भारत का लक्ष्य केवल आधारभूत ढांचे का केंद्र बनना नहीं, बल्कि वैश्विक नवाचार और ऊर्जा का भी केंद्र बनना है। ग्राम स्वावलंबन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने वाले ढांचे पर बल देना होगा। क्योंकि यही एकात्म मानव दर्शन को साकार करने का मार्ग है।
“विेकसित भारत 2047” केवल आर्थिक प्रगति का नारा नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय संकल्प है। इस संकल्प की ठोस नींव है, आधारभूत ढांचा। सड़कें, रेल, ऊर्जा, डिजिटल नेटवर्क, शहरी योजना-ये सब केवल ईंट-पत्थर की रचनाएं नहीं, बल्कि समाज और राष्ट्र की गति को दिशा देने वाले उपकरण हैं। 2014 के बाद भारत ने जिस तरह इन्फ्रास्ट्रक्चर को विकास की धुरी बनाया, उसने यह प्रमाणित किया कि यदि नीति, नवाचार और कार्यान्वयन एक साथ आगे बढ़ें, तो परिवर्तन केवल संभावना नहीं, बल्कि अनिवार्यता बन जाता है। “आधार – Infra Confluence 2025” जैसे आयोजन इसी चेतना को पुष्ट करते हैं।
भारत की परंपरा में आधारभूत संरचना का आशय केवल भौतिक साधनों से कभी सीमित नहीं रहा। हमारे नगर-नियोजन में लोकमंगल को केंद्र में रखा गया। नगर नियोजन का उद्देश्य नागरिक जीवन को सुगम और सामूहिक जीवन को समरस बनाना था। इसके साथ पर्यावरणीय संतुलन पर भी बराबर बल दिया गया। वृक्ष, नदियां, सरोवर और जल-प्रबंधन को योजनाओं का अभिन्न हिस्सा माना गया। इसी तरह सांस्कृतिक आयाम नगरों की आत्मा थे। मंदिर, सभागार, नाट्यशाला और पुस्तकालय केवल आस्था या मनोरंजन के स्थल नहीं, बल्कि सामुदायिक जीवन की धुरी थे।
हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, वैशाली और पाटलिपुत्र जैसे नगर इसके जीवंत प्रमाण हैं। चौड़ी सड़कों, जलनिकासी की सटीक व्यवस्था, सुरक्षा तंत्र और सांस्कृतिक केन्द्रों का समन्वय बताता है कि भारतीय दर्शन में आधारभूत प्रगति का अर्थ संस्कृति, सुगमता और पंचमहाभूतों के संतुलन से था।
इस परंपरा को थामते हुए भारत ने, विशेष रूप से पिछले दस वर्षों में, आधारभूत संरचना को नये आयाम दिए हैं। भारतमाला परियोजना ने हज़ारों किलोमीटर हाईवे और एक्सप्रेसवे का जाल खड़ा किया। दिल्ली-मुंबई एक्सप्रेसवे, पेरिफेरल परियोजनाएं और महाराष्ट्र-गोवा कनेक्टिविटी ने नए आर्थिक गलियारे बनाए।
रेलवे क्षेत्र में वंदे भारत रेलों ने गति और सुविधा का नया मानक स्थापित किया। अमृत भारत योजना के अंतर्गत स्टेशन ‘री-डेवलपमेंट’ और ‘डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर’ ने लॉजिस्टिक्स और उद्योग को नई ऊर्जा दी।
शहरी ढांचे में स्मार्ट सिटी मिशन से सौ शहरों को नई दृष्टि मिली। बीस से अधिक शहरों में मेट्रो रेल और इलेक्ट्रिक बसें चल रही हैं, जिससे ग्रीन मोबिलिटी का आधार बना।
ऊर्जा और डिजिटल क्षेत्र में भारत आज विश्व में अग्रणी है। नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता 180 GW से अधिक हो चुकी है और सौर ऊर्जा में भारत ने विश्व का नेतृत्व किया है। भारतनेट और 5G की पहुंच ने गांव-गांव में डिजिटल जुड़ाव संभव किया है। सागरमाला परियोजना और गंगा जलमार्ग जैसे प्रयासों ने समुद्री और अंतर्देशीय व्यापार को नई गति दी है।
इन उपलब्धियों के पीछे नीतिगत संकल्प और ठोस कार्यान्वयन है। जीएसटी और डिजिटलीकरण से लॉजिस्टिक लागत घटी और पारदर्शिता बढ़ी है। PPP मॉडल और निजी निवेश ने परियोजनाओं के विस्तार में अहम भूमिका निभाई है। PM GatiShakti मास्टरप्लान ने मल्टी-मॉडल कनेक्टिविटी को एकीकृत दृष्टि दी है।
इसके साथ ही, मेक इन इंडिया और PLI योजनाओं ने उद्योग व इंफ्रास्ट्रक्चर का तालमेल साधा। स्पष्ट है कि भारत केवल गति पर नहीं, बल्कि पारदर्शिता और समावेशिता पर भी बराबर जोर दे रहा है।
आज यदि वैश्विक परिप्रेक्ष्य में देखें तो भारत प्रतिमान गढ़ रहा है, कीर्तिमान भी बना रहा है। उसकी पहचान केवल एक विशाल उपभोक्ता बाज़ार के रूप में नहीं, बल्कि संतुलित और सुनियोजित आधारभूत विकास के मॉडल देश के रूप में बन रही है।
G20, SCO, BRICS जैसे मंचों पर भारत के अनुभव साझा हो रहे हैं। अफ्रीका और एशिया के अनेक देश भारत की डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) प्रणाली को अपनाने का प्रयास कर रहे हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि भारत का विकास मॉडल अंत्योदय की भावना पर आधारित है, यानी सबसे अंतिम व्यक्ति तक विकास का लाभ पहुंचना। यही उसे पश्चिमी मॉडलों से अलग पहचान देता है। आधारभूत संरचना के विकास की इस राह में चुनौतियां और अवसरों का दोराहा भी पड़ता है।
यह यात्रा चुनौतियों से मुक्त नहीं है। तेज़ शहरीकरण जनसंख्या दबाव बढ़ा रहा है, जिसके चलते सतत शहरी ढांचा बनाना अनिवार्य है। पर्यावरणीय संतुलन के लिए ग्रीन एनर्जी, कार्बन-न्यूट्रल योजनाएं और वृक्षारोपण की दिशा में ठोस कदम उठाने होंगे। डिजिटल समावेशन केवल स्मार्ट सिटी तक सीमित न रहकर स्मार्ट विलेज तक पहुंचना चाहिए। सांस्कृतिक समावेशन भी आवश्यक है, शहरों और गांवों में सांस्कृतिक स्थल, सामुदायिक केन्द्र और पुस्तकालय समानांतर विकसित हों।
वास्तव में, यही चुनौतियां भारत के लिए अवसर भी हैं। इनके समाधान से ही भारत 2047 तक वैश्विक नेतृत्व की भूमिका निभा सकेगा। इतिहास व परम्परा से मिले अनुभव और आधुनिक समन्वय इस संतुलन की कुंजी हैं।
संदेह नहीं कि भारत की राह है परंपरा और आधुनिकता का समन्वय। सतत विकास का अर्थ केवल सड़कें और गलियारे नहीं, बल्कि वृक्षारोपण, जल संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा का सम्मिलन है। ग्राम-केंद्रित ढांचा ग्रामीण भारत को स्वास्थ्य, शिक्षा और इंटरनेट की सुविधाओं से सशक्त करेगा। आर्थिक समावेशिता यह सुनिश्चित करेगी कि आधारभूत संरचनाएं केवल महानगरों तक सीमित न रहकर छोटे कस्बों और गांवों को भी जोड़ें। और राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से सीमा सड़कें, रक्षा गलियारे और आंतरिक ढांचा भारत के स्वाभिमान को सुदृढ़ करेंगे।
राष्ट्र के इस संरचनात्मक कायाकल्प के पीछे है समाज के हर व्यक्ति की चिंता और सबसे निर्बल को सबल बनाने का संकल्प। क्योंकि इस पूरे विमर्श को दिशा देता है पंडित दीनदयाल उपाध्याय का एकात्म मानव दर्शन। उन्होंने कहा था कि विकास का केंद्र मानव होना चाहिए, वह जो पंक्ति में सबसे अंतिम स्थान पर हो। सड़क, बिजली, आवास जैसी परियोजनाएं तभी सफल होंगी जब वे व्यक्ति के सर्वांगीण विकास में सहायक बनें और समाज की समरसता को बढ़ाएं। इसी विचार की व्यावहारिक परिणति है अंत्योदय, विकास की हर धारा अंतिम व्यक्ति तक पहुंचे। यही भारतीय विकास मॉडल का सार है और यही उसे पश्चिमी दृष्टि से अलग करता है।
लक्ष्य स्पष्ट हो तो आगे की राह स्पष्ट हो जाती है। विकसित भारत 2047 का लक्ष्य स्पष्ट है, ट्रांसपोर्ट, ऊर्जा और डिजिटल इंडिया को त्रिवेणी की तरह जोड़ना। भारत का लक्ष्य केवल आधारभूत ढांचे का केंद्र बनना नहीं, बल्कि वैश्विक नवाचार और ऊर्जा का भी केंद्र बनना है। ग्राम स्वावलंबन और स्थानीय अर्थव्यवस्था को मज़बूत करने वाले ढांचे पर बल देना होगा। क्योंकि यही एकात्म मानव दर्शन को साकार करने का मार्ग है। पं. दीनदयाल उपाध्याय की इसी भावभूमि, इसी मंत्र को अंगीकार कर कल्पना की गई थी इस आधार- Infra Confluence 2025 की। यह रोडमैप भारत को आत्मनिर्भर, सांस्कृतिक रूप से प्रामाणिक और पर्यावरणीय रूप से संतुलित बनाकर विश्व में एक नई पहचान देगा।
‘आधार – Infra Confluence 2025’ जैसे आयोजन केवल विमर्श का मंच नहीं, बल्कि कार्यान्वयन का खाका हैं। यदि भारत अपनी परंपरा की समग्र दृष्टि को आधुनिक नवाचार और पारदर्शिता के साथ जोड़ सके, तो ‘विकसित भारत 2047’ का सपना केवल घोषणापत्र नहीं, बल्कि यथार्थ होगा।
आधारभूत ढांचा इस यात्रा का इंजन है, जो राष्ट्र को गति, समाज को समरसता और व्यक्ति को अवसर देता है। यही है भारत का अनुभव, यही है उसका दर्शन और यही है 2047 की राह।
पंचजन्य