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Centre for Socio-Cultural Studies

भारत में वामपंथ की दुकानदारी केवल हिंदू विरोध के बल पर

June 5, 2021 By Guest Author

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ललित कौशिक

भारत में वामपंथ इस समय अपने समाप्त होने वाले अस्तित्व की लडाई लड़ रहा है। भारत में कभी अपनी जड़े जमा चुकें वामपंथी विचारधारा ने लोगों का विकास नही होने दिया। और जब विकसित होने लगे तो उनको दूसरा रुप देकर ये वामपंथी विचारधारा पेश करने लगी।

इसलिए 2014 में देश में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी की सरकार आने के बाद लगातार वामपंथ पिछलें 7 साल से अपना रुप बदलकर देश विरोधी शक्तियों को बहकाने में लगा हुआ है। शायद इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनको आंदोलनजीवी का नाम दिया। आंदोलनजीवी इसलिए क्योंकि एक आंदोलन में असफलता हाथ लगती है तो रुप बदलकर वो दूसरा आंदोलन तैयार कर देते है, औऱ हर षडंयत्र के पीछे यही वामपंथ की विचारधारा मिलती है।

वामपंथ की विचारधारा में हिंदुओं की चिंता करने वाले को संगठन ‘दक्षिणपंथी’ कहा जाता है। लेकिन यहां की हिंदू-चिंताएं अमेरिका या अफ़्रीका के मूल निवासियों की चिंताओं से अलग नहीं हैं। पश्चिमी सांस्कृतिक, व्यापारिक, धार्मिक दबावों के खिलाफ़ हिंदुओं का विरोध उसी तरह का है, जो अमेरिका में रेड-इंडियन या ऑस्ट्रेलिया में एबोरिजनल समुदायों का है।

पश्चिम देशों के वामपंथी अमेरिका और अफ़्रीका के मूल निवासियों की चिंताओं के समर्थक हैं। लेकिन जब बात भारत की आती है तो उनको हिंदूओं की रक्षा और उनकी संभाल की आती है तो उनको इन वामपंथी द्वारा ‘सांप्रदायिक’ कह कर ख़ारिज किया जाता है। पश्चिम के देशों के मूल निवासियों की अपने पवित्र श्रद्धास्थल वापस करने की मांग से वहां वामपंथियों की सहानुभूति हो जाती है। लेकिन हिंदुओं के धार्मिक स्थलों की बात आती है तो उनको यही विचारधारा असहिष्णुता बताकर खारिज कर देते है।

रेड-इंडियनों की संस्कृति में क्रिश्चियन मिशनरियों के दखल का अमेरिकी वामपंथी विरोध करते हैं। लेकिन जब धर्म के नाम पर ईसाई मिशनरियों भारत में हिंदुओं को जंगल में रहने वाले गांवों की सेवा बस्तियों में रहने वालों का धर्म परिवर्तन करते  है तो भारत में ये वामपंथी उन मिशनरियों का बचाव करते हैं।

अमेरिका और आस्ट्रलिया जैसे देशों में वामपंथी वहा के इतिहास को वहां की मूल संस्कृति को जीवित करने के लिए वहां के वामपंथी समर्थन करते है। जब भारत में सताए गए हिंदुओं की दृष्टि से इतिहास लिखने के प्रयास को हिंदूकरण कहकर वामपंथी उपहास करते है।

हिंदू धर्म न होकर एक जीवन पद्दती है, यानि जीवन जीने की कला है। हिंदू अपने लिए मात्र नही सोचता और वो भी केवल इंसानों के लिए नही पशु,पक्षी, पेड़-पौधों में भी जीव को मानने वाला नदियों, तुलसी, गाय और गंगा में माता का वास मानता है। हिंदूओं के हर घर में पहली रोटी गाय माता का भोग लगाकर तभी अगली रोटी अपने लिए और इतना होने के बाद अंतिम रोटी कुत्ते के लिए भी निकालता है। इसलिए हिंदू विश्व के लिए कल्याण चाहता है। लेकिन ये सब भारतीय वामपंथ की नजर में ढोंग मात्र हैं।

हजारों सालों से हिंदूओं की संस्कृति पर हमले, जबरन धर्मांतरण, देश का विभाजन किया गया। क्योंकि कभी वर्तमान के आफगानिस्तान जो कभी भारत का उपगणस्थान था, जो वर्तमान पाकिस्तान में लाहौर है वो कभी लवकुश नगरी होती थी। कंधार जो कभी गांधार होता था। उसको किस प्रकार मतांतरण द्वारा राष्ट्रांतरण कर दिया गया। इस पर अमेरिका और आस्ट्रेलिया की भांति उस इतिहास को फिर से भारत में लिखने और उसको भारतीय संस्कृति में शामिल करने की बात ये दोहराचरित्र युक्त वामपंथ क्यो नही करते।

भारत में वामपंथ का केवल और केवल हिंदू विरोध है। कभी इन्होने इस्लाम और ईसाईयत का विरोध नही किया।

हरियाण के नूहं जिले के मेवात क्षेत्र में हिंदूओं की संख्या 50 गांवों में 10 प्रतिशत से भी कम हो गई है औऱ करीब 40 गांव हिंदूविहिन हो गए है। वहां पर वामंपथ क्यों नही बोलता। जब बंगाल में हिंदूओं का विस्थापन हो जाता है तो वहां के हिंदूओं के साथ वामपंथ अपना प्रेम क्यो नही जाग्रत करता।

हिंदू समाज के साथ जब अन्याय होता है, तब उनके लिए कोई कुछ नहीं बोलता।क्यो उनके समर्थन में इन तथाकथित आंदोलनजिवियों की आवाज नही उठ पाती। जबकि मुस्लिमों, क्रिश्चियनों की बढ़ा-चढ़ाकर या झूठी शिकायत पर भी प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ जाती है।

क्यों जब बाराबंकी में एक मस्जिद टूटती है तो झारखंड में बैठे एक वामपंथी पत्रकार घर बैठकर उसको लेख का रुप देता है। लेकिन जब मंदिर टूटता है तो वामपंथ की आवाज दब जाती है।

अगर विश्व के अंदर शांति स्थापित करनी है तो विश्व का कल्याण अगर किसी मार्ग से होगा तो केवल और केवल वो एक ही मार्ग है। वो है हिंदू धर्म क्योंकि अगर हिंदू बचा तो विश्व में शांति स्थापित होगी। क्योंकि ईसाईयत और क्रिश्चिन तो केवल और केवल भारत में अपनी दुकानें चलाकर किसी ने तलवार के बल पर कोई भोले-भाले हिंदू समाज के लोगों के लोगों बाइबल औऱ धन के बल पर हिंदूओं का मतांतऱण करवा रहा है। इसलिए इस दोहरे वामंपथ को भारत में भी उसी चश्मे से देखे जिस चश्मे से वो अमेरिका, अफ्रिका और आस्ट्रेलिया के अंदर बात करता है। दोहरी निति के साथ नही।

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