रजिन्द्र बंसल अबोहर
केन्द्र की एन डी ऐ सरकार जब से 3 किसान बिल ले कर आयी है तब से पंजाब व हरियाणा का किसान आंदोलन में लगा हुआ है। मुझे इसमें कोई संशय नहीं कि किसान को मंडी समिति की देखरेख में ही फसल बेचने की बाध्यता को समाप्त कर उसे किसान को अपने ही घर से बेचने के अधिकार से जहां मंडी समिति टैक्स व मंडी तक माल ले जाने के खर्च व समय की बचत भी होगी। जो निश्चित रुप से कुछ हिस्सा किसान के हिस्से आयेगा, कुछ उपभोक्ता तक पहुंचेगा। व कुछ खरीददार व्योपारी को मिलेगा। उस पर किसान को उसी दिन मंडी भाव पर अपनी फसल बेचने या उसी दिन फसल न बिकने पर मंडी में रुक उसकी रखवाली करने की मुसीबत भी नहीं रहेगी।
अगर हम गेंहू पर मंडी टैक्स की गन्ना करें तो पंजाब में 3% के हिसाब से करीब 60 रुपये, सरसों एम एस पी 4500 /-हो तो 125 रुपये क्विंटल के टैक्स की कमी होती है। जो निश्चित रुप से एक बड़ी रकम है। अगर प्रति एकड गेहूं 16 क्विंटल हो तो तीन एकड मे ये बचत 16 × 60=960/- ×3 =2880/- +अपनी ट्रैक्टर ट्राली का डीजल लगभग 500/- कुल 3380/-। ये 3 एकड वाले किसान की एक फसल की बचत है। पंजाब व हरियाणा के किसान आमतौर पर दो फसलें लेते हैं।
परन्तु इसमें सबसे ज्यादा जो वर्ग प्रभावित होगा वह है कच्चा आढती। उसके लिये सरकार को नई नीति बनानी होगी। सरकार द्वारा एम एस पी पर अधिकतर खरीदी जा रही फसलें गेंहू, व जीरी (झौना) है। मेरा आकलन है कि अभी तक इनकी परक्योर मैंट के लिए सरकार के पास कच्चा आढती के बिना कोई मैकेनिज्म नहीं है।अभी नये बिलों से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला कोई वर्ग है तो वो कच्चा आढती ही है।
इसके लिये सरकार को मेरा सुझाव है कि सरकारी ऐजेंसियों द्वारा खरीदी जाने वाली फसलें कच्चा आढती की मार्फत किसान के घर से ही भरवाने की नीति अपनायी जाये। जिसमें कच्चा आढती किसान के घर से ही फसल की ड्रैसिंग करवा उसे भरवाने सिलवाने व सरकार के गोदाम तक पहुंचाने की जिम्मेदारी ले। उसमें गांव से दूरी के हिसाब से ढुलाई व लदान की मजदूरी फिक्स कर आढती को दी जाये। इससे किसान के फसल मंडी लाने के खर्च में माल सरकारी गोदाम तक पहुंच जायेगा। वो ट्रैक्टर ट्राली किसान का होगा तो ये किसान की अतिरिक्त आय हो जायेगी। व मंडी आने जाने की खज्जल खराबी भी बचेगी।
परन्तु इसमें सबसे बड़ा विषय क्वालिटी कंट्रोल का होगा। उसके लिये किसान व आढती कै ध्यान रखना होगा। गोदाम में लगा माल किस आढती व जमीदार का है उसके लिये बोरियों पर आढती व जमींदार के नाम का मार्क लगा इस की जिम्मेदारी तय की जा सकती है।
इस व्यवस्था से जहां मंडियों में बरसात से फसल भीगने की समस्या तो खत्म होगी ही। मंडियों में सीजनल भीड़ भी खत्म होगी। कच्चा आढती भी प्रभावित नहीं होगा। व इससे किसान को होने वाला फायदा तो स्पष्ट ही है। रही बात मंडी मजदूर की तो उसके बिना तो काम चल ही नहीं सकता। वह पहले खरीद केन्द्रों में जाता है। इसमें गांव में किसान के घर जा अपना काम यथावत करता रहेगा।
मेरा सुझाव है कि सरकार किसान प्रतिनिधियों से वार्ता कर इसकी अविलम्ब योजना करे।
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