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Centre for Socio-Cultural Studies

सिद्धपीठ जालंधर के इतिहास का अभिन्न अंग है श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर

September 19, 2021 By Guest Author

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विक्रान्त शर्मा

सती वृंदा की तपस्थली जालंधर की पवित्र पावन धरती जालंधर में सिद्ध शक्तिपीठ मां त्रिपुरमालिनी धाम, श्री देवी तालाब मंदिर और मां अन्नपूर्णा मंदिर, सुक्का तालाब, बाबा बालक नाथ मंदिर के साथ-साथ श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर भी शहर के पुरातन इतिहास का अभिन्न अंग है। करीब 300 वर्ष पुरातन उक्त मंदिर  के साथ चड्ढा बिरादरी, आनंद बिरादरी के जठेरो का संबंध भी विशेष महत्व रखता है। मंदिर के स्वर्णिम इतिहास के साथ कई घटनाएं व किदवंतिया जुड़ी हुई है।

श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर के साथ करीब पांच दशकों से अधिक समय से जुड़े आज्ञा पाल चड्डा बताते हैं कि सोढल मेले के दौरान श्रद्धालु मन्नतें भी मांगते हैं और जिनके पूरी होने पर वह चड्ढा और आनंद बिरादरी की तरह ही आपनी उपस्थिति दर्ज करवाने के लिए चोपहरा व्रत रखने से लेकर खेत्री पूजा तक की रस्में पूरी करते हैं। सर्वधर्म समभाव का परिचायक उक्त श्री सिद्ध बाबा सोढल मंदिर को लेकर प्रचलित कथा के अनुसार करीब 300 वर्ष पूर्व यहां घना जंगल था। एक संत की कुटिया और छोटा सा तालाब था। चड्ढा परिवार की बहू भी संत की सेवक थी। एक दिन संत ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो उसने संतान न होने को कारण बताया। संत ने कहा कि बेटी तेरे भाग्य में संतान सुख है ही नहीं। फिर भी भोले भंडारी पर विश्वास रखो। संत ने भोले भंडारी से प्रार्थना की कि चड्ढा परिवार की बहू को ऐसा पुत्र रत्न दो, जो संसार में आकर अध्यात्म और भक्ति का मार्ग प्रशस्त करे। कालान्तर के पश्चात उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई।

मां की आंखों के सामने ही तालाब में समा गए थे बाबा सोढल उक्त तालाब चड्ढा बिरादरी के लिए ही पूज्य माना जाता था। वे लोग इस तालाब की पावन मिट्टी की पूजा-अर्चना किया करते थे।

मान्यता है कि उक्त चड्ढा बिरादरी की बहू अपने बेटे के साथ इस तालाब में परिवार के कपड़े धोने आई थी। उस दौरान मां की आंखों के सामने ही उसका बेटा सोढल, जो कई शक्तियों से परिपूर्ण था, मां के झिड़कने मात्र से ही उस तालाब में समा गया । महिला के विलाप करने के पश्चात वही बालक नाग के रूप में प्रकट हुआ। तभी आकाशवाणी हुई कि जो भी इस तालाब की शुद्ध हृदय से पूजा करेगा, उसकी कामनाओं की पूर्ति होगी। अनंत भगवान विष्णु के नाग का नाम है, इसीलिए अनंत चतुर्दशी के दिन जनसैलाब सोढल बाबा के नाग रूप को पूजने के लिए इस तालाब पर आता है। कच्चा दूध  नाग को अर्पित कर अपनी मन्नते मांगते है, और पूरी होने पर बाबा सोढल का आभार प्रकट करते है।

पहले पहल बाबा सोढल की पूजा अनंत चौदस पूर्व अर्धरात्रि से आरंभ होकर अगले दिन दोपहर तक ही हुआ करती थी। धीरे-धीरे अब यह हिंदू धर्म के सभी लोगों का महान तीर्थ बन चुका है। अब यह मेला भी तीन से चार दिन तक निर्बाध चलता रहता है। इसकी देखरेख के लिए एक ट्रस्ट बना हुआ है, जिसमें चड्ढा बिरादरी के अतिरिक्त अन्य लोगों को भी शामिल किया गया है।

कोरोना महामारी को ध्यान में रखते हुए इस बार जिला प्रशासन द्वारा लंगर, बड़े झूले, अन्य मनोरंजक खेलो के आयोजन पर प्रतिबंध लगाया है। मेला के दौरान होता है करोड़ो का व्यापार

उत्तर भारत के उक्त बाबा सोढल मेला के दौरान पूर्व में करोडों रुपए का व्यापार होता रहा है। सैंकड़ों लंगर, चिकित्सा शिविर, पारंपरिक मिट्टी से बने खिलोने, बर्तन से ले के हर प्रकार के सामान की दुकाने पड़ोसी प्रदेशो के व्यापारियों द्वारा मेले से कई कई दिन पूर्व सजनी शुरू हो जाती रही है। आतंकवाद के दौर में भी उक्त मेले का आयोजन शांति व सदभाव से होता रहा है। अनंत चौदस पूर्व अर्धरात्रि से आरंभ होकर अगले दिन दोपहर तक  होता है यह पवित्र मेला

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