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Centre for Socio-Cultural Studies

बाबा दीप सिंह जी की जयंती पर विशेष

January 27, 2023 By Guest Author

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बाबा दीप सिंह - विकिपीडिया

 

जब भी श्री हरिमंदर साहिब, अमृतसर की चर्चा चलती है तब हमेशा महान बलिदानी बाबा दीप सिंह जी के अद्वितीय बलिदान की याद अनायास आ जाती है। बाबा जी ने श्री हरिमंदर साहिब की पवित्रता की रक्षा के लिए बलिदान दिया। आध्यात्मिक शक्ति के पुंज बाबा दीप सिंह जी शीश कट जाने के बाद भी शीश हथेली पर रख कर लड़े और श्री हरिमंदर साहिब की परिक्रमा में पहुंच कर अपना वचन पूरा किया।

Baba Deep Singh: The Great Sikh Warrior

जन्म एवं शिक्षा-दीक्षा 

बाबा दीप सिंह जी का जन्म श्री अमृतसर के ‘पहुविंड’ नामक गांव में पिता भगता जी और माता जीऊणी जी के घर सन् 1682 ई. में हुआ था। बाबा जी बचपन में ही दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी की सेवा में श्री आनंदपुर साहिब आ गए थे। बाबा जी ने दशमेश पिता के हाथों से अमृत पान किया और उन्हीं से शस्त्र संचालन एवं गुरबाणी-अध्ययन की शिक्षा प्राप्त की। बाबा जी की रुचियां आध्यात्मिक थीं और आप सदैव नाम-सिमरन तथा गुरबाणी पठन में रत रहते। आप अत्यंत सुडौल एवं दृढ़ शरीर वाले योद्धा भी थे। आपने दशमेश पिता द्वारा लड़े गए सभी युद्धों में भाग लिया और खूब पराक्रम दिखाया।

बाबा जी की विद्वता 

दशमेश पिता श्री गुरु गोबिंद सिंह जी इनकी विद्वता से भी बहुत प्रभावित थे। जब गुरु जी ने श्री गुरु साहिब का भावार्थ किया था तो उसे सबसे पहले सुनने वाले 47 सिखों में ये भी एक थे।

धीर मलिकों ने जब श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ देने से इंकार कर दिया तो दशमेश पिता ने इन्हें भाई मनी सिंह जी के साथ मिलकर तलवंडी साबो में रहकर श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बीड़ तैयार करने का आदेश दिया। यहां बाबा दीप सिंह जी ने कई हस्तलिखित बीड़ें (श्री गुरु ग्रंथ साहिब) तैयार कीं जो बाद में चार तख्त साहिबान पर भेजी गईं।

बाबा जी तलवंडी साबो में रहते हुए गुरबाणी पठन-पाठन और अध्ययन करवाने की सेवा भी करते रहे। इस प्रकार यहां गुरबाणी के अर्थ करने की एक टकसाल आरंभ हुई जो कालांतर में ‘दमदमी टकसाल’ कहलाई।

योद्धा के रूप में : जब बाबा बंदा सिंह बहादुर पंजाब आए तब बाबा दीप सिंह जी उनके साथ हो लिए और अनेक युद्धों में शामिल होकर अपनी वीरता के जौहर दिखाए।

बाबा बंदा सिंह बहादुर की शहादत के बाद आप फिर तलवंडी साबो लौट आए और गुरबाणी-अध्ययन व पठन-पाठन में जुट गए।

सन् 1730-32 ई. में ‘बंदई खालसा’ और ‘तत्त खालसा’ के आपसी विवाद को सुलझाने में भी आपने भाई मनी सिंह जी के साथ मिलकर भूमिका निभाई।

सन् 1748 ई. में जब ‘मिसलों’ की स्थापना हुई तो बाबा दीप सिंह जी को ‘शहीदां दी मिसल’ का जत्थेदार नियुक्त किया गया।

श्री हरिमंदर साहिब की रक्षा में बलिदान 

Shaheed Baba Deep Singh Ji – Journal Edge

सन् 1757 ई. में अहमद शाह अब्दाली ने नगर श्री अमृतसर पर कब्जा कर श्री हरिमंदर साहिब को ढहा दिया और अमृत सरोवर को मिट्टी से भर दिया। यह खबर मिलते ही बाबा जी का खून खौल उठा। 75 वर्ष की वृद्धावस्था होने के बावजूद आपने खंडा उठा लिया।

तलवंडी साबो से चलते समय बाबा जी के साथ सिर्फ आठ सिख थे, परंतु रास्ते में और सिखों के आकर मिलते रहने से श्री तरनतारन तक पहुंचते-पहुंचते सिखों की संख्या पांच हजार तक पहुंच गई।

श्री तरनतारन से दस किलोमीटर दूर गोहलवड़ गांव के निकट सिखों और अफगान सिपहसालार जहान खान के लश्कर में जबरदस्त जंग शुरू हो गई। श्री हरिमंदर साहिब की बेअदबी से क्रोधित सिखों ने दुश्मन के छक्के छुड़ा दिए।

अफगानों को गाजर-मूली की तरह काटते हुए बाबा दीप सिंह जी आगे बढ़ रहे थे कि तभी एक घातक वार बाबा जी की गर्दन पर पड़ा। बाबा जी की गर्दन कट गई और वह युद्ध भूमि में गिर पड़े। यह देख कर एक सिख पुकार उठा :

 प्रण तुम्हारा दीप सिंघ रहयो। गुरुपुर जाए सीस मै देहऊ। मे ते दोए कोस इस ठै हऊ।

अर्थात बाबा दीप सिंह जी, आपका प्रण तो गुरु नगरी में जाकर शीश देने का था पर वह तो अभी दो कोस दूर है।

A Glimpse into the Life of Shaheed Baba Deep Singh Jee – Sikh24.com

यह सुनते ही बाबा दीप सिंह जी फिर उठ खड़े हुए। दाहिने हाथ में खंडा लिया, बाएं हाथ से शीश संभाला और पुन: युद्ध आरंभ कर दिया। बाबा जी युद्ध करते-करते गुरु की नगरी तक जा पहुंचे। बाबा जी के साथ-साथ अनेक सिख शहीद हो गए, परंतु श्री हरिमंदर साहिब की बेअदबी का बदला ले लिया गया।

बाबा दीप सिंह जी का अंतिम संस्कार श्री अमृतसर नगर में चाटीविंड दरवाजे के पास गुरुद्वारा रामसर साहिब के निकट किया गया। आज इस पवित्र स्थान पर गुरुद्वारा श्री शहीदगंज साहिब सुशोभित है। बाबा जी ने श्री हरिमंदर साहिब की परिक्रमा में जहां शीश भेंट किया था, वहां भी गुरुद्वारा साहिब निर्मित है। बाबा जी का खंडा श्री अकाल तख्त साहिब में सुशोभित है।

सौजन्य : पंजाब केसरी

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