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बेशक पंजाब में भी कमल खिलेगा

July 19, 2022 By Guest Author

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प्रोफेसर सरचंद सिंह खियाला

भारतीय जनता पार्टी केंद्र में हैट्रिक लगाने के लिए 2024 के लोकसभा चुनाव जीतने की पूरी तैयारी कर रही है। भाजपा ने लोकसभा प्रवास योजना के तहत देश भर में पार्टी के लिए कमजोर मानी जाती उन 144 सीटों की पहचान करते होये कवायद शुरू कर दी है। 2019 में हुए पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान भी बीजेपी ने 120 कमजोर सीटों पर फोकस किया था, जिसमें से उसे 72 सीटें मिली थीं। पंजाब में अकाली दल के साथ साझेदारी में, भाजपा ने अमृतसर, गुरदासपुर और होशियारपुर में केवल तीन लोकसभा सीटों और 23 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ा था। पंजाब में यह पहला मौका है जब भाजपा अपने दम पर चुनाव में उतरेगी। इस योजना के तहत भाजपा अब तक पंजाब की 9 सीटों पर नजर रखे हुए है, जहां वह विधानसभा में हार के कारणों का पता लगाएगी, अपनी कमजोरियों को दूर करेगी और बूथों को मजबूत करने के लिए ज्यादा से ज्यादा लोगों को लामबंद करेगी। कुछ केंद्रीय मंत्रियों और वरिष्ठ भाजपा नेताओं ने पंजाब की जमीनी स्थिति का आकलन करने के लिए राज्य के विभिन्न हिस्सों का दौरा किया। इस अवसर पर पार्टी कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें पंजाब में आधार को मजबूत करने पर केंद्रित थीं, लेकिन कुछ नेताओं में सीटें जीतने की भावना और आत्मविश्वास की कमी थी। ऐसे में पंजाब में बीजेपी के लिए आगे बढ़ना मुश्किल होगा.हालांकि संगरूर लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी ने अच्छा प्रदर्शन किया. विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा कार्यकर्ताओं ने कठिन परिस्थितियों में भी 73 विधानसभा क्षेत्रों की हर गली, गांव और कस्बे में पार्टी का झंडा लहराते हुए कमल के फूल की मौजूदगी को साकार किया है.

भारत आज अपने इतिहास के एक महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहा है। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी और आशावादी दृष्टिकोण ने दुनिया को भारत को एक नए नज़रिये से देखने के लिए मजबूर किया है। कोविड महामारी से निपटने के अलावा विदेश नीति में उत्कृष्ट प्रदर्शन ने इराक, यमन, अफगानिस्तान और यूक्रेन में अपने लोगों को संकट से बचाने में अहम भूमिका निभाई है। दुनिया की छठी सबसे मजबूत अर्थव्यवस्था होने के अलावा भारत आज किसी भी विश्व महाशक्ति के आगे झुके बिना साहसपूर्वक और स्वतंत्र रूप से अपनी बात रख सकता है। लेकिन दुख की बात है कि देश की इतनी महत्वपूर्ण उपलब्धियों के बावजूद पंजाब गहरे असंतोष और निराशा की चपेट में है। नशीली दवाओं और गैंगस्टरों के प्रसार के साथ बिगड़ती कानून व्यवस्था की स्थिति ने राज्य सरकार की प्रशासन को कुशलता से चलाने की क्षमता पर सवाल खड़ा कर दिया है। ऐसे में एक पंजाबी होने के नाते मैं पंजाब के लिए श्री नरेंद्र मोदी का गतिशील नेतृत्व चाहता हूं।

लेकिन पंजाब की स्थिति बाकियों से अलग है, जहां भाजपा सत्ता में है। पंजाब के लिए भाजपा की योजनाएं पंजाब में अपना आधार मजबूत करने और उसे सत्ता में लाने के लिए अनूठी होनी चाहिए। संगरूर उपचुनाव का नतीजा पंजाब की नब्ज और राजनीतिक मनोविज्ञान को समझने का सुविधाजनक मॉडल हो सकता है. दो महीने पहले ही भारी बहुमत से फतवा दी गई आम आदमी पार्टी को लोगों ने उखाड़ फेंका था. कारण यह था कि जिस नई पार्टी को मौका दिया गया था, उसने पंजाब के भविष्य को तय करने का अधिकार दिल्ली के उस नेतृत्व को सौंप दिया, जिसका पंजाब से कोई लेना-देना नहीं था। पंजाबियों ने इसे स्वीकार नहीं किया। नतीजतन, पंजाबियों और संगरूर के मतदाताओं ने उस पार्टी और विचारधारा को पसंद किया जो पंजाब के लिए लड़ी और खड़ी रही। बेशक यह शिरोमणि अकाली दल था, हालांकि अकाली दल बादल ने सिख समुदाय में अपनी विश्वसनीयता खो दी है और छठे पायदान पर पहुंच गया है। लेकिन लोगों द्वारा जीताया गया सिमरनजीत सिंह मान भी अकाली संस्कृति का हिस्सा है।

इसे जीताने में हिंदू और मुस्लिम समुदायों ने भी अहम भूमिका निभाई। कहने की जरूरत नहीं है कि इस जीत ने एक स्पष्ट संकेत दिया कि पंजाब के लोगों से अकाली दल की विचारधारा का उन्मूलन नहीं हुआ है। अकाली दल (बादल), जिसने अपने शासन के 10 वर्षों के दौरान भाजपा के साथ हाथ मिलकर राज्य में सबसे अधिक विकास लाया था, आज इतनी बुरी तरह से सत्ता से बाहर है । उसने पंजाब के मुद्दों और सिख समुदाय के धार्मिक भावनाओं की अनदेखी की थी । बादल दल की खराब स्थिति पंजाब के लोगों के धार्मिक मामलों के प्रति जीरो टॉलरेंस का संकेत देती है।

पंजाब की मानसिकता आज भी जख्मी है। पिछली सरकारों, विशेषकर कांग्रेस ने अपने राजनीतिक लाभ के लिए, पंजाब की सांप्रदायिक सद्भाव और राजनीतिक हितों पर भारी प्रहार किया, लोग बेगानगी महसूस कराई । पंजाब की राजधानी चंडीगढ़ और पंजाबी भाषी इलाकों को पंजाब को सौंपने, पंजाब का नदी जल और हेडवर्क्स आज भी जैसे का तैसा बना हुआ है। यहां मैं यह कहने में संकोच नहीं करूंगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछली सरकारों में देखी गई शाश्वत समस्याओं से निपटने की इच्छाशक्ति की कमी को छोड़ कर अयोध्या में राम मंदिर निर्माण, कश्मीर से अनुच्छेद 370 को हटाने, तीन तलाक, नागरिक संशोधन अधिनियम, आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस, सीमा पार आतंकवादी कैम्पों पर सर्जिकल स्ट्राइक, ने सदीवी समस्या से निपटने के लिए निर्णायक दृष्टिकोण अपनाकर अपने दृढ़ संकल्प को साबित किया है। इसी तरह, पंजाब और सिख पंथ के उपरोक्त लंबित मुद्दों को हल करके पंजाबियों का दिल जीता जा सकता है, जिसमें सिख राजनीतिक बंदियों को प्राथमिकता के आधार पर रिहा करना भी शामिल है। बेशक अपने पिछले 8 वर्षों के कार्यकाल के दौरान, प्रधान मंत्री मोदी ने करतारपुरलांघा, ’84 के सिख नरसंहार के अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई । वीर बाल दिवस, शताब्दी के गुरपुरब और कुछ सिख कैदियों की रिहाई सहित अफगानिस्तान के सिखों की सुरक्षा पर एक अमिट छाप छोड़ने वाले उठाए गए महत्वपूर्ण कदम सराहनीय हैं।

राष्ट्रवाद की भाजपा की अवधारणा इस आधार पर आधारित है कि भारत अनेक रीति-रिवाजों, धर्म और भाषा के मामलों में एक अद्वितीय विविधता प्रस्तुत करने के बावजूद, भारतीय राष्ट्रवाद और मातृभूमि की भावना सभी के लिए समान है। इसीलिए बीजेपी ने बिना किसी जाति और धार्मिक भेदभाव के सभी भारतीयों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। बीजेपी का मिशन भारत को एक ऐसा देश बनाना है जहां सभी एकजुट, सुखी और समृद्ध हों। इसलिए, पंजाब के लोगों की मानसिकता को सफलतापूर्वक भाजपा के पक्ष में बदलने के लिए, इस ‘सब का साथ, सब का विकास’ दृष्टिकोण को सही अर्थों में लागू करके, पंजाब के लोगों को यह एहसास कराया जाना चाहिए कि भाजपा के पास केंद्र में ऐसा एक सरकार है जो उनकी भलाई और आकांक्षाओं की पूर्ति चाहता है। पंजाब के काले दौर के बाद, हिंदू सिख भाईचारे को मजबूत करने के लिए भाजपा और अकाली दल के गठबंधन को एजेंडा के रूप में अपनाया गया था। हालांकि इतिहास गवाह है कि पंजाब में हिंदू सिखों का भाईचारा कभी नहीं टूटा, यहां तक कि उन परिस्थितियों में भी जब पंजाब में उग्रवाद का दौर था। इसका प्रमाण यह है कि हिंदू सिखों में कभी भी सांप्रदायिक दंगा नहीं होया है। हिंदू समुदाय ने हमेशा सिख भावनाओं को महत्व दिया है। इसी तरह पंजाब के भाजपा नेतृत्व को सिखों की धार्मिक भावनाओं का सम्मान करना होगा। उन्हें सिख पंथ में स्वीकृत व्यक्तियों के प्रति अपना दृष्टिकोण बदलना होगा। कम से कम उनके प्रति किसी भी नकारात्मक टिप्पणी से बचने की जरूरत है। इसके साथ ही पंजाब के महत्वपूर्ण मुद्दों के प्रति उसका संघर्ष और दृष्टिकोण अभी भी समय और परिस्थितियों के अनुसार पर्याप्त नहीं है। पंजाब के हर मुद्दे के प्रति भाजपा नेतृत्व का दृष्टिकोण सकारात्मक होना चाहिए और पंजाबियों की भावनाओं के अनुकूल होना सुनिश्चित करना चाहिए। पंजाबियों की अपनी जीवन शैली और मूल्य हैं। पंजाबी निश्चित रूप से भावुक होते हैं, लेकिन साथ ही सक्षम, समर्पित, मेहनती और हमेशा नई संभावनाओं से भरे होते हैं। जरूरत एक उम्मीद की है। वह उम्मीद , भाजपा और केंद्र को मजबूती से पंजाबियों को गले लगाना होगा, निश्चित रूप से पंजाब में भी कमल खिलेगा। 


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