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पंजाब चुनाव 2022: नया साल किसके लिए बनेगा बेमिसाल

January 5, 2022 By Guest Author

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इन्द्रप्रीत सिंह/कैलाश नाथ

Punjab Assembly Election 2022 Opinion Poll, Prediction, Who Will Win ?

चंडीगढ़ : Punjab Assembly Election 2022: हर नया पल कुछ न कुछ नया लेकर आता है और बात जब नए साल की हो तो उम्मीदें और बढ़ जाती हैं। साल 2022 में पंजाब को नई उम्मीदें तो हैं ही, इसके साथ ही नई सरकार, ऊंचे पदों पर नए चेहरे सब कुछ इस बार नया ही होगा। राजनीतिक पार्टियों और नेताओं में कुछ का भविष्य संवरेगा तो कुछ को निराशा होगी। विधानसभा चुनाव में 117 चेहरों को जीत मिलेगी तो बहुत सारे नेताओं को निराश होना पड़ेगा। हर व्यक्ति पर, छोटी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों पर इन चुनावों का असर होना तय है। राजनीतिक पार्टियों की नए साल में उम्मीदों और राजनीति की दृष्टि से इसका पंजाब पर क्या असर पड़ेगा, इसका विश्लेषण किया जाना जरूरी है। आइए जानते हैं किस पार्टी में कितना है दम…

कांग्रेस साख का सवाल

नए साल में सबसे ज्यादा सत्तारूढ़ कांग्रेस की साख दांव पर है। पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के कांग्रेस छोड़ने के बाद इन दिनों पंजाब में पार्टी की कमान सेकेंड लाइन लीडरशिप के हाथ में है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू हों या मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी, पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ हों या गृह मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा, सभी प्रदेश की कमान संभालने के लिए आतुर हैं। मध्य प्रदेश जैसा राज्य हाथ में आने और नेताओं के द्वंद्व के कारण छूट जाने के बाद पार्टी हाईकमान के सामने पंजाब को बचाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है। अब पंजाब से ही हाईकमान को उम्मीद है कि नए साल में होने वाले चुनाव में यह पूरी होगी, लेकिन सिद्धू की मुख्यमंत्री बनने की लालसा और उनके कुछ फैसलों से न केवल पार्टी के वरिष्ठ नेता परेशान हैं, बल्कि हाईकमान भी हैरान है, क्योंकि मुख्यमंत्री चन्नी ने पार्टी की जो छवि बनाई है वह भी धूमिल हो रही है। वहीं चन्नी जिस तरह लोगों को राहतें बांटने में जुटे हैं उसे देखकर पार्टी ने उम्मीद कायम रखी है।

शिअद वापसी का संघर्ष

शिरोमणि अकाली दल को नए साल में सत्ता में लौटने की पूरी उम्मीद है। पार्टी ने जहां सबसे पहले 93 सीटों पर अपने उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है, वहीं पार्टी अध्यक्ष सुखबीर बादल हर विधानसभा क्षेत्र में एक-एक दौरा कर प्रतिद्वंदी पार्टियों पर बढ़त बना चुके हैं। रूठे नेताओं की घर वापसी करवाकर उन्होंने जीत की उम्मीदों को कायम रखा है। पूर्व मुख्यमंत्री 95 वर्षीय प्रकाश सिंह बादल भी मैदान में उतरकर पार्टी को सत्ता की दहलीज पर ले जाने के लिए जोर लगा रहे हैं। अकाली दल को इस बार भाजपा के शहरी मतदाताओं का साथ तो नहीं मिलेगा, पर पार्टी ग्रामीण सीटों को पुख्ता करने के लिए बसपा के हाथी पर सवार हो गई है। बसपा का हर विधानसभा सीट पर प्रतिबद्ध वोट बैंक है, अगर यह अकाली दल के पक्ष में गया तो उन्हें हर सीट पर एक से दो हजार अतिरिक्त वोट मिलेंगे। पिछली बार कई सीटों पर अकाली दल एक से दो हजार मतों के अंतर से हार गया था, वहीं इस बार चुनाव मैदान में कूदे किसान संगठन अकाली दल को चुनौती दे सकते हैं।

Punjab assembly election is becoming like a crime thriller | क्राइम थ्रिलर  की तरह बनता जा रहा है पंजाब का विधानसभा चुनाव | TV9 Bharatvarsh

आप चंडीगढ़ टू पंजाब?

साल 2021 के अंतिम सप्ताह में चंडीगढ़ नगर निगम में धमाकेदार एंट्री से उत्साहित आम आदमी पार्टी नए साल में होने वाले विधानसभा चुनाव में पंजाब में भी ऐसे ही परिणाम की उम्मीद कर रही है। पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अर¨वद केजरीवाल हर सप्ताह पंजाब की यात्रा कर रैलियों और सभाओं में लोगों से मिल रहे हैं। पार्टी के कई अन्य वरिष्ठ नेता भी लोगों को दिल्ली माडल से अवगत करवा रहे हैं। पार्टी मानकर चल रही है कि इस बार पंजाब के लोग रवायती पार्टियों और रवायती राजनीति से हटकर आप को मौका देंगे। हालांकि यह संभावना पिछले चुनाव में भी थी, लेकिन कुछ गलतियों के कारण आप यह मौका चूक गई। उधर, दो बार लोकसभा चुनाव जीतने वाले आप सांसद भगवंत मान भी अब विधानसभा चुनाव में उतरने का मन बना चुके हैं। अगर आप चुनाव जीतती है तो पूरी संभावना है कि भगवंत मान ही मुख्यमंत्री का चेहरा होंगे, लेकिन अगर हारी तो उसके समक्ष संगठन को बनाए रखने की चुनौती भी खड़ी हो जाएगी।

भाजपा जड़ें जमाने की जुगत

साल 2021 में तीन कृषि कानूनों को लेकर पंजाब के लोगों के लिए नफरत का पात्र बनी भाजपा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ओर से तीनों कानून निरस्त करने के बाद से ही सबकी आंखों का तारा बनने लगी है। अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जहां सत्तारूढ़ कांग्रेस के तीन विधायक भाजपा में शामिल हो गए हैं, वहीं पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी अलग पार्टी बनाकर भाजपा के साथ गठबंधन किया है। अकाली दल के साथ गठबंधन में छोटी हिस्सेदार के रूप में स्थापित भाजपा इन दिनों अचानक बड़े भाई के रूप में स्थापित हो रही है। भाजपा को उम्मीद है कि शहरी मतदाताओं के पास भाजपा के अलावा और कोई विकल्प नहीं है। भाजपा नेता पहली बार पूरे पंजाब में चुनाव लड़कर विरोधी दलों को नई चुनौती देने की तैयारी में हैं। जिसकी शुरुआत पांच जनवरी को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पंजाब दौरे से करेंगे।

लोक कांग्रेस पार्टी विकल्प बनेगा या होगा विलय!

नए साल में होने वाले चुनाव ही पंजाब लोक कांग्रेस का भविष्य तय करेंगे। कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भाजपा और शिअद (संयुक्त) के साथ गठबंधन की सहमति बना ली है। अभी उनकी असली ताकत का अंदाजा तब होगा जब चुनाव आचार संहिता लग जाएगी और संभावना के अनुसार कई बड़े कांग्रेस नेता कैप्टन के साथ जाएंगे। अगर ऐसा नहीं होता है तो भाजपा ज्यादा सीटों पर अपना दावा पेश करेगी। वहीं, कांग्रेस में कैप्टन अमरिंदर सिंह के नजदीकी विधायक और नेता उनकी पार्टी में आने के बजाय भाजपा में शामिल हो रहे हैं। क्या यह कैप्टन की सहमति से हो रहा है या फिर अब उनके नजदीकियों ने भाजपा को प्राथमिकता देनी शुरू कर दी है, यह तो फिलहाल वही जानें, लेकिन कैप्टन को उम्मीद है कि चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद ही कांग्रेस में बड़ी उठापटक होगी और सबसे ज्यादा फायदा उन्हीं को मिलेगा।

सौजन्य : दैनिक जागरण


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