Captain Manoj Pandey: ‘…तो मैं मौत को भी मार दूंगा’
Captain Manoj Pandey कैप्टन मनोज पांडे का जन्म 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर के रुधा गांव में हुआ था। उन्होंने बचपन में ही ठान लिया था कि उन्हें सेना में जाना है। उनके इस फैसले में उनके परिवार ने भी खूब साथ दिया। कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस और नेतृत्व का परिचय देने वाले कैप्टन मनोज पांडे को मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
25 जून, 2024 – नई दिल्ली : भारत के वीर जवानों ने एक नहीं कई बार पाकिस्तानी सेना (Indian Army Vs Pakistan Army) को मिट्टी में मिलाया है। आज हम बात कर रहे हैं कारगिल युद्ध (Kargil War 1999) में अपने अदम्य साहस और नेतृत्व का परिचय देने वाले कैप्टन मनोज कुमार पांडे (Captain Manoj Pandey) के बारे में, जिन्हें मरणोपरांत परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। मनोज पांडे 3 जुलाई 1999 को कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे। शहीद होने से पहले उन्होंने पाकिस्तान के तीन बंकरों को ध्वस्त कर दिया था। इस खबर में पढ़िए कैप्टन मनोज पांडे के रोचक किस्से।
उत्तर प्रदेश में जन्मे थे मनोज पांडे
गोरखा राइफल (Manoj Pandey In Gorkha Rifles) के कैप्टन मनोज पांडे का जन्म आज के ही दिन यानी 25 जून 1975 को उत्तर प्रदेश के सीतापुर के रुधा गांव में हुआ था। बचपन के कुछ साल मनोज पांडे ने अपने गांव में ही बिताए थे। इसके कुछ समय बाद उनका परिवार लखनऊ में शिफ्ट हो गया था। यहां उनका दाखिला सैनिक स्कूल में काराया गया था। स्कूल के बाद उनके पास अपना करियर बनाने के लिए कई ऑप्शन थे, लेकिन उन्होंने सेना को चुना।
उन्होंने ठान लिया था कि वे सेना में ही जाएंगे। इसलिए वे सुबह जल्दी जागते, व्यायाम करते इसके बाद बाकी के काम करते थे। उन्होंने एनडीए में हिस्सा लिया और सफलता हासिल की। एनडीए के इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया कि सेना में क्यों आना चाहते हो, तो उनका जवाब था मैं परमवीर चक्र जीतना चाहता हूं।
पहली तैनाती हुई थी कश्मीर में
मनोज ने पुणे के पास खड़कवासला स्थित राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में प्रशिक्षण लिया और 1997 में 11 गोरखा रायफल्स रेजिमेंट की पहली वाहनी के अधिकारी बने। उनकी पहली तैनाती कश्मीर में हुई और सियाचिन में भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी। उन्होंने कुछ ही समय में पहाड़ों पर चढ़ने और घात लगाकर दुश्मन पर हमला करने की महारथ हासिल कर ली थी। पांडे सियाचिन में तैनात थे। अचानक उनकी बटालियन को करगिल में बुला लिया गया। यहां पाकिस्तान घुसपैठ कर चुका था। मनोज ने आगे बढ़ कर अपनी बटालियन का नेतृत्व किया था और पाकिस्तानी सैनिकों को धूल चटा दी थी।
‘मैं मौत को ही मार डालूंगा’
कारगिल युद्ध भारत के लिए बेहद तनाव भरी स्थिति थी। सभी सैनिकों की आधिकारिक छुट्टियां रद कर दी गईं थीं। महज 24 साल के कैप्टन मनोज पांडेय को ऑपरेशन विजय के दौरान जौबार टॉप पर कब्जा करने की जिम्मेदारी दी गई थी।
भंयकर ठंड और थका देने वाले युद्ध के बावजूद कैप्टन मनोज कुमार पांडेय की हिम्मत ने जवाब नहीं दिया। युद्ध के बीच भी वह अपने विचार अपनी डायरी में लिखा करते थे। उनके विचारों में अपने देश के लिए प्यार साफ दिखता था। उन्होंने अपनी डायरी में लिखा था, ‘अगर मौत मेरा शौर्य साबित होने से पहले मुझ पर हमला करती है तो मैं अपनी मौत को ही मार डालूंगा।’
चार दुश्मन सैनिकों की ली थी जान
तीन जुलाई 1999, कैप्टन मनोज पांडे की जिंदगी का सबसे ऐतिहासिक दिन था। उन्हें खालूबार चोटी को दुश्मनों से आजाद करवाने का जिम्मा दिया गया। उन्हें दुश्मनों को दायीं तरफ से घेरना था। जबकि बाकी टुकड़ी बायीं तरफ से दुश्मन को घेरने वाली थी। वह दुश्मन के सैनिकों पर चीते की तरह टूट पड़े और उन्हें अपनी खुखुरी से फाड़कर रख दिया। उनकी खुखुरी ने चार सैनिकों की जान ली।
सौजन्य : दैनिक जागरण
test