गुणवत्ता और नवाचार के लिए समर्पित अध्यापक सबसे महत्वपूर्ण आधार
शिक्षा में उत्कृष्टता गुणवत्ता और नवाचार के लिए सबसे महत्वपूर्ण आधार प्रशिक्षित प्रतिबद्ध और समर्पित अध्यापक हैं। किसी भी स्कूल या बड़े संस्थान की साख उसके अध्यापकों प्राध्यापकों और प्रबंधकों की नियति लगनशीलता कर्मठता और सत्य-निष्ठा पर निर्भर करती है। इस शाश्वत सत्य को सरकारों को ही नहीं बल्कि राष्ट्र और समाज को भी स्वीकार करना होगा।

जगमोहन सिंह राजपूत
शिक्षा के क्षेत्र में आने वाले वर्षों में कई नई चुनौतियां सामने आएंगी, जिनका सामना केवल वे युवा कर सकेंगे, जिनके पास उत्कृष्ट स्तर की शिक्षा होगी और जो नए समय के लिए उपयोगी कौशलों से लैस होंगे तथा जीवनभर नए ज्ञान एवं कौशल सीखने के लिए तत्पर रहेंगे। यह उत्कृष्टता उन्हें उन्हीं संस्थानों से प्राप्त होगी, जिनकी कार्यसंस्कृति उच्च स्तर की होगी।
कोठारी आयोग (1964-66) की रिपोर्ट आने के बाद देश में शिक्षा के क्षेत्र में गतिविधियां तेजी से बढ़ी थीं। चूंकि तब स्कूलों और प्रशिक्षण संस्थानों का तेजी से विस्तार आवश्यक था और वह तेजी से हुआ भी, इसलिए जब भी किसी व्यवस्था में तेजी से विस्तार होता है, तो गुणवत्ता में कमी को रोकने के विशेष प्रयास करने होते हैं, जिन पर ध्यान नहीं दिया जा सका।
शिक्षक प्रशिक्षण में नए निजी संस्थान खोलने की ओर उन लोगों का ध्यान भी बड़ी संख्या में गया, जो इसमें व्यापार की संभावनाएं देखने लगे थे। राज्य सरकारों द्वारा नए सरकारी शिक्षक प्रशिक्षण संस्थान खोलने से पीछे हटने से भी उन्हें भारी प्रोत्साहन मिला। शिक्षक प्रशिक्षण में गुणवत्ता का ह्रास वर्ष 1970 के बाद विश्वविद्यालयों द्वारा पत्राचार से बीएड पाठ्यक्रमों के प्रारंभ होने से हुआ। सरकारी विश्वविद्यालयों ने केवल आर्थिक लाभ के लिए बिना पर्याप्त और आवश्यक संसाधन जुटाए ही पत्राचार द्वारा बीएड पाठ्यक्रम प्रारंभ कर दिए थे। इन पाठ्यक्रमों में धनार्जन ही मुख्य लक्ष्य था।
वर्ष 1998-99 में राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने बिहार के तत्कालीन राज्यपाल को एक प्रतिवेदन देकर प्रस्तुति दी कि कैसे कुछ सरकारी विश्वविद्यालय खुलेआम बीएड की डिग्री ‘बेच’ रहे हैं। जांच हुई, छापे पड़े, गिरफ्तारियां हुईं तो केवल बीएड ही नहीं, अन्य अनेक विषयों की उपाधियां भी तैयार मिलीं। ‘बिहार बीएड स्कैंडल 1999’ के संबंध में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। फिर क्या हुआ, इसके संबंध में एक अत्यंत कष्टकर वर्णन 2012 में उच्चतम न्यायालय द्वारा गठित आयोग के अध्यक्ष एवं भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जेएस वर्मा ने भी लिखा, जो न केवल उनकी पीड़ा को दर्शाता है, बल्कि लगभग सभी नियामक संस्थाओं और व्यवस्था की दयनीय स्थिति का स्पष्ट वर्णन करता है। स्थिति 2020 तक भी वैसी ही रही।
उनके कथन को राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 में दोहराना पड़ा, ‘…न्यायमूर्ति जेएस वर्मा आयोग (2012) के अनुसार स्टैंडअलोन टीईआइ (शिक्षक शिक्षा संस्थान), जिनकी संख्या 10,000 से अधिक है, अध्यापक शिक्षा के प्रति लेशमात्र गंभीरता से प्रयास नहीं कर रहे हैं, बल्कि इसके स्थान पर डिग्रियों को बेच रहे हैं। इस दिशा में अब तक किए गए विनियामक प्रयास न तो सिस्टम में बड़े पैमाने पर व्याप्त भ्रष्टाचार को रोक पाए हैं, और न ही गुणवत्ता के लिए निर्धारित बुनियादी मानकों को लागू कर पाए हैं, बल्कि इन प्रयासों का इस क्षेत्र में उत्कृष्टता और नवाचार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।’
कुछ परिवर्तनों के साथ ऐसे ही निष्कर्ष विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रही अधिकांश नियामक संस्थाओं पर आज भी लागू होते हैं। इनमें से एक राष्ट्रीय मूल्यांकन एवं प्रत्यायन परिषद (एनएएसी) ने अभी कुछ महीने पहले अपने लगभग 800 निरीक्षणकर्ताओं को हटाया, क्योंकि उसके कुछ निरीक्षणकर्ताओं को सीबीआइ ने पकड़े थे। जो इसे समझ सकता है, वह यह भी समझ जाएगा कि एनसीटीई की साख में बट्टा लगाने के लिए भी कौन लोग जिम्मेदार थे। इस समस्या का समाधान संभव है। इसका उदाहरण एनसीटीई ने ही 1998 के आसपास देश के समक्ष रख दिया था। एक बड़े राज्य के मंत्रिमंडल ने अक्टूबर/नवंबर में 70 नए बीएड कालेज ‘उसी वर्ष’ से खोलने की स्वीकृति प्रदान कर दी थी। यह एनसीटीई के नियमों का खुला उल्लंघन था।
इस संस्था ने हरसंभव प्रयास किया कि इस स्वीकृति को अगले वर्ष तक रोका जाए। न राज्य सरकार से, न मुख्यमंत्री के स्तर पर कोई सुनवाई हुई। फिर एनसीटीई ने साहस दिखाकर 15-20 विज्ञापन अनेक भाषाओं में उस राज्य में ही नहीं, राष्ट्रीय स्तर पर भी जारी कर दिए कि ‘इन संस्थानों से प्राप्त डिग्री अमान्य होगी, अवैध होगी।’ इस पर बड़ा तहलका मचा। केंद्र सरकार भी इस कार्रवाई से अप्रसन्न थी, मगर संस्था डटी रही। लिहाजा राज्य सरकार को अपना आदेश वापस लेना पड़ा। यही एक पत्राचार विश्वविद्यालय के साथ भी किया गया। अनेक निरीक्षणकर्ताओं से निरीक्षण के दौरान प्राप्त ‘उपहार’ वापस कराए गए। कई नामी-गिरामी लोगों से आगे निरीक्षण का कार्य ले लिया गया।
शिक्षा में उत्कृष्टता, गुणवत्ता और नवाचार के लिए सबसे महत्वपूर्ण आधार प्रशिक्षित, प्रतिबद्ध और समर्पित अध्यापक हैं। किसी भी स्कूल या बड़े संस्थान की साख उसके अध्यापकों, प्राध्यापकों और प्रबंधकों की नियति, लगनशीलता, कर्मठता और सत्य-निष्ठा पर निर्भर करती है। इस शाश्वत सत्य को सरकारों को ही नहीं, बल्कि राष्ट्र और समाज को भी स्वीकार करना होगा। उसे हर स्वीकृत पद पर नियमित नियुक्ति पद खाली होने से पहले पूरी करनी होगी। देश के सामने इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं है।
(लेखक NCERTके पूर्व निदेशक हैं)
दैनिक जागरण