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आशंकाओं के भंवर जाल में मोदी सरकार के किसान बिल

September 25, 2020 By Rajender Bansal

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रजिन्द्र बंसल अबोहर

जब केन्द्र सरकार द्वारा “कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020 लाया गया है कुछ किसान संगठन कुछ राजनैतिक दल इसका लगातार विरोध कर रहे हैं। वहीं कुछ संगठन, भाजपा व उसके सहयोगी दल इसे किसान व देश हित में उठाया मोदी सरकार का एक बहुत बड़ा क्रांतिकारी कदम बता रहे हैं। इसमें सबसे मजेदार पहली बात ये है कि बिल के संसद में आने से पहले इसका समर्थन कर चुका जनसंघ के जमाने से भाजपा का सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणी अकाली दल के कोटे से एक मात्र केन्द्रीय मन्त्री हरसिमरत कौर बादल ने मंत्रीमंडल से इस बिल के विरोध में इस्तिफा दे दिया। पर शिरोमणी अकाली दल ने एन डी ए से समर्थन वापिस नहीं लिया। दूसरे 2013 के सोशल मीडिया पर विडियो में कांग्रेस ने किसानों को ए पी एम सी से ऐसे ही मुक्ती देने वाले ऐसे ही प्रावधानों वाला बिल लाने का वादा किया था। पर अब जब मोदी सरकार ने इसी बिल को बनाया तो कांग्रेस व विपक्ष  इस बिल में कोई बदलाव या संशोधन की बजाय पूरे बिल को ही खारिज करने की मांग कर रही है। व अपने ही 2013 की योजना के विरोध के साथ साथ किसानों को भड़का कर बड़ा आन्दोलन खड़ा करने की योजना भी कर रही है। और कृषी क्षेत्र को अम्बानी व अडानी को बेचने का दुष्प्रचार भी कर रही है।

होना तो ये चाहिये था कि सभी दल संसद के दोनों सदनों में इन बिलों के गुण दोष के आधार पर चर्चा कर इसमें से कुछ काट या जोड़ कर इस बिल को किसानों के हित का सर्वोत्तम आदर्श स्थापित किया जाता।परन्तु विपक्ष ने सार्थक चर्चा कर कोई सुझाव या बदलाव की मांग की जगह हो हल्ला मचाने का रास्ता चुना। नतीजतन सरकार ने दोनो सदनों में  इन तीनों बिलों को जस का तस पास करवा लिया।

इसमें मेरे या आप जैसे आम नागरिक संसद की कार्यवाही पर तो कुछ नहीं कर सकते। लेकिन जागरुक नागरिक होने के नाते जमीन पर जा कर इन बिलों का गुण-दोष के आधार पर आकलन तो कर ही सकते हैं। और आम जनता इसके बारे में क्या सोचती है। विपक्ष द्वारा उठाई गई आशंकाएं कितनी सही हैं। और सरकार के किसान हित की बातों में कितना दम है। वर्तमान व्यवस्था में इस कानून के बदलाव से किसानों को कितना फायदा या नुक्सान होगा इसका सही आकलन तो जमीनी स्तर पर जा कर ही हो सकता है। हालांकि मेरे जीवन में लगभग 30 वर्ष का कार्य क्षेत्र कृषि ऊपज के व्योपार से ही रहा है। किसान व आढती को कृषी मंडी समिति कानूनों से होने वाली सुविधा व असुविधा का काफी अनुभव है।

फिर भी मैनें इस नये बिलों से किसान को सरकार की और से किसानों को फायदे के लिए  दी जा रही छूटों का। और  नये बिलों से कही विपक्ष द्वारा कही जा रही लूटों पर अपनी जन्मस्थली व 57 साल की आयु तक  मेरी कर्मस्थली पर ही प्रबुद्ध लौगों की राय जानने की कोशिश की। इससे पहले मैं आप सब को अबोहर के बारे में भी कुछ बताना जरुर चाहूंगा।

अबोहर बागवानी में कीनू के लिये प्रसिद्ध है।अतीत में लोकसभा अध्यक्ष, केन्द्रिय कृषिमंत्री रहे व कृषि पंडित की उपाधी से सम्मानित स्वर्गीय चौधरी बलराम जाखड जी भी अबोहर क्षेत्र का गौरव हैं। अतीत में पंजाब कांग्रेस व भाजपा पंजाब के अध्यक्ष क्रमशः श्री वीरेन्द्र कटारिया जी व प्रोफेसर बृज लाल रिणवा जी रहे हैं। वर्तमान पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष श्री सुनील जाखड़ जी भी अबोहर के हैं। कांग्रेस राज में अबोहर के एम एल ऐ मंत्री या इसके समकक्ष पद पर रहे हैं। राजनीतिक जागरुकता व द्वन्द्व का सशक्त उदाहरण 1957 में अबोहर से भारतीय जनसंघ का MLA चुना जाना है। अबोहर कनक व नरमा कपास यहां की मुख्य फसलें हैं। अबोहर नरमा कपास के लिये उत्तर भारत की सबसे बडी मंडी है। इसके इलावा यहां सरसों  चने,व जौं की खेती भी होती है।  यहां काटन जिनिंग फैक्ट्रीयों के साथ आयल मिल भी काफी मात्रा में हैं। कभी भिवानी काटन मिल बड़ी धागा फेक्ट्री के साथ कोआपरेटिव स्पिनिंग मिल भी थी जो सन 2000 के आस  पास बन्द हो चुकी हैं। काटन सीड की अधिक उपलबधता से काफी आयल मिल होने से यहां चार बड़ी वनस्पति घी मिलें भी लगी थी।जो बन्द हो चुकी हैं व अब केवल एक नई लगी वनस्पति घी मिल रिफाइनरी चल रही है। सब्जियों का उत्पादन केवल स्थानीय आपूर्तिभर है। यहां केन्द्र सरकार की सीड फार्म है। जहां कृषि के लिये खोज व शोध कार्य होते हैं। सीड फार्म के कारण ही यहां अतीत में माल्टा व मौसमी के बाग थे। जो बाद में इसके द्वारा खोज की गई माल्टा व संतरा की क्रासब्रीड कीनू के बागों में बदल गये।

खेती में विभिन्नता व सामाजिक राजनैतिक जागरुकता को देखते हुये भी मैनें यहां के मेरे कुछ समाज में अग्रणी मित्रों से नये कृषी बिल उनके विचार जानने का प्रयास किया। उन सबसे आग्रह किया कि वो अपनी राजनैतिक प्रतिबद्धता से ऊपर उठ इस बिल से किसानों को होने वाले फायदों या नुक्सान पर सही सही आकलन दें। जो कुछ लौगों से बात की वह सब आपके सम्मुख रख रहा हूं।

इस अभियान में सबसे पहले मैनें बात की अबोहर क्षेत्र के युवा जमींदार, अबोहर नगर कौंसिल के पूर्व अध्यक्ष व वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी पंजाब के सचिव श्री शिवराज चौधरी से। उसी ऊपर लिखे आग्रह के साथ कि वो भाजपा नेता के साथ साथ एक किसान भी हैं और अपनी राय एक किसान होने के नाते ही दें। मान लें कि भाजपा नेता होने के कारण उनका उत्तर बिल के समर्थन में ही आना था। फिर भी मेरे प्रश्न खडा करने पर कि पूरा विपक्ष इस बिल का विरोध कर रहा है। और आपका इसका समर्थन करना कहीं इस कारण तो नहीं कि आप भाजपा पंजाब के सचिव हैं।

इस पर शिवराज चौधरी ने कहा कि  देश के  प्रधानमंत्री व  केन्द्रीय कृषी मंत्री बार बार कह रहे हैं कि न तो MSP खत्म होगा। और न ही सरकार द्वारा खरीदी जा रही फसलों की खरीद बन्द होगी।इसके बावजूद कुछ राजनैतिक दलों के बहकावे में आ कुछ किसान संगठन इसका विरोध कर रहे हैं।

किसानों को इस बिल से क्या लाभ होगा। इसपर शिवराज चौधरी कहते हैं – पहले किसान के पास फसल बेचने का एक मात्र रास्ता मंडी यार्ड में फसल ला उसे बोली पर बेच देना। उसमें उस दिन जो भी बोली लगे उस पर माल बेचना ही पडता था। या एकाध दिन रखे तो मंडी में उसकी रखवाली का बोझ भी किसान पर होता था। कोई दूसरा विकल्प उसके पास था ही नहीं। अगर वो किसी व्योपारी को घर से फसल बेचना भी चाहता तो मंडी बोर्ड के कानून आड़े आते थे। नये कानून में मंडी बोर्ड के कानूनों का जंजाल काट किसान को भारत के किसी भी व्यापारी को घर से ही फसल बेचने या पूरे देश में किसी शहर जा कर अपनी फसल बेचने की खुली छूट है। इसके साथ ही जब किसी एक फसल के भाव में उतार आ जाये तो मंडी में गई फसल की तरह उसे बेचने की मजबूरी नहीं है। वो आगे कहते हैं कि घर से फसल बिकने से उसका मंडी तक माल ले जाने तक का खर्चा व समय भी बचेगा। साथ ही मनमाफिक या उचित कीमत न मिलने पर वह घर में रखी फसल को बेचने की उसकी मजबूरी भी नहीं रहेगी।

अबोहर क्षेत्र में बागवानी में कीनू की फसल पर शिवराज चौधरी कहते हैं कि यहां पर ज्यादातर जमींदार तुड़ाई से पहले ही अपने बाग बाहर से आने वाले व्यापारियों को प्रति एकड़ कीमत पर बेच देते हैं। जिसमें या तो वो मंडी समिति का टैक्स भरते थे। या माल खेत के मालिक के नाम पर ही दूसरी जगह भेजा जाता था। इस नये कानून से बीच का मंडी समिति कोई झंझट नहीं रहेगा। व मार्किट फीस या लालफीता शाही के नाम पर खरीददार कोई कटौती नहीं कर पायेगा।

इसके बाद मैनें इस बिल पर बात की अबोहर के प्रबुद्ध पत्रकार अमित यायावर से। जो कि अपना यू ट्यूब न्यूज चैनल”  Amit Yayawar” चलाते हैं। इसी विषय पर चर्चा करते हुये उन्होने बिल से पहले राजनीति की तह में जाते हुये कहा कि “देश में इस समय दो तरह की राजनीति चल रही है। एक वो है जिसे जो देशहित में लगता है वो वोट बैंक और अंजाम की परवाह किये बिना कदम उठा रही है। चाहे वह नोटबन्दी हो, चाहे जी एस टी, चाहे तीन तलाक जैसा विवादस्पद मुद्दा हो, चाहे धारा 370 खत्म करना हो या पडोसी देशों में प्रताड़ित हिन्दु, सिखों को नागरिकता देने वाला सी ए एबिल हो, या किसानों को मंडी कानूनों के जंजाल से निजात दिलाता ये बिल। जो इस सोच की राजनीति ने झट से कर दिये। हालांकि इसमें किसी परिणाम तुरंत नहीं आने वाले थे या हैं।

दूसरी तरह कि राजनीति पर अमित यायावर कहते हैं कि दूसरी राजनीति वह है जो येन केन प्रकारेण केन्द्र की सत्ता में व राज्यों में अपनी वापिसी चाहते हैं। हालांकि विपक्ष का काम सरकार को गलत कामों से रोकना व उसकी आलोचना कर उसके खिलाफ जनमत खडा करना होता है। उसी धारणा पर आज विपक्ष सरकार के हर कदम के खिलाफ खड़ा होता है। चाहे वर्तमान सरकार उसी के मुद्दों व धारणाओं को आगे बढ़ा रहे हों या वो मुद्दे देश के लिये कितने भी जरुरी हों। हालांकि अब तक ये सब लौग सिवाय भूमि अधिग्रहण बिल के बिना मोदी सरकार को स्टैपबैक नहीं करवा पाये। और न ही अब तक के मुद्दों को जी जान से उठा कर  कोई बड़ा आन्दोलनभी  खड़ा नहीं कर पाये।

कृषि विधेयक पर अमित यायावर कहते हैं कि अगर पुरानी नीति पर चल कर किसान आज भी परेशान है। तो उसके लिये सरकारों को नये रास्ते खोलने ही होंगे। निवर्तमान मंडी व्यवस्था में उसे मंडी यार्ड में फसल बेचने के इलावा और कोई विकल्प ही नहीं था। अब नये कानून में उसे घर से ही या बाहर कहीं भी फसल बेचने के साथ कान्ट्रेक्ट फार्मिंग जैसे अन्य विकल्प भी मिल रहे हैं। जब MSP खत्म नहीं हो रहा, सरकारी खरीद बन्द नहीं हो रही, मंडी में पुरानी व्यवस्था से माल बिकना जारी रहेगा। तो किसान को फसल बेचने के अधिक विकल्प देने में क्या हर्ज है। कीनू के बागों पर उनका कहना था कि बाग में बाहर के व्यापारी को खड़ी फसल बेचने में अगर उसे एक कानूनी जाल से मुक्ति मिलती है तो ये भी ऐसे किसानों के हित में ही है।

इनके बाद मैनें बात की एक बड़े पैस्टीसाईड डिस्ट्रीब्यूटर व आढती से, वे व्यापारी होने के साथ जमीदार भी हैं। इनसे मैने बात शुरू की अबोहर क्षेत्र में कान्ट्रेक्ट फार्मिंग पर। तो उन्होने बतलाया कि अबोहर में ऐसा कोई प्रचलन नहीं है। हालांकि उन्होंने अपनी जमीन सीड कम्पनी को ठेके पर दे रखी है। वो आगे बतलाते हैं कि ये कम्पनियां बाजार के प्रचलित ठेका रेट से 15-20%ज्यादा दे देती हैं। उन्होंने ये भी कहा कि अभी जमीन ठेके पर लेने पर GST लगाये जाने की चर्चा है। अगर जमीन ठेके पर देने पर GST लगेगा तो वह जमीदार के पास से ही जायेगा। जिस पर सरकार को ध्यान दे। व ये GST नहीं लगाये।उन्होंने कहा कि अभी कुछ प्राईवेट कम्पनियां व व्योपारी सीड परक्योर करवाने के लिए कान्ट्रेक्ट फार्मिंग भी करवाते हैं। जिसमें वो  किसान को बीज के साथ साथ उसकी सम्भाल के लिए जानकारी दे फसल पकने तक उसकी कृषि माहिरों से देख रेख भी करवाते हैं। इस तरह खेती करने वाले किसान भी अभी बहुत कम हैं।

केन्द्र सरकार के कृषी बिल पर उन्होंने इसे गलत बताया। उनका ये कथन आढती सिस्टम को खत्म होने की चिन्ता से सम्बन्धित था। व मंडियों में आढती सिस्टम खत्म होने से आढत व इस व्यवसाये से जुडे लाखों लौगों के रोजगार छिनने का डर था। उन्होंने ने कहा कि सरकार इन लौगों के हितों का भी ध्यान रखना चाहिए। साथ ही MSP  व सरकारी खरीद को भी सरकार को यकीनी बनाना चाहिए।

मैनें कुछ कृषि उपज खरीदने वाले  व्यापारियों  से भी बात की। तो अधिकतर का कहना था कि MSP से ऊपर बिकने वाली उपज अगर व्यापारी सीधे किसान के गांव से खरीता है तो रास्ते के खर्च कम होंगे। ऐसा नहीं है कि पहले नरमा/कपास, सरसों के सौदे गांव से नहीं होते थे। जो सौदे होते थे वो आढती की मार्फत या बिना आढती भी होते थे।पहले प्रत्येक खरीदार को कच्चे आढती का बिल जरुरी होता था। किसान बिना आढती अपना माल बेच ही नहीं सकता था। साथ ही गांव के सौदे की सूचना मार्केट कमेटी को देना जरुरी होता था। व उस पर मंडी टैक्स भी भरना जरूरी होता था। नये कानून आने से खरीददार व किसान को इस गहरे कानूनी झंझट व मंडी टेक्स से भी निजात मिल जायेगी।

उपरोक्त सभी बन्धुओं से बात करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि इस बिल से कृषिक्षेत्र में मंडी बोर्ड की दखल कम कर किसानों को अपनी फसल अपनी मर्जी से बेचने के अधिक विकल्प मिलेंगे। जो मंडी टैक्स की बचत होगी या माल पहले मंडी, मंडी से खरीदार की दुकान या फैक्ट्री तक पहुंचने वाले खर्च की जगह किसान से सीधे दुकान या फैक्ट्री में कम खर्च में पहुंच जायेगा। इस बचत का अधिकतर हिस्सा किसान को ही मिलेगी। हालांकि उसका कुछ लाभ व्यापारी व उपभोक्ता को भी मिलेगा। गांव या घर से ही किसान व व्यापारी के समय की भी बचत होगी।जहां तक कांट्रैक्ट फार्मिंग का प्रश्न है तो मेरा मानना है  यदि किसान को फसल लगाने से पहले उसके मिलने वाले भाव व खर्च का पहले पता होगा तो उसमें उसको कोई नुकसान नहीं है। हां किसान को क्वालिटी व फसलों की विविधता पर ध्यान देना होगा। इससे देश व किसान का भला तै होगा ही, ये आज समय की मांग भी है।

मेरा मानना है कि बदलाव के इस नये रास्ते पर चलने से डर व भ्रांतियां बिल्कुल वैसी ही हैं। जैसे कोई बच्चा साईकल चलाना सीखता है तो घर वालों को चिन्ता रहती है कि वो कहीं गिरने से चैट न खा ले। फिर भी जब वो एक बार चलना शुरू कर ले तो उसे डर की जगह आनंद आने लगता है। पर हर समय सावधानी व साफ रास्ते जरुरी हैं। इसी तरह इस नये बदलाव की राह को हमें सावधानी पूर्वक अपनाना चाहिए। हालांकि पुरानी मंडी व्यवस्था व MSP व सरकारी खरीद का विकल्प भी जारी है तो फिर डर काहे का।


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