जितेंद्र भारद्वाज
इन देशों में बैठे लोगों पर नहीं कसा शिकंजा तो होते रहेंगे मर्डर
सीमावर्ती राज्य ‘पंजाब’ विदेशी खतरे की जद में आ रहा है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, लगातार ऐसे प्रयासों में लगा है कि किसी भी तरह से इस राज्य को अशांत किया जाए। ‘आईएसआई’ की मदद से आए दिन पंजाब में ड्रोन से हथियार, गोला बारूद और ड्रग के पैकेट गिराए जा रहे हैं। अब कनाडा-आस्ट्रेलिया-आर्मेनिया जैसे देशों में बैठे कई लोगों की ‘खुशहाल पंजाब’ पर बुरी नजर पड़ गई है। ‘सिख फॉर जस्टिस’ जैसे खालिस्तानी संगठन, सार्वजनिक तौर पर भारत को चुनौती देने में लगे हैं। सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि राजनयिक तरीका अपनाकर, विदेशों में बैठे लोगों पर शिकंजा नहीं कसा तो ‘सिद्धू मूसेवाला’ जैसे लोगों के मर्डर का सिलसिला आगे भी जारी रहेगा। पंजाब को इनके ‘चंगुल’ से बाहर निकालना होगा।
सुरक्षा के मामले में सबसे अहम प्वाइंट ‘थ्रेट‘ मूल्यांकन होता है …
दिल्ली पुलिस के विशेष आयुक्त पद से सेवानिवृत्त एवं इंटेलिजेंस एजेंसी में लंबे समय तक सेवाएं दे चुके प्रदीप कुमार भारद्वाज का कहना है, ‘सिद्धू मूसेवाला’ के मामले में कई बातों का ध्यान रखना चाहिए था। किसी भी व्यक्ति को सुरक्षा देने का एक नियम होता है। उसमें अनेक बातें देखी जाती हैं। जब सुरक्षा वापस ली जाती है, तो भी वही नियम फॉलो करने पड़ते हैं। इस प्रक्रिया में सबसे अहम प्वाइंट ‘थ्रेट’ मूल्यांकन होता है। खतरा कितना ज्यादा है या कम है, इसी आधार पर सुरक्षा देने या हटाने का निर्णय लिया जाता है। इसी आधार पर यह तय होता है कि किसी व्यक्ति को एक्स, वाई, वाई प्लस, जेड या जेड प्लस, कौन सा सुरक्षा कवर दिया जाए। कितने पीएसओ यात्रा के दौरान साथ रहेंगे, एस्कॉर्ट चलेगी या नहीं।
सुरक्षा की मांग ‘टोरा‘ दिखाने के लिए भी होती है
केंद्र में सुरक्षा मुहैया कराने के दौरान बहुत कठोर प्रक्रिया अपनाई जाती है। उसमें स्थानीय पुलिस के अलावा ‘इंटेलिजेंस ब्यूरो’ की रिपोर्ट को बहुत अहमियत दिए जाने का प्रावधान है। आमतौर पर राज्य में सुरक्षा देने के अपने ही नियम फॉलो होते हैं। कई बार ‘रसूख’ भी देखा जाता है। उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, बिहार, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल व दूसरे कई राज्यों में तय प्रक्रिया के बिना भी सुरक्षा प्रदान कर दी जाती है। जिस तरह से सुरक्षा देते हैं, वैसे ही वापस भी ले ली जाती है। पंजाब में एकाएक 424 लोगों की सुरक्षा वापस हुई। संभव है कि वहां सारे नियमों का पालन न किया गया हो। वैसे भी अधिकांश राज्य, सुरक्षा देने या वापस लेने में ‘आईबी’ की सलाह को दरकिनार कर देते हैं। बहुत से ऐसे वीआईपी हैं, जिन्हें महज ‘टोरा’ यानी दिखावे के लिए सुरक्षा दे दी जाती है।
विदेशों में बैठे लोगों पर शिकंजा कसने की जरूरत है
पाकिस्तान, कनाडा, आस्ट्रेलिया व आर्मेनिया जैसे देशों में बैठे कई लोग, पंजाब पर बुरी नजर लगाए बैठे हैं। किसान आंदोलन में क्या हुआ, सभी जानते हैं। ‘सिख फॉर जस्टिस’ जैसे खालिस्तानी संगठन की भूमिका किसी से नहीं छिपी है। किसान आंदोलन में तोड़फोड़ की बातें करने वाले इस संगठन ने पंजाब में भी कई वारदातों को अंजाम दिया है। सिद्धू मूसेवाला की हत्या की जिम्मेदारी कनाडा में बैठे गैंगस्टर गोल्डी बराड़ ने ली है। ‘सिख फॉर जस्टिस’ का संस्थापक एवं दूसरे कई खालिस्तानी नेता भी कनाडा में रह रहे हैं। उन्हें वहां की नागरिकता हासिल है।
गैंगस्टर लॉरेंस बिश्नोई और दविंदर बंबीहा ग्रुप के बीच गैंगवॉर चल रही है। हालांकि दविंदर बंबीहा 2016 के एनकाउंटर में मारा गया था। सूत्रों का कहना है कि बंबीहा ग्रुप को आर्मेनिया में बैठा लक्की पटियाला चलाता है। इन सभी लोगों पर शिकंजा कसना चाहिए। खालिस्तान मूवमेंट से जुड़े अनेक लोग अब कनाडा में बसे हैं। इन्होंने वहां की सरकार से यह कह कर कि भारत में हमें बेवजह कानूनी प्रक्रिया में फंसाया जा रहा है, शरण ले ली। बाद में इन्हें वहां की नागरिकता मिल गई। अब ये लोग वहां के कानूनों का फायदा उठाकर पंजाब या देश के दूसरे हिस्सों में तोड़फोड़ की साजिश रचते रहते हैं। लॉरेंस बिश्नोई भले ही तिहाड़ जेल में बंद है, मगर उस पर भी ऐसे आरोप हैं कि वह जेल में बैठकर अपना गैंग ऑपरेट करता है। उसके गैंग में सैंकड़ों शूटर हैं। वे पंजाब ही नहीं, बल्कि कनाडा सहित कई देशों में मौजूद हैं।
पंजाब बॉर्डर स्टेट है, ऐसे में अब राजनयिक तरीका ढूंढना होगा
बतौर पीके भारद्वाज, पंजाब एक बॉर्डर स्टेट है। पहले कई दशकों तक आतंकवाद का दंश झेल चुका है। अब विदेशों में बैठे लोग यहां अशांति फैलाना चाह रहे हैं। आतंकवाद, दोबारा नहीं उठे, इसके लिए राजनयिक तरीका अपनाना होगा। गुरपतवंत सिंह पन्नू व दूसरे ऐसे लोगों को पकड़ना होगा। आपराधिक मामलों में पारस्परिक कानूनी सहायता के अनुरोध को केंद्रीय गृह मंत्रालय एवं विदेश मंत्रालय के जरिए संभव बनाया जाता है। दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 105 में केन्द्र सरकार द्वारा समन/वारंट/न्यायिक प्रक्रियाओं की सेवा के संबंध में विदेशी सरकारों के साथ पारस्परिक व्यवस्था किए जाने की बात कही गई है। गृह मंत्रालय (गृह मंत्रालय) ने 39 देशों के साथ आपराधिक मामलों पर पारस्परिक कानूनी सहायता संधियां/समझौते किए हैं, जहां दस्तावेजों की तामील करने का प्रावधान है।
इस संधि में भारत के साथ कनाडा भी है…
आपराधिक मामलों में परिचालन पारस्परिक कानूनी सहायता संधियों वाले देशों की सूची में स्विट्जरलैंड, टर्की, युनाइटेड किंगडम, कनाडा, कजाकिस्तान, संयुक्त अरब अमीरात, रूस, उज्बेकिस्तान, ताजिकिस्तान, यूक्रेन, मंगोलिया, थाईलैंड, बहरीन, फ्रांस, दक्षिण कोरिया, सिंगापुर, दक्षिण अफ़्रीका, संयुक्त राज्य अमेरिका, बेलारूस, मॉरीशस, कुवैत, स्पेन, बुल्गारिया, वियतनाम, मेक्सिको, मिस्र, हांगकांग, बोस्निया और हर्जेगोविना, ईरान, म्यांमार, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मलेशिया, अजरबैजान, किर्गिज गणराज्य, इजराइल व ओमान की सल्तनत शामिल हैं। अन्य मामलों में, गृह मंत्रालय द्वारा विदेश मंत्रालय या उस देश में हमारे मिशन/दूतावास के माध्यम से संबंधित विदेशी सरकार को पारस्परिकता के आश्वासन के आधार पर अनुरोध किया जाता है। दोनों श्रेणियों के देशों में अंतर यह है कि भारत के साथ एमएलएटी ‘आपराधिक मामलों में पारस्परिक कानूनी सहायता संधियां’ रखने वाले देश का दायित्व है कि वह दस्तावेजों की तामील पर विचार करे, जबकि गैर-विधायक देशों पर इस तरह के अनुरोध पर विचार करने की कोई बाध्यता नहीं है।
विदेश में रहने वाले व्यक्ति के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट
यह प्रावधान है कि विदेश में रहने वाले व्यक्ति पर भारतीय अदालतों द्वारा जारी गिरफ्तारी वारंट (जमानती और गैर-जमानती) के लिए एक तय प्रक्रिया अपनाई जाती है। गृह मंत्रालय को प्राप्त समन/वारंट/न्यायिक प्रक्रियाओं को संबंधित भारतीय मिशन/दूतावास को भेज दिया जाता है, जो बदले में इस मामले को उस देश में नामित केंद्रीय प्राधिकारी के पास भेजता है। एमएलएटी देशों के मामले में, संचार का तरीका एमएलएटी में ही निर्धारित होता है। यहां पर वह प्रक्रिया सीधे गृह मंत्रालय और केंद्रीय प्राधिकारी के बीच या राजनयिक माध्यमों से हो सकती है। नामित प्राधिकारी के अनुरोध पर विचार करने के बाद अपनी एजेंसी को संबंधित व्यक्ति को दस्तावेजों की तामील करने का निर्देश देता है। अगर तामील की रिपोर्ट आती है तो वह भी उसी चैनल के माध्यम से प्राप्त होती है। कुछ देशों में निजी कंपनियों/एनजीओ को न्यायिक दस्तावेजों की तामील करने का जिम्मा भी सौंपा गया है।
भारत की 48 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधियां लागू हैं…
प्रत्यर्पण के अनुरोध, संबंधित देश के साथ बातचीत की प्रत्यर्पण संधियों में निहित कानूनी सिद्धांतों और प्रक्रियाओं पर आधारित हैं। मौजूदा समय में भारत की 48 देशों के साथ प्रत्यर्पण संधियां लागू हैं। इनमें अफगानिस्तान, ऑस्ट्रेलिया, अजरबैजान, बहरीन, बांग्लादेश, बेलारूस, बेल्जियम, भूटान, ब्राजील, बुल्गारिया, कनाडा, चिली, मिस्र, फ्रांस, जर्मनी, हांगकांग, इंडोनेशिया, ईरान, इस्राइल, कुवैत, लिथुआनिया, मलेशिया, मलावी, मॉरिशस, मैक्सिको, मंगोलिया, नेपाल, नीदरलैंड, ओमान, फिलीपींस, पोलैंड, पुर्तगाल, रूस, सऊदी अरब, दक्षिण अफ्रीका, दक्षिण कोरिया, स्पेन, स्विट्जरलैंड, तजाकिस्तान, थाईलैंड, ट्यूनीशिया, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात, यूके, यूक्रेन, यूएसए, उज्बेकिस्तान और वियतनाम शामिल हैं।
भारत की इन देशों के साथ प्रत्यर्पण व्यवस्था है…
- एंटीगुआ और बारबुडा,
- आर्मेनिया
- क्रोएशिया
- फिजी
- इटली
- पापुआ न्यू गिनी
- पेरू
- सिंगापुर
- श्रीलंका
- स्वीडन
- तंजानिया
- न्यूजीलैंड
नोट: इटली व क्रोएशिया के साथ प्रत्यर्पण व्यवस्था नारकोटिक्स ड्रग्स और साइकोट्रोपिक पदार्थों में अवैध तस्करी से संबंधित अपराधों तक ही सीमित है, क्योंकि भारत, इटली और क्रोएशिया नारकोटिक्स ड्रग्स एवं साइकोट्रोपिक पदार्थों में अवैध तस्करी के खिलाफ 1988 के संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन के पक्षकार हैं।
सौजन्य : अमर उजाला
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