रजिन्द्र बंसल
मोदी जी ने कहा था, सबके खाते में 15-15 लाख आ जायेंगे। प्रश्न उठाने वाले बन्धुओं -मोदी जी ने अनेक लोगों को चूल्हा गैस सिलेंडर दिये,घरों में टायलेट के लिए पैसा द, घर बनाने के लिए अढ़ाई लाख रूपये,अनेकों किसानों के खातों में 6 हजार वार्षिक, बीमा योजना के माध्यम से अनेकों को फ्री इलाज दिया वो सब 15 लाख की छोटी छोटी किस्तें हैं। वो भी दिया पुरानी सरकारों के विदेशी समझौतों से बाहर से कालाधन वापस न आने के बावजूद। इसमें योगदान रहा एक रुपये में से नीचे 15 पैसे की जगह पूरा रुपया भेज कर। देश में चल रहे काले धन के खेल पर लगाम लगा कर।
इसके साथ ही देश के पैसे से ही आर्मी को भरपूर सैन्य साजो सामान से सुसज्जित कर देश के सुरक्षा-तंत्र को सुदृढ़ किया। राजमार्गों , रेल मार्गों को हर दिन विस्तृत और विश्वस्तरीय किया जा रहा है। वो भी देश में उपलब्ध साधनों के बल पर। रोज नयी नयी आरामदेह वन्दे भारत ट्रेनें चलाई जा रही हैं। इस सबके बावजूद मध्यम वर्ग को ज्यादा राहत नहीं मिल पाई थी।
पर 2025 बजट में मोदी सरकार ने मध्यम वर्ग को भी 12 लाख की आय को आयकर से मुक्त कर अकल्पनीय राहत दी है। ज्यादातर कारोबारी व नोकरी पेशा मध्यम वर्ग को औसतन लाख रूपये सालाना की राहत दें मानो अपने 15 लाख देने के वायदे की पहली किश्त दे दी है।
मित्रो कल्पना करो अगर मध्यम वर्ग के पति पत्नि दोनों स्कूल टीचर , बैंक या अन्य किसी सरकारी महकमे में सर्विस कर रहे हैं । तो एक की सैलरी 10-12 लाख सालाना होना स्वाभाविक है। उनके परिवार को तो 7-8 साल में ही 15 लाख वाला मोदी जी वायदा पूरा हो जायेगा। और इसका लाभ वह आगे भी सारा जीवन लेते रहेंगे। जिसे वो मोदी जी का 15 लाख के वायदे में देरी का ब्याज समझ कर आनन्द लें।
अब प्रश्न उठता है मोदी सरकार ने इसमें इतनी देरी क्यों की। तो मेरी समझ में एक ही आता है कि मोदी जी ने सबको रेवड़ियां नहीं बांटी। परिस्थितियों का आकलन कर ही कदम दर कदम काम की वरीयता तय की। देश की तिजोरी को टटोला, फिर जो काम पहले जरूरी था उसको किया। जो मर रहा था पहले उसको सम्भाला। साफ सफाई के लिए सबसे पहले असमर्थ लोगों को टायलेट बनाने की मदद, लोगों को घर बनाने को अढ़ाई लाख की मदद, गेस चूल्हा मुफ्त में देना। किसानों को किसान सम्मान निधि की लगातार अदायगी,गरीबों को फ्री राशन इत्यादी उनका पं दीन दयाल उपाध्याय जी की अंत्योदय वाला मार्ग था।
इसके साथ ही देश की सुरक्षा के लिये सेना को मजबूत किया, विभिन्न राजमार्गों व सड़कों का सुधार व सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण पुलों, सुरंगों का अविरल निर्माण किया । इससे जहां सुरक्षा-तंत्र मजबूत हुआ वहीं नये बड़े पुलों , सुरंगों के बनने से ,सैन्य, सरकारी, व आम लोगों की दूरी घटने से सुविधा व समय की बचत के साथ लम्बे रास्तों से निजात मिलने से पैट्रोल डीजल के खर्चे भी घटे। जिससे देश में पैट्रोलियम पदार्थों की अनावश्यक खपत जो लम्बे रास्तों के कारण होती थी वह भी घटी। जिससे पेट्रोलियम उत्पाद आयात करने से जो लम्बे रास्तों के कारण अधिक खर्च होता वह भी बचा।
अब तक नंबर नहीं आया था तो प्यास लगने पर स्वयं कुआं खोद प्यास बुझाने वाले काम काजी मध्यम वर्ग का। जो धर्म कर्म के मार्ग पर चलते हुये कभी सरकारों के आगे हाथ नहीं फैलाता। सरकारों को अपने पास से तो टैक्स देता ही है साथ ही बिना वेतन सरकारी की नीति अनुसार सरकारी टैक्स कलैक्शन का बहुत बड़ा क्लर्क है।मैं तो अक्सर इस वर्ग को सर्वसहारा वर्ग की संज्ञा देता हूं। जो अपने ही साधनों से अपने परिवार का भरण पोषण करने के साथ दूसरों को काम भी देता है। साथ ही भारत के पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम का एक मजबूत अंग है। इसकी जहां पहले की सरकारें इसकी तरफ ध्यान नहीं देती थी। मोदी जी ने भी दस वर्ष तक इस वर्ग को कोई बड़ी राहत नहीं दी थी। वैसे भी इस वर्ग को मैं भाजपा का स्थायी वोट बैंक कह दूं तो ये ग़लत नहीं होगा। फिर भी इसकी अनदेखी और इसका भाजपा के साथ टिके रहना दोनों में एक अटूट विश्वास का रिश्ता कहा जा सकता है।
मोदी जी भी जानते थे कि मध्यम वर्ग जिस भी हालात में रहे वो जीने की राह तलाश लेता है।और इसी मध्यम वर्ग को भी मोदी जी की नीतियों पर विश्वास था कि वो अभी देश धर्म के साथ साथ व उनसे भी ज्यादा जरूरत मंद लोगों व देश की अति आवश्यक जरुरतों को पूरा करने में लगे हुते हैं। और वो जब वो सारी गाड़ी पटरी पर ले आयेंगे तो उसका नंबर भी जरूर आयेगा।और हुआ भी बिल्कुल वैसा ही देश के अति आवश्यक कामों को पूर्ण करने के बाद मोदी सरकार ने अपना बही खाता व बैंक बैलेंस का हिसाब सही रखते हुवे मध्यम वर्ग को वह राहत दें दी जो केजरीवाल सेवा निवृत्त आयकर अधिकारी से देश के सबसे चतुर राजनीतिज्ञ की समझ से भी परे की बात है।
अगर केजरीवाल मोदीजी को समझ पाते तो बजट में 8-10 लाख की आय को आयकर से छूट की जगह 15-20 लाख की आय को आयकर से छूट की मांग करते। पर अब कोई किसी को क्या कहें। मोदी तो हैं ही ऐसें। जिनके सामने होनी को अनहोनी कर दें, अनहोनी को ना होनी । एक जगह जब मिलें हों तीनों, अमर अकबर एंथोनी वाला गीत भी हार जाता है। मोदी जी अपना काम करके निकल लिये। और अपने आपको भारत की राजनीति के अमर अकबर एंथनी समझने वाले अनेकों पात्रों की समझ में नहीं आ रहा कि उनका करिश्मा हर बार मोदी से हार क्यों जाता है।।
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