रजिन्द्र बंसल अबोहर
एक प्रश्नात्मक गीत रिफरैंडम 2020 वालों के लिये
यह देश तुम्हारा अपना है, फिर क्यों मन में ही बांट लिया।
चण्डीगढ़ तो अपना ही है, ननकाना क्यों ना मांग लिया।।
तू हाथ चढ़ा है जिनके आज, वो अपने गुरूओं के बैरी हैं।
उनकी खातिर जड़ से झगड़ा,क्यों तेरी मति मारी है।
जड़ से कट के बच पाया कौन, क्यों मिटने की तैयारी है।
सरहन्द दीवारें पूछ रहीं, क्यों मेरी तू गाथा भूल गया।।
चंडीगढ़ तो अपना ही है – – – – – – – – – – ।।
तू पानी की खातिर लड़ता, क्या ये तेरी बात सही है।
पानी नहीं एक का होता, पंजा साहिब संदेश यही है।
सरबत का भला की राहें छोड़ी,क्यों झगड़े की रट पकड़ी है।
सोने के पिंजरे की खातिर ,क्यों अपना घोंसला त्याग रहा।।
चंडीगढ़ तो अपना ही है – – – – – – – – – – ।।
खून बहा यहां बहुत ही अपना, अब भी जरा तू होश में आजा।
गैरों की क्यों करे गुलामी, तू तो है भारत का राजा।
बहुत नहीं अभी दूर गया तू, आजा आजा लौट के आजा।
पाप भरा ये घडा़ पाक है, उसको क्यों न भांज दिया।।
“अविश्वासों की दीवारें “
अविश्वासों की दीवारें, रेत के ऊपर महल खड़े।
नींव रहित इन महलों में न जाने कैसे लौग रहें ।।
एक नूर कुदरत के बंदे, क्यों पंथों में बंटते हैं ।
जाति पाति की विष बेलों के, शूल भयानक लगते हैं।
शमशानों को रौशन करते, काहे ना हम डरते हैं।
जली चित्त की अग्नि देखो, कुछ तो रोटी सेंक रहे।।
नींव रहित इन महलों में———।।
राजनीति की गाड़ी चढ़ कुछ, पाल रहे हैं गुर्गों को।
नहीं चैन से सोने देते, कब्र गड़े ये मुर्दों को।
कब्रें भी निज नाम कराते, लिखवा कर नई फर्दों को।
कब्रों पर चिराग जला कर, कहें उजियारा बांट रहे।।
नींव रहित इन महलों में———।।
एक धरा है एक जान है,एक हवा इक पानी है।
कैसे रक्त से प्यास बुझेगी, कैसी ये नादानी है।
मानव जीवन जो छल जाये, कैसे कहें जवानी है।
दुखों की बिसात बिछाये,उन्हें कैसे इन्सान कहें।
नींव रहित इन महलों में———।।
अमावस की रात कोई काली, पूर्णिमा न हो पायेगी।
जो जीवन की ज्योति बुझा दे, इबादत न वो कहलायेगी।
दीन धर्म के औढ़ लबादे, कुछ तलवारें रेत रहे।।
नींव रहित इन महलों में———।।
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