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ब्रिटिश राज के विरुद्ध स्वदेशी एक रणनीतिक संघर्ष

August 10, 2022 By Guest Author

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डॉ. प्रवेश कुमार

हिंदुस्थान में अंग्रेज़ी प्रशासनिक राज और भारत की आर्थिक लूट जिसने देश में जहा बाबू गेनु जैसे नवयुवक को भी अंग्रेज़ी राज के ख़िलाफ़ बड़ी बुलंदी से स्वर उठाने की प्रेरणा दी तो वही भारत के सम्पूर्ण स्वतंत्रता आंदोलन में स्वदेशी का विचार एक टूल का काम करता रहा है। हम देखे कि हिंदुस्तान में अंग्रेजो के आने के बाद और उनका तेज़ी से हमारे काम-धंधो पर एकाधिकार इसने जहाँ भारत में शोषण को बढ़ाया वही भारत के जन-मानस में अंग्रेज़ी शासन के प्रति विरोध के स्वर भी उठे, धीरे-धीरे ही सही पर सम्पूर्ण भारत में जन मानस को अपने हाथों से जाते रोज़गार के अवसर और अपनी आर्थिक बदहाली के विरोध में समाज जागरण के माध्यम से आंदोलन भी खड़े किए गए जिसमें ‘स्वदेशी’ का आंदोलन बड़ा कारगर आंदोलन था जिसने हिंदुस्तान के सामान्य और विशेष दोनों ही प्रकार के नागरिकों में जागरण का कार्य किया।

इस स्वदेशी आंदोलन में महत्वपूर्ण शस्त्र दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली वस्तुएँ थी जिसमें भारत में कपड़ा उद्योग विशेष रूप से था। इस शस्त्र ने भारत के ज़न-मानस को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित किया क्यूँकि ये उद्योग जहाँ भारत की अधिकांश जनसंख्या को रोज़गार उपलब्ध कराता था, वहीं प्रत्येक व्यक्ति के मानस में स्वाबलंबी होने के विचार को भी जागृत करता था। इसलिए कपड़ों की होली और स्वदेशी हस्तनिर्मित वस्तुओं के प्रयोग का आग्रह स्वतंत्रता संघर्ष में महत्वपूर्ण टूल रहा जिसे लेकर बड़े अभियान चले। लोकमान्य तिलक, डॉ. हेड्गेवार, बाबू गेनु, महात्मा गांधी, वीर सावरकर, बहन निवेदिता आदि ने इस आंदोलन को जन-जन तक पहुँचाने का कार्य किया।

आज भारत में स्वदेशी आधारित आंदोलन को समझते हैं। ब्रिटिश काल में ब्रिटिश सरकार ने अपने हितों के लिए कई ऐसी नीति और कानून बनाएं जिसके अंतर्गत हमारे अपने स्वदेशी उद्योग से जुड़े लोगों के हितों पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ा। इसमें 1813 एक्ट के तहत भारत में ‘मुक्त व्यापार की नीति’ लागू की गई इस नीति के अंतर्गत अब न सिर्फ ईस्ट इंडिया कंपनी बल्कि अन्य बाहरी कंपनियां भी भारत में व्यापार कर सकती थी, पहले ये व्यापार ईस्ट इंडिया कंपनी तक ही सीमित था अब सब बे-रोकटोक हो गया।

अब भारतीयों से कम कीमत पर कच्चा माल (raw material) ख़रीदा जाने लगा वही विदेशी बना माल महँगे दामों पर भारत में बेचे जाने लगा, मशीनों से बना कपड़ा भारत की मंडियों में बड़ी तेज़ी से प्रचलन में आ गया जिसने हमारे लाखों लोगों का रोज़गार छीन लिया। हमारे बुनकर, रगने वाले जुलाहे, धोने वाले धोबी समाज एवं कटाई सिलाई करने वाले दर्ज़ी आदि का रोज़गार छीन गया। कच्चा माल हमारे ही देश का और हम ही सबसे बड़े ख़रीदार भी, बड़ी अजीब सी बात थी।

आज भी हम ही दुनिया में सबसे बड़े उपभोक्ता है इसीलिए दुनिया के देश भारत में अपना माल बेचना चाहते हैं, लेकिन 90 के दशक में दत्तोपंत ठेंगडी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक द्वारा प्रारंभ किया स्वदेशी का आंदोलन इन कंपनियों के भारत में अपनी शर्तों पर व्यापार करने की मंशा में बड़ी बाधा बन कर खड़ा है और देश के हस्त एवं छोटे उद्योगों का जिसके कारण बचाव भी हुआ है।

भारत में अंग्रेज़ी व्यापार नीति ने के कारण न सिर्फ भारत गरीब होता गया बल्कि भारतीय बुनकरों और कपडा व्यवसाय से जुड़े लोगों का भी जबरदस्त शोषण हुआ, इसका सबसे अधिक प्रभाव दलित समुदाय पर पड़ा जो कि परम्परागत कपड़े और चमड़े के व्यवसाय से जुड़े थे। भारतीय बुनकरों के अंगूठे तक काट दिए गए ताकि वे बुनकारी का कार्य न कर सके। ये सब अंग्रेज़ क्यों  कर रहे थे? उसके पीछे का कारण था अंग्रेजों को अपने नील के बागान में खेती के लिए भारतीय किसानों के साथ मजदूरों की आवश्यकता, इसके लिए बागान मालिक रैयतों के साथ समझौता करते, इसके लिए वे अनुबंध पर किसानों के जबरदस्ती हस्ताक्षर कराकर खेती करवाते थे।

इस सारी व्यवस्था का सबसे ज्यादा विरोध 1905- 06 के बंग-भंग के दौरान देखने को मिला जब लार्ड कर्जन ने बंगाल का विभाजन किया। इस दौरान विदेशी कपड़ों की होली जलाई गई और स्वदेशी को अपनाने पर अधिक ज़ोर दिया गया। इस आन्दोलन का प्रभाव पूरे भारतवर्ष में था लेकिन बंगाल-महाराष्ट्र के क्षेत्र में बहुत अधिक था, अनेक सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने इस आन्दोलन में भाग लिया जिसमें अनुशीलन समिति, रामकृष्ण मिशन शामिल थे। सुरेन्द्रनाथ बेनर्जी, अरविन्द घोष, रवीन्द्रनाथ ठाकुर, वीर सावरकर, लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक, बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय, भगिनी निवेदिता और लाला लाजपत राय ने भी इस स्वदेशी आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी आन्दोलन के दौरान विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर ‘पिकेटिंग’ शुरू हुई। अनुशीलन समितियाँ बनीं जो दबाये जाने के कारण क्रान्तिकारी समितियों में परिणत हो गयीं। भारत में बंग-भंग के विरोध में सभाएँ तो हो ही रही थीं। अब विदेशी वस्तु बहिष्कार आन्दोलन ने भी बल पकड़ा। अश्विनी कुमार दत्त, रजनी पामदत और दादा भाई नोरोजी ने अपनी रचनाओ में बताया कि किस प्रकार अंग्रेज भारत से धन निकासी कर रहे है जिसके कारण भारत और अधिक गरीब होता जा रहा है एवं ब्रिटेन और अधिक धनी होता जा रहा है। तिलक व गणेश श्रीकृष्ण खापर्डे भी कलकत्ता पहुँचे और महाराष्ट्र के बाद बंगाल में भी शिवाजी उत्सव का प्रवर्तन किया गया। रवीन्द्र नाथ ठाकुर ने भी इस आन्दोलन का समर्थन किया और इसी अवसर पर ‘शिवाजी’ शीर्षक से प्रसिद्ध कविता लिखी। इसका प्रभाव 1905 के कांग्रेस के बनारस अधिवेशन में देखने को मिला, जिसमें स्वदेशी और आर्थिक बहिष्कार के प्रस्तावों को स्वीकार कर लिया गया। इसके बाद यह आन्दोलन निम्नलिखित तीन मुद्दों पर केन्द्रित हो गया-

(1) विदेशी वस्तु और कपड़ों का बहिष्कार

(2) अंग्रेजी में बातचीत करना बंद और स्थानीय भाषा में बातचीत को प्रोत्साहन

(3) सरकारी पदों और कौंसिल की सीटों से त्यागपत्र

संक्षेप में देशप्रेम और राष्ट्रीयता का तीव्र प्रसार करने में स्वदेशी आंदोलन को अपार सफलता मिली। यह आंदोलन विदेशी शासन के विरुद्ध जनता की भावनाओं को जागृत करने का अत्यंत शक्तिशाली साधन सिद्ध हुआ। स्वतंत्रता आंदोलन में अब राजनीति से पृथक रहने वाले अनेक वर्गों यथा- छात्रों, महिलाओं तथा कुछ ग्रामीण व शहरी जनसंख्या ने भी सक्रिय रूप से भाग लिया। आंदोलन का प्रभाव-क्षेत्र राजनीतिक जगत तक ही सीमित नहीं रहा अपितु साहित्य, विज्ञान एवं उद्योग जगत पर भी इसका प्रभाव पड़ा। इसके अलावा स्वदेशी आंदोलन ने उपनिवेशवादी विचारों एवं संस्थाओं की वास्तविक मंशा को लोगों के समक्ष अनावृत कर दिया जिससे लोगों में चेतना आई  तथा वे साहसिक राजनीतिक भागीदारी एवं राजनीतिक कार्यों में एकता की महत्ता से परिचित हुए। साथ ही स्वतंत्रता आंदोलन के सभी प्रमुख माध्यमों जैसे- उदारवाद से राजनीतिक अतिवाद, क्रांतिकारी आतंकवाद से प्रारंभिक समाजवाद तथा याचिका एवं प्रार्थना-पत्रों से असहयोग एवं सत्याग्रह का अस्तित्व इस आंदोलन से उभरकर सामने आया।

आन्दोलन का प्रभाव दिल्ली दरबार (1911) में देखने को मिला जिसमें बंग-भंग रद्द कर दिया गया, पर स्वदेशी आन्दोलन नहीं रुका। अपितु वह स्वतन्त्रता आन्दोलन में परिणत हो गया। यह आन्दोलन 1905 से 1911 तक चला और महात्मा गांधी  जी के भारत में पदार्पण के पूर्व सभी सफल आन्दोलनों में से एक था तथा आगे चलकर यही स्वदेशी आन्दोलन महात्मा गांधी के स्वतन्त्रता आन्दोलन का भी केन्द्र-बिन्दु बन गया तथा स्वदेशी व बहिष्कार आंदोलन से जो राजनीतिक चेतना एवं राष्ट्रवादी लहर पैदा हुई कालांतर में उसने भारत की स्वतंत्रता की रूपरेखा तैयार की। स्वदेशी आन्दोलन ज़न सरोकार के साथ जुड़ा था और प्रत्येक व्यक्ति को प्रभावित करता था इस लिये स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेज़ी सरकार के विरुद्ध ये महत्वपूर्ण रणनीति बनी। अंग्रेज़ी सरकार को आर्थिक रूप से प्रभावित किए बिना उनकी कमर नहीं तोड़ी जा सकती इसलिए जितने भी विरोध प्रदर्शन हुए उनमें विदेशी वस्त्रों की होली जलाना एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम था। गाँधी जी का खादी के लिए आग्रह भी इस स्वदेशी विचार को जन-जन तक पहुचाने का माध्यम था।

(लेखक जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली में सहायक प्रोफेसर है।)


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parwati_93 पार्वती आर्य @parwati_93 ·
3h

आवश्यकता ही आविष्कार की जननी होती है...
पाकिस्तान में पेट्रोल की कमी के कारण नए अविष्कार ने जन्म लिया है👇🤣🤣🤣

Reply on Twitter 1622858416124461057 Retweet on Twitter 1622858416124461057 117 Like on Twitter 1622858416124461057 140 Twitter 1622858416124461057
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pun_fact PunFact @pun_fact ·
4h

Some people armed with swords stopped a school bus following an altercation with the bus driver in Gurdaspur. They didn't even care about crying children in the bus 👎

Reply on Twitter 1622848711096258563 Retweet on Twitter 1622848711096258563 82 Like on Twitter 1622848711096258563 118 Twitter 1622848711096258563
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sudhir_mish Sudhir Mishra 🇮🇳 @sudhir_mish ·
6 Feb

लाइव “धर्मांतरण” का पर्दाफाश हुआ !! कहती है सर सिर्फ एक बार पढ़ लो !!

यह धर्मांतरण “सतर्कता” एकता से रूक सकता है?
https://twitter.com/i/spaces/1YpKkgeMXnwKj

Reply on Twitter 1622542156547379200 Retweet on Twitter 1622542156547379200 4392 Like on Twitter 1622542156547379200 9237 Twitter 1622542156547379200
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