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कार्तिक पूर्णिमा: त्रिदेवों ने इसे कहा है महापर्व

November 19, 2021 By Guest Author

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इस दिन किए गए दान से मिलता है दस यज्ञ करने जितना फल

Kartik Purnima 2020: Kartik Purnima on November 30, know auspicious time, worship method, importance and fast story - Kartik Purnima 2020: कार्तिक पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व, सब कुछ

19 नवम्बर, 2021 – आज कार्तिक महीने का आखिरी दिन है। इसके साथ हिंदू कैलेंडर के बड़े और खास तीज-त्योहारों वाला महीना खत्म हो रहा है। कार्तिक महीने की पूर्णिमा को पुराणों में बहुत ही खास दिन बताया गया है। इस पर्व पर किन चीजों का दान करें, दीपदान कहां करें और किन देवताओं की पूजा करने से क्या फल मिलेगा। ये सभी बातें पद्म, स्कंद, ब्रह्म और मत्स्य पुराण में बताई गई है। इस बार कार्तिक पूर्णिमा पर सूर्य-चंद्रमा और कृत्तिका नक्षत्र का शुभ संयोग बन रहा है। सितारों के इस शुभ योग से ये पर्व और भी खास रहेगा।

कार्तिक पूर्णिमा 19 को क्यों मनाएं
इस साल पूर्णिमा तिथि 18 नवंबर को सुबह तकरीबन 11.34 से शुरू हो रही है। 19 तारीख को दिन में करीब 1.20 तक रहेगी। व्रत-त्योहार का फैसला करने वाले ग्रंथ निर्णय सिंधु में कहा गया है कि कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि अगर दो दिन तक हो तो अगले दिन ये पर्व मनाना चाहिए। इसलिए शास्त्रों के मुताबिक शुक्रवार को कार्तिक पूर्णिमा पर्व मनाना चाहिए।

कार्तिक मास का महत्व
कार्तिक मास का महत्व मान्यता है कि कार्तिक मास में किया गया धार्मिक कार्य अनन्त गुणा फलदायी होता है। शास्त्रों के अनुसार ये महीना पूरे साल का सबसे पवित्र महीना होता है। इसी महीने में ज्यादातार व्रत और त्यौहार आते है। कार्तिक मास भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। इसलिए इस माह में की गई थोड़ी उपासना से भी भगवान जल्द प्रसन्न हो जाते है। कार्तिक मास में कार्तिक शुक्ल एकादशी को इस मास का सर्वाधिक महत्वपूर्ण दिन माना गया है जिसे हम देव उठान एकादशी कहते हैं। इसी दिन चातुर्मास की समाप्ति होकर देव जागृति होती है। चार महीने बाद जब भगवान विष्णु जागते है तो मांगलिक कार्यकर्मो की शुरुआत होती है। कार्तिक मास की समाप्ति पर कार्तिक पूर्णिमा का भी बड़ा विशेष महत्व है जिसे तीर्थ स्नान और दीपदान की दृष्टि से वर्ष का सबसे श्रेष्ठ समय माना गया है इसे देव–दीपावली भी कहते हैं।

लक्ष्मी नारायण की पूजा आषाढ़ शुक्ल एकादशी से भगवान विष्णु चार मास के लिए योग निद्रा में लीन होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। भगवान विष्णु के योग निद्रा से जागरण से प्रसन्न होकर समस्त देवी-देवताओं ने पूर्णिमा को लक्ष्मी-नारायण की महाआरती कर दीप प्रज्वलित किए। यह दिन देवताओं की दीपावली है। इस दिन दीप दान और व्रत-पूजा आदि कर देवों की दीपावली में शामिल होते हैं।

ऐसी भी मान्यता है कि कार्तिक पूर्णिमा के दिन भगवान शिव ने त्रिपुरासुर नाम के एक राक्षस का वध किया था। कहा जाता है कि इस खुशी में देवताओं ने दिवाली मनाई और काशी के घाट पर गंगा में दीपदान किया। तभी से कार्तिक की पूर्णिमा के दिन दीपदान किया जाता है। इस दिन लोग सुबह सवेरे स्नान कर भगवान लक्ष्मी नारायण और भगवान शिव की अराधना करते हैं।

कृत्तिका नक्षत्र और पद्मक योग
कार्तिक महीने की पूर्णिमा पर चन्द्रमा कृत्तिका और सूर्य के विशाखा नक्षत्र में होने से पद्मक योग बन रहा है। इस बार पूरे दिन कृत्तिका नक्षत्र का संयोग भी होने से इस पर्व का शुभ फल और बढ़ जाएगा। इस मौके पर किया गया स्नान, व्रत, दान और जप अनन्त पुण्य फल देने वाला रहेगा।

भविष्यवाणी: कार्तिक पूर्णिमा पर ग्रहों की स्थिति बता रही है कि शनि के प्रभाव से कई राष्ट्रीय परियोजनाएं पूरी होने के योग बन रहे हैं। लोगों की विदेश यात्राएं बढ़ेंगी। देश का आर्थिक विकास बढ़ेगा और राष्ट्र मजबूत स्थिति में रहेगा। देश में कई शुभ काम भी होंगे। वहीं, ग्रहों के अशुभ प्रभाव से अग्निकांड होने की आशंका बन रही है। देश में कई जगहों पर अचानक बारिश और ठंड बढ़ने के योग हैं।  प्रो. विनय कुमार पांडेय

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पद्म पुराण: दान से दस यज्ञ करने जितना फल
इसको ब्रह्मा, विष्णु, शिव, अंगिरा और आदित्य ने महापर्व कहा है। इसलिए इस दिन किए गए स्नान-दान, यज्ञ और उपासना का अनन्त गुना शुभ फल मिलता है। इसी शुभ तिथि पर शाम को भगवान विष्णु मत्स्य अवतार में प्रकट हुए थे। ये ही वजह है कि इस दिन किए गए दान और अन्य शुभ कामों का पुण्य दस यज्ञों के फल जितना होता है।

दीपदान और भगवान कार्तिकेय की पूजा
भगवान कार्तिकेय के कारण ही इस महीने का नाम कार्तिक पड़ा है। स्कंद पुराण के काशीखंड में बताया गया है कि इस महीने के आखिरी दिन यानी पूर्णिमा पर भगवान कार्तिकेय की पूजा और दर्शन करने से सात जन्मों तक धन और महापुण्य लाभ मिलता है। विद्वानों का कहना है कि इस पूर्णिमा पर्व पर शाम के वक्त दीपदान करने से हर तरह के दोष और पाप खत्म हो जाते हैं। दीपदान करने से पुर्नजन्म नहीं होता यानी मोक्ष मिल जाता है।

कहां करें दीपदान: मन्दिरों, चौराहों, गलियों, तालाब, कुओं, पीपल के पेड़ और तुलसी के पौधों के पास दीपक जलाए जाते हैं। साथ ही गंगा और अन्य नदियों में आटे के दीपक बनाकर दीपदान किया जाता है।

ब्रह्म पुराण: भगवान कार्तिकेय की माताओं की पूजा
ब्रह्म पुराण में कहा गया है कि कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि पर शाम को जब चंद्रमा उदय होता है। तब भगवान कार्तिकेय का पालन-पोषण करने वाली 6 माताओं की पूजा करनी चाहिए। जिनके नाम – शिवा, सम्भूति, प्रीति,संतति,अनसूया,और क्षमा है। ऐसा करने से शौर्य और वीरता बढ़ती है। दुश्मनों पर जीत मिलती है और हर तरह के दोष भी खत्म होते हैं। ये भी बताया गया है कि इस पर्व पर उपवास करते हुए भगवान विष्णु को प्रणाम करें तो अग्निष्टोम यानी महायज्ञ करने का फल मिलता है।

मत्स्य पुराण: किन चीजों के दान का महत्व
मत्स्य पुराण के मुताबिक कार्तिक महीने की पूर्णिमा तिथि पर व्रत करके वृष यानी बैल का दान करने से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं। लेकिन ऐसा न कर पाएं तो इस दिन चांदी का बैल बनवाकर दान कर सकते हैं। इस पर्व पर गाय, हाथी, रथ, घोड़ा और घी का दान किया जाय तो सम्पत्ति बढ़ती है। इस दिन सोने से बनी भेड़ का दान करने से ग्रह-नक्षत्रों के अशुभ फल खत्म हो जाते हैं।

सौजन्य : दैनिक भास्कर


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