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क्या संकेत करते हैं गुजरात के लोकल चुनाव नतीजे?

March 6, 2021 By Iqbal Singh Lalpura

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इकबाल सिंह लालपुरा

लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टियों की कार्य विधि, उनके द्वारा किए गए कार्य ओर मनुष्य के आर्थिक विकास की नीति की परख, वोटों के कसौटी पर ही होती है। देश को आजाद हुए 74 वर्षों का समय हो चुका है। इस लंबे आजादी के सफर में लोक लुभावने नारे गरीबी हटाओ, जय जवान जय किसान की बात करने वाली कांग्रेस पार्टी जिसने पूरे देश में 1947 से 1977 तक 30 साल बिना विरोध और बाद में करीब 25 साल देश में राजनीति की बागडोर संभाली।  इस समय के दौरान ना तो देश बाहरी हमलों से सुरक्षित रहा, ना ही आर्थिक खुशहाली हुई और ना ही साइंस का पूर्ण विकास हुआ। इसीलिए कांग्रेस पार्टी को जनता ने किनारे कर दिया।

कृषि देश का प्रमुख व्यवसाय है जिसमें देश के ग्रामीण क्षेत्र के 70% लोग कार्य कर रहे हैं। इनमें से 82% किसान बहुत कम जमीन के मालिक हैं। गुजरात के करीब 5000000 किसान परिवार खेती करते हैं। मौसम के आधार पर वहां 8 किस्म की कृषि क्षेत्र है जिसमें कपास, मूंगफली, गेहूं, ज्वार, चावल, बाजरा, और तेल के बीजों की खेती होती है। दूध का भी एक बड़ा कारोबार है। गिर केसरी आम और खजूर की खेती भी खूब होती है। कारखानों और लोक भलाई में लगे लोग गुजरात को खुशहाल बना रहे हैं। गुजरात ही देश का एक ऐसा राज्य है जहां बेरोजगारी की दर केवल 1.2% ही है। ऐसे विकसित राज्य में लोगों की शिक्षित दर भी 83% से अधिक है।

जब कोई समझदार, आर्थिक रूप से मजबूत और दूर दृष्टि रखने वाला व्यक्ति वोट डालता है। तो वह हर राजनीतिक पार्टी के द्वारा किए गए कार्य, अपनी सुरक्षा और तरक्की को ध्यान में रखता है। 4 मार्च 1998 ई. मतलब पिछले 23 सालों से गुजरात में लोग अलग-अलग राजनीतिक नेताओं को अग्रसर बना भारतीय जनता पार्टी को भारी मतों से चुनते आ रहे हैं। जिससे राज्य की तरक्की का हिसाब लगाया जा सकता है। महात्मा गांधी और सरदार पटेल के पैतृक राज्य में दुनिया के सर्वोच्च कारखाने दार और व्यापारी भी है।

अभी हाल में ही हुए लोकल इकाइयों, जिला पंचायत, तालुका, नगरपालिका, महानगर पालिका के 8 विधानसभा उप  चुनावों के नतीजे भी हैरानी जनक है। 31 जिला परिषद चुनाव के अंदर सभी वोटरों ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को जीत का सेहरा बांधा है। पिछले 2015 के चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने 24 जिला परिषद सीटों पर जीत प्राप्त की थी। भारतीय जनता पार्टी केवल 7 स्थानों पर ही जीत दर्ज करा सकी थी। इसी प्रकार तालुका चुनावों में जहां भारतीय जनता पार्टी 2015 में केवल 74 स्थानों पर जीत दर्ज करा सकी थी, इस बार 203 तालुका चुनावों पर जीत का झंडा गाड़ा है। पिछली बार 140 सीटें जीतने वाली कांग्रेस केवल 24 सीटों तक ही सिमट गई है।  नगर पालिका चुनावों में तो नतीजे और भी हैरानी जनक है। भारतीय जनता पार्टी 2021 में 75 नगर पालिका सीटें जीती। पिछली बार 16 नगर पालिका जीतने वाली कांग्रेस पार्टी केवल 4 सीटों तक ही सीमित रह गई है। 6 महानगर पालिका सीटों पर भी भारतीय जनता पार्टी ने ही जीत दर्ज की। पिछले साल हुए 8 विधानसभा उपचुनाव भी भारतीय जनता पार्टी ने जीते और वोटरों ने गुजरात में कांग्रेस पार्टी से मुख ही मोड़ लिया है।

गुजरात में लोकल इकाई के चुनाव(ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में) तीन नए खेती कानून फार्म प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स एक्ट, किसान एग्रीमेंट ऑन प्राइस अशोरेंस और फार्म सर्विस एक्ट के जून 2020 में ऑर्डिनेंस और सितंबर 2020 में कानून बनने के बाद हुए हैं| गुजरात के आदिवासी क्षेत्र में पिछले 5 सालों के दौरान मौसम की खराबी के कारण फसल खराब हो जाने पर केवल 91 किसानों ने खुदकुशी की है|

विचारणीय विषय यह है कि गुजरात के किसानों को यह तीन कृषि कानून में कोई गलती नजर नहीं आई और ना ही उन्हें जमीन पर किसी विदेशी या बहुदेशी कंपनी की तरफ से कब्जे का डर ही महसूस हुआ, ना ही उनको श्री राहुल गांधी जी की कांग्रेस, श्री अरविंद केजरीवाल जी की आम आदमी पार्टी या बहके हुए किसान नेता कानून के काले होने के बारे में कुछ समझा सके| किसानों द्वारा की गई खुदखुशियों के आंकड़ों के अनुसार पंजाब में पिछले 2 सालों के दौरान 919 से अधिक किसानों ने आत्महत्या की है| आज भी एक-दो किसान हर रोज खुदकुशी कर रहे हैं| 86% किसान कर्जे के नीचे दबे हुए हैं| अन्य आंकड़े बताते हैं कि साल 2000 से 2015 के दौरान पंजाब में 16606 किसानों और किसान मजदूरों ने आत्महत्या की है| पंजाब हरित क्रांति का प्रमुख प्रदेश रहा है| श्वेत क्रांति के लिए भी दूध का बड़ा उत्पादक राज्य रहा है| फिर किसान खुदकुशी की तरफ क्यों?

पंजाब की राजनीतिक लीडरशिप पिछले 65 साल मतलब 1956 ई. के बाद किसान परिवारों से संबंधित नेताओं के हाथ में ही रही है। खेती के विकास के लिए उनके द्वारा किए गए कार्य क्या चर्चा का विषय नहीं होने चाहिए?

खेती का धंधा मजबूरी ना होकर एक लाभदायक रोजगार बने इसके लिए क्या होना चाहिए था? खेती-बाड़ी खोज, शोध और नए बीजों का विकास कैसे हो क्या इस बारे में किसी ने चिंता की? केवल एक कृषि विश्वविद्यालय जो पृथीपाल सिंह के कत्ल के बाद केवल राजनीति का केंद्र बन के रह गई है। क्या पंजाब के किसानों को गेहूं और चावल के फसली चक्र से छुटकारा दिलवाने के लिए कुछ कर सकती है? क्या विश्व भर की कृषि खोज और दूसरे राज्यों के खेती विकास के साथ पंजाब बराबरी करता है?

पंजाब विधानसभा चुनावों से पहले 9 जनवरी 2017 को सरदार मनमोहन सिंह ने कैप्टन अमरिंदर सिंह, रणदीप सिंह सुरजेवाला आदि की उपस्थिति में सारे किसानों का कर्जा माफ करने की बात कही थी। यह वायदा कांग्रेस सरकार के 4 साल का राज पूरा होने के बाद भी पूरा क्यों नहीं हो सका?

यह भी सच है कि नेता अपने वोटर और समाज का भला चाहते हैं। लोग इस भाव के कारण ही उनके पक्ष में वोट करते हैं। पर पूरे 6 साल भारत की फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्री की मिनिस्टर होते हुए भी पंजाब में पैदा हो रहे फल, सब्जियों और अनाज की प्रोसेसिंग करने के लिए कितने कारखानों की योजना बनाई और तैयार करवाएं?

इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता है कि पिछले 50 सालों में पंजाब पर राज करने वाली राजनीतिक पार्टियों ने लोगों को फिरकों तथा संप्रदायों के आधार पर बांटकर अमन कानून स्थापित ही नहीं होने दिया। अमन कानून के बिगड़े हुए हालात में कौण उद्योगपति यहां कारखाना लगाएगा? यही कारण है कि पंजाब का सही मायनों में ना तो  आर्थिक विकास हुआ है, ना खेती-बाड़ी का और ना ही नौजवान पीढ़ी के लिए रोजगार उपलब्ध हो सका है। इसी कारण नौजवान लड़के-लड़कियां पंजाब छोड़कर विदेशों की ओर जा रहे हैं।

किसान अपनी आलू की फसल कई बार सड़कों पर फैंकने के लिए मजबूर होता है। क्योंकि यहां न तो पर्याप्त कोल्ड स्टोर उपलब्ध है और ना ही खरीददार। यदि केंद्र सरकार आलू की प्याज सहित उपज जो भी सड़कों पर फेंकी जाती है। उसकी खरीद करने की आज्ञा देती है तो इससे किसान का लाभ होगा या नुकसान?

पिछले अनेक वर्षों से पंजाब की 15 शुगर मीलें कॉन्ट्रैक्ट पर गन्ने की खेती करवाती हैं। बीज और खाद भी देती है। नेस्ले अंतरराष्ट्रीय कंपनी दूध और टमाटर पेस्ट आदि का कारोबार पंजाब में कर रही हैं। क्या किसी भी किसान की जमीन पर इन शुगर मिलों या नेस्ले कंपनी ने कब्जा किया है? नए कानून जिसमें केवल ‘फसल का ही करार हो सकता है जमीन का नहीं’ के माध्यम से किसान की जमीन पर कोई कब्जा कैसे कर सकता है?

देश के प्रधानमंत्री, कृषि मंत्री लोकसभा और राज्यसभा में यह बात पहले ही कह चुके हैं कि ना तो मंडियों में सरकारी खरीद बंद होगी और ना ही न्यूनतम समर्थन मूल्य को बंद किया जाएगा। संवैधानिक संस्था का दूसरा सतंभ न्यायपालिका की सर्वोच्च संस्था ने इन खेती कानूनों पर फैसले तक रोक लगाकर विचार और सुझाव करने के लिए कमेटी का गठन भी कर दिया है। इससे ओर आगे शायद पहली बार किसी सरकार ने संदेह (काल्पनिक या संभावित) के बारे में असली सत्य को लिख कर भी दे दिया है। यह प्रस्ताव किसान नेताओं के हाथ में है।

पूरे भारत का किसान जागृत है और अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में जानता है। इन खेती कानूनों को काले कानून कहकर, काल्पनिक डर पैदा करके राजनीतिक पार्टियों और राजसत्ता के लोभियों के प्रचार का असर ना स्वीकार करते हुए गुजरात के लोगों ने, स्थानीय इकाइयों की चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को बड़ी सफलता प्रदान की है।

पिछली करीब आधी सदी से ज्यादा समय में कभी गोली के साथ समाजवाद लाने वाले, कभी बेइंसाफी और झूठे मुकाबले करने वाले और कभी झूठे लालच देने वाले नेताओं ने पंजाब को सदा अशांत रखा है। आज भी किसान और कृषि का विकास अपने समक्ष रख किसान सम्मान निधि हर परिवार तक पहुँचाते हुए, प्रधानमंत्री जी इस खेती को लाभदायक रोजगार बनाने के लिए प्रयासरत है।

केवल धार्मिक भावनाएं भड़का कर “जंग हिंद पंजाब दा होण  लगा” कि 1849 ई. की सोच और नीति के आधार पर हम केंद्र सरकार से मनमुटाव पैदा कर पंजाब का विकास नहीं कर पायेंगे। इसलिए आइये, खेती आधारित उद्योग, स्टोर, खोज और विदेशी मार्केट पैदा करने के लिए हम सब इकट्ठे हो।

(Author is national  Spokesperson, BJP. मोबाईल:- 9780003333, E-Mail- iqbalsingh _73@yahoo.co.in)


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