13 जुलाई, 2022 – पाकिस्तान के जाने-माने स्तंभकार नुसरत मिर्जा का एक कबूलनामा, भारत में चर्चा का विषय बना है। मिर्जा ने कहा, वे कांग्रेस के शासनकाल में कई बार भारत आए थे। उन्होंने यहां आकर खुफिया जानकारी जुटाई थी। ये सब उन्होंने पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ‘इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस’ (आईएसआई) के कहने पर किया था। नुसरत ने यह भी कहा कि तत्कालीन उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के कार्यकाल में उन्हें कई बार भारत आने का न्योता मिला था। देश की दो अहम केंद्रीय खुफिया एजेंसियों में काम कर चुके एक पूर्व अधिकारी ने कहा है, पाकिस्तान शुरू से ही भारत में सेंध लगाने की कोशिश करता रहा है। दरअसल यह कहानी बहुत लंबी है। ‘1971’ में जब पाकिस्तान घुटनों पर आया, तो आईएसआई बौखला उठी थी। भारत में जासूसी के लिए ‘सांबा इंफेंट्री’ से ‘हुस्न जाल’ तक, पड़ोसी की खुफिया एजेंसी कई तरीके अपनाती रही है। अब तो सोशल मीडिया ने पड़ोसी मुल्क की ये ‘राह’ बहुत आसान बना दी है। उसका प्राइम टारगेट ‘भारतीय सेना’ की सूचना हासिल करना है। ये अलग बात है कि अधिकांश मौकों पर पाकिस्तान के लिए जासूसी करने वाले अनेक लोग धर-दबोचे गए हैं।
पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने भेजा था न्योता …
स्तंभकार मिर्जा ने पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक शकील चौधरी के साथ बातचीत में ये खुलासा किया है। मिर्जा ने कहा, वे पांच बार भारत आए थे। पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने अपने कार्यकाल के दौरान उन्हें न्योता भेजा था। भारत से लौटने के बाद पाकिस्तानी आईएसआई के अफसर ने कहा, जो भी सूचना उन्होंने जुटाई है, उसे आईएसआई चीफ जनरल कियानी को दे दें। मिर्जा ने दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु, कोलकाता और पटना का दौरा किया। भारत यात्रा के दौरान मिर्जा को पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की ओर से कई विशेष सहूलियतें मिली थी। नुसरत ने कहा, ‘आईएसआई’ में भारतीय नेताओं से जुड़ी सूचना एकत्रित करने के लिए एक अलग विंग है। अनुभव की कमी के कारण, आईएसआई अभी तक इस विंग का ज्यादा इस्तेमाल नहीं कर सकी है। हालांकि आईएसआई ने इसके लिए कई तौर तरीके अपना रखे हैं।
जासूसी के लिए ‘सांबा इंफेंट्री‘ से लेकर ‘हनीट्रैप‘ तक …
केंद्रीय खुफिया एजेंसियों में बतौर एक्सपर्ट सेवाएं दे चुके पूर्व अधिकारी बताते हैं, पाकिस्तान हमारी सेना से जुड़ी जानकारी हासिल करने का हर संभव प्रयास करता है। सेना में सेंध, ये उसका पुराना तरीका है। इसके लिए कई तरह के हथकंडे अपनाता है। 1971 से पहले भी आईएसआई द्वारा खुफिया दस्तावेज हासिल करने के प्रयास किए गए हैं। चूंकि उस वक्त न तो सोशल मीडिया था और न ही हाईटेक प्रिंटर या आसानी से फोटो प्रति कराने वाली मशीन उपलब्ध हो पाती थी। आईएसआई का यही प्रयास रहता था कि किसी तरह दस्तावेज की धुंधली ही सही, तस्वीर मिल जाए। अगर कॉर्बन का इस्तेमाल हुआ है तो वह कॉपी भी चलती थी। ’71’ की लड़ाई में पाकिस्तान की बुरी तरह हार हुई। उसके 93 हजार सैनिक, बंदी बनाए जाने के बाद वह घुटनों पर आ गया था।
उसके बाद आईएसआई ने अपना नेटवर्क बढ़ा दिया था। आईएसआई को 1979 में बड़ी कामयाबी मिली। कश्मीर में ‘सांबा इंफेंट्री’ ब्रिगेड के 50 से ज्यादा अधिकारी और सैनिक, आईएसआई के जाल में फंस गए। बाद में उनकी गिरफ्तारी भी हुई और उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। ब्रिगेड से जुड़े लोगों पर भारत की खुफिया जानकारी, पाकिस्तानी एजेंसी तक पहुंचाने का आरोप लगा था। इस मामले में कुछ बड़े अफसर, अदालत भी गए थे। उनमें से कुछ अफसरों को राहत भी मिली थी। अब सीमावर्ती क्षेत्रों में पाकिस्तानी एजेंसी, गुमराह युवकों को अपने सिमकार्ड एवं फोन भी मुहैया करा रही है, ताकि वे भारतीय एजेंसियों की नजरों से बचे रहें।
अब सोशल मीडिया के चलते ज्यादा एक्टिव है ‘आईएसआई‘
पूर्व अधिकारी के मुताबिक, जासूसी के मामले में न केवल आईएसआई, बल्कि दिल्ली स्थित पाकिस्तानी दूतावास भी लगातार सक्रिय रहता है। दूतावास के कर्मी, जासूसी के आरोप में पकड़े गए हैं। एनआईए की चार्जशीट में यह खुलासा हो चुका है कि जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए पाकिस्तानी दूतावास की मदद ली गई है। घाटी में आतंकियों को फंडिंग के लिए दूतावास का नाम आ चुका है। आजकल, पंजाब और राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों में आईएसआई, सोशल मीडिया की मदद ले रही है। युवाओं को थोड़ा बहुत लालच देकर सूचना हासिल करने का प्रयास होता है। कश्मीर के अलावा देश के दूसरे हिस्सों में गुमराह हुए युवकों को स्लीपर सेल बनाने की कोशिशें लगातार की जा रही हैं। पाकिस्तान में स्थित आतंकी संगठनों के प्रमुख, इस मामले में आईएसआई की भरपूर मदद करते हैं। कश्मीर एवं दूसरे भागों से पाकिस्तान में पढ़ाई के नाम पर वीजा दिलाना, ऐसे अनेक मामले देखे गए हैं। कश्मीर के कई संगठन इसमें शामिल रहे हैं। युवकों को पढ़ाई के नाम पर सीमा पार भेजा जाता है। वहां से वे जब वापस आते हैं तो वीजा के जरिए नहीं, बल्कि बॉर्डर पर घुसपैठ के माध्यम से देश में घुसने का प्रयास करते हैं। सैन्य छावनियों और संवेदनशील क्षेत्रों में पाकिस्तानी आईएसआई की खास नजर रहती है।
सेना और सीएपीएफ में बढ़ रहा है ‘हनीट्रैप‘
पाकिस्तानी आईएसआई, भारतीय सेना और सीएपीएफ में सेंध लगाने के लिए हनीट्रैप का सहारा लेती है। ऐसे अनेकों मामले सामने आ चुके हैं। भले ही भारतीय जवानों की मंशा ऐसी नहीं होती, लेकिन वे हुस्न के जाल में फंस जाते हैं। कुछ केस तो ऐसे भी देखे गए हैं, जिनमें सीएपीएफ की महिला जवानों को जासूसी के लिए पैसे तक देने का ऑफर दिया गया है। जब भी कोई पाकिस्तानी प्रतिनिधिमंडल, चाहे वह किसी भी क्षेत्र में रहा हो, भारत आता है तो उस पर नजर रखी जाती है। चूंकि यहां आने के बाद वे लोग, पाकिस्तानी दूतावास भी जाते हैं, कुछ लोगों से सार्वजनिक एवं निजी स्थल पर मिलते हैं, ऐसे में उन पर नजर रखना मुश्किल हो जाता है। नुसरत मिर्जा का खुलासा नई बात नहीं, ये बात अलग है कि वह भेद अब खुला है। पहले संचार तकनीक ज्यादा बेहतर न होने के कारण, ऐसे मामले पकड़ में नहीं आते थे। अब कोई संदिग्ध है तो फोन टेप हो सकता है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप ग्रुप और दूसरे सोशल माध्यमों के जरिए ये सब होता है। अधिकारी के मुताबिक, राजनीति व कला से जुड़े लोग, पहले आईबी की नजर से बच जाते थे। अब ऐसा नहीं होता। यहां पर ये खास बात है कि आईएसआई द्वारा पाकिस्तानी दूतावास के माध्यम से अपने लोगों को दिल्ली या दूसरे भागों में सेट कराया जाता है।
जासूसी के अनेक मामले सामने आ चुके हैं
साल 2020 में पाकिस्तानी उच्चायोग के दो अफसरों, ताहिर खान और आबिद हुसैन को जासूसी के आरोप में वापस पाकिस्तान भेज दिया गया। ये दोनों, पाकिस्तान की मिलिट्री इंटेलिजेंस के सदस्य बताए गए थे। इन्हें स्लीपर सेल तैयार करने की जिम्मेदारी सौंपी गई। पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप में नौसेना के 11 कर्मियों को गिरफ्तार किया गया था। ये सभी सोशल मीडिया के जरिए हनीट्रैप में फंसे थे। ये कर्मी, मुंबई और विशाखापटनम आदि नौसैनिक अड्डों से पकड़े गए थे। यूपी के कंघी टोला निवासी आईएसआई एजेंट आफताब को जुलाई 2022 में जासूसी के आरोप में पांच साल कैद की सजा मिली है। भारतीय सेना के अहम दस्तावेज रखने के मामले में हबीबुर रहमान को राजस्थान के पोखरण से पकड़ा गया।
दिल्ली पुलिस ने रहमान के कब्जे से भारतीय सेना के दस्तावेज बरामद किए थे। आईएसआई द्वारा गेमिंग एप, म्यूजिक एप व एंटरटेनमेंट एप जैसे कई माध्यम इस्तेमाल करने का खुलासा हो चुका है। पठानकोट हमला होने से पहले एयरबेस पर तैनात वायुसेना का कर्मी जासूसी करता हुआ पकड़ा गया। यहां पर आईएसआई ने ‘हुस्न’ का इस्तेमाल किया। जासूसी के चलते रणजीत केके को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया। 2015 में जासूसी के लिए कैफयतुल्ला खान व अब्दुल रशिद पकड़ गए थे। ये दोनों, ईमेल व व्हाट्सएप जरिए आईएसआई के संपर्क में थे। इन दोनों को आईएसआई के स्लीपर सेल खड़े करने की जिम्मेदारी मिली थी। इन्होंने बीएसएफ से जुड़ी सूचनाएं, आईएसआई तक पहुंचाई थी।
जितेंद्र भारद्वाज
सौजन्य : अमर उजाला
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