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‘क्रांतिकारी दुर्गा भाभी’

January 7, 2022 By Guest Author

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यशा माथुर

Durga Devi, The Woman Who Helped Bhagat Singh Escape the British

पत्नी बन शहीद भगत सिंह को अंग्रेजों के जाल से निकाला, स्वाधीनता संग्राम में बनीं ‘दुर्गा’

नई दिल्ली : मात्र दस साल की उम्र में विवाह कर पति भगवती चरण वोहरा के घर आईं दुर्गावती देवी केवल तीसरी कक्षा तक पढ़ी थीं। स्वाधीनता की चिंगारी को उन्होंने ससुराल में महसूस किया और कूद पड़ीं उस क्रांति में जो अंग्रेजों से मुक्ति पाने के लिए चलाई जा रही थी। जब शरीर पर रिवाल्वर बांध कर यात्रा की दुर्गा देवी पिस्तौल चलाना जानती थीं और बम बनाना भी। क्रांतिकारियों तक हथियार पहुंचाना उनका एक काम था। जयपुर के राजदरबार में एक राजवैद्य थे जिनका नाम मुक्तिनारायण शुक्ल था। उनकी सहानुभूति क्रांतिकारियों के साथ थी। दुर्गाभाभी उनसे शस्त्र प्राप्त करने जयपुर गईं। घने जंगलों में उन्हें शस्त्र सौंपे गए लेकिन वे उन्हें कैसे लेकर आएं, उन्हें सूझ नहीं रहा था। आखिर वैद्यराज ने सलाह दी कि दुर्गा भाभी शस्त्रों को अपने शरीर पर बांध लें और ऊपर से ढीली-ढाली मारवाड़ी वेशभूषा धारण कर लें। उस समय महिलाओं की तलाशी के लिए कोई महिला पुलिस नहीं थी और इस तरह दुर्गा भाभी शस्त्रों को क्रांतिकारियों तक पहुंचाने में सफल हुईं।

‘क्रांतिकारी दुर्गा भाभी’ पुस्तक के लेखक सत्यनारायण शर्मा गाजियाबाद में करीब पंद्रह वर्ष तक दुर्गा भाभी के संपर्क में रहे। वह अपनी किताब में लिखते हैं कि मुझे दुर्गा भाभी ने बताया,’मैं दो बार जयपुर से पिस्तौल और रिवाल्वर लेकर आई। एक बार रिवाल्वर की नली बहुत बड़ी थी। रिवाल्वर पेट पर बांधने के बाद भी नली गले को छू रही थी। इसलिए गले पर दुपट्टा लपेट कर रात भर बैठे-बैठे ही रेलगाड़ी में सफर किया। क्योंकि जरा सा हिलते ही नली चुभ जाती और बार-बार चेहरे पर परेशानी आने से किसी को शक हो सकता था।’ इसी तरह से दुर्गा भाभी ग्वालियर से भी हथियार लेकर आईं। वे निडरता से काम करती रहीं और ब्रिटिश हुकूमत को झांसा देती रहीं। कहते हैं कि चंद्रशेखर आजाद ने अंग्रेजों से लड़ते वक्त जिस पिस्तौल से खुद को गोली मारी थी, उसे दुर्गा भाभी ही लेकर आई थीं।

पत्नी बन भगत सिंह को निकाल लाईं लाहौर से दुर्गा भाभी का एक किस्सा काफी मशहूर है। वह भगत सिंह की पत्नी बनकर उन्हें लाहौर से निकाल लाईं। दरअसल 17 दिसंबर 1928 को लाहौर में अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या कर दी गई। इसी अफसर ने लाला लाजपतराय पर लाठियां बरसाई थीं। हत्या के आरोप में अंग्रेज सरकार भगत सिंह और राजगुरु को पूरे लाहौर में ढूंढ़ रही थी। दो दिन तक भगत सिंह और राजगुरु छिपे रहे। वहां से निकल भागने के लिए राजगुरु के दिमाग में एक योजना थी लेकिन उसके लिए दुर्गा भाभी की मदद की जरूरत थी। जब दुर्गा भाभी से मदद मांगी गई तो वे भगत सिंह और राजगुरु की सहायता के लिए तैयार हो गईं। योजना के अनुरूप राजगुरु एक सजीले नौजवान के साथ दुर्गा भाभी से मिलने पहुंचे और कहा यह मेरे दोस्त हैं। दुर्गा भाभी उन्हें पहचान नहीं पाईं। उनके परेशान चेहरे को देखकर भगत सिंह हंसे तो भाभी उनकी आवाज पहचान गईं।

अंग्रेजों से अपनी पहचान छिपाने के लिए भगत सिंह ने अपनी दाढ़ी मुड़ा दी थी और सिर पर पग की जगह अंग्रेजी हैट पहन लिया था। भगत सिंह समझ गए कि जब भाभी नहीं पहचान पाईं तो अंग्रेज भी नहीं पहचान सकेंगे। अगले दिन यानी 20 तारीख की सुबह उन्होंने लाहौर से कलकत्ता (अब कोलकाता) जाने वाली ट्रेन के तीन टिकट लिए गए। भगत सिंह और उनकी ‘पत्नी’ दुर्गा अपने बच्चे के साथ पहले दर्जे में बैठे। उनके ‘नौकर’ राजगुरु के लिए तीसरे दर्जे का टिकट कटा। भगत सिंह और दुर्गा भाभी के पास पिस्तौल थी। अंग्रेज सैनिक एक पगड़ीधारी सिख को ढूंढ़ रहे थे तो अंग्रेजी सूट-बूट और हैट में सजे और ‘पत्नी’ और छोटे बच्चे के साथ सफर कर रहे भगत सिंह उनकी नजरों में कैसे आते? किसी को कोई शक नहीं हुआ। उन्होंने कानपुर की ट्रेन ली, फिर लखनऊ में ट्रेन बदल ली, क्योंकि लाहौर से आने वाली सीधी ट्रेनों में भी चेकिंग हो रही थी। लखनऊ में राजगुरु अलग होकर बनारस चले गए और भगत सिंह, दुर्गा भाभी और उनका बेटा हावड़ा के लिए निकल गए।

कलकत्ता में ही भगत सिंह की वह मशहूर तस्वीर ली गई थी जिसमें उन्होंने हैट पहन रखा है। लेखक सत्यनारायण शर्मा अपनी किताब में यह हवाला देते हैं कि दुर्गा भाभी ने उन्हें बताया था कि जब क्रांतिकारी सुखदेव ने पूछा कि कहीं बाहर जा सकती हो, कुछ लोगों को बाहर निकालना है, तो उन्होंने क्षण भर में हां कह दी थी।

Durga Devi, The Woman Who Helped Bhagat Singh Escape the British

पति के घर आकर जागी अलख क्रांति की

दरअसल, दुर्गावती देवी का विवाह 11 साल की उम्र में लाहौर के भगवती चरण वोहरा से हो गया था, जो कि हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक आर्मी के सदस्य थे। शादी के बाद वह दुर्गावती वोहरा बन कर इस दल की सदस्य बन गईं। इस दल के अन्य सदस्य उन्हें दुर्गा भाभी कहते थे। इसीलिए वह इसी नाम से प्रसिद्ध हो गईं। उनका जन्म कौशांबी (तत्कालीन इलाहाबाद) की सिराथू तहसील के शहजादपुर गांव में सात अक्टूबर, 1907 को पंडित बांके बिहारी के घर में हुआ था। उनके पिता इलाहाबाद कलेक्ट्रेट में नाजिर थे। पति भगवती चरण वोहरा देश को अंगेज राज से मुक्त कराने का ही सपना देखते रहते थे। वर्ष 1920 में अपने पिता की मृत्यु के बाद भगवती चरण वोहरा खुलकर क्रांतिकारियों के साथ आ गए और उनकी पत्नी दुर्गा भाभी भी उनकी सक्रिय सहयोगी बन गईं। क्रांतिकारी वोहरा ने बम बनाने का प्रशिक्षण लिया और बम बना कर रावी तट पर उसके परीक्षण का निर्णय लिया। लेकिन दुर्भाग्य से नदी के तट पर ही बम विस्फोट हो गया और इस परीक्षण में वोहरा और उनके कुछ साथी शहीद हो गए। दुर्गा भाभी विधवा जरूर हुईं लेकिन पति के जाने के बाद भी कमजोर नहीं पड़ीं, बल्कि दोगुनी शक्ति से क्रांति में सक्रिय बनी रहीं।

अंग्रेज पुलिस अधिकारी टेलर को गोली मारी केंद्रीय असेंबली में बम फेंकने के बाद सरदार भगत सिंह स्वेच्छा से गिरफ्तार हो गए, तो चंद्रशेखर आजाद कोई ऐसा ‘एक्शन’ करना चाहते थे कि अंग्रेज सरकार यह समझे कि क्रांति की ज्वाला अभी थमी नहीं है। इस ‘एक्शन’ के लिए दुर्गा भाभी को चुना गया। अभी एक्शन की कार्ययोजना बनाई ही जा रही थी कि दूसरे लाहौर षड्यंत्र केस में सात अक्तूबर, 1930 को भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी की सजा सुना दी गई। इस फैसले से नाराज दुर्गा भाभी उत्तेजित हो गईं और उन्होंने ‘एक्शन’ को जल्द से जल्द अंजाम देने की पहल की। नौ अक्टूबर को अपने साथियों के साथ दुर्गा भाभी ने गवर्नर हैली की गलतफहमी में गोलियां चलाईं जिसमें अंग्रेज सार्जेंट टेलर और उनकी पत्नी मारे गए। इससे अंग्रेज पुलिस उनके पीछे पड़ गई। सभी साथी पकड़े गए लेकिन दुर्गा भाभी फरार हो गईं। इसी बीच चंद्रशेखर आजाद ने भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी रुकवाने के लिए गांधीजी को संदेश भेजा और इसके बदले वे हिंसा का रास्ता त्यागने का तैयार हो गए।

यह संदेश दुर्गा भाभी और सुशीला दीदी ही लेकर गई थीं। लेकिन गांधी जी ने उनके प्रस्ताव को ठुकरा दिया। दुर्गा भाभी के फरारी जीवन के दौरान देहरादून में छिपने और सरदार भगत सिंह व उनके पति भगवती चरण वोहरा के गुरु आचार्य उदयवीर शास्त्री के सहयोग से हरिद्वार, ऋषिकेश भागने का किस्सा भी रोमांचक है।

दुर्गा भाभी : एक महान महिला क्रांतिकारी जिसने भारत की आज़ादी के खा़तिर अपने पति तक को खो दिया।

गाजियाबाद में जिंदगी को कहा अलविदा

अपने साथी क्रांतिकारियों के शहीद हो जाने के बाद दुर्गा भाभी एकदम अकेली पड़ गईं। वह अपने पांच साल के बेटे शचींद्र को शिक्षा दिलाने की व्यवस्था करने के उद्देश्य से साहस कर दिल्ली चली गईं लेकिन पुलिस उन्हें बराबर परेशान करती रही। वे दिल्ली से लाहौर चली गईं, जहां पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया और तीन वर्ष तक नजरबंद रखा। फरारी, गिरफ्तारी व रिहाई का यह सिलसिला 1931 से 1935 तक चलता रहा। अंत में लाहौर से जिलाबदर किए जाने के बाद 1935 में गाजियाबाद आकर प्यारेलाल कन्या विद्यालय में अध्यापिका की नौकरी करने लगीं। कुछ समय बाद फिर दिल्ली जाकर कांग्रेस में शामिल हो गईं। लेकिन कांग्रेस में सुभाष चंद्र बोस के प्रति गांधीजी के समर्थकों का अपमानजनक व्यवहार देख कर, कांग्रेस के बड़े नेताओं की हठधर्मिता और अंदरूनी मतभेदों को समझ कर उन्हें यह संस्था खोखली लगी और उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। अब दुर्गा देवी के सामने जीवनयापन का प्रश्न था।

जेठ उमाचरण ने पैसे की धोखाधड़ी की और पैतृक संपत्ति हथियानी चाही। तब 1939 में मद्रास जाकर उन्होंने मारिया मांटेसरी से मांटेसरी पद्धति का प्रशिक्षण लिया तथा 1940 में लखनऊ में कैंट रोड (नजीराबाद)के एक निजी मकान में सिर्फ पांच बच्चों के साथ मांटेसरी विद्यालय खोला। आज भी यह विद्यालय लखनऊ में मांटेसरी इंटर कालेज के नाम से जाना जाता है। इसका शिलान्यास पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था और अपने दोनों नवासों राजीव गांधी और संजय गांधी को वहां पढ़ाया था। जब वह अस्वस्थ रहने लगीं तो उन्होंने स्कूल की कार्यसमिति से अवकाश ले लिया और अपने एकमात्र पुत्र शची वोहरा के साथ रहने लगीं। 15 अक्टूबर, 1999 को गाजियाबाद (उ.प्र. ) में दुर्गा भाभी ने इस दुनिया को अलविदा कह दिया।

‘क्रांतिकारी दुर्गा भाभी’ पुस्तक के लेखक सत्यनारायण शर्मा ने बताया कि दुर्गा भाभी के अंतिम दिनों में उनकी स्मृति काफी कमजोर हो गई थी। लाहौर के नेशनल कालेज में शहीद भगत सिंह, शहीद भगवती चरण वोहरा और शहीद सुखदेव के अध्यापक उदयवीर सिंह शास्त्री जी गांधी नगर स्थित आर्य समाज संन्यास आश्रम, गाजियाबाद में ही रहते थे। उनसे भी मैं परिचित था क्योंकि वे मेरे बाबा पं. जनार्दन शर्मा के दोस्त थे। उन्होंने मुझे देहरादून से रातों-रात दुर्गा भाभी को लेकर हरिद्वार, ऋषिकेश जाने की घटना बताई। उदयवीर जी और टंडन जी ने पेड़ की डाली तोड़ कर बहंगी बनाई और उसमें चारों ओर चादर और धोती को बांधा। दुर्गा देवी उसमें बैठीं और उदयवीर जी व टंडन जी उन्हें कहार की तरह से उठाकर ऋषिकेश लेकर गए। दुर्गा भाभी के पीछे लाहौर से जो जासूस लगा था उसने उन्हें पहचान लिया था। उसी रात को दुर्गा भाभी अपने परिचित टंडन जी के साथ देहरादून से निकलीं। दुर्गा भाभी ने भी बताया था कि हमारे पास एक चादर थी और मेरे पांव में चप्पल के काटने और पैदल चलने के कारण छाले पड़ गए थे। उस समय ऋषिकेश का रास्ता बहुत खराब था। बनारस में रह रहे सतीश चंद्र मिश्र से भी मुझे कई जानकारियां मिली हैं। जो उन विनायक मिश्र के पौत्र हैं जिन्होंने चंद्रशेखर आजाद की अंत्येष्टि की थी। मेरी करीब तीस से ज्यादा किताबें क्रांतिकारियों पर हैं। इन दिनों मैं सुशीला दीदी पर किताब लिख रहा हूं।

Edited By: Mangal Yadav

सौजन्य : दैनिक जागरण


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