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नशे में डूबता संपन्न पंजाब

July 31, 2019 By Guest Author

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रिपोर्टः आभा मोंढे 
संपादनः ए जमाल

हरित क्रांति से लहलहाते पंजाब में नशा आम बात हो चुकी है। राज्य के युवा अफीम, हेरोइन और कोकीन जैसे नशे का शिकार हो रहे हैं। मुनाफा कमाने का आसान रास्ता बन रहा है जान का दुश्मन। दो दशक से ज्यादा से नशे की लत में है पंजाब।

एक धुंधली सी सुबह। पंजाब के शहर अमृतसर में सुनील शर्मा अपने लिए फिर एक नशे की पुड़िया तैयार कर रहे हैं। हेरोइन का नशा। खंडहर हो चुकी एक इमारतमें टिन की पन्नी पर भूरे रंग का पावडर पेस्ट गर्म कर उससे निकलने वाला धुआं निगलना चाहते हैं। 23 साल के सुनील बताते हैं कि छह महीने पहले उनकी गर्लफ्रेंड ने जब उन्हें छोड़ किसी और से शादी कर ली तब पहली बार उन्होंने हेरोइन का नशा किया। अपने शब्दों को खाते हुए वह कहते हैं, ‘मुझे बुरा लगता है कि मैं ऐसा क्यों हो गया। क्यों मैंने अपने गले में यह मुसीबत बांध ली है।’

पंजाब में सुनील अकेले नहीं हैं जो ड्रग्स का शिकार हैं। पंजाब नशीले पदार्थों के मामले में देश में पहले नंबर पर है। 2009 में राज्य हाई कोर्ट को दी गई जानकारी के मुताबिक पंजाब के गांवों में 67 फीसदी लोग कभी न कभी ड्रग एडिक्ट रहे हैं। तस्करी के कुख्यात रास्ते पर लंबे समय से अफगानिस्तान होते हुए पाकिस्तान से नशीले पदार्थों की तस्करी की जाती रही है। अब गैरकानूनी नशीले पदार्थों का ठिकाना पंजाब बन गया है।

राज्य में नार्कोटिक्स विभाग के आईजी एस भूपति के मुताबिक, ‘स्थानीय लोगों को जैसे ही जान पड़ा कि इस गैरकानूनी धंधे में मुनाफा है, वह इसे आस पास के गांवों में बेचने लगे।’ उनका कहना है कि पंजाब से कितनी मात्रा में नशीले पदार्थों की तस्करी होती है यह बताना मुश्किल है, लेकिन इसकी मात्रा काफी ज्यादा है। ड्रग्स और अपराध के लिए संयुक्त राष्ट्र ऑफिस में क्षेत्रीय समन्वयक राजीव वालिया ने एएफपी समाचार एजेंसी को बताया, ‘पंजाब के लिए यह गंभीर समस्या है क्योंकि यह तस्करी और ड्रग्स उत्पादन करने वाले इलाकों की सीमा पर है।’

नशे का शिकार : 1970 में पंजाब देश का ब्रेड बास्केट कहा जाता था क्योंकि यहां की मिट्टी फसलों के लिए शानदार थी। हरित क्रांति का सबसे ज्यादा फायदा भी इस इलाके नेउठाया। नशे की लत का शिकार रहे नवनीत सिंह कहते हैं कि लोगों में नशे की आदत बढ़ रही है। आज नवनीत सिंह अच्छा काम कर रहे हैं। 11 साल से उन्होंने कोई नशा नहीं किया। उनका मानना है कि पंजाब की संपन्नता और परंपरा के कारण लोग ड्रग्स के चक्कर में आसानी से आ जाते हैं।
38 साल के सिंह कहते हैं, ‘पंजाब पुरुष प्रधान समाज है और यहां दिखावे की संस्कृति है। यह ड्रग्स के लिए रेडीमेड मार्केट है। एक पंजाबी अमीर होने पर क्या करता है, वह एक एसयूवी कार खरीदता है, एक बंदूक ले लेता है और नशा कर लेता है। जैसे जैसे समय बीतता है नशे की लत लग जाती है फिर नशे के लिए लोग कुछ भी करते हैं।’

डॉक्टर जीपीएस भाटिया ने पंजाब में नशे की समस्या को काफी करीब से देखा है। 1991 में जब उन्होंने मनोरोग चिकित्सालय बनाया, तब वह हर सप्ताह एक या दो नशे के मामले देखते थे। लेकिन आज हर दिन 130 मरीजों में से 70-80 मरीज नशे की लतसे जूझ रहे हैं। बढ़ती हुई नशे की लत के कारण डॉ. भाटिया ने 2003 में इन लोगों के लिए पुनर्वास केंद्र बनाया, ‘मैं ऐसे मामले देखता हूं जहां बेटा नशा करता है वहीं पिता भी नशे का शिकार है। पूरा परिवार बीमार है।’

जो लोग हेरोइन और कोकीन का नशा नहीं कर सकते, वे अफीम का देसी नशा भुक्की करते हैं। यह अफीम के छिलके से बना ड्रिंक होता है। परेशानी में नशा : अमृतसर के पास मकबूलपुरा में नशे के ओवरडोज के कारण कई युवा लोगों की मौत हो चुकी है। इस गांव को विधवाओं के गांव के नाम से जाना जाता है। यहां के स्कूल में टीचर अजीत सिंह के दो चचेरे भाई हैं, जो कच्चे हेरोइन का नशा करता हैं। भाई की मॉर्फीन के नशे के कारण ऐसी हालत हो गई कि वह भीख मांगने लगा और फिर 31 साल की उम्र में उसकी मौत हो गई। सिंह मकबूलपुरा के मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुए। वह बताते हैं कि इलाके में 1960 में अफीम का धंधा शुरू हुआ क्योंकि लोगों को समझ में आ गया कि यह मुनाफे का धंधा है। पहले तो यह आसान पैसा कमाने का जरिया बना, लेकिन फिर लोगों को इसकी लत लग गई।

वह बताते हैं कि उनके घर के आस पास की 13 तंग गलियों के हर घर में कोई न कोई नशे का शिकार है। अपने भाइयों से अलग सिंह स्कूल खत्म करके टीचर बन गए। उन्होंने ऐसे बच्चों के लिए शाम की क्लासें भी शुरू कीं, जिनके पिता नशे की लत में पड़ गए थे। इसके बाद उन्होंने 600 से ज्यादा बच्चों के लिए स्कूल शुरू किया। शाम के स्कूल में पढ़ने वाले दो बच्चों की मां किरन कौर को अपने पति की चिंता है क्योंकि उसे नशे की लत के कारण उन्हें काम नहीं मिलता, ‘मैंने कई बार उससे कहा कि छोड़ दे, लेकिन मुझे लगता नहीं कि वह कर पाएगा।’

अपने बच्चों का इंतजार करते हुए किरन बताती हैं, ‘मुझे इस स्थिति से बाहर निकलने का कोई रास्ता ही नजर नहीं आता। लेकिन मेरे बच्चों के लिए शायद कुछ अच्छा हो पाएगा अगर वो ठीक से पढ़ाई कर लें।’

Courtesy – WEBDUNIA


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