चीन की धीमी रफ्तार और पश्चिमी ठहराव के बीच बढ़ती चमक
अनुराग मिश्र
नई दिल्ली : वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2025-26 में भारत की आर्थिक विकास दर 6.3% रहने का अनुमान है। भले ही यह दर पिछले वर्ष की तुलना में थोड़ी धीमी हो, फिर भी यह अमेरिका (1.4%), चीन (4.5%), यूरोपीय संघ और जर्मनी जैसे देशों की तुलना में कहीं अधिक है।
रिपोर्ट में भारत की वृद्धि के पीछे मजबूत सेवा क्षेत्र, ग्रामीण मांग, सरकारी पूंजी निवेश और जनसंख्या लाभांश (Demographic Dividend) को प्रमुख कारक बताया गया है। जबकि अमेरिका में महंगाई और राजनीतिक अनिश्चितता विकास में बाधा बनी है, वहीं चीन की नीति आधारित ढील भी उसकी पारंपरिक रफ्तार को पुनः नहीं दिला पा रही।
विश्व बैंक की रिपोर्ट कहती है कि 2025 में लगभग 60% विकासशील देशों में वृद्धि दर में गिरावट आने की संभावना है। औसतन, विकासशील देशों की वृद्धि दर 2025 में 3.8% और 2026-27 में 3.9% रह सकती है, जो 2010 के दशक की औसत दर से 1 प्रतिशत अंक कम है। निम्न-आय वाले देशों की वृद्धि दर 2025 में 5.3% रह सकती है, जो कि वर्ष की शुरुआत में अनुमानित दर से 0.4 प्रतिशत अंक कम है। टैरिफ बढ़ोतरी और मज़बूत श्रम बाज़ार वैश्विक मुद्रास्फीति पर भी दबाव बना रहे हैं। 2025 में इसकी औसत दर 2.9% रहने की संभावना है, जो पूर्व-कोविड स्तरों से अधिक है।
हालांकि, यदि प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं व्यापार तनाव को कम कर पाती हैं, तो वैश्विक वृद्धि दर अपेक्षा से तेजी से पुनर्जीवित हो सकती है। विश्लेषण से पता चलता है कि यदि मौजूदा व्यापार विवादों को हल कर टैरिफ दरों को जल्द आधा कर दिया जाए, तो 2025-26 में वैश्विक वृद्धि दर औसतन 0.2 प्रतिशत अंक अधिक हो सकती है।
विश्व बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री और विकास अर्थशास्त्र के वरिष्ठ उपाध्यक्ष इंदरमीत गिल ने कहा कि एशिया को छोड़कर, विकासशील दुनिया एक ‘विकास-मुक्त क्षेत्र’ बनती जा रही है। बीते दशक से वह विकास की बात कर रही है, लेकिन हकीकत यह है कि विकासशील अर्थव्यवस्थाओं की वृद्धि दर बीते तीन दशकों से घटती जा रही है, 2000 के दशक में 6%, 2010 में 5%, और अब 2020 के दशक में यह 4% से भी कम रह गई है। यह प्रवृत्ति वैश्विक व्यापार की गिरती वृद्धि दर से मेल खाती है जो 2000 के दशक में 5% से घटकर 2010 में 4.5% और अब 2020 में 3% से भी कम रह गई है। निवेश की वृद्धि दर भी धीमी पड़ी है, जबकि ऋण रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुका है।
वैश्विक विकास दर क्यों हो रही धीमी ?
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार व्यापार बाधाओं में तीव्र वृद्धि और वैश्विक नीति वातावरण की अनिश्चितता के व्यापक प्रभावों के कारण वैश्विक विकास दर धीमी हो रही है। 2025 में वैश्विक विकास 2.3 प्रतिशत तक गिरने की संभावना है, जो पिछले वर्ष की तुलना में अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं में गिरावट का संकेत देता है। यह 2008 के बाद सबसे धीमी वैश्विक वृद्धि दर होगी (वैश्विक मंदी को छोड़कर)। 2026-27 में केवल धीमा सुधार अनुमानित है, जिससे वैश्विक उत्पादन जनवरी के अनुमानों की तुलना में काफी कम रह सकता है। 2020-24 के दौरान महामारी, युद्ध, आपूर्ति संकट और वित्तीय अस्थिरता ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया।
रिपोर्ट में कहा गया है कि यदि प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं व्यापार तनावों को हल करने के लिए स्थायी समझौते कर लेती हैं, तो व्यापार बाधाएं और अनिश्चितता कम हो सकती हैं।
टैरिफ और निवेश का संकट
टैरिफ में बढ़ोतरी से विश्व व्यापार धीमा हुआ है। अमेरिका में एक सदी में सबसे ऊंचे टैरिफ देखे जा रहे हैं। नीति में बदलावों की आशंका से कंपनियों में निवेश को लेकर संकोच बढ़ा है। मुद्रास्फीति कई विकसित देशों में लक्ष्य से अधिक बनी हुई है। इसके बावजूद, वैश्विक विकास को प्रोत्साहित करने के लिए केंद्रीय बैंक दरें कम करने में सतर्कता बरत सकते हैं।
अमेरिका, चीन और जापान में दिख रही कमजोरी
विश्व बैंक की रिपोर्ट में अमेरिकी विकास दर का अनुमान जनवरी की तुलना में कम किया गया है। व्यापार बाधाओं में वृद्धि, अनिश्चितता और वित्तीय बाजार की अस्थिरता उपभोग, व्यापार और निवेश को प्रभावित करेंगे। अब अनुमान है कि 2025 में अमेरिका की वृद्धि दर केवल 1.4% रहेगी।
निवेश पर सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि निवेश वस्तुओं के आयात को पहले ही तेज़ी से पूरा कर लिया गया था, और अब ऊंची लागत, अनिश्चितता और मांग में कमी निवेश को और कमजोर करेंगी। 2026 में, वृद्धि दर थोड़ी बढ़कर 1.6% हो सकती है, जब अर्थव्यवस्था उच्च टैरिफ और अनिश्चितता के नए माहौल में समायोजित हो जाएगी। यूरो क्षेत्र में गतिविधियां कमजोर रहने की उम्मीद है, क्योंकि यह क्षेत्र वैश्विक मूल्य श्रृंखला में गहराई से जुड़ा हुआ है, जिससे इसे व्यापार नीति परिवर्तनों का ज़्यादा असर झेलना पड़ता है।
2025 की शुरुआत में ही अमेरिकी अर्थव्यवस्था की गति धीमी हो गई थी, क्योंकि आयात पर खर्च में वृद्धि ने घरेलू उत्पादित वस्तुओं की मांग को प्रभावित किया। ऑटो जैसे कुछ श्रेणियों में नए टैरिफ के डर से पहली तिमाही के अंत में उपभोग में थोड़ी तेजी आई, लेकिन उसके बाद उपभोग की गति धीमी हो गई। उपभोक्ता विश्वास में तेज गिरावट आई है, जो शेयर बाजार में गिरावट और जोखिम से बचाव की भावना से प्रेरित है। उपभोक्ता मुद्रास्फीति की अपेक्षाएं भी तेज़ी से बढ़ी हैं। श्रम बाजार की मजबूती भी अब धीरे-धीरे कम हो रही है। गैर-कृषि रोजगार की वृद्धि 2015-2019 के औसत से नीचे रही है।
चीन में, 2025 की शुरुआत में वस्तुओं का निर्यात बढ़ा क्योंकि कंपनियों ने टैरिफ लागू होने से पहले शिपमेंट तेज कर दिए। लेकिन घरेलू मांग कमजोर बनी रही, खासकर अचल संपत्ति क्षेत्र के चार साल से जारी संकट के कारण। इससे मूल्य स्तर में नरमी आई। उपभोक्ता और निर्माता दोनों कीमतें घटीं, जो प्रतिस्पर्धा और वैश्विक कमोडिटी कीमतों में गिरावट को दर्शाता है। जापान में, 2025 में वृद्धि दर 0.7% रहने का अनुमान है, जो 2024 की 0.2% दर से बेहतर है। इसका कारण उपभोग में सुधार और ऑटोमोबाइल प्लांट्स का फिर से खुलना है। हालांकि, धीमी वैश्विक मांग और वास्तविक मजदूरी में वृद्धि न होने से इसकी वृद्धि संभावनाएं कमजोर हुई हैं।
भारत की तरक्की के पीछे वजह
इंफॉर्मेटिक्स रेटिंग्स के चीफ इकोनॉमिस्ट मनोरंजन शर्मा कहते हैं कि सबसे पहला कारण है डेमोग्राफिक डिविडेंड, यानी युवा आबादी की भरमार, जो उत्पादन और खपत दोनों को ऊर्जा प्रदान करती है। इसके अतिरिक्त, सरकारी पूंजी निवेश (कैपेक्स) ने इंफ्रास्ट्रक्चर क्षेत्र में भारी प्रगति दिखाई है। वर्तमान में भारत की विकास दर 6.5 से 7% के बीच बनी हुई है, जबकि वैश्विक स्तर पर औसत विकास दर 3.2% से 3.3% है। कई बड़ी अर्थव्यवस्थाएं तो 0.5% या उससे भी नीचे की दर से बढ़ रही हैं । कुछ तो नकारात्मक वृद्धि दर का सामना कर रही हैं। इस परिदृश्य में भारत की वृद्धि उल्लेखनीय प्रतीत होती है।
एक प्रमुख शोध फर्म में बतौर इकोनॉमिस्ट यतिका गुप्ता मानती है कि भारत की तेज आर्थिक वृद्धि कुछ मुख्य वजहों से संभव हुई है। एक तरफ सरकार ने बुनियादी ढांचे पर बड़े पैमाने पर खर्च किया है, जिससे व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा मिला है। दूसरी ओर, डिजिटल तकनीकों ने सेवाओं को अधिक लोगों तक पहुंचाया है और छोटे कारोबारों को बाज़ार और पैसे तक आसान पहुंच दी है। भारत की युवा और कुशल आबादी भी इसकी ताकत है, लेकिन असली वजह वो नीतियां हैं जो खर्च में अनुशासन, महंगाई पर नियंत्रण और सुधारों पर जोर देती हैं।
ति व्यक्ति आय अभी भी कम
मनोरंजन शर्मा कहते हैं कि इसका दूसरा पहलू यह है कि भारत एक निम्न आधार (Low Base) से तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। उदाहरण के तौर पर, भारत की प्रति व्यक्ति आय (Per Capita Income) अभी भी लगभग 3000 अमेरिकी डॉलर के आसपास है, जो विकसित देशों के मुकाबले काफी कम है। जब तक यह आंकड़ा पर्याप्त रूप से नहीं बढ़ता, तब तक भारत को “मिडिल इनकम कंट्री” का दर्जा पूर्ण रूप से नहीं मिल सकेगा।
निवेशकों का भरोसा और इसका भविष्य
जब चीन की विकास दर ऐतिहासिक रूप से नीचे जा रही है और अमेरिका राजनीतिक व मौद्रिक अनिश्चितताओं से जूझ रहा है, तब भी भारत को वैश्विक निवेशकों का विश्वास प्राप्त हो रहा है। यह भरोसा क्यों बन रहा है? मनोरंजन शर्मा कहते हैं कि इसका उत्तर कुछ प्रमुख वैश्विक घटनाओं में छिपा है, जैसे ट्रंप के दौर के टैरिफ, रूस-यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-ईरान संघर्ष, आदि। इन सभी के कारण वैश्विक निवेश वातावरण में अस्थिरता आई है।
इतिहास गवाह है कि जब वैश्विक स्तर पर अनिश्चितता बढ़ती है, तो पूंजी दो प्रकार की सुरक्षित जगहों (Safe Havens) में जाती है, एक सोना और दूसरा अमेरिकी डॉलर। ऐसे में यदि भारत में भी वैश्विक पूंजी आ रही है, तो यह एक संकेत है कि निवेशकों को भारत में दीर्घकालिक स्थिरता और वृद्धि की उम्मीद है।
भारत का अद्वितीय मॉडल डिजिटल क्रांति
मनोरंजन शर्मा कहते हैं कि आईएमएफ की एक विस्तृत रिपोर्ट बताती है कि भारत में जो डिजिटलीकरण आधारित उत्पादकता देखने को मिली है, उसकी दुनिया में कोई मिसाल नहीं है। यूपीआई, भीम जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म ने भारत के आर्थिक ढांचे को जमीनी स्तर तक बदल दिया है। देश में हर महीने करोड़ों डिजिटल लेनदेन हो रहे हैं, जिनमें लाखों करोड़ रुपये की राशि शामिल होती है। भारत अब दुनिया का सबसे बड़ा यूपीआई ट्रांजैक्शन नेटवर्क बन चुका है।
एक समय पर जब डिजिटल इंडिया की आलोचना होती थी, तब बिजली, शिक्षा और मूलभूत सुविधाओं की कमी की बात की जाती थी। लेकिन अब वही मॉडल दुनिया के सामने उदाहरण बन रहा है।
डिफेंस सेक्टर और भारत की साख
मनोरंजन शर्मा कहते हैं कि हाल के भारत-पाक संघर्ष में भारत ने न सिर्फ तकनीकी दक्षता दिखाई, बल्कि डिफेंस प्रोडक्ट्स की गुणवत्ता भी दुनिया को दिखाई। उदाहरण के तौर पर, जब इजरायल ने आयरन डोम से 98% अटैक रोके, भारत ने आकाश मिसाइल और डोमेस्टिक डिफेंस सिस्टम से 100% रोकथाम कर दिखाई। चीन द्वारा पाकिस्तान को दिए गए एडब्ल्यूएसीएस रडार सिस्टम को भारत ने निष्क्रिय कर दिया। यह न केवल रणनीतिक सफलता थी, बल्कि भारत के मिलिट्री-इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स की बढ़ती ताकत का प्रतीक भी है। अमेरिका की तरक्की में इसी मॉडल ने बड़ी भूमिका निभाई है। भारत ने एक प्रकार से मिलिट्री-इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स की दिशा में कदम बढ़ाया है, जैसा कि अमेरिका ने पिछले 100 वर्षों में किया, जहां रक्षा और औद्योगिक क्षेत्र एक-दूसरे को सशक्त करते हैं। इस युद्ध के बाद, भारत की रक्षा नीति सुदृढ़ होगी और साथ ही हमारे रक्षा उत्पादों की मांग अफ्रीका, यूरोप व अन्य देशों में बढ़ेगी, जिससे रक्षा निर्यात को बढ़ावा मिलेगा।
अब भारत के डिफेंस प्रोडक्ट्स की अफ्रीका, यूरोप और अन्य क्षेत्रों में मांग बढ़ रही है। मई 2025 के बाद डिफेंस स्टॉक्स में तेजी भी इसी रुझान का प्रमाण है।
आर्थिक वृद्धि को तेज करने के लिए देशों को व्यवसाय-अनुकूल वातावरण तैयार करना होगा, कुशल श्रमिकों को तैयार करना होगा, और श्रम बाज़ारों को मज़बूत करना होगा ताकि श्रमिक और कंपनियां एक-दूसरे से बेहतर ढंग से जुड़ सकें।
रोजगारविहीन विकास: एक ट्रांजिशनल चुनौती?
हालांकि भारत की विकास दर मजबूत है, परंतु निवेश, निर्यात और रोजगार सृजन में अपेक्षित गति नहीं दिख रही है। सवाल यह है कि क्या यह रोजगारविहीन विकास है या फिर कोई संक्रमणकालीन स्थिति? मनोरंजन शर्मा कहते हैं कि इसे एक उदाहरण से समझा जा सकता है। जैसे किसी घर में पहले 2 लोग थे और 250 ग्राम का केक पर्याप्त था, लेकिन अब जब घर में 5 लोग हैं, तो केक का आकार भी बड़ा होना चाहिए। यानी जीडीपी(केक का आकार) बढ़ना जरूरी है, लेकिन उतना ही जरूरी है कि उसके टुकड़ों का वितरण भी समान हो।
इसलिए सिर्फ संख्यात्मक विकास ही नहीं, बल्कि समावेशी और रोजगारपरक विकास भी आवश्यक है। भारत को अब उस दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे, जिससे रोजगार सृजन, निर्यात में विविधता, और ग्रामीण-शहरी असमानता में कमी लाई जा सके।
क्षेत्रीय असमानता और आय-वितरण की चुनौती
मनोरंजन शर्मा मानते हैं कि देश के भीतर क्षेत्रीय असंतुलन, आय और संपत्ति वितरण में असमानता, तथा अब भी बड़ी आबादी का गरीबी रेखा से नीचे रहना ये गंभीर सवाल हैं। वर्ल्ड बैंक की हालिया रिपोर्ट भले ही भारत की प्रगति को रेखांकित करती हो, पर बेरोजगारी और आय-असमानता अब भी प्रमुख चुनौती हैं। इन समस्याओं का समाधान रातों-रात संभव नहीं है, लेकिन सरकार द्वारा वित्तीय समावेशन, एमएसएमई सेक्टर को समर्थन, कमर्शियल बैंकों को माध्यम बनाकर लघु व मध्यम उद्यमों को प्रोत्साहित करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे हैं।
भारत अब सिर्फ मेट्रो-निर्भर देश नहीं
मनोरंजन शर्मा का मानना है कि ग्रामीण भारत में मांग में वृद्धि और सेवा क्षेत्र की मजबूती इस बात का संकेत है कि विकास अब सिर्फ महानगरों तक सीमित नहीं है। यह एक समावेशी विकास की ओर बढ़ते भारत की तस्वीर है। सबका साथ, सबका विकास की भावना अब जमीनी हकीकत में बदलती दिख रही है। यतिका भी इस बात से इत्तेफाक रखती है कि विश्व बैंक ने भी यह माना है कि अब भारत की तरक्की सिर्फ़ बड़े शहरों तक सीमित नहीं है, बल्कि गांव और छोटे कस्बों तक भी फैल रही है। इससे घरेलू खपत भी मज़बूत हो रही है। हालांकि, कुछ परेशानियाँ अभी भी हैं, जैसे निर्यात में सुस्ती, निजी निवेश की कमी और कम रोज़गार। भारत की ये स्थिति पूरी तरह बिना नौकरी वाली तरक्की नहीं है, बल्कि एक ऐसा दौर है जहां तकनीक के कारण नौकरी का स्वरूप बदल रहा है। ऐसे में सरकार को चाहिए कि वो मजदूरों को नई स्किल सिखाए, छोटे उद्योगों को मज़बूत करे और श्रम-गहन क्षेत्रों को बढ़ावा दे।
कुल मिलाकर, भारत एक अहम मोड़ पर है। अगर यह सही और समय पर सुधार करता है, तो न सिर्फ़ अपनी विकास दर बनाए रख सकता है बल्कि वैश्विक आपूर्ति शृंखला में एक मज़बूत और भरोसेमंद विकल्प भी बन सकता है।
क्या भारत बन सकता है “चाइना प्लस वन” का विकल्प?
विश्व स्तर पर निवेशक अब “चाइना प्लस वन” रणनीति के तहत भारत को एक व्यवहारिक विकल्प मानने लगे हैं। किंतु इसके लिए हमें लॉजिस्टिक्स, नीतिगत सुधार, इंफ्रास्ट्रक्चर और विनिर्माण क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता है। हालांकि सरकार द्वारा मेक इन इंडिया, वोकल फॉर लोकल और आत्मनिर्भर भारत जैसे अभियानों के माध्यम से प्रयास हो रहे हैं, परंतु तथ्य यह है कि भारत की मैन्युफैक्चरिंग जीडीपी में हिस्सेदारी मात्र 13.5% के आस-पास है, जिसे 25% तक ले जाने की आवश्यकता है। मनोरंजन शर्मा कहते हैं कि यदि भारत को मैन्युफैक्चरिंग में वैश्विक प्रतिस्पर्धा के योग्य बनना है, तो क्रेडिट (ऋण की पहुंच), इंफ्रास्ट्रक्चर विकास, तकनीक का नवाचार, मार्केटिंग व ब्रांडिंग क्षमता जैसे स्तंभों पर ठोस ध्यान देना होगा। यतिका मानती है कि दुनिया में जहां चीन की अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है और अमेरिका की नीतियां साफ नहीं हैं, वहां भारत को अब एक भरोसेमंद बाज़ार और चीन+1 रणनीति का अहम हिस्सा माना जा रहा है। लेकिन इस भरोसे को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए भारत को लॉजिस्टिक्स सुधारने, कागजी काम आसान बनाने और श्रम कानूनों को नया रूप देने की जरूरत है।
पीएलआई स्कीम: शुरुआत अच्छी, पर सुधार की जरूरत
शर्मा मानते हैं कि प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) स्कीम ने शुरुआती दौर में अच्छे परिणाम दिए हैं, विशेषकर फार्मास्युटिकल्स और ऑटोमोबाइल सेक्टर में। लेकिन यह कहना कि ये योजनाएं पर्याप्त हैं, संकोचजनक होगा। इन योजनाओं को सेक्टर-विशिष्ट रूप से पुनः परिभाषित और सशक्त बनाने की आवश्यकता है।
सौजन्य : दैनिक जागरण
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