दर्शन कुमार बंसल
अकाल तख्त के कार्यकारी जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने सिखों को आधुनिक हथियार रखने की अपील की है तो उसके तत्काल बाद दूसरी ओर अमेरिकी राज्य टेक्सास से मंगलवार दोपहर को दिल दहलाने वाली खबर आई। टेक्सास के युवाल्डे में रॉब एलिमेंट्री स्कूल में एक 18 वर्षीय युवक ने अंधाधुंध फायरिंग की। इस हमले में 19 विद्यार्थी और 2 अघ्यापकों की मौत हो गई। फायरिंग में 13 बच्चे, स्कूल के स्टाफ मेंबर्स और कुछ पुलिसवाले भी घायल हुए हैं। हमलावर ने स्कूल में फायरिंग से पहले अपनी दादी को भी गोली मारी है।
घटना के बाद राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में वहां के राष्ट्रपति बाइडेन ने कहा कि एक राष्ट्र के तौर पर हमें पूछना चाहिए कि गनलॉबी के खिलाफ हम कब खड़े होंगे और वो करेंगे जो हमें करना चाहिए। माता-पिता अपने बच्चे को कभी नहीं देख पाएंगे। बहुत सारी आत्माएं आज कुचली गई हैं। यह वक्त है जब हमें इस दर्द को एक्शन में बदलना है। बाइडन के इस बेबसी से युक्त ब्यान से लगता है कि जत्थेदार हरप्रीत सिंह को जवाब मिल गया होगा जो पंजाब में बन्दूक संस्कृति को पनपने के सपने देख रहे हैं।
श्री अकाल तख्त साहिब के संस्थापक छठे गुरु गुरु हरगोबिंद साहिब के गुरुतागद्दी दिवस पर तख्त साहिब के कार्यकारी जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने सिखों को आधुनिक हथियार रखने का आह्वान किया, लेकिन कहा है कि वह इसके लिए लाइसेंस जरूर लें। जत्थेदार के इस बयान को पंजाब और विशेषकर सिख समुदाय ने ही काफी बुरा मना और इसे युवाओं को उकसाने वाला बताया है। यहां तक कि तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार भाई रंजीत सिंह ने भी इस बयान को नकारा है। उन्होंने जिस तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया है वह अपने आप में महत्वपूर्ण है। भाई रंजीत सिंह ने पूछा है कि क्या जत्थेदार साहिब के मन में किसी प्रकार की कोई रणनीति घूम रही है।
अगर घूम रही है तो वह खुलकर सामने आएं और उसे समुदाय के सामने रखें। अगर ऐसा कुछ नहीं है तो वह युवाओं को गुमराह क्यों कर रहे हैं? पंजाब पहले ही 15 साल संताप भोग चुका है। कई घर तो ऐसे हैं जहां कोई चूल्हा जलाने वाला भी नहीं बचा है। राज्य में आज भी आतंक की घटनाएं रह-रह कर हो रही हैं और बदनीयत पड़ौसी पाकिस्तान महौल खराब करने का प्रयास कर रहा है।
यही नहीं, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने भी कार्यकारी जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह से अपील की है कि वह सिखों को लाइसेंसी आधुनिक हथियार रखने के लिए कहने के बजाय समाज में शांति, सद्भावना और भाईचारे का संदेश फैलाएं।
जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह
सवाल यह है कि आखिर उन्हें इस तरह का बयान देने की जरूरत क्यों पड़ी है? क्या सिख पंथ को किसी प्रकार का कोई खतरा है? क्या पंजाब के युवा हथियारों की मांग कर रहे हैं? जत्थेदार के इस बयान के पीछे क्या कोई राजनीति है या फिर वह जिस संदर्भ में अपनी बात रखना चाहते थे उसमें सही तरीके से रख नहीं पाए?
राजनीतिक विशलेषक इसके पीछे शिरोमणि अकाली दल की राजनीति को देख रहे हैं। उनका मानना है कि चूंकि शिरोमणि अकाली दल पिछले दो चुनावों में सत्ता में नहीं आ सका है। इस कारण उसका पंथक वोट बैंक तेजी से खत्म हो रहा है। इस पंथक पार्टी के लिए उसे अपने साथ बनाए रखना मुश्किल साबित हो रहा है। इसलिए वह जत्थेदार के माध्यम से अपनी राजनीति को चलाने की कोशिश कर रही है।
आतंकवाद के दोष में पकड़े गए युवा वर्षो से देश की विभिन्न जेलों में बंद हैं। उन्हें छुड़वाने के लिए शिरोमणि अकाली दल ने जिस प्रकार मुहिम छेड़ी है उसके पीछे भी जत्थेदार हरप्रीत सिंह का ही हाथ है। उन्होंने ही सभी सिख संगठनों को इस मुद्दे पर एक राय बनाने और जेलों में बंद आतंकी सिखों को छुड़वाने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बनाने को कहा। इसके लिए हुईं बैठकों में गर्मख्यालियों को भी अपनी बात रखने का मौका मिल गया, जो शिरोमणि अकाली दल की नीति नहीं है। खासतौर पर शिरोमणि अकाली दल अमृतसर के प्रधान सिमरनजीत सिंह मान ने जिस तरह से खालिस्तान का मुद्दा उठाया, उसने सुखबीर बादल को भी परेशानी में डाल दिया।
अकाल तख्त के जत्थेदार को यह नहीं भूलना चाहिए कि वह सिखों की शीर्ष संस्था के प्रमुख हैं। उनकी आवाज, उनके शब्दों का मोल है। पंथ उनके कहे अनुसार चलता है। वह उस धर्म की अगुवाई करते हैं, जो सरबत का भला चाहती है और दिन रात होने वाली अरदास में सरबत का भला मांगती है। अगर वे इस तरह की बयानबाजी करेंगे तो पंथ उन्हें सुनना बंद कर देगा। उन्हें समझना होगा कि उनका काम पंथ को सही नेतृत्व देना है। उन्हें इस बात की ओर भी ध्यान देना होगा कि पंजाब में अनुसूचित जाति के सिखों में धर्मपरिवर्तन करके ईसाई धर्म अपनाने की होड़ लगी हुई है। यानी सिख धर्म को छोडक़र लोग ईसाई बनने को ज्यादा प्राथमिकता दे रहे हैं।
खासतौर से फतेहगढ़ साहिब, रोपड़, गुरदासपुर आदि जिलों में चर्च की संख्या लगातार बढ़ रही है। उनमें जिस प्रकार सिखों के जाने का रुझान बढ़ा है वह इसलिए भी चिंतनीय है कि फतेहगढ़ साहिब की धरती पर ही धर्म परिवर्तन करने के बजाय साहिबजादों ने खुद को दीवारों में जिंदा चुनवाना पसंद किया था। शायद इसकी वजह यह है कि जिन लोगों के कंधों पर सिख पंथ को नेतृत्व देने की जिम्मेदारी है वे अपनी राजनीति में उलझे हुए हैं। अच्छी बात यह है कि सिख समुदाय ने अपने ही जत्थेदार के बयान को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया, बल्कि उनकी कड़ी आलोचना की है। जत्थेदार को अपनी अन्र्तात्मा के साथ-साथ जो बाइडन की बेबसी का विश्लेषण करना चाहिए जो एक शक्तिशाली राष्ट्र के मुखिया हैं और गन कल्चर के सामने बेबस दिख रहे हैं।
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