इकबाल सिंह लालपुरा
श्री गुरुतेग बहादुर जी का जन्म, पिता श्री गुरु हरगोबिन्द साहिब ते माता नानकी के घर, बैसाखी वदी 5 समंत 1678 (1 अप्रैल 1621) को गुरु के महिल श्री अमृतसर साहिब में हुआ। श्री गुरु तेग बहादुर की महिमा करते हुए, भाई नन्द लाल जी दर्ज करते हैं “ गुरु तेग बहादुर आन सरापा अफजाल।। जीनत-अराई महिफलि जाहो जलाल।। गुरु तेग बहादुर सिर से पैर तक उचाइयों और स्तुति का भंडार हैं, और भगवान की शान-ओ-शौकत की महफ़िल की रौनक बढ़ाने वाले हैं। नौवें पातशाही नौ निधान वाली और सच के पालनहार सरकारों की सरकार हैं। लोक परलोक की सुल्तान, मान सम्मान और गौरव के तख्त का श्रृंगार हैं। दैवीय शक्ति होने के बावजूद, वे भगवान की महिमा, आज्ञाकारिता और दिव्य महिमा के गुप्त साज हैं।
श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने नोवे नानक की उपमा, “तिलक जंजू राखा प्रभ ताका, किनो बढ़ो कलू महि साका।। तेग बहादुर के चलत भयो जगत को सोक। है है है सब जग भयो जय जय जय सुर लोकि।।“ यही ही नहीं ‘वार दुर्गा की’ के बीच श्री गुरु तेग बहादुर के सिमरन की महिमा दर्ज करते हुए अंकित किया है “ तेग बहादुर सिमरिए घर नऊ निधि आवै धाए। सब थाईं होए सहाय।।“ भाव श्री गुरु तेग बहादुर दे सिमरन से घर में सुखों की तुरंत प्राप्ति होती है। इन रहमत बरसाने वाले गुरु साहब का 400 साल प्रकाश पूर्व मनाना, सारी कायनात के लिए अच्छा मौका है। क्योंकि गुरु हुकम है। “बाबानियाँ कहानियाँ पुत सपुत करेनि।। जि सतिगुर भावे सु मीनि लैनि सेई कर्म करेनि।। अंग 951।।
सिखों के नोवें पातशाह ने 24 चेत संमत 1722 (20 मार्च 1665) को श्री गुरु नानक देव के सिंहासन पर विराजमान होकर अनंत जीवों को सुमार्ग पे चलाया, प्रचार के लिए मालवा, पूआध, बांगर, पूरब बिहार, बंगाल, आसाम आदि प्रदेशों में विचरण कर सत्य का प्रचार किया। आप जी की बानी वैरागमई ऐसी अदभुद है कि कठोर मन को कोमल करने की अपार शक्ति रखती है।
सतलुज के किनारें पहाड़ी राजाओ से जमीन खरीद कर “चक्क नानकी” नगर बसाया। हिंदुस्तान के अंदर मुगल राज के ज़ुल्म और जबरदस्ती धर्म परिवर्तन को खत्म करने के लिए और धर्म का बीज बोने के लिए आप ने मघर सदी 5 संमत 1722 (11 नवम्बर 1675) को शहीद हो गए। दशमेश पिता श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने अंकित किया है कि “ठीकर फोर दिलीस सिर, प्रभपुरि किया पयान। तेग बहादुर सी क्रिया, करी न किनहुँ आन।।“
किसी भी युग पुरष के जीवन और विचार को समझ, लोगों के आगे रख के प्रचार के ही विचारधारा को आगे बढ़ाया जा सकता है या लाभ लिया जा सकता है। श्री गुरु तेग बहादुर जी का जीवन बहादुरी, त्याग, प्रेम, प्रभु के साथ एकमय होकर जीवन अर्पण करने की मिसाल है।
श्री गुरु तेग बहादुर जी की बानी श्री गुरु ग्रंथ साहिब मे 15 रागों और ‘वाराँ तो वधीक’ शलोक के रूप में दर्ज हैं। बानी को गंभीरता के साथ समझने के लिए इन नुक्तों को ध्यान में रखना जरूरी है। “सारी ही बानी हिन्दी शब्दों से भरपूर है। कोई भी अक्षर अरबी फारसी का नहीं, तीसरी बड़ी बात इन शब्दों में इस्लाम का रती भर जिक्र नहीं है “जो नजर आ रहा है वो सब नाशवान है। दुख-सुख जीवन का अंग है, इससे अलग होकर भगवान आपके भीतर बसता है। “पतित उधारण भै हरण हरि अनाथ के नाथ। कहु नानक तिह जानिए सदा बसतु तुम साथ।।“ उस के साथ सिमरन विधि से जुड़े, सुखों-दुखों से बेपरवाही हो जाएगी। ढोंगी साधुओं से बचे, तीर्थों पर जाने से या जंगलों की और दोड़ने से आने वाली विपदा टल नही सकती, मोह आप को शरीर से ऊपर नही उठने देता। मौत तो आनी ही है पर प्रभु की भक्ति आपको आत्मिक मौत मरने नही देगी। “जग रचना सब झूठ है जानि लेहु रे मीत।। किह नानक थिरु न रहे जीउ बालू की भीति। डरना और डराना ठीक नहीं है। “भै काहू कउ देत नहि नहि भै मानत आन।। कहु नानक सुनु रे मना गियानी ताहि बखानि “।।
सन 1969 ईस्वी से सिख गुरु साहिबान की शताब्दी मनाने के रिवाज शुरू हुआ। गुरमति तो “माह दिवस मूरत भले जिस कउ नदरि करे” का विचार बता, केवल एक अकाल का पुजारी होने और गुरु के शब्द को हृदय में अपनाने की राह दिखाती है। हमारे ग्रन्थ जैसे भाई गुरदास की रचना और श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी की बानी, गुरु काल के लेखर भाई नन्द लाल जी और दसम पातशाह की रचनाएँ, श्री गुरु नानक देव जी की जन्म शताब्दी श्री गुरु अमरदास जी द्वारा 1569 ईस्वी मे या गुरु तेग बहादुर जी द्वारा 1669 ईस्वी मे मनाने की गवाही नहीं देते। गुरु काल 1469 ईस्वी से 1708 ईस्वी तक एक उत्तम मनुष्य जो, अकाल का पुजारी, गुरु की विचारधारा को जीवन में अपनाने वाला, प्रेम का पुजारी, सच के लिए अपनी जान देने वाला, बहादुर, निर्भय, निस्वार्थ और कर्म कांड से रहित, जीवन वाला, तैयार करने वाला उधम था। खालसा अकाल पुरख की फौज का सिपाही और सृष्टि का रखवाला अकाली पुरख की मौज से प्रगट हुआ है।
शताब्दी मनानी सार्थक हो सकती है अगर गुरमति का संदेश विश्वभर में जाए, पिछले 52 साल में मनाए शताब्दी दिवसों पर नजर डाले और अंतर आत्मा को सवाल करें, कि क्या हमने गुरु हुकम “सतिगुर की बानी सति सरूपु है, गुरबाणी बनिए”[ अंग 304] का प्रचार किया है? क्या गुरबाणी की कसौटी पर खरे उतरें है?
श्री गुरु नानक देव जी दे 500 साल प्रकाश पूर्व शताब्दी 1969 ईस्वी मे शिरोमणि अकाली दल की सांझी सरकार और सरदार गुरनाम सिंह मुख्यमंत्री की अगुवाही में मनाई गई। जिसमें देश के उस समय के राष्ट्रपति श्री वी वी गिरी, पख्तून लीडर अब्दुल गफ्फार खान, बुद्ध धर्म के दलाईलामा, संत फतेह सिंह, सरदार गुरदियाल सिंह ढिल्लों व सभी पार्टियों के नेता इक स्टेज पर एकत्रित हुए थे। श्री गुरु नानक देव जी के विचारों को आगे ले जाने के लिए श्री गुरु नानक देव यूनिवर्सिटी का नीव पत्थर रखा गया था। एक पंजाबी फिल्म “नानक नाम जहाज है” ने भी अच्छी वाह-वाह लुटी।
श्री गुरु नानक देव जी
पंजाब के मुख्यमंत्री ज्ञानी जैल सिंह 10 अप्रैल 1973 को श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी के श्री आनंदपुर साहिब छोड़ने से लेकर दमदमा साहिब तलवंडी साबो पहुँचने तक 577 किलोमीटर के रास्ते पर इतिहासिक गाँव के धर्म स्थानों को जोड़ती हुई इक सड़क का नीव पत्थर रख के, “श्री गुरु गोबिन्द सिंह मार्ग” के निर्माण की बात की। गुरु जी के शस्त्र विदेशों से वापिस मँगवा कर इन राहों से गुजरे, यहाँ से पहली बार धर्म मे राजनीति का प्रवेश हुआ और सरदार गुरचरण सिंह टौहड़ा प्रधान एसजीपीसी सहित और कई अकाली नेता इस रास्ते में प्रसाद बांटते रहे। इस मार्ग में 48 साल बाद भी बस सर्विस शुरू नहीं हुई, केवल राजनीतिक ड्रामे बाजी तक सीमित रही। श्री गुरु गोबिन्द सिंह साहिब के जीवन के आदर्शों पर रोशनी डालने और इसको आगे बढ़ाने के लिए कुछ नहीं किया। श्री गुरु गोबिन्द सिंह साहिब जी के नाम पर तैयार होने वाला मेडिकल कॉलेज भी वो श्री आनंदपुर साहिब से अपने शहर फरीदकोट ले गए। श्री आनंदपुर साहिब आज भी डाक्टरी सुविधाओं से महरूम हैं।
खालसा की 300 साल जन्म शताब्दी अप्रैल 1999 में मनाई गई। श्री आनंदपुर साहिब को सफेद रंग से रंगा गया। शताब्दी समागम से पहले शिरोमणि अकाली दल के प्रधान सरदार प्रकाश सिंह बादल ने एसजीपीसी के प्रधान सरदार गुरचरण सिंह टौहड़ा और श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार भाई रंजीत सिंह को बदल दिया। “विरासत ए खालसा” के निर्माण पर करोड़ों रुपए खर्च किए समझ नहीं आता कि यह पंजाब की संस्कृति की तस्वीर है या गुरमति और खालसा इतिहास के आदर्शों की। बहुत से कर्मचारी भी दस्तार सजाई फिरते हैं। उनकी उपलब्धियों को पंथ भली-भांति जानता है।
इसके बाद तो गुरु साहिबान, श्री गुरु ग्रंथ साहिब की शताब्दियों और अर्ध शताब्दियों की झड़ी ही लग गई। एक भी प्रोग्राम सबने साथ मिलकर नहीं किया। राजनीतिक पार्टियों की अपनी-अपनी ढफली और अपना-अपना राग के अनुसार समागम, श्री तरन तारन साहिब, श्री अमृतसर साहिब, श्री सुल्तानपुर लोधी साहिब में हुए। न तो गुरु साहिबान की विचारधारा की कोई बात हुई और न ही कहीं गुरु साहिबान के जीवन और इतिहास का जिक्र हुआ। गुरमति सिद्धांत है “सो सिखु सखा बंधपु है भाई जी गुरु के भाने वीचि आवे”।। [अंग 601] या “जगि गिआनी विरला आचारी”।। अंग 413।। सचहू उरै सभ को ऊपर सच्च आचार से कोसों दूर लोग, श्री गुरु नानक देव जी के समगमों मे सम्मानित कर दिए गए, अगर 550 दर्शनी खालसा बानी और बाने का धारणी, ऊंचे और सुच्चे जीवन वाला हो तो गुरमित की विचारधारा को बहुत आगे बढ़ाने में बड़े सहायक हो सकते थे। पर बहुत से सम्मान तो राजनीति कारणों से दिए जाते हैं, दूसरी तरफ गुरु के घर चढ़ने वाले चढ़ावे के दुरुपयोग के चर्चे हैं। गुरु साहिबान की बानी पर किसी का ध्यान नजर नहीं आता। गुरमति सिद्धांत है, “मोहि ऐसे बनज सिउ नहीन काजु।। जहि घटे मूलु नित बढे बिआजु।। अंग 1165”।। पिछली मनाई गई सभी शताब्दियाँ में मूल में ही गिरावट आई है।
श्री करतारपुर साहिब का रखरखाव और कॉरिडोर भी एक राजनीतिक सौदा है। इसी समय श्री ननकाना साहिब के गुरु के सेवक, ग्रन्थि की बेटी का अपहरण करके धर्म परिवर्तन करवा दिया। पाकिस्तान मे 365 के करीब इतिहासिक और अनेक गुरु घर हैं जिनकी देखभाल अकाफ़ बोर्ड द मुखी, वो व्यक्ति होता है, जिसका सिख धर्म से दूर तक कोई संबंध नहीं होता।
शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी श्री अमृतसर अपने आप को सिख समुदाय की सिरमौर संस्था के रूप में पेश करती है, 1 मई 2021 को यू.एन.ओ. की ओर से मनाई जा रही, श्री गुरु तेग़ बहादुर जी की जन्म शताब्दी को, इस साल मानव अधिकार दिवस के रूप में मनाने की मांग की है। केंद्र सरकार की ओर से, गुरु जी के प्रकाश स्थान से शहीदी स्थान गुरुद्वारा श्री शीशगंज साहिब दिल्ली तक गुरु धामों का बड़े पैमाने पर विकास, शहीदी दिवस, धार्मिक सहनशीलता दिवस के रूप में मनाने और गुरु साहिब की पवित्र बानी को विश्व की अन्य भाषाओं में अनुवाद करके दुनिया भर के देशों में भेजने की व्यवस्था करना, एसजीपीसी को नोडल संस्थान घोषित करके और आगरा से दिल्ली रोड को श्री गुरु तेग बहादुर साहिब शीश मार्ग घोषित करने के प्रस्ताव पारित किए गए हैं।
गुरुद्वारा श्री शीशगंज साहिब
पंजाब सरकार ने इन सभी समागमों को मनाने के लिए केंद्र सरकार से 937 करोड़ का फंड मंजूर करने की मांग की है। समागम 15 अप्रैल से शुरू हो के मुख्य समागम 1 मई 2021 को करने का फैंसला किया है।
केंद्र सरकार ने भी 70 मेंबरी कमेटी बनाई है। पता नहीं उसमे कितने लोग गुरमति के अनुयायी और श्री गुरु तेग़ बहादुर जी के जीवन की विचारधारा के बारे में जानकारी रखते हैं? एस.जी.पी.सी. और पंजाब सरकार श्री गुरु तेग़ बहादुर जी के आदर्शों के प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी केंद्र सरकार पर डाल कर, स्वयं इस जिम्मेदारी से मुक्त होती लग रही है। आज भारत में भी धार्मिक असहिष्णुता का प्रचार जोरों पर है। केवल यही नहीं झूठ और लालच से पंजाब मे भी धर्म परिवर्तन करवाया जा रहा है। यही नहीं, नशा और बेरोजगारी चरम सीमा पर है। श्री गुरु तेग़ बहादुर के बचन के साथ जन्मे सिख राजा रत्न राय जिन्होंने प्रसादी हाथी भेंट किया था, राजा राम सिंह के परिवार के साथ संपर्क और गुरु जी की ओर से कायम किए पटना आदि स्थान के प्रचार केंद्र को दोबारा पुनर्जीवित करने की योजना पर कहीं चर्चा नहीं हुई। गुरु जी के जीवन इतिहास की खोज अधूरी है, जिसके लिए एक विश्वविद्यालय के निर्माण की आवश्यकता है।
श्री गुरु तेग़ बहादुर साहिब जी ने अपनी माता जी के नाम पर चक्क नानकी नगर बसाया था। उसके बाद श्री आनंदपुर साहिब शहर की नीव श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने रखवाई थी, क्यों नहीं गाँव चक्क के नजदीक आनंदपुर साहिब का नाम फिर से चक्क नानकी रख के इतिहास को ठीक किया जाए?
श्री आनंदपुर साहिब और श्री कीरतपुर साहिब 6 गुरुओं की करम भूमि हैं। यहाँ इतिहास की अनुसंधान केंद्र स्थापित करना, गुरुओं की याद में उनके सेवक भाई कन्हैया जी की सेवा को समर्पित मेडिकल कॉलेज खोलने पर विचार करना बनता है। गुरु तेग़ बहादुर जी की जन्म भूमि गुरु के महल श्री अमृतसर, तप स्थान बाबा बकाला साहिब और कर्मभूमि श्री आनंदपुर साहिब को जोड़ने वाली सड़क श्री आनंदपुर साहिब से बंगा तक की सड़क खस्ता हालत में है। जिसको चौड़ा करने और निर्माण करने का काम 2019 के चुनावों से पहले केंद्र सरकार ने नीव पत्थर रखकर आरम्भ किया था। पर काम आगे नहीं बढ़ा, इसे श्री गुरु तेग़ बहादुर मार्ग का नाम दे के तैयार करवाने जो तख्त श्री केमगढ़ साहिब को श्री अकाल तख्त साहिब के साथ जोड़ेगी उसके लिए केंद्र सरकार को निवेदन करना बनता है।
सिख धर्म दुनियाँ का सबसे नया, सबको जोड़ने वाला, सेवा और सुरक्षा करना ही नहीं दूसरे धर्म की रक्षा के लिए अपनी जान न्यौछावर करने वाला दर्शन(विचार) है। श्री गुरु तेग़ बहादुर साहिब का जीवन इसकी बड़ी मिसाल है। श्री गुरु ग्रंथ साहिब में 5वें पातशाह का हुकम “न हम हिन्दू न मुसलमान। अल्लाह राम के पिंडु परान।। अंग 1136।। सिख धर्म के अलग दर्शन की बात करता है। पर फिर भी पंजाबी हिन्दू सिख धर्म की नर्सरी है। दोनों धर्म एक समान है। दोनों धर्मों के बीच रोटी बेटी की साँझ है। “पंजाब गुरुओं के नाम पर जीता है” की संस्कृति के अनुयायी हैं। दो संप्रदायों के राजसी कारणों से उत्पन्न मतभेदों को दूर करने के प्रयासों को आरम्भ करने का यह सही समय नहीं है? क्या तिलक व जनऊ धारण करने वाले बंधुओं को आगे बढ़कर अपना यथोचित योगदान डालकर गुरु जी के सद्भावना के पेगाम को स्थापित करने की जरूरत नहीं?
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