राजेश चौहान
तकरीर है… तकरार भी है… तंज है… तनाव भी है… दहशत है और वहशत भी है… दरअसल इस वक्त दिल्ली के शाहीन बाग में हूं… यहां का माहौल समझ से परे है।
तीन नाकों पर पुलिस को पहचान पत्र दिखा कर शाहीन बाग की तरफ बढ़ा हूं। कुछ कदम रखे ही थे दो युवक तेजी से लपके, ‘कौन सा चैनल है? नाम क्या है? आईकार्ड दिखाओ… इस तसल्ली के बाद उन्होंने आगे जाने दिया, लेकिन आगे फिर रास्ता बंद है। एक अंधेरी गली पर लोहे के सींखचों का दरवाजा बंद किए दसेक जवान और चार-पांच औरतें डटे हुए हैं। फिर चैनल का नाम, पता-ठिकाना और आईकार्ड चैक हुआ और हम एक दहशत की गली में दाखिल हो गए।
दहशत इसलिए कि यह गली कुछ मनचलों के हवाले है। खैर हम पंजाब और चंडीगढ़ का नाम लेकर उनके झुंडों से बचते-बचाते अगले नाके पर पहुंच गए हैं। यहां हाथ खड़े करके तलाशी हो रही है। मोबाइल फोन और दूसरा कोई भी सामान बाहर निकालना होता है। फिर चैनल की जांच-पड़ताल! आगे फिर खुदमुख्तार ‘दरोगा’ हमारी तरफ लपकते हैं। हांजी कहां से आए? क्यों आए? क्या पूछोगे? लाइव करोगे या रिकॉर्ड करोगे? इसी बीच कुछ संदिग्ध प्रकार के युवक मुंह में गुटखा पपोलते हुए इर्द-गिर्द मण्डराने लगते हैं। मेरा कैमरामैन साथी मुझे शाहीन बाग में दाखिल होने से पहले ही दीपक चौरसिया और सुधीर चौधरी के साथ हुए वाकये को बार-बार दोहरा रहा था।
बहरहाल मैं एक अनजाना सा पत्रकार आज शाहीन बाग जाने पर आमादा था। तमाम चैकपोस्ट और जवाबतलबी को पार कर हम धरने में पहुंचने में कामयाब हो गए। खैर किसी के एतराज और किसी के एहतराम के बीच हमने अपने कैमरे की लाइट जलाई और शुरू हो गए। माहौल में दहशत थी, लेकिन हम पूर्वाग्रह नहीं आग्रह लेकर आए हैं।
हाथ में बाइबिल लिए अलेक्जेंडर यहां जोशीली तकरीर कर रहे हैं और बठिंडा से आए खालसा जी भी सीएए के खिलाफ तकरार कर रहे हैं। पेशे से वकील चंचल वर्मा अपने गालों पर तिरंगे बनाकर डटी हैं। महोम्मद आसिफ सीएए और एनआरसी में मीन-मेख निकालते हैं तो 80 साल के मियां जी अपने तीनों बेटों के नाम गिनाते हुए कहते हैं कि तीनों को धरने पर लगा रखा है और शाम को मैं भी हर रोज आता हूं।
जब मैंने पूछा कि विरोध क्यूं? तो जवाब वही कि हमें देश से बाहर करेंगे! बहरहाल यही जवाब ज्यादातर लोगों के जेहन में है। इस सबके बीच गला सूखता है तो बोतलबंद पानी भी आता है और साथ में फॉयल के लिफाफे में गर्मागर्म बिरयानी की पेशकश। हमारी इन्कारी पर कहा गया कि ‘वेज भी है… सोया की!’ सच में भूख नहीं है तो मना कर दिया।
अब काफी देर बाद हौसला भी जम गया तो मेन स्टेज पर जाने की ठानी। लेकिन यहां आईकार्ड चेक… नाम की पूछताछ आदि-आदि और साथ में पैनी नज़रों से हमारी माइक आईडी की स्केनिंग। स्टेज के आगे पहुंचते ही कई अनाड़ी एकदम लपके और हाथ सीधा कंधे पर… यहां कु तो अलाउड नहीं है… हम अपनी कार्रवाई शुरू कर चुके हैं। खैर एतराज के बीच भी कुछ खुदा के बंदों ने इज़ाज़त की हामी भर दी।
फिर कुछ महिलाओं के बीच पहुंचे, चूंकि वही इस धरने की झंडाबरदार हैं। हिजाब पहन कर आई एक महिला ने बड़ी नफासत से बात की, लेकिन बुर्के में चेहरा लपेटे एक महिला ने इस बात पर कड़ा एतराज जताया कि ये क्यों पूछ लिया कि यहां सिख, हिन्दू और ईसाई लोग भी धरने में आ गए हैं क्या उम्मीद है अब सरकार से? इस पर महिला बिफर पड़ी और इस सवाल पर ही बालगिरह दे डाली और माहौल गर्म हो गया। हमें घेरे खड़े युवकों ने पोजिशन लेनी शुरू की ही थी कि हमने स्थिति भांप ली और मसले का पटाक्षेप कर दिया। जद्दोजहद करते हुए हम महफूज स्टेज की पीछे वापस आ गए हैं। यहां कुछ मीडियाकर्मी आपस में उलझे हैं और कुछ स्वंयभू दरोगाओं के साथ झड़प में फंसे हैं।
शाहीन बाग का लब्बोलुआब अपने कैमरे में कैद कर हम जैसे-कैसे उन अंधेरी गलियों से होते हुए बाहर निकल लिए हैं, जहां अनाड़ी तंत्र की सत्ता कायम है। पुलिस बेरिकेड से पहले ही अपना इलाका मान चुकी है। आगे सबका जोखिम अपना-अपना है। इसी दौर से यह मुल्क भी गुजर रहा है। मनमानी पूरे हिंदुस्तान में चल रही है। इसी मनमानी में वतनपरस्ती का दम घुटने लगता है!
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