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चिंताजनक: सड़कों पर बढ़ते वाहन चढ़ा रहे वायु प्रदूषण का ग्राफ

November 20, 2025 By Guest Author

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हर तीन सेकंड में 20 नई कारें और हो रही पंजीकृत

भारत में वायु प्रदूषण में अब सबसे बड़ा योगदान निजी वाहनों का है। हर तीन सेकंड में 20 कार और 70 दोपहिया वाहन रजिस्टर हो रहे हैं। प्रत्येक नई कार औसतन 3.15 किलो CO₂ प्रति किलोमीटर उत्सर्जित करती है। 2024-25 में 2.55 करोड़ वाहन पंजीकृत हुए, जिससे हवा जहरीली और शहरी योजना पर दबाव बढ़ा।

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वाहनों की बढ़ती संख्या ने वायु प्रदूषण का ग्राफ बहुत तेजी के साथ बढ़ाया है। भारत में वायु प्रदूषण की असली जड़ अब उद्योग, पराली या कचरा नहीं, बल्कि सड़क पर उतरते निजी वाहनों की तेजी से बढ़ती संख्या बन चुकी है। जैसे-जैसे शहरों में कारों और दोपहिया वाहनों की संख्या विस्फोटक रूप से बढ़ती जा रही है, वैसे-वैसे हवा की गुणवत्ता भी उसी रफ्तार से खतरनाक स्तरों पर पहुंच रही है। सीएसई की किताब सांसों का आपातकाल के अनुसार विशेषज्ञों का कहना है कि वायु प्रदूषण में अब सबसे बड़ा योगदान परिवहन क्षेत्र का है और इसका प्रमुख कारण निजी वाहनों पर बढ़ती निर्भरता है।

देश में वाहनों का पंजीकरण जिस तेज रफ्तार से बढ़ रहा है, उसके सामने प्रदूषण नियंत्रण के हर प्रयास छोटे पड़ते जा रहे हैं। हर तीन सेकंड में 20 नई कारें और 70 दोपहिया वाहन रजिस्टर हो जाते हैं। जितनी देर में कोई व्यक्ति एक-दो घूंट पानी पिएगा उतनी देर में लगभग 100 गाड़ियां और सड़क पर आ चुकी होती हैं। प्रत्येक नई कार औसतन 3.15 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड प्रति किलोमीटर उत्सर्जित करती है, जो हवा को सीधे तौर पर जहरीला बनाती है।

यही नहीं, हर 15 सेकंड में इतने वाहन रजिस्टर हो जाते हैं कि उन्हें पार्क करने के लिए फुटबॉल के मैदान जितनी जगह की आवश्यकता होती है, जिससे शहरी योजना पर भी भारी दबाव बन रहा है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में देश में 2.55 करोड़ वाहन पंजीकृत हुए, जिनमें 88 प्रतिशत निजी वाहन मुख्यतः कारें और दोपहिया थे।

यात्राएं ज्यादा, दूरी भी लंबी…प्रदूषण दोगुना

भारत में यातायात पैटर्न में भी बड़ा बदलाव आया है। बीते दस वर्षों में प्रति व्यक्ति यात्रा दर 17.5 प्रतिशत बढ़ी है और प्रति यात्रा दूरी में 28.6 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। यानी लोग पहले की तुलना में ज्यादा और लंबी दूरी तय कर रहे हैं, और इन यात्राओं का अधिकांश हिस्सा निजी वाहनों से हो रहा है। नतीजतन शहरों के स्तर पर उत्सर्जित होने वाला कार्बन अब पहले से कई गुना अधिक हो चुका है।

उदाहरण के लिए मिजोरम की राजधानी आइजोल सोशल मीडिया पर अनुशासित ट्रैफिक और बिना हॉर्न के लंबी कतारों में चलते वाहनों के कारण मशहूर हो चुकी है, लेकिन इसके पीछे एक कड़वी सच्चाई छिपी है। यह शहर गंभीर ट्रैफिक जाम की समस्या से ग्रस्त है, क्योंकि यह बिना किसी सुनियोजित विकास योजना के पहाड़ी ढलानों पर बसा है। आइजोल का क्षेत्रफल 129.91 वर्ग किमी है और शहर में 429 किलोमीटर सड़कें हैं, लेकिन इनमें से केवल 40% ही ऐसी हैं जिनकी चौड़ाई 10 मीटर से अधिक है।

चिंताजनक: कॉप सम्मेलनों की वेबसाइटें खुद बनी डिजिटल प्रदूषण का स्रोत, 13,000 फीसदी तक बढ़ गया कार्बन उत्सर्जन

संयुक्त राष्ट्र के कॉप सम्मेलन की वेबसाइटों से होने वाला डिजिटल कार्बन उत्सर्जन 1995-2024 में 0.14 किलो से बढ़कर 116.85 किलो CO2 हो गया। एडिनबरा यूनिवर्सिटी के शोध में बताया गया कि डिजिटल विस्तार और वेबसाइट जटिलता ने ऊर्जा खपत और कार्बन फुटप्रिंट को भारी बढ़ा दिया।

चिंताजनक:कॉप सम्मेलनों की वेबसाइटें खुद बनी डिजिटल प्रदूषण का स्रोत, 13,000  फीसदी तक बढ़ गया कार्बन उत्सर्जन - Digital Coop Conferences Also Pose An  Environmental Threat With Co2 Emissions From Websites - Amar Ujala Hindi  News Live

दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए हर साल आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र के कॉन्फ्रेंस ऑफ द पार्टीज (सीओपी) पर्यावरण की रक्षा के बड़े लक्ष्य के साथ जुटते हैं। लेकिन नई रिपोर्ट ने इसी डिजिटल प्रयास में छिपे विडंबनापूर्ण सच को उजागर कर दिया है। शोध के अनुसार पिछले लगभग 30 वर्षों में कॉप सम्मेलनों की वेबसाइटों से होने वाला डिजिटल कार्बन उत्सर्जन 13,000 फीसदी से अधिक बढ़ गया है और 2024 की कॉप-29 वेबसाइट अकेले 116.85 किलोग्राम सीओ2 उत्सर्जित कर चुकी है।

ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ एडिनबरा के शोधकर्ताओं का अध्ययन प्लोस क्लाइमेट में प्रकाशित किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार, 1995 से 2024 के बीच कॉप सम्मेलनों की वेबसाइटों का आकार, जटिलता और डिजिटल संसाधनों में तेज विस्तार हुआ है। इस विस्तार ने ऊर्जा खपत और कार्बन फुटप्रिंट में वृद्धि की है। उपलब्ध इंटरनेट डेटा (कॉप-3, 1997) के अनुसार वेबसाइट के कुल विजिट से सिर्फ 0.14 किलोग्राम सीओ2 उत्सर्जित हुआ था जिसे एक परिपक्व पेड़ मात्र दो दिनों में अवशोषित कर सकता है, लेकिन 2024 की कॉप-29 वेबसाइट से उत्सर्जन बढ़कर 116.85 किलो हो गया। यह करीब 83,000% वृद्धि है।

समय सीमा से पहले नेट-जीरो लक्ष्य हासिल करें विकसित देश: भारत

पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि विकसित देशों को अपने नेट-जीरो लक्ष्यों को वर्तमान समयसीमा से काफी पहले हासिल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत अगले महीने तक 2035 के लिए अपना संशोधित राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) जमा करेगा।

संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (सीओपी-30) के उच्च स्तरीय सत्र को संबोधित करते हुए यादव ने कहा कि जलवायु परिवर्तन वास्तविक है। यह आने वाला खतरा है जो अस्थिर विकास व अस्थायी वृद्धि की प्रवृत्ति से पैदा हुआ है। नेट जीरो लक्ष्य का आशय है कि कोई देश, कंपनी या दुनिया कुल मिलाकर जितनी ग्रीनहाउस गैसें (जैसे कार्बन डाइऑक्साइड) वायुमंडल में छोड़ती है, उतनी ही मात्रा में उन्हें हटाने की व्यवस्था भी करें।

मानव गतिविधियों से उत्पन्न कुल ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और वायुमंडल से हटाई गई ग्रीनहाउस गैसों के बीच संतुलन बनाना। यह ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 1.5 डिग्री तक सीमित करने और जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है। 2030 तक उत्सर्जन में 45 फीसदी की कमी और 2050 तक नेट-जीरो तक पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।

अमर उजाला


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