन भाई थे। तीनों की एक साल से भी कम समय में मौत हो गई। एक भाई बहुत शराब पीता था। उसे बचाने के लिए हम कई मंदिरों और बाबाओं के यहां गए, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। हम उन्हें बचा नहीं पाए। पिता रिक्शा चलाते। मां दूसरों के घरों में काम करती थीं। चर्च के लोग हमसे मिलने लगे और 2020 में हम ईसाई बन गए। अब भाई के बच्चों की देखभाल चर्च करता है। ईसाई बनने के 10 दिन के भीतर ही मेरा वीजा आ गया और सिंगापुर में नौकरी लग गई। अब हमारे घर के हालात बदल गए हैं।‘

ये खासा गांव का प्रवेश द्वार है। इस गांव में एक चर्च है और चार से पांच पादरी। पिछले कुछ सालों में यहां सिख से ईसाई बनने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है।

ये खासा गांव का प्रवेश द्वार है। इस गांव में एक चर्च है और चार से पांच पादरी। पिछले कुछ सालों में यहां सिख से ईसाई बनने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है।

इन दिनों पंजाब में मनजीत और सिम्मी जैसी कई कहानियां हैं। खासतौर पर पाकिस्तान की सीमा से सटे अमृतसर, गुरदासपुर, डेरा बाबा नानक, मजीठा, अजनाला जैसे इलाकों में। यहां तेजी से सिख धर्म को छोड़कर लोग ईसाई बन रहे हैं। इन कहानियों का सच जानने मैं पहुंची अमृतसर…

दोनों ओर खेत, रास्ते को ढंकते हुए बड़े-बड़े पेड़, इक्का-दुक्का गाड़ियां, आते-जाते आर्मी ट्रक। साफ था मैं सरहद के आसपास हूं। अमृतसर से अटारी बॉर्डर की तरफ 18 किलोमीटर दूर मैं मनजीत सिंह के गांव ‘खासा’ पहुंची।

ये वही मनजीत हैं, जिसकी कहानी मैंने ऊपर बताई है। मनजीत कहते हैं- मां 35 साल तक ईसाई रहीं। उनके दोनों घुटनों और रीढ़ की हड्डी का ऑपरेशन हुआ था। दोनों किडनी खराब थीं। चर्च के लोगों ने बीमारी ठीक होने और मुफ्त इलाज कराने की बात कही। मां से कहा कि ज्यादा खर्च मत करो, जो भी पैसा है वो चंदे में दो। अगर चर्च को चंदा नहीं दोगी, तो नर्क में जाओगी।

एक दिन मैं चर्च गया तो देखा कि पादरी मां को बहला-फुसला रहे थे। वे कह रहे थे कि पता नहीं कब इस दुनिया को छोड़कर चली जाओ, उससे पहले ही स्वर्ग में घर बना लो। बहन जी आप और पैसे दो, स्वर्ग में आपके घर की छत बनना रह गई है। मां ने धन-दौलत, समय, भरोसा सब कुछ उन लोगों को दिया, लेकिन वे ठीक से जी भी नहीं पाईं। अब हम फिर से सिख बन गए हैं। दिल्ली गुरूद्वारा प्रबंधन कमेटी हमारा साथ दे रही है।

मनजीत से बात करने के बाद धूल-धक्कड़ रास्ते से होते हुए मैं अमृतसर से 36 किमी दूर दयालभट्टी पहुंची। गांव शुरु होते ही एक कॉन्वेंट स्कूल नजर आता है। स्कूल से लगा हुआ ब्लेसिंग होम।

ब्लेसिंग होम यानी वह जगह जहां ईसाई प्रेयर करते हैं और अनाथ बच्चों की देखभाल करते हैं। उसके आगे आधा-अधूरा बना चर्च। रास्ते के दोनों तरफ ईंट से बने घर। इन घरों पर न प्लास्टर है, न पुताई; लेकिन इनकी दीवारों पर जीसस और मदर मैरी की तस्वीरों वाली टाइल्स चस्पा हैं।

दयालभट्टी गांव का ये चर्च अभी आधा अधूरा बना है। देखने से लगता है कि ये निर्माणाधीन है, जैसे-जैसे फंड की व्यवस्था होती है, उसके मुताबिक इसे आगे बनाया जाता है।

दयालभट्टी गांव का ये चर्च अभी आधा अधूरा बना है। देखने से लगता है कि ये निर्माणाधीन है, जैसे-जैसे फंड की व्यवस्था होती है, उसके मुताबिक इसे आगे बनाया जाता है।

यहां मुझे मिलीं सिम्मी। वही सिम्मी जिनकी कहानी आप ऊपर पढ़ चुके हैं। सिम्मी 2 साल पहले अपने माता-पिता के साथ ईसाई बनी थीं। बात करने की कोशिश की तो उनके पति ने कहीं जाने का बहाना बना दिया। कई बार रिक्वेस्ट करने पर वे बात करने के लिए तैयार हुईं।

सिम्मी धर्म बदलने का कारण पूछने पर पहले हिचकिचाती हैं। मैं उन्हें भरोसा दिलाती हूं कि ये केवल खबर के लिए है, उन्हें इससे कोई नुकसान नहीं होगा। फिर भी वे बहुत सोचती हैं, मानो कुछ कहने से पहले दिमाग में हर शब्द को नापतौल लेना चाहती हैं। फिर उन्होंने अपने तीन भाइयों की मौत और ईसाई बनने की बात बताई।

सिम्मी से बात करने के बाद मैं ब्लेसिंग होम देखने पहुंची। अभी दरवाजे पर ही थी कि एक महिला की गुर्राती अवाज ने मुझे रोक लिया। ये क्या वीडियो बना रही हो? मेरे घर की तस्वीरें खींचने के लिए किसने कहा? डिलीट करो वीडियो।

उनके इतना कहते-कहते वहां लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। अचानक 30-40 लोगों ने मुझे घेर लिया। जबरन वीडियो डिलीट करा दिया। हालांकि बाद में मैंने अपनी सभी तस्वीरें और वीडियो रिकवर कर ली।

हंगामा करने वाली यह महिला चर्च की सिस्टर थीं, लेकिन बार-बार खुद को सिख बता रही थीं। वे सिम्मी और उनके पति जोसेफ से भी वीडियो डिलीट कराने के लिए कहने लगीं।

मुझसे बार-बार कहतीं कि किसी ऐसे व्यक्ति का इंटरव्यू लो जो ईसाई से सिख बना हो। इन लोगों से क्यों बात कर रही हो? इनका वीजा लगा हुआ है। दोनों को इटली जाना है, कोई दिक्कत हो गई तो? सिम्मी सिंगापुर में थी, जोसेफ दुबई में। ये तो यहां रहते भी नहीं।

लौटते हुए नसीब मसीह से मिली। पास के गगोमहल गांव में मजदूरी करने वाले नसीब बताते हैं कि उनके गांव में तकरीबन 1100 लोग ईसाई हैं। सिखों की संख्या 300 है। हमारे पादरी ने किसी के खिलाफ बोलना नहीं सिखाया। यहां सब लोगों के बीच बहुत प्यार है, कोई नफरत नहीं।

यहां से मैं अमृतसर के पट्टी विधानसभा क्षेत्र स्थित इंफेंट जीसस कैथोलिक चर्च पहुंची। यह 10-12 साल पहले बना था।

यहां मौजूद पादरी से मैंने पूछा- चर्च वालों पर आरोप है कि वे गरीब और दलित सिखों को लालच देकर ईसाई बना रहे हैं, तो वे भड़क जाते हैं। मुझे बार-बार बाहर जाने को कहते हैं। दोबारा सवाल पूछने पर कहते है, ‘धर्मांतरण कुछ होता ही नहीं है। लोगों का मन बदल रहा है। इसके लिए हम क्या कर सकते, आप लोगों से जाकर पूछें।’

पट्टी विधानसभा में जगह-जगह ऐसे क्रूसेड के पोस्टर लगे हैं। 11वीं सदी के दौरान ईसाई मुसलमानों के खिलाफ धर्मयुद्ध के रूप में क्रूसेड का इस्तेमाल करते थे।

इसके बाद मेरी मुलाकात गुर की विराली गांव के सतनाम सिंह से होती है। वे पांच साल ईसाई रहने के बाद दो साल पहले ही वापस सिख बने हैं। उन्होंने रिलीजियस स्टडी में ग्रेजुएशन किया है।

वे कहते हैं- मुझे बचपन से ही धर्म की पढ़ाई में दिलचस्पी थी। ईसाई दोस्तों ने कहा कि तू भी हमारे साथ चल। चमत्कारों के दावों से प्रभावित होकर मैं 2015 में ईसाई बन गया।’

सतनाम सिंह अमृतसर में पादरी अंकुर नरूला के क्रूसेड में हुई एक घटना का जिक्र करते हैं। वे कहते हैं, ‘पादरी मुर्दों को फिर से जिंदा करने का दावा तो करते हैं, लेकिन मैंने देखा कि जब एक परिवार मृत शरीर लेकर इनके पास आया, तो उसे चर्च के लोगों ने धक्का देकर बाहर कर दिया। इससे मुझे काफी तकलीफ हुई। 2020 में मैं वापस सिख धर्म में लौट आया।’

लोगों को सिख धर्म में वापस लाने वाले अंगरेज सिंह खुद को धर्म प्रचारक कहते हैं। बताते हैं- मैं धार्मिक जागरूकता के लिए काम करता हूं। ये लोग चमत्कार और दैवीय शक्तियों से गुमराह कर हमारे सिख भाइयों को ईसाई बना रहे। एक लड़का जिसकी दोनों किडनी खराब थीं, उसे चमत्कार से ठीक करने की बात कही, लेकिन उसकी जान चली गई। ऐसे कई किस्से हैं।

अंगरेज सिंह ने प्रचारक की पढ़ाई की है। वे एक महीने में करीब 60-70 परिवारों को वापस सिख धर्म में लाने का दावा करते हैं।

आखिर लोग सिख धर्म छोड़कर ईसाई क्यों बन रहे? यही सवाल मैं अलग-अलग एक्सपर्ट से पूछती हूं। मोटे तौर पर इसके पीछे तीन प्रमुख कारण मिलते हैं…

  1. भेदभाव के चलते दलित सिख बन रहे ईसाई

पंजाब यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर राजीव लोचन कहते हैं- ईसाई बनने वालों में दलित सिख खासकर चूड़ा जाति के लोगों की संख्या ज्यादा है। पिछले 20 सालों में SGPC, यानी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने सिख धर्म में जाटों का तेजी से वर्चस्व फैलाने की कोशिश की। इससे दलितों के मन में डर बैठ गया।

कई जगहों पर जाट गुरुद्वारों में दलित सिखों को जाने नहीं दिया जाता। उन्हें अपने घरों में शादी के लिए गुरुग्रंथ साहिब ले जाने की इजाजत भी नहीं होती। यहां तक कि वे गुरुद्वारे के बर्तन और चादरें भी अपने कार्यक्रमों में इस्तेमाल नहीं कर पाते। कई गांवों में दलित सिखों को जाटों के श्मशान घाट में जाने की भी मनाही होती है। ऐसे में दलित समुदाय के लोग अपना धर्म बदल लेते हैं।

  1. बीमारी ठीक करने और इलाज के नाम पर लोग बदल रहे धर्म

भारतीय राष्ट्रीय एकता परिषद के सदस्य और अखिल भारतीय ईसाई परिषद के महासचिव जॉन दयाल कहते हैं- जब लोग मुसीबत में होते हैं तो धर्म की ओर रुख करते हैं। धर्म बदलकर चर्च जानेवालों में ज्यादातर वे लोग हैं जो जानलेवा बीमारियों और बांझपन से जूझ रहे हैं।

  1. विदेश जाने के लिए धर्म बदल रहे दलित और गरीब सिख

दिल्ली SGPC कमेटी के अध्यक्ष हरमीत सिंह कालका कहते हैं- हमारी टीमें पंजाब के कुछ गांवों में गई थीं। उन्हें पता चला कि लोगों को लालच दिया जा रहा है कि अगर वे ईसाई धर्म कबूल करते हैं तो उन्हें विदेश जाने का मौका मिलेगा। जिसके चलते कुछ परिवार अपना धर्म छोड़कर ईसाई बन गए।

सेंट फ्रांसिस कॉन्वेंट स्कूल, फतेहगढ़ चुरियन के एक स्टाफ के मुताबिक उनका संगठन मुफ्त एजुकेशन के लिए हर साल 90 लाख रुपए खर्च करता है। स्कूल के 3,500 छात्रों में से तकरीबन 400 किसी भी तरह का कोई भुगतान नहीं करते। साथ ही गांव के बच्चों को स्कूल लाने के लिए मुफ्त बसें भी चलती हैं।

सौजन्य : दैनिक भास्कर


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