रजिन्द्र बंसल अबोहर ।।

तेरा भाणा मीठा लागे, जपते बैठे गर्म तवी पर।
ऐसे इक अवतार हुये हैं अनुपम,भारत की इस पावन भू पर।।
मानव मानव एक बनें सब, गुरु अर्जुन की थी अभिलाषा।
धर्म जाती के टूटें बन्धन, मिट जाये सब द्वन्द्व निराशा।
हरि मन्दिर की नींव रखाई, मियां मीर से ले यही आशा।
मानव मानव एक बनें तो, टल जायें सब जग के संकट।।
तेरा भाणा मीठा लागे—————-।।
चले पिरोने एक सूत्र में, सब सन्तों की लेकर वाणी।
धर्मांधों को लगा शूल सा, अद्भुत सा वो ग्रन्थ नूरानी।
चन्दू जैसे जयचन्दों ने, गुरु अर्जुन विरोध की ठानी।
धर्मान्धों से मिल जयचन्दी,भारी हो गई मानवपन पर।।
तेरा भाणा मीठा लागे—————-।।
अकबर से गुहार लगाते, जेहादी करने चले शिकायत।
ग्रन्थ संजोये जो गुरु अर्जुन, कहें उसे इस्लाम पे घातक।
बाबा बुड्ढा गुरदास दिखायें, अकबर को इसका अमृत रस।
अकबर ने श्री ग्रन्थ नवाजा, इकावन स्वर्ण मुद्रायें दे कर।।
तेरा भाणा मीठा लागे—————-।।
शासन युग जहांगीर का आया, औढ़े हुये जेहादीपन को।
सर्व धर्म सम्भाव की राहें, नहीं भाती थी उसके मन को।
धर्मांध सब चिढ़े चिढ़े से, करें शिकायत नित शासन को।
गुरू अर्जुन न भटके पथ से, मलेच्छों के देख बवंडर।
तेरा भाणा मीठा लागे—————-।।
देख के फिर शासन जहांगीर, जेहादी फिर निकले बिल से।
जा जहांगीर से करी शिकायत, जहांगीर भी सुनते उनको दिल से।
गुरु अर्जुन को कर लिया बन्दी,क्रूर जेहादीपन की जिद्द ले।
यासा सियासत सजा सुनाई, अहम क्रूरता रथ पर चढ़ कर।।
तेरा भाणा मीठा लागे—————-।।
यासा सियासत कानून था ऐसा,बिन खून बहाये मारो जन को।
गर्म तवी पर बैठे गुरु जी, गर्म झुलसाती रेत से तन को।
विचलित तनिक न हुये गुरु जी, जपते रहे हरि नाम भजन को।
चले बुझानै जलन वो जल से, गुरू चल पहुंचे रावी तट पर।।
तेरा भाणा मीठा लागे—————-।।
रावी जल छू गुरु चरणों को, अमृत का स्त्रोत हो गया।
पावन गुरु अर्जुन का चौला, रावी में आलोप हो गया।
देख धर्म की जीत ये अद्भुत, जेहाद मूक खामोश हो गया।।
हरि नाम पदार्थ नानक मांगे, हरि नाम का जादू छाया जग पर।।
तेरा भाणा मीठा लागे—————-।।
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