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पंथक चुनौतियों का सामना करते-करते 100 साल का हुआ अकाली दल

December 11, 2019 By Guest Author

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अशोक नीर

14 दिसंबर 1920 को गठित हुआ और उसके बाद कई बार टूटा, कई बार बना। इस तरह पंथक चुनौतियों का सामना करते-करते अकाली दल 100 साल का हुआ। अपने शताब्दी वर्ष में प्रवेश करने वाले शिरोमणि अकाली दल की स्थापना का उद्देश्य अलग-अलग गुटों में बंटे तत्कालीन अकाली गुटों को इकट्ठा कर उन्हें पंथ की सेवा के साथ जोड़ना था।

साथ ही गुरुद्वारों की सेवा के लिए नवगठित शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के आदेशों पर अमल करना था। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए 14 दिसंबर 1920 में एक सम्मेलन का आयोजन कर गुरुद्वारा सेवक दल के गठन का फैसला किया गया था। 23 जनवरी 1921 को श्री अकाल तख्त साहिब में आयोजित एक सम्मेलन में गुरुद्वारा सेवक दल का नाम बदल कर अकाली दल कर दिया गया।

29 मार्च 1922 को अकाली दल ने एक प्रस्ताव पारित कर संगठन का नाम शिरोमणि अकाली दल रख लिया था। आजादी से पहले गुरुद्वारा साहिबान के प्रबंधों में शामिल पुजारियों को हटा कर वहां गुरु मर्यादा के अनुसार प्रबंध स्थापित करने में मदद करने वाले अकाली दल ने कई कुर्बानियां दी थी।

अकाली दल के पहले अध्यक्ष सुखमुख सिंह झब्बाल से लेकर वर्तमान अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल तक के 99 वर्ष के सफर में अकाली दल कई बार टूटा। एक-दो बार सभी अकाली धड़ों को तोड़कर कार्यकारिणी का भी गठन किया गया।

आतंकवाद के दौरान 1985 में अकाली दल के अध्यक्ष हरचंद सिंह लौंगोवाल, एसजीपीसी के अध्यक्ष जत्थेदार गुरुचरण सिंह टोहड़ा, जत्थेदार जगदेव सिंह तलवंडी, प्रकाश सिंह बादल सहित कई अकाली नेताओं ने जरनैल सिंह भिंडरावाले के पिता बाबा जोगिंदर सिंह को अपनी सेवाएं सौंप दी थी।

इसके बाद बाबा जोगिंदर सिंह ने संयुक्त अकाली दल का गठन किया लेकिन यह अकाली दल भी जल्दी दम तोड़ गया। आतंकवाद के दौरान संयुक्त अकाली दल के गठन के बाद जेल में बंद सिमरनजीत सिंह मान को भी शामिल किया गया।

20 अगस्त, 1985 में आतंकवादियों द्वारा हरचंद सिंह लौंगोवाल की हत्या कर देने के बाद शिअद की अगवाई सुरजीत सिह बरनाला ने की। बरनाला ने शिअद में अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए प्रकाश सिंह बादल को अलग-थलग करने की साजिश रची।

इसके बाद अपने राजनीतिक आधार को स्थापित रखने के लिए बादल ने अकाली दल में अपने समर्थकों के साथ शिअद (बादल) की स्थापना की।

सुरजीत बरनाला ने शिअद (बरनाला) का गठन कर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के मदद से पंजाब के मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी संभाली। इसके बाद श्री अकाल तख्त के तत्कालीन जत्थेदार प्रो. दर्शन सिंह ने अलग-अलग गुटों में बंटे अकाली दल को एकजुट करने का प्रस्ताव दिया। जत्थेदार ने अकाली दल के सभी गुटों के अध्यक्षों को 3 फरवरी 1987 को इस्तीफे के निर्देश दिए।

इसके तुरंत बाद बाबा जोगिंदर सिंह (संयुक्त अकाली दल) और प्रकाश सिंह बादल (शिअद) ने इस्तीफे दे दिए। तत्कालीन मुख्यमंत्री सुरजीत सिंह बरनाला ने इस्तीफा देने के स्थान पर पांच सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया था। बाद में बरनाला दल के साथ गए सभी अकाली नेता टूट कर बादल के दल में शामिल हो गए थे।

2001 में जत्थेदार गुरुचरण सिंह टोहरा ने बादल दल के विरुद्ध विद्रोह कर सर्वहिंद अकाली दल का गठन किया था। 2004 में टोहरा ने बादल के साथ समझौता कर अपने दल का विलय शिअद (बादल) में कर दिया था। 2017 में पंजाब विधानसभा चुनाव में अकाली दल को मिली हार के बाद कभी बादल के साथ रहे जत्थेदार रंजीत ब्रह्मपुरा की अगुवाई में टकसाली अकालियों ने अपने नए अकाली दल (टकसाली) का गठन किया है।

Courtesy – Amar Ujala

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gopalsa22721269 गोपाल सनातनी @gopalsa22721269 ·
4 Feb

निकले तो भारत जोड़ने थे लेकिन यात्रा में बुलाया उनको जो कभी भारत को तोड़ने की बात कर चुके हैं!!

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4 Feb

यही सोच कोंग्रेस को पनपने नही दे रही है जिसने कोंग्रेस का भला किया उसके साथ ऐसा ही व्यवहार करते हैं ??

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ourindiafirst19 India First @ourindiafirst19 ·
4 Feb

स्वदेशी से बढ़ रही आत्मनिर्भर भारत की धाक 💪

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